हर व्यक्ति का एक न एक परिवार होता है ,चाहे वो छोटा हो या बड़ा। वो परिवार एक घर में रहता है और एक घर जो परिवार के सदस्यों से बनता है। वो परिवार जिसके सदस्य ,एक -दूसरे को ,रिश्तों में बांधकर रखते हैं। हमारा परिवार, हमारे लिए विशेष महत्व रखता है। हम अपने परिवार के लिए जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते।
पहले '' संयुक्त परिवार ''होते थे ,जिनमें सिर्फ़ पति -पत्नी और बच्चे ही नहीं वरन दादा -दादी ,चाचा -चाची ,ताऊ -ताई ,बुआ इत्यादि रिश्ते उस परिवार को बनाते थे। सभी एकजुट होकर ,एक छत के नीचे ,एक -दूसरे का सहयोग करते ,एक -दूसरे के सुख -दुःख बाँटते हुए एक -दूसरे की ताक़त थे।
जिसका जितना बड़ा परिवार ,उसकी उतनी ही बड़ी ताकत और शान भी किन्तु कुछ लोग कमाई के कारण ,अपने परिवारों से दूर हो गए। कुछ लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर ,अपने परिवारों से दूर हो गए। जिस कारण घर टूटने लगे। और अब ''एकाकी परिवारों ''का तो जैसे चलन ही हो गया। अब तो पति -पत्नी और बच्चों तक ही परिवार सीमित रह गए।
बुआ ,ताऊ ,चाचा के रिश्ते क्या हैं ?अथवा उनका जीवन में क्या महत्व है ?आजकल के बच्चों को नहीं पता। कुछ एक माता -पिता हैं ,जो पुस्तकों में, बच्चों को रिश्तों की पहचान कराते हैं किन्तु उन रिश्तों में कैसे आनंद की अनुभूति होती है ?कैसे उन्हें महसूस कर सकते हैं ?कैसे उनसे मिलकर जुडी स्मृतियाँ ,कैसे उनके साथ घूमना ? दादी से कहानी सुनना , आपस में अंताक्षरी खेलना ,एक -दूसरे से पहेली पूछना ,जिनका कि आजकल के बच्चे आनंद नहीं ले पाएंगे। ये सब अनुभूति तो जैसे उनके लिए ,मात्र एक सपना ही रह जायेगा।
पहले तो बच्चा अपने विद्यालय और अपनी शिक्षा में ही व्यस्त रहता है ,ऊपर से माता -पिता के रात -दिन कमाने की मजबूरी ,''अपने रिश्तों से दूर ,शायद इसी में लोग ,अपना सुख समझने लगे हैं।स्वार्थ के वशीभूत होकर तो अब माता -पिता भी बँटने लगे हैं। ''