Abhar [part 8 ]

चिराग और कोकिला बाजार में ,रत्ना और चिराग़ के विवाह के लिए सामान खरीदने ,चले जाते हैं। इधर घर में रत्ना कोकिला की बातों में आकर ,पहले तो बहुत ही दुःखी होती है ,अंत में मरने का निर्णय ले लेती है और पंखे से लटकने की तैयारी करती है किन्तु उससे पहले ही चिराग़ और कोकिला घर आ जाते हैं। चिराग़ रत्ना की ऐसी स्थिति देखकर ,परेशान होता है और रत्ना को अपने प्यार पर  विश्वास करने के लिए कहता है। रत्ना कोकिला के व्यवहार से अत्यंत दुखी हो जाती है और मन ही मन निश्चय  करती है कि आगे से किसी के भी बहकावे में नहीं आएगी। रात को कोकिला के लिए ,किसी अनजान का फोन आता है किन्तु उसकी बातों से लगता है, कि वो उस अनजान को जानती है। अगले दिन ,चिराग़ मंदिर में विवाह की तैयारियों के लिए जाता है और कोकिला से कह जाता है कि आप रत्ना को तैयार करवाकर ,मंदिर ले आइयेगा। रत्ना अब कोकिला पर विश्वास नहीं करती है ,कोकिला उसे तैयार होने के लिए ,''साज -सज्जा ''की दुकान पर जबरदस्ती ले जाती है ,अब आगे - 

न चाहते हुए भी ,रत्ना कोकिला के संग गाड़ी में बैठ जाती है ,गाड़ी अपने गंतव्य की ओर  बढ़ती है ,रास्ते में कोकिला ,रत्ना से कहती है -क्या तुम्हें अपनी भाभी पर  विश्वास नहीं ?सच में ,मैंने वो सब तुमसे मज़ाक में कहा था। वो रत्ना को अपने विश्वास में लेना  चाहती थी। रत्ना ने मुस्कुराकर सहमति जताई। इस शहर को वो जानती भी नही थी ,इसीलिए खिड़की से बाहर देखने लगी।रत्ना  अचानक कोकिला से बोली -यहां से मंदिर कितनी दूर है ? क्यों ? मंदिर जाने की इतनी जल्दी है कि तुम सजना -सँवरना भी नहीं चाहतीं। दुल्हन तो आज  के दिन ,सबसे सुंदर दिखना चाहती है। रत्ना मुस्कुराई ,बोली -नहीं ,मैं तो वैसे ही पूछ रही थी। कोकिला को भी कुछ गलत नहीं लगा बोली -वो जो सामने सड़क है ,उसके दूसरी तरफ साज -सज्जा की दुकान है और इधर से बायें मुडोगे  तो ,कुछ आगे जाकर मंदिर आ जायेगा ,दोनों में ही आधा घंटे का अंतर् होगा। हमे  देरी भी नहीं होगी। अब शांति से पहले तैयार हो जाओ, तब अपने चिराग से मिल लेना। 
                दोनों ही अपने तय स्थान पर पहुंच जाती हैं ,और कोकिला बाहर बैठ जाती है। कुछ समय पश्चात दोनों मंदिर के लिए प्रस्थान करती हैं। चिराग़ ने दोनों को देख लिया और प्रसन्न हुआ ,किन्तु रत्ना का इस तरह घूंघट करना ,उसे अच्छा तो लगा , फिर भी बोला -ये घूंघट क्यों कर लिया ?कोकिला बोली -मैंने भी पूछा था ,तो बोली -मुझे शर्म आ रही है और हमारे यहां फेरों के समय ,घूंघट ही करते हैं। अभी मोहित भी नहीं आया था और पूजा की तैयारी के कारण  ,अभी तक चिराग़ भी तैयार नहीं हुआ था। कोकिला और रत्ना को एक स्वच्छ कमरे में ,बैठने के लिए कहकर चिराग तैयार होने गया। कुछ समय पश्चात ही , मोहित भी आ गया, किन्तु ये क्या ?उसके साथ भी ,एक दुल्हन घूंघट में थी। कोकिला मोहित को देखकर ,उठ खड़ी हुई और बोली -ये आपके साथ कौन है ?मोहित बोला -मैं ये तुमसे पूछना चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ कौन है ?कोकिला बोली -मेरे साथ तो रत्ना है। मैं ही तो इसे तैयार करवाने ले गयी थी और ये मेरे साथ ही आई है। 

मोहित ने उस साथ  आई ,लड़की का घूँघट उठाया और बोला -फिर ये कौन है ?कोकिला का चेहरा उस लड़की को देखते ही उतर गया। मोहित [जो लड़की अब भी कोकिला के समीप खड़ी थी ,उससे  बोला ]ऐ लड़की !तुम कौन हो ?अपना चेहरा दिखाओ !उस लड़की ने कोई हरकत नहीं की ,इसी तरह खड़ी रही ,तब मोहित कोकिला से बोला -तुम इसका घूँघट उठाओ ,कोकिला ने डरते हुये से उसका घूँघट उठाया। कोकिला तो शायद पहले ही समझ गयी थी किन्तु मोहित उसे देखते ही चौंक गया और बोला -रिया तुम.... रिया फुर्ती से मोहित के समीप आई और बोली -भाई ,मैं उससे बेहद प्रेम करती हूँ ,मैं उसके बिना नहीं रह सकती ,मैंने उसके लिए बरसों प्रतीक्षा की है। रत्ना कुछ भी नहीं समझ पा  रही थी। 
रिया की बातों पर ध्यान न देते हुए ,मोहित कोकिला से बोला -इस सब में तुम इसका साथ दे रही थीं। कोकिला डर गयी, बोली -मैंने तो बस इसे ये बताया था कि -'चिराग़ आया है और एक लड़की साथ में लाया है ,उससे विवाह करने वाला है। ''मोहित कोकिला को डाँटते हुए ,बोला -तुम्हें क्या आवश्यकता थी ?इसके पागलपन को हवा देने की। 

             रिया और कोई नहीं ,मोहित की चचेरी बहन है। जब मोहित का विवाह हुआ ,तब कई लड़कियों के दिल उस पर आ गए किन्तु चिराग़ ने किसी पर भी ध्यान नहीं दिया। रिया तो कुछ पागलपन की हद तक उसे चाहने लगी। न जाने, कितने रिश्ते आये ? किन्तु इसने सबके लिए मना कर दिया।चिराग़ की प्रतीक्षा कर  रही थी, कि कब वो विवाह करेगा ?किन्तु चिराग़ तो सबकी सोच के विपरीत किसी लड़की को ही अपने साथ ले आया। 
अब रत्ना को भी कुछ -कुछ समझ आ गया और बोली -इसी के लिए आपने मुझसे वो बातें कहीं। कोकिला की तरफ देखते हुए मोहित बोला -कौन सी बातें ?तब रत्ना ने उसे सभी बातें बता दीं। उसकी बातें सुनकर मोहित ,कोकिला से बोला -तुम इस तरह की  हरकतें करोगी ,इसकी  मुझे तुमसे उम्मीद नहीं थी। कोकिला रुआंसी होकर बोली -ये भी तो तुम्हारी बहन है ,इतने बरसों से ,ये उसकी प्रतीक्षा कर रही थी तो मुझसे सहा नहीं गया। इसीलिए मैंने सोचा -इससे ऐसे कहूंगी तो ,ये यहां से चली जाएगी किन्तु ये गयी नहीं और मरने का अभिनय कर बैठी, कोकिला ''दाँत पीसते हुए'' बोली।
चलो ! ये बात छोड़ो ,ये रिया  यहाँ कैसे पहुँची ?मोहित ने रिया  की तरफ देखते हुए पूछा। कोकिला मोहित के डर से बोली -मैंने नहीं बुलाया ,मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा -देखती हूँ ,मैं क्या कर सकती हूँ ?रिया रो रही थी ,बोली -मुझे लग ही रहा था- कि भाभी कुछ नहीं कर पायेगी ,इसीलिए मैंने सोचा -लड़की तैयार होने तो आएगी ही और मैं समीप के ही ''साज -सज्जा ''की दुकान पर जा पहुंची। मुझे क्लोरोफॉर्म आसानी से मिल जाता है ,मैंने इसे ''रत्ना '' को बेहोश किया और तैयार होकर आ गयी। 
रत्ना की तरफ देखते हुए बोली -इसमें चिराग ने क्या देखा ?ये तो पढ़ी -लिखी भी नहीं ,मैं डॉक्टर हूँ और सबसे बड़ी बात उससे प्रेम करती हूँ। रिया  की पोल खुल जाने के कारण ,उसे डर था- कि अब उसका विवाह ,चिराग़ से नहीं हो पायेगा और इस रत्ना से  विवाह होने के पश्चात, जो उसे उम्मीद थी ,वो भी समाप्त हो जाएगी। यही सोच -सोचकर ,वो रोये जा रही थी। तभी उसे क्रोध आया ,और बोली -तुम इतनी जल्दी ,कैसे होश में आ गयीं ? रत्ना बोली -मैं और वो सजाने वाली दोनों ही बेहोश पड़े थे ,पता नहीं, कितनी देर तक पड़े रहे ?तब एक महिला वहां आई और हमें इस तरह देखकर ,कुछ लोगों को बुलाकर हमें होश में लाये। जब मुझे होश आया ,तब मैं बाहर भागी ,चक्कर तो आ रहे थे ,सड़क पार करके, मैं पैदल ही दौड़ रही थी ,तभी [मोहित की तरफ इशारा करते हुए बोली ]इनकी गाड़ी पास से गुजरी ,इन्होंने मुझे देखा और यहां ले आये।
 

रिया रोते  हुए , मोहित से बोली -क्या भाई ,अपनी ही बहन की ज़िंदगी उजाड़ने चले हो। मोहित बोला -कौन सी ज़िंदगी ,जो बसी ही नहीं। मेरी बहन तुम समझती क्यों नहीं ?तुम बेकार की ज़िद लिए बैठी हो। जो चीज़ तुम्हारी है ही नहीं ,उस पर ज़बरदस्ती अधिकार दिखाने से क्या लाभ ?तुम्हारा ये एकतरफ़ा प्यार है। 
उनकी सभी बातें समझकर ,रत्ना को रिया से हमदर्दी हुई ,वो बोली -दीदी !आप ठीक कह रही हैं ,मैं उनके क़ाबिल नहीं ,वो तो पता नहीं ,हम कैसे आपस में प्रेम कर बैठे ?मैं तो वैसे भी बिना बाप की, ग़रीब लड़की हूँ। किन्तु मैं चिराग़ के प्रेम में ,अपना घर छोड़ आई ,मैंने तो अपने घरवालों की परवाह भी नहीं की। 
उसकी बात बीच में ही काटते हुए  रिया बोली -ओह !तुम चुप ही रहो ,ये तुम्हारा प्रेम नहीं ,तुम्हें डॉक्टर ,पैसे वाला लड़का दिखा और अपनी ग़रीबी दूर करने का बहाना मिल गया। तुमने क्या हमें बेवकूफ़ समझा है ? जो हम ये भी नहीं समझेंगे ,तुमसे तो उम्र भी भी काफी बड़ा है ,तुम्हारी माँ ,ने ही तुम्हें  उकसाया होगा- कि पैसे वाले को पटा लो, हमारी ग़रीबी भी दूर हो जायेगी।''
दीदी ! आप हद से बाहर जा रही हैं।मेरे घरवालों को कुछ मत कहिये ,उन बेचारों को तो कुछ भी पता नहीं ,जब पता चला होगा ,तो पता नहीं ,उन पर क्या बीती होगी ? कहकर रत्ना रोने लगी। 
मेरे सामने अब ये नाटक मत करो ,तुम्हें जो करना था कर चुकीं ,तुम्हारे कारण ही, मैं अपने भाई की नजरों में भी  गिर गयी। 


















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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