Abhar [part 7 ]

रत्ना और चिराग़ भागकर ,चिराग़ के दोस्त मोहित के घर आ जाते हैं ,मोहित की पत्नी कोकिला उन्हें  विवाह करने का सुझाव देती है- कि विवाह करने के पश्चात ,अपने घर ले जाना। विवाह तो तुम्हें करना ही है ,कुछ देर या दिनों  पश्चात ,मम्मी -पापा भी मान ही जायेंगे। जब रत्ना सो जाती है ,तब चिराग़ अपने विवाह के लिए आवश्यक सामान लेने  बाज़ार चला जाता है। जब रत्ना उठती है ,तो उसको इस विषय में  कुछ पता नहीं होता ,जब कोकिला से पूछती है ,तब वो भी उसके उल्टे -सीधे जबाब देती है ,जिस कारण रत्ना को लगता है -कि चिराग़ उसे छोड़कर चला गया। वो बहुत रोती है ,बंसी जो मोहित का घरेलू नौकर है ,वो भी सब देख -सुन रहा होता है और वो सोच रहा होता है -कि कोकिला मैडम ने इस लड़की से सब झूठ क्यों कहा ?क्या इसका विवाह उनसे होने देना नहीं चाह्तीं ?ऐसे अनेक प्रश्न उसके मन में और पाठकों के मन में भी उठ रहे थे। तभी अचानक रत्ना वापस उसी कमरे में जाती है और कमरा बंद कर लेती है। अब आगे - 


अपने को कमरे में बंद कर रत्ना देर तक रोती  रही ,फिर मन किया ,यदि चिराग ने मुझे धोखा दिया तो उसे नहीं छोडूंगी। थोड़ी देर इसी तरह शून्य में ताकती रही ,अचानक ही विचार पलटा ,सोचा अब जीकर भी क्या करना है ? जिससे प्रेम किया ,जिसके लिए घर छोड़ा उसी ने नहीं समझा ,मैं भी न  कितनी बेवकूफ हूँ ?बाहर से आये ,किसी भी व्यक्ति पर विश्वास कर ,अपने खून के रिश्ते छोड़ आई। अब मुझे नहीं जीना ,सोचकर ,उसने कोई चादर तलाशी और उसे उछालकर ,छत के पंखे पर टाँग दिया। उधर बंसी ने जब उसे इस तरह भागते देखा, पहले तो वो शांत रहा किन्तु अचानक ही मन में बुरे विचार आने लगे। कहीं उस लड़की ने कुछ कर -करा लिया तो....... मैं भी फंस जाऊँगा। ऐसा ही कुछ विचार आते ही ,वो उस कमरे की तरफ दौड़ा ,बोला -बिटिया दरवाज़ा खोलना जरा..... अंदर से कोई आवाज नहीं आई ,तब वो और भी घबरा गया और तेज -तेज़ दरवाजा पीटने लगा। रत्ना अभी कोई साधन ही ढूँढ रही थी ताकि वो उस पर चढ़कर उस लटकी चादर से फंदा बना सके। 
           चिराग़ और कोकिला सामान लेकर ,घर आ चुके थे ,जब अंदर आये तो उन्हें बड़े जोरों से दरवाज़ा पीटने और बंसी के चिल्लाने की आवाज आई ,वो दोनों ,आवाज़ की दिशा  में दौड़े। बंसी अब भी चिल्ला रहा था -बिटिया ,दरवाजा खोलो !चिराग़ वहां जाकर बोला -बंसी ,क्या हुआ ?पता नहीं ,साहब। पहले तो ये बड़ी देर तक रोती रही ,फिर अचानक दरवाजा बंद कर लिया। चिराग़ ने रत्ना को आवाज़ दी -रत्ना.... रत्ना... तुम ठीक हो ,अंदर क्या कर रही हो ?चिराग़ की आवाज़ सुनकर, रत्ना ने दरवाजा खोल दिया और बाहर आते ही उससे लिपटकर रोने लगी -तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गए थे ?चिराग उसे शांत कराते हुए बोला -मैं तुम्हें छोड़कर कब गया ? तुम सो रही थीं ,मैं तो तुम्हारी और अपनी शादी के लिए ,कुछ सामान लेने गया था।तुमसे किसने कहा ?कि मैं तुम्हें छोड़कर चला गया ,छोड़कर जाने के लिए ,थोड़े ही तुम्हे भगाकर लाया हूँ।  तब रत्ना ने पास खड़ी कोकिला की तरफ देखा। कोकिला ने हँसते हुए कहा -अरे !वो जो मैं तुमसे हँसी कर रही थी ,क्या तुमने उसे इतनी गंभीरता से ले लिया ?अपनी झेंप उतारते हुए बोली -जब ये उठकर आई और इसने तुम्हारे विषय में जानना चाहा ,तब मैंने ऐसे ही मज़ाक में कह दिया -वो तुम्हें छोड़कर गया। चिराग को कोकिला पर विश्वास था ,बोला -भाभी तो ऐसे ही मज़ाक कर रही होंगी ,ये ही  तो तुम्हारे मेरे विवाह के लिए सामान दिलवाकर लाईं ,ये देखो , हम कितना सामान लाये हैं ? तुम ये कमरा बंद करके ,क्या कर रही थीं ?चिराग ने पूछा। वो कमरे में गया ,जब उसने पंखे से लटकी चादर को देखा तो ,काँप गया और सोचने लगा -यदि थोड़ी सी भी देरी हो जाती तो मैं कहीं का न रहता। रत्ना से बोला -ये तुम क्या बचपना कर रही थीं ?तुमने एक बार भी मेरे विषय में नहीं सोचा ,हमें आने में तनिक भी देरी हो जाती तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाता ?तुमने  सोच भी कैसे लिया? कि मैं तुम्हें छोड़कर चला जाऊँगा। क्या मुझ पर इतना ही विश्वास है ?चिराग की बातें सुनकर रत्ना शांत हो गयी, उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ।  
               रत्ना मन ही मन सोच रही थी -जब कोकिला ने   मुझसे बात की थी ,तब इनके तेवर इस तरह के नहीं थे ,यदि ये हंसी थी, तो बडा ही भद्दा मज़ाक था ,रत्ना ने मन ही मन निश्चय किया-'' आगे से वो किसी की भी बातों में नहीं आयेगी। ''इनकी बातों में आकर यदि मैं कुछ कर लेती तो.....  मैं अपने चिराग़ से कभी नहीं मिल पाती। यही सोचकर ,उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी। 

 [जिस समय की  ये घटना है ,उस समय  तार वाले  टेलीफ़ोन होते थे ,वो भी, किसी किसी के घर में और उस फोन की घंटी पूरे घर को जगा देती थी। ] 
कोकिला के घर में भी वो ही फ़ोन बजा। चिराग और रत्ना तो अपने कमरे में चले गए ,चिराग़ उसे सामान दिखा रहा था। रात का समय था ,मोहित भी खाना खाकर लेट गया था। बंसी भी रसोई का काम निपटाकर सोने की तैयारी करने जा रहा था। ऐसे में उस फोन की आवाज़ पूरे घर को जगाने के लिए काफी थी। बंसी का माथा ठनका ,इस समय किसका फोन आ गया ?लोग -बाग रात में भी चैन से नहीं रहते। मोहित बोला -इस समय किसका फोन हो सकता है ?शायद किसी मरीज़ का तो नहीं। कोकिला उठी और सीधे फोन के समीप पहुंच गयी ,वो तो अच्छा हुआ ,बंसी के फोन उठाने से पहले ही उसने फ़ोन उठा लिया और बंसी से बोली -तुम जाओ !मैं देख लूँगी। तब धीरे से उसने ''हैलो ''किया और बोली -जैसा मैंने सोचा था ,वो नहीं हो पाया ,मैंने सोचा था -मेरे इस तरह कहने से ,वो घर से भाग जायेगी किन्तु वो तो यहीं मरने पर उतारू हो गयी। तुम परेशान न होना ,मैं कुछ और तरीक़ा अपनाती हूँ। अब तुम कहाँ हो ?उधर से जो भी आवाज आई ,उसके जबाब में ,कोकिला बोली -ठीक है ,मैं प्रयत्न करुँगी और मैं ही फ़ोन भी करुँगी ,तुम मत करना। 
फोन रखकर इधर -उधर देखा फिर पानी पिया और वापस चली गयी। बंसी अभी तक सोया नहीं था ,वो सोच रहा था -ये कौन हो सकता है ?जिससे' मैडम 'इतने धीरे से बातें कर रही थीं। दोपहर जो रत्ना के साथ व्यवहार किया ,वो भी कुछ समझ नहीं आया।लगता तो नहीं था- कि वो उससे हंसी कर  रही थीं ?सोचते -सोचते वो भी सो गया।
                  अगले दिन सुबह सब उठे ,नाश्ता करके मोहित बोला -तुम लोग मंदिर में जाकर सारी तैयारियाँ करो ,मैं सीधे वहीं पहुंच जाऊंगा। नाश्ता करके चिराग़ भी निकल गया,चलते समय कोकिला से बोला -भाभी  ,सभी तैयारियां हो जाने के पश्चात आपको फोन कर दूँगा और आप रत्ना को तैयार करवाकर सीधे ,मंदिर में ही ले आना। नाश्ता करने के पश्चात ,कोकिला रत्ना से बोली -तुम भी तैयार हो जाओ ,तुम्हारे कपड़े वहीं रखे हैं। रत्ना तैयार होने लगी ,वो मन ही मन प्रसन्न हो रही थी जिस प्रेम के कारण वो अपने परिवार को छोड़  आई ,आज वो सदा -सदा के लिए उसका हो जायेगा। 

जब वो घर से भागी थी -तो कुछ रूपये और उसके लिए बनवाये गए ,हल्के से सोने के जेवर ,वो अपने संग लेकर आई थी ,वे ही  अपनी माँ का आशीर्वाद समझकर पहन लिए। वो बाहर आई ,उसे देखकर कोकिला बोली -आज तुम्हारा विवाह है ,ऐसा दिन रोज -रोज नहीं आता ,आओ चलो तुम्हें ,''साज -सज्जा ''की दुकान पर ले चलती हूँ। रत्ना जानती थी- कि वो किसी दुल्हन की तरह नहीं सज पाई है किन्तु कोकिला के पहले व्यवहार के कारण ,उस पर विश्वास करना भी उसके लिए कठिन था। वो बोली -सब ठीक तो है। कोकिला बोली - माना कि तुम सुंदर हो, किन्तु मेरा देवर ,तुम्हें इस तरह देखेगा तो अपनी भाभी को ही कहेगा कि भाभी ने ठीक से तैयार नहीं करवाया। रत्ना के न चाहते हुए भी ,उसे घर से ' साज -सज्जा ''के लिए ले गयी। 













laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post