Abhar [part 4 ]

रत्ना और चिराग एक -दूसरे से प्यार करते हैं ,इसी के चलते वो मिलकर निर्णय लेते हैं और घर से भाग जाते हैं ,घर से दूर आ तो जाते हैं किन्तु यूँ ही सड़कों पर घूम रहे हैं ,कहीं  भी जाने का निर्णय लेने से पहले ,वो बीच राह में आराम करते हैं।चिराग़  अपने और रत्ना के मिलने के विषय में सोचता  हैं। चिराग़ एक डॉक्टर है जो बाहरवीं पास रत्ना से प्रेम करने लगता है। जब रत्ना को बुखार होता है तब  दोनों के प्रेम की शुरुआत होती है। आज भी चिराग़ उसी समय के बारे में सोच रहा है और सोचता है उसने कैसे रत्ना को उसके घर के  पीछे ख़ाली स्थान पर,रात को नौ बजे मिलने के लिए  बुलाया ?और रत्ना  कैसे उससे मिलने के लिए घर से बाहर जाने के बहाने करती है ?कैसे उसकी मम्मी उसे जाने देती है ?वो उससे मिल पाती  है या नहीं। अब आगे -

रत्ना , रात में अपनी मम्मी से बहाना बनाती है ,कि मुझे छवि को 'नोट्स 'देने जाना है किन्तु उसकी मम्मी कहती हैं -कल दे आना ! 
वो फिर से बहाना करती है -मम्मी उसका पेपर है। क्यों उसकी चिंता तुम्हें  ही है ?जिसका पेपर है ,उसे तो कोई फ़िक्र नहीं ,वो भी तो आ सकती थी मम्मी ने उससे पूछा।
 मम्मी आप तो ये ही कहती रहती हो ,मैं ही दे आऊँगी तो क्या हो जायेगा ?रत्ना झुँझलाकर बोली।
 अच्छा !इतना ही जरूरी है ,तो लता को भेज दे ,वो दे आएगी, मम्मी ने सुझाव दिया। 
वो बुरी तरह परेशान हो उठी ,वो बच्ची तो अँधेरे में जाएगी किन्तु मैं नहीं जा सकती रत्ना बोली। 
मम्मी मुस्कुराकर बोलीं -अच्छा ,जा तू भी चली जा और अपनी बहन लता को भी ले जा। वो मुस्कुराती हुई ,बाहर आ गयी। दोनों बहनें यूँ ही सड़क पर आ गयीं फिर बोली -आओ आज घर के पीछे भी घूम आते हैं। 
क्यों ?वहां तो सुनसान होगा, लता ने विरोध किया। अरे !नहीं लोग घूमते रहते हैं ,हम भी घूमकर आ जायेंगे रत्ना ने उसे समझाया। कहते हुए ,उसे ले गयी ,वहां कोई भी नहीं था ,रत्ना मुँह बनाते हुए बोली -लता तुम ठीक ही कह रही थीं ,यहां तो सच में ही कोई  नहीं , कहकर वापस चल दी। तभी उसे आते हुए ,चिराग़ दिखा ,उसे देखकर रत्ना बोली -लता देख ,डॉक्टर !
उसे देखकर लता खिल उठी और दौड़कर उसके नज़दीक गयी ,बोली -डॉक्टर साहब !क्या आप भी ,इस समय घूमते हैं ?चिराग़ ने रत्ना को देखा और मुस्कुराया ,लता से बोला -हाँ !मैं तो डॉक्टर हूँ ,मुझे तो और भी सेहतमंद रहना चाहिए वरना मुझसे इलाज़ कराने कौन आयेगा ?सोचेंगे ,ये डॉक्टर हमारा क्या इलाज़ करेगा ?जो स्वयं ही बीमार रहता है कहकर हंसने लगा और रत्ना की तरफ देख रहा था। लता ने ये सब देखा तो बोली -डॉक्टर साहब !आप मुझसे बातें कर रहे हैं तो मेरी तरफ ही देखिये न। उसकी बात सुनकर डॉक्टर झेंप गया जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी। वो बात बदलते हुए बोला -तुम लोग यहां कहाँ घूम रही हो ?रत्ना बोली -वो हम..... अभी उसने इतना ही कहा ,तभी लता बोली -हम भी सेहत बना रहे हैं ताकि दीदी फिर से बीमार न पड़े। चिराग धीमी आवाज में बोला -फिर हमारा घर कैसे चलेगा ?किन्तु रत्ना ने सुन लिया और बोली -दूसरों के घर के लिए,क्या हम बीमार हो जायें ?ये तो यही दुआ करते होंगे। 

ठंडी आहें भरते हुए ,चिराग़ बोला -हम तो न जाने क्या -क्या दुआयें  करते हैं ?पर हमारी दुआ कबूल ही कहाँ  होती है ?चिराग़ बोला। उन दोनों के उत्तर -प्रत्युत्तर सुनकर, लता  बोली -मैं भी यहां हूँ। फिर बोली -दीदी आपको तो छवि को कॉपी देनी थी ,चलो उसके घर चलते हैं। रत्ना बोली -नहीं ,अब बहुत देरी हो चुकी ,कल देख लेंगे। कल तो उसका पेपर है ,वो कैसे करेगी ?लता ने चिंता व्यक्त की। रत्ना ने चिराग़ से चलने का इशारा किया। वो समझ गया- कि ये कॉपी देने के बहाने, घर से बाहर आयी है। नहीं ,अब घर ही चलते हैं किन्तु मम्मी को मत बताना कि हम छवि को कॉपी नहीं दे पाए और कल आ जायेंगे। उसने इशारे से चिराग़  को कल आने का संकेत भी दे दिया। तभी लता बोली -कल भी डॉक्टर साहब मिल गए ,तो........ उसकी बात सुनकर दोनों हँस पड़े। ये बात सोचते हुए ,चिराग़ सच में ही हँसने लगा। उसे इस तरह हँसता देख ,रत्ना बोली -क्या हुआ ?क्यों हँस रहे हो ?कुछ नहीं ,लता की बातें स्मरण हो आयीं। जब मैंने लता को लालच दिया ,-यदि तुम कल भी आओगी तो कुल्फी खाने को मिलेगी और मेरी तरह सेहतमंद रहोगी। उसने ही तो हमें मिलवाया था कहकर रत्ना की आँखें नम होने लगीं । उसे चुप कराते हुए ,बोला -उसने कैसे तुम्हारी  तरफ देखा था  ?बोली -दीदी डाँटेगी ,कहेगी -'किसी भी अनजान से कोई भी चीज नहीं लेना। अब तो तुम मुझे जानती हो ,अब हम अनजान कहाँ रहे ?रत्ना की तरफ देखते हुए बोला।और तुमने  नजरें नीची कर लीं  और लता से बोलीं  -चलो देरी हो जाएगी तो मम्मी डाँटेगी। कहकर दोनों बहनें चली गयीं और मैं वहीं  खड़ा देखता रहा।
            इस तरह तुम कभी मुझसे मिलने कभी छत से आतीं ,कभी सहेली के घर जाने के बहाने से , मिलतीं फिर भी लगता -ये मिलन भी कोई मिलन है,अधूरा सा लगता , और मिलने की इच्छा बढ़ जाती।अपना रोना भूलकर रत्ना बोली -मैं भी तो न जाने कितनी तिगड़म लगाती ? तब जाकर हम मिल पाते ,लता के कारण किसी न किसी तरह मिल भी जाते। तुम तो बाहर से आये थे  किन्तु मैं तो वहीं की हूँ ,मुझे देखो -कितना सोच -समझकर आना पड़ता। कहीं कोई देख न ले, मेरे मामा या मम्मी से चुगली न कर दे। चिराग़ उसकी गोद में लेटते हुए बोला -वैसे इस तरह छिपकर मिलने का अपना ही मज़ा था। जितना मिलते ,उतनी ही इच्छा और बढ़ती जाती। हमारे मिलने का असर ये हुआ ,कि अब तो एक -दूसरे के बगैऱ जीना भी मुश्किल लग रहा था। तभी तो ,हमने साथ रहने का निर्णय लिया और साथ  तो तभी रहा जा सकता था जब हम दोनों का विवाह हो। इस तरह बिना विवाह के न तो साथ ही रह सकते और न ही अब ज्यादा दिनों तक ,मिल भी नहीं सकते थे क्योंकि मामा ने हमें मिलते हुए  देख लिया था। ये तो अच्छा हुआ ,उन्होंने घर में किसी को नहीं बताया वरना मम्मी बहुत नाराज़ होतीं ,शायद घर से निकलना भी बंद कर देतीं। 

           चिंतित होते हुए ,रत्ना बोली -पता नहीं ,मामा और घरवाले क्या सोच रहे होंगे ?और जब मम्मी को पता चलेगा- कि हमारे विषय में मामा जी को पता था ,तब पता नहीं , वे क्या करेंगी ?वो फिर से रोने लगी -तब चिराग़ बोला -तुम इस तरह रोती रहोगी और किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा ?तुम मुझे पिटवा दोगी। चलो ,अब अपनी आगे की मंजिल भी तो तय करनी है या यहीं ,बैठे रहने का इरादा है। अब हम कहाँ जायेंगे ?रत्ना ने पूछा। वही तो सोच रहा हूँ ,घर गया तो मम्मी -पापा को धक्का लगेगा कि मैं आपने रोजगार दाव पर लगा कर इस तरह घूम रहा हूँ। रत्ना को लगा ,जैसे -चिराग़ अब पछता रहा है। वो  बोली -मैंने तुम्हें परेशान कर दिया न ,तुम्हारे मम्मी -पापा को भी पसंद नहीं आऊँगी।  उदास चेहरा देखकर चिराग़ बोला -नहीं इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है ,हम दोनों ने ही प्यार किया है ,बस थोड़ी परिस्थितियाँ बदल गयी हैं ,सच्चाई को स्वीकार करने में थोड़ा समय तो लगता ही है। सब कुछ इतना अचानक से जो हो गया। रही बात रोजगार की वो तो जहाँ भी रहेंगे ,वहीं जम जायेंगे ,मैं अपनी शिक्षा तो भूला नहीं हूँ। तभी उसे कुछ स्मरण हो आया और बोला -चलो ,अब मुझे एक स्थान सूझ गया ,अब वहीं चलते हैं कहकर उसने अपनी मोटरसाइकिल दौड़ा दी। 














laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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