अलसाई सुबह ,कौन इसका लाभ उठा पाता है ?मन तो करता रहता है ,सुबह की अलसाई नींद का आनंद लें ,क्या ये सम्भव हो पाता है ?इसका आनंद तो कोई आलसी व्यक्ति ही ले सकता है या फिर जिसे कोई कार्य न हो। सुबह की नींद का मज़ा सभी लेना चाहते हैं किन्तु जिसके सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ हो तो फिर वो कहाँ , ऐसी नींद का लाभ उठा पायेगा ?वो तो बस यही पूछेगा -''सुबह की नींद ''वो किस चिड़िया का नाम है ?
जिन्हें अपने जीवन से ,अपनी सेहत से प्यार होता है ,वे भी सुबह की नींद का आनंद नहीं ले पाते वरन सुबह की ताज़ी हवा का आनंद लेते हैं। बचपन में हम सोते भी थे तो हमारे बड़े ये दोहा सुनाकर ,हमें उठाते -
'' उठ जाग मुसाफ़िर भई ,अब रैन कहाँ जो सोवत है ,
जो सोवत है ,सो खोवत है। जो जागत है ,सो पावत है। ''
की तर्ज़ पर प्रातःकाल ही उठा देते और पढ़ने के लिए बिठा देते ,प्रातःकाल में ही प्रकृति कितनी सुंदर दिखती है ? ये तो उस सुबह की अलसाई नींद को त्यागकर ही पता चलेगा। भक्त भक्ति करेगा ,योगी योग करता है ,उन्हें कहाँ सुबह की अलसाई नींद का पता होता है ?जिन्हें मंजिलों तक पहुंचना होता है ,वे कब कहाँ सो पाते हैं ?