Ghronda

वो घर, जिसमें  माता -पिता 
और' मैं 'थे । 
मेरे भाई -बहन ,ढूंढते ,मुझे 
उस घर के कोने -कोने में। 
मैं छिपी होती ,कहीं माँ के दिल में, 
पापा की भावनाओं में ,
मैं अपने घर को सजाती -संवारती ,
डोलती ,अपने सपनों की दुनिया में ,
लेती ,पापा के अरमानों की उड़ान ,
माँ की गोद में लेटी ,

लेती सुकून की नींदे ,
न कोई फिक्र, न चिंता।
 उड़ान भरती, जीवन के ,
बड़े सपनों से  ,घिरी होती ,
अपने आप से ,अपनों से। 
ये कोई रेत का 'घरौंदा' नहीं ,
मेरी असली पहचान है ,ये !
धरातल पर रहकर ही ,
मैंने उसे  बनते- संवरते देखा।
 बचपन का वो मेरा घर ,
कितना प्यारा ,कितना सुकून भरा ?
सपनों जैसा हरा -भरा ,
जिसमें माँ का लाड़ -दुलार ,
पापा का प्यार भरा ,
बहन -भाइयों की लुका -छुपी,
सहेली संग खेली ,गुड्डा -गुड्डी। 
जीवनभर यही चलता है ,
फिर भी  बचपन  का घर ,
अच्छा लगता है। 
 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post