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 तन्नू ,मैं और सुनीता हम तीनों सहेलियाँ ,हम गांव में घूमते मस्त रहते थे और अब तो कुछ ज्यादा ही गांव में घूमना हो रहा है। हमारे घर में शादी जो है। कभी पड़ोस वाली ताईजी को बुलाना ,कभी किसी काम से, कभी किसी काम से आना -जाना लगा ही रहता। मनिहार भी घर ही आ गया। कपड़े भी लिए जा रहे थे ,बस अभी तक तन्नू और सुनीता ही मेरी दोस्त बन सकीं क्योंकि मैं तो अपने पापा के साथ शहर में रहती हूँ न। मेरे चाचाजी का ही तो विवाह है। हलवाई भी लगे हुए हैं ,हम कभी वहीं खेलने लगते। मेरे लिए तो सब नया है अपनी याद की ये मेरी पहली शादी थी ,उससे पहले मैं और छोटी थी ,तब मैं कब और किसकी शादी में गयी ?कोई स्मृति नहीं ,अब मैं बड़ी हो गयी हूँ ,सात बरस की ,तभी मुझे इतने बरसों बाद भी अपने चाचा का विवाह स्मरण है। चलो आगे बढ़ते हैं -

मेरे चाचा के विवाह में सबसे पहली रस्म ,उनकी सगाई भी हुई और जानते हैं ,उनके विवाह में सामान भी आया पलंग ,बड़ा शीशा ,कई आकर्षक चीजें थीं  किन्तु सबसे आकर्षण का केंद्र था ,उनका बड़ा सा ''रेडियो '' वो भी कोई छोटा -मोटा नहीं ,आजकल के ''पोर्टटेबल टी.वी. के जितना बड़ा। उसकी आवाज दूर तक गूंज रही थी।सभी उसके नए -नए स्टेशन सुनना चाहते थे  ,कोई समाचार की फ़रमाइश करता। जिससे कोई  न  छेड़े ,उसे ऊँचे स्थान पर रख दिया गया। और ये  ''ऑल इंडिया रेड़ियो ''है ,के साथ गाने चल रहे थे ,कभी ''विविध भारती ''का प्रसारण  होता ,किन्तु उसके स्टेशन बदलने का काम मेरे चाचा ही कर रहे थे। कभी कोई बटन ख़राब न  कर दे। उन्हें भी इतना आता नहीं था किन्तु उनकी सगाई का था ,इस कारण वो ही चलाते। उस विवाह के पश्चात बहुत सारे और विभिन्न प्रकार के रेड़ियो देखे ,छोटे -बड़े ,''अमिन सयानी ''जी उस समय की प्रमुख आवाज थे।उनकी प्रभावशाली आवाज़ बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींच लेती थी। 
सुबह की चाय के साथ समाचार सुनते , ''गीत माला ,भूले -बिसरे गीत ,स्वतः ही गुनगुनाने पर मजबूर कर देते। सारा दिन रेडियो चलता रहता ,कभी किसी के लिए ,कभी किसी के लिए। इसकी जगह या यूँ कहे इसी के साथ ''टेपरिकॉर्डर ''भी आ गया अब तो सोने पर सुहागा। गाने सुनो भी जो ज्यादा पसंद हों ,उन्हें रिकॉर्ड भी कर लेते थे। उसके पश्चात इसका नया  रूप '' एफ़ एम् ''उस पर भी लोग गाने सुनते। अपनी गाड़ियों में भी बजाते। दूरदर्शन ने आकर ,थोड़ा इसे आराम दिलाया। अब लोग आवाज़ सुनने की बजाय ,उस गाने वाले को या कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले को देखना भी पसंद करने लगे। 

जब से टेलीविज़न पर अनेक चैनलों की भरमार हो गयी तबसे रेड़ियो कभी -कभार ही चलता।एक कोने में पड़ा  धीरे -धीरे बिसूरता ,कुछ ने तो अपने रेड़ियो कबाड़ी को दे दिए। कुछ की भावनायें अब भी उससे जुडी थीं ,तो न ही बेचा ,न ही उसे सुनते। वो उन भावनाओं की गठरी बाँधे एक कोने में सजा रहता। 
जबसे ये मोबाइल फ़ोन आया है इसने तो सबकी छुट्टी कर दी। इसका अस्तित्व समाप्त न हो इसलिए रेडियो की तरह ही ''सा, रे ,ग ,म ,कारवां ट्रांजिस्टर निकाला है जिसमें पुराने गाने बजते हैं। आजकल के बच्चे कुछ भी कह लें किन्तु ये रेडियो का ही नया  रूप है। ये मोबाइल और टेलीविजन के चलते ,अपनी पहले जैसी जगह नहीं बना पाया है। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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