कोकिला रत्ना को दुल्हन की तरह सजाने के लिए ,साज -सज्जा की दुकान पर लाती है और मंदिर ले जाती है। चिराग़ जब तैयार होने जाता है ,तभी मोहित भी एक लड़की को लेकर आता है जो दुल्हन के वेश में ही थी। बाद उन दोनों का घूंघट हटाया जाता है ,तब पता चलता है -इसमें से एक मोहित की चचेरी बहन रिया थी ,जो डॉक्टर होने के साथ -साथ , चिराग़ से प्रेम भी करती है ,उसका प्रेम भी कोई साधारण प्रेम नहीं वो चिराग़ को पागलपन की हद तक पसंद करती है। किन्तु ये सभी बातें ,मोहित को पता चल जाने के कारण ,अब उसे चिराग़ से विवाह की उम्मीद समाप्त होती नजर आई। उसने जो धोखे से चिराग़ से विवाह की योजना बनाई, वो भी व्यर्थ गयी। अब उसे रत्ना पर क्रोध आता है और उसे उल्टा -सीधा सुनाती है ,जिस कारण रत्ना को दुःख भी होता है। अब आगे -
मोहित रिया से कहता है- इसमें इस बच्ची का क्या दोष ?इसे क्या कुछ पता था ?मुझे तो लगता है ,चिराग को भी नहीं पता होगा। रिया तपाक से बोली -उसे मालूम है ,एक बार मैंने उससे कहा था। तब उसने क्या जबाब दिया ? मोहित ने पूछा। कहने लगा -अभी मैंने विवाह के विषय में कुछ सोचा नहीं।
तब भी तुम नहीं समझीं या समझना नहीं चाहतीं और अब इस लड़की से विवाह करना चाहता है ,इसका अर्थ साफ है ,वो तुम्हें मना नहीं कर सका ,शायद तुम मेरी बहन हो किन्तु अब इस लड़की से विवाह का अर्थ है -मनाही , शायद वो तुम्हारी बात को भूल भी गया हो। अब वो आता ही होगा ,ये पागलपन छोडो और सबसे बेहतर तो ये ही है कि तुम चली जाओ ! मोहित ने समझाया।
रिया लगभग गिड़गिड़ाते हुए ,बोली -भाई ,मैं उसे स्मरण कराऊँगी ,उसे अपने प्यार के लिए सोचने पर मजबूर कर दूँगी। मजबूरी में रिश्ते नहीं बनते ,मोहित ने फिर से समझाया।
उन दोनों की बातें सुनकर रत्ना बोली -दीदी ,यदि आपको आपने प्यार पर भरोसा है ,तो आप प्रयत्न करके देख लीजिये। यदि उन्होंने आपको स्वीकार कर लिया तो मैं यहां से चुपचाप चली जाऊँगी ,मैं आप दोनों के बीच नहीं आऊँगी। उसकी बातें शायद चिराग ने सुन लीं ,बोला कौन ,कहाँ जा रहा है ?कहते हुये,अंदर आया। अंदर पहले से ही दो दुल्हनें देखकर चौंक गया। रिया को दुल्हन के लिबास में देखकर ,बोला -तुम यहां ! क्या आज तुम्हारा भी विवाह है ?उसने मोहित की तरफ देखते हुए पूछा। रिया किसी के कुछ भी कहने से पहले बोली -हाँ ,तुम्हारे साथ। चिराग़ बौखला गया -ये तुम क्या कह रही हो ?रिया बोली -ठीक ही तो कह रही हूँ। क्या तुम्हे मेरे विषय में पता नहीं था ?
चिराग़ बोला -मैंने तुमसे विवाह के लिए कभी वायदा नहीं किया ,जब तुमने मुझसे कहा था ,तब मैंने इस विषय में सोचने से इंकार कर दिया था। अब तो तुम सोच रहे हो ,तो इस लड़की को उठा लाये ,इसमें तुमने ऐसा क्या देखा ?जो मुझ जैसी पढ़ी -लिखी लड़की को ठुकरा रहे हो ,रिया ने पूछा। मोहित और कोकिला के सामने उनकी बहन का इस तरह गिड़गिड़ाना उसे अच्छा नहीं लगा ,वो बोला -प्रेम सोच -समझकर नहीं किया जाता ,अब बस इतना ही कहना चाहता हूँ,' जो हो गया ,उसे भूल जाओ'' और अपना विवाह करके बेहतर ,जीवन जियो। कहकर उसने रत्ना का हाथ पकड़ा और बोला -जल्दी चलो !पंडितजी हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मोहित और कोकिला भी उनके पीछे चले गए।
विवाह के पश्चात ,वो अपने घर जाने की तैयारी करता है। मोहित और कोकिला का दोनों आशीर्वाद लेते हैं और चले जाते हैं। रास्ते में ,चिराग़ रत्ना से पूछता है -तुमने जो रिया से कहा ,तुम्हें एक बार भी डर नहीं लगा- ,यदि मैं उससे विवाह कर लेता। रत्ना बोली -मुझे अपने प्यार पर विश्वास था ,उस भगवान पर जिसने तुम्हें और हमें मिलाया। यदि तुम्हारा विवाह उस लड़की के साथ होना ही था ,तो तभी हो जाता जब उसने तुम्हें अपने प्रेम का विश्वास दिलाया था और हम मिलते ही नहीं। उसकी बातें सुनकर चिराग बोला -बड़ी दार्शनिकों वाली बातें कर रही हो। अब तो तुम पर प्यार आ रहा है ,अब तो मैं तुम्हें प्यार कर सकता हूँ। भाभी के यहां तो तुमने मौका मिलने पर भी, इंकार कर दिया था। तुमने कहा था - अभी मैं तुम्हारी नहीं , माना कि ,मेरा दिल तुम्हारा है किन्तु अभी मेरा मुझ पर अधिकार है ,जब तुम्हारा अधिकार होगा तब मना नहीं करूंगी। रत्ना शरमाते हुए बोली -हाँ ,हाँ मैंने कब मना किया ?किन्तु अभी ,मम्मी -पापा का आशीर्वाद और मिल जाता तो.....
अच्छा जी , लालच बढ़ता जा रहा है ,चिराग़ हँसते हुए बोला। अब वहां के लिए भी तैयार हो जाओ ! मेरी मम्मी बहुत ही गुस्सा करने वाली हैं ,वो तुम्हारे लिए सख़्त सास साबित होंगी, इसीलिए तो मेरी भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी, कि मैं तुम्हें ले जाकर ,सीधे उनसे मिलाऊँ।
रत्ना ने पूछा -तुम्हारे पापा कैसे हैं ?वो तो मेरी तरफ होंगे। उनके विषय में ,मैं कुछ नहीं कह सकता ,वो तो मेरी तरह सीधे हैं किन्तु मम्मी से वे भी डरते हैं, चिराग़ ने उसे डराया।तुम्हारी तरह सीधे रत्ना व्यंग्य से बोली। कुछ देर तक चिराग़ उसे अपने घर और माता -पिता के विषय में बताता रहा , किन्तु पीछे बैठी रत्ना चुप थी ,उसे शांत देखकर ,चिराग़ बोला -क्या सोच रही हो ?डर गयीं न...
रत्ना बोली -मैं सोच रही थी -वो दीदी भी तुम्हें बहुत प्रेम करती थीं, फिर तुमने ,उन्हें पसंद क्यों नहीं किया ?रिया का स्मरण होते ही ,चिराग़ के मुँह का स्वाद कसैला हो गया और बोला -ये बातें कहने सुनने की या जबरदस्ती अधिकार दिखाने की नहीं होती। वो मुझसे जबरदस्ती करती ,तो क्या मैं उसे प्रेम कर पाता ?तुम ये सब मत सोचो !और अपने आने वाले ख़तरे के विषय में सोचो ,कहकर वो हँसने लगा।
रत्ना बोली -तुम तो मेरे साथ हो न... सब खतरे झेल लूँगी। नहीं.... वहां मेरी नहीं चलेगी ,वहां तो तुम्हें स्वयं ही सब सम्भालना होगा।
दोनों उस शहर के नजदीक पहुंचते हैं ,जहाँ चिराग़ के मम्मी -पापा रहते हैं, यानी कि रत्ना का ससुराल आ गया। उस जगह घुसते ही रत्ना का दिल तेज़ी से धड़कने लगा, वो अब सधकर ,चिराग़ के और क़रीब बैठ गयी। जैसे कोई उसे चिराग़ से दूर कर देगा। उसने थोड़ा घूंघट भी कर लिया। इतना डर तो उसे उसके साथ भागते हुए और मोहित के यहां भी नहीं लगा था, जितना उसे इस समय, किसी पराई जगह जाते हुए लग रहा है। चिराग़ ने एक जगह अपनी मोटरसाइकिल रोकी। रत्ना ने उतरकर ,घूंघट में से ही ,वहां का वातावरण देखा, तो समझ नहीं पाई- कि यहाँ क्या हो रहा है ?जहां वो लोग रुके थे ,उस स्थान पर तो फूलों से सजावट हो रही थी। रत्ना ने घूंघट में से ही पूछा -ये तुम कहाँ ले आये ?चिराग़ ने महसूस किया -जब से विवाह हुआ है ,रत्ना उसे 'आप 'से' तुम 'कहने लगी है। वो बोला -मुझे क्या पता ? मैं भी तो तुम्हारे साथ ही हूँ। तुम्हारा घर किधर है ?रत्ना ने पूछा। चिराग़ ने उस घर [जिसमें सजावट हो रही थी ]की ओर इशारा करते हुए कहा -ये ही तो है।