Jijivisha

उफ़ !ये ठण्ड भी न....  जान लेकर ही छोड़ेगी। पंद्रह दिन हो गए ,सूरज का नामोनिशान भी नहीं दिख रहा। इतने बरस हो गए ,जब से इस  घर में  ब्याहकर आई हूँ ,सर्दी हो या गर्मी ,वो ही काम ,वो ही ज़िम्मेदारियाँ ,इतनी ठंड में उठते हुए मधु , मन ही मन बुदबुदाई। इतनी ठंड में अब उठने का मन नहीं करता ,ठंड है कि, कई कपड़े पहनने के पश्चात भी ,तन को कँपा रही है, फिर भी उठना तो है ही ,कोई सहारा भी तो नहीं कि एक कप चाय ही मिल जाये। उम्र के इस पड़ाव में ,मन करता कोई अच्छी सी चाय बनाकर पिला दे। उसने पति की तरफ देखा और उठने का उपक्रम करते हुए ,आख़िरकार बिस्तर छोड़ ही दिया। इतनी ठंड में बिस्तर से उठना भी, एक साहस का ही कार्य है।उठते ही , पीने के लिए ,गैस पर पानी गर्म होने के लिए रखा और इतनी देर के लिए 'बाथरूम ' में घुस गयी। पानी के गर्म होने पर स्वयं भी और अपने पति को भी हल्दी डालकर पानी दिया। आजकल बीमारियाँ ही  ऐसी चल रही हैं ,इसीलिए सुरक्षा की दृष्टि से मधु अपना और अपने पति का ध्यान रखती। पानी पीने के पश्चात ,धीमी आंच पर अदरक ड़ालकर चाय के लिए पानी भी चढ़ा दिया और झाड़ू भी लगाने लगी।विनीत की आवाज आई -तुम ये क्या करने लगीं ? ये सब बाद में कर लेना। 
इतनी  ठंड में तो कोई कामवाली भी नहीं आती ,सब छुट्टियाँ कर लेती हैं। मधु को तो पहले से ही आदत बनी हुयी है। जब ससुराल आई थी ,आते ही सारा घर संभाल लिया था। सास कहती थी -''बासी घर में कोई काम नहीं करते ,इसीलिए पहले घर की सफ़ाई ,उसके पश्चात अन्य कार्य। कमरों की सफाई के पश्चात वो रसोईघर की तरफ गयी और चाय में दूध -चीनी ड़ालकर ,उसे एक उबाल दिया। ये कार्य उसके हाथ कर रहे थे किन्तु मन तो उसका कई बरस पहले पहुंच गया था। इतना काम किया ,कभी सास ने  प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं बोला। पति कहते हैं -पिछली सभी बातों को भुला दो ,कैसे भुला दूँ ?जबकि वो सब मैंने झेला है। देर -सवेर तो यादें ताज़ा हो ही जाती हैं। 
   विनीत को बिस्कुटों के साथ चाय देकर ,वो फिर से अधूरी सफाई पूर्ण करने लगी।विनीत अभी बिस्तर पर ही लेटे हैं , वहीं से आवाज लगाकर बोले -तुम भी चाय पी लो। मधु बोली -तुम्हें पता है ,मैं इतनी गर्म चाय नहीं पीती। बस थोड़ा सा है ,फिर आराम से बैठकर पियूँगी। 

जब सास बीमार पड़ी तो उनकी तिमारदारी और छोटे -छोटे बच्चे ,कब रात हुयी ,कब दिन निकला ?पता ही नहीं चलता था। तब भी कुछ न कुछ ,कहीं न कहीं ,किसी न किसी काम में कमी रह ही  जाती। सहेली और रिश्तेदार पूछतीं -तू आजकल कहाँ रहती है ?किसी से कोई सम्पर्क नहीं। मैं खिसियाकर कह देती -बस बच्चों और परिवार में समय ही नहीं मिलता। 
  मेरी मम्मी ने कभी मुझसे ,बर्तन साफ नहीं कराये ,कहतीं -मेरी बेटी ,पढ़ -लिखकर बड़े घर में जायेगी ,वो क्या बर्तन माँजेगी ?किन्तु यहां आकर तो बर्तन भी मांजने पड़े। क्या -क्या नहीं सहा ?यहां आकर ,काम के साथ ताने भी। बस एक उम्मीद थी '',बच्चे बड़े हो जायेंगे ,तब आराम करूंगी''। 
तभी विनीत की आवाज पुनः आई -तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है। 
आई...... कहकर मधु ने अपने हाथ धोये और अपने कमरे में चली गयी। चाय पीते हुए भी ,मन एकचित्त नहीं था ,बोली -नाश्ते में क्या बनाऊं ?
जो तुम्हारी इच्छा हो ,कहकर विनीत समाचार -पत्र में लीन हो गया। 
नाश्ते में अभी समय है ,मधु भी ,अपना मोबाईल उठाकर'' व्हाट्सप्प ''पर पड़ी पोस्ट देखने लगी। बैठकर तो और भी ज्यादा ठंड लगती है ,उसने फिर से लिहाफ़ अपने ऊपर खींच लिया।
अब तो बच्चे भी बड़े हो गए ,बेटी की भी शादी कर दी ,तब भी किसी का सहारा नहीं था , बच्चे अब नौकरी करने लगे ,अब भी किसी का सहारा नहीं। 
वैसे तो मधु ,अपनी बढ़ती उम्र को महसूस नहीं होने देती ,अपने को स्वस्थ रखने के लिए हल्का -फुल्का व्यायाम भी करती है ,सभी घर के कार्य स्वयं करती है। उम्र पचास के लगभग आ चुकी है किन्तु उन्हें देखकर आज भी लोग चालीस -पेंतालिस की ही आंकते हैं। उन्हें बड़ी ख़ुशी होती है ,जब ऐसी टिप्पणी मिलती है , किन्तु ये ठंड भी न !चैन से नहीं रहने देगी ,उम्र का एहसास कराके ही छोड़ेगी। 
वैसे तो हिम्मत से काम लेती हैं किन्तु कभी -कभी एहसास हो जाता है कि उम्र बढ़ रही है। 
               आज बहुत दिनों पश्चात ,धूप निकली है ,मधु की तो जैसे जान में जान आई ,शीघ्रता से सभी कार्य निपटाये और धूप में  बैठ गयी।घर के सभी कार्यों से आश्वस्त  होकर ,आराम से ,कुर्सी पर पैर फैलाकर बैठ गयी। कुछ देर बाद ,'आइना' उठाया तो चौंक गयी,अपने -आपसे ही बोली -कैसी लग रही हूँ मैं ?बहुत दिनों से मालिश भी नहीं की ,कोई क्रीम भी नहीं लगाई ,त्वचा भी कितनी रूखी हो गयी ?जब अपनी टोपी उतारी तो देखा ,स्वेत वर्ण केश ,झांक रहे हैं और उसकी उम्र से हंसी कर  रहे हैं। तभी मधु ,ठंड को भूल जोश में आ जाती है। 

                 पहले तो मालिश ,फिर बालों की चाँदी को छुपाने के लिए ,उन्हें रंग देती है ,उसके पास जितने भी प्राकृतिक साधन थे ,आजमाती है। जब वो नहाकर ,धूप में बैठती है तो उसके गाल ग़ुलाबी हो जाते हैं। अब वो ''आईना ''देखती है और अपने आप पर ही रीझ जाती है। और कहती है -''मधु  तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि तुम इतनी ख़ूबसूरत लगो ''और अपने आप ही मुस्कुरा दी। आज वो अपनी नई ''पिक ''जो डालने वाली है ''ग़ुलाबी मौसम ''
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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