सपने सभी देखते हैं ,
मैंने भी कुछ सपने देखे ,
कुछ छोटे से ,कुछ रंगीन।
कुछ प्यारे से ,कुछ हसीन।
उन सपनों संग जीती रही ,
समय के संग ,बढ़ती रही।
उनको पलकों में लिए ,
पालती -पोषती रही।
मैं भी ,कलाकार बन जाऊँ ,
लोगों के ,दिलों तक पहुंच जाऊँ।
सपने बनते ही नहीं ,बिगड़ते भी हैं।
उम्र के साथ बढ़ते ,पनपते भी हैं।
बचपन के सपने ,भोले -भाले से ,
कुछ बड़े हुए ,सपने भी बढ़ने लगे।
युवावस्था में ,गंभीर हो गए ,
सपनों की कोई ,उम्र नहीं होती ,
ये तो ,बच्चों के सपनों संग जुड़ जाते हैं।
उनके देखे सपने भी ,अपने बन जाते हैं।
सपने टूटते हैं ,फिर बुने जाते हैं।
भावों से निकलकर ,भावनाओं से जुड़ जाते हैं।
किसी की उम्मीदों से अठखेलियाँ कर जाते हैं।
कभी टूटकर बिखर जाते हैं।
कभी अपने ,कभी पराये नजर आते हैं।
सपने तो सपने हैं ,
कुछ'' छोटे -मोटे ''से मेरे भी सपने हैं।