रत्ना को चिराग़ उसके घर से भगा लाता है ,उसका अपना काम छूट जाता है। वो दोनों भागकर चिराग़ के दोस्त मोहित के घर आ जाते हैं ,मोहित, चिराग को अचानक किसी लड़की के साथ ,देखकर हतप्रभ रह जाता है और उससे आने का कारण पूछता है ,तभी मोहित की पत्नी सारा वाक्या समझकर कहती है - तुम्हारे दोस्त को ''प्रेम रोग ''हो गया है और उसने कुछ ऐसी बातें कहीं ,जिस कारण चिराग़ अपने दोस्त के पास से उठकर अपनी भाभी कोकिला के समीप आकर बैठ जाता है। तब कोकिला उससे पूछती है - तुम दोनों ने सुबह से खाना खाया या नहीं। तब चिराग़ इंकार करता है। अब आगे -
कोकिला बंसी से उन दोनों के लिए खाना लगवाती है ,खाना खाने के पश्चात ,दोनों से आराम करने के लिए कहती है। रत्ना और चिराग़ को एक कमरा में भेज देते हैं ,रत्ना तो लेटते ही सो जाती है ,वो सुबह तीन बजे की उठी हुयी थी।बिस्तर पर पड़ते ही उसे नींद ने अपने आगोश में ले लिया। चिराग़ की आँखें नींद से बोझिल तो होने लगीं, किन्तु उसे इस बात की फिक्र थी- कि अब क्या करना है ?इस तरह अपने दोस्त घर भी तो नहीं रह सकता। वो उठकर कोकिला के पास गया और बोला -भाभी, अब क्या करना है ? इस तरह भी तो हम लोग नहीं रह सकते और रहेंगे भी, कब तक ? कोकिला बोली -तुम उससे प्रेम करते हो। चिराग़ बोला -ये भी कोई कहने की बात है ,जब प्रेम करता हूँ, तो तभी ये कदम उठाया। पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो ,कोकिला बोली , वो भी तुम्हें प्रेम करती है ,इसमें इतना सोचने वाली बात ही क्या है ?साधारण सी बात है -शादी कर लो! बात सुनकर ,चिराग एकाएक शांत हो गया और बोला -ऐसे कैसे शादी कर लें ,कितना व्यय होगा ?मम्मी -पापा को कैसे बतायेंगे ?
उसकी बात सुनकर कोकिला बोली -तब तुम भागे ही क्यों थे ,अरे! भागे हो तो ,इस रिश्ते को कुछ नाम तो देना होगा ही या इसी तरह रहोगे। ऐसे किसी की लड़की को भगाकर कितने दिनों तक संग रहोगे ?समाज और कानून दोनों की नजर में ही गलत है। रही बात शादी की और खर्चों की ,तुम्हें इतनी धूमधाम से शादी नहीं करनी है ,न ही इस परिस्थिति में हो सकती है। इतना तो तुम पढ़े -लिखे हो ही ,कानून तरीक़े से या मंदिर में जाकर विवाह कर लो। तब अपने घर जाना और मम्मी -पापा को इस बात से अवगत कराना। थोड़ा नाराज हो सकते हैं ,हो सकता है- न भी हों। विवाह तो तुम्हें करना ही था ,सच्चाई से कब तक भागोगे ?तुम्हारे विवाह में जो भी व्यय होगा, वो हम दोनों करेंगे ,जब इन्होंने ऐसा दोस्त बनाया है, तो झेलेगें भी ये ही, कहकर हँस पड़ी।
शाम भी हो ही रही थी ,रत्ना अभी तक सो रही थी ,मोहित को अपने क्लिनिक भी जाना था ,साथ में चिराग भी चला गया।
रत्ना की जब नींद टूटी ,तब वो अकेली थी ,वो बाहर आई और इधर -उधर देखने लगी। बंसी से पूछा ,चिराग़ किधर है ? वो बोला -मुझे नहीं मालूम। तभी कोकिला दिखी ,रत्ना ने उससे भी चिराग़ के विषय में पूछा। कोकिला बोली -वो तो चला गया। कहाँ ?रत्ना ने पूछा। कोकिला बोली -मुझसे बताकर तो नहीं गया ,मोहित का दोस्त है ,उसे पता होगा। कोकिला की बातों से रत्ना को लगा- कि वो मुझे यहां छोडकर चला गया। रत्ना बोली -मैं ,मुझे यहीं छोड़ गया।
कोकिला बोली -तुम्हें पहले ही सोचना चाहिए था ,इतना पढ़ा -लिखा ,स्मार्ट डॉक्टर लड़का ,किसी गाँव की बाहरवीं पास लड़की को ,क्यों पसंद करेगा ?क्या उसके लिए लड़कियों की कमी है ?
रत्ना को तो जैसे -''काटो तो खून नहीं ''वो वहीं पास पड़े सोफे पर बैठ गयी। उसके मुँह से तो जैसे ,शब्द ही नहीं निकल रहे थे ,फिर भी कोकिला से बोली -वो मुझे इस तरह छोड़कर नहीं जा सकता ,उसने मेरे कारण ही ,अपने काम को दांव पर लगा दिया। मैं अपना सब कुछ छोड़कर उसके प्यार के विश्वास पर ही तो आई हूँ। कोकिला ने फिर से कहा -तुम जैसी न जाने कितनी लड़कियाँ उस पर मरती होंगी ,न जाने कितनी को यहां छोड़कर चला जाता है ?अब तो रत्ना को उसकी बातों पर विश्वास होने लगा ,वो बोली -उन लड़कियों का क्या हुआ ?क्या होता ?बेचारी न घर की रहीं, न ही यहाँ रहीं ,पता नहीं कहाँ गयीं ?कोकिला ने बताया। यदि वो तुम्हें प्रेम करता, तो ,यहां क्यों लाता ?अपने घर नहीं ले जाता। अपने माता -पिता से मिलवाता ,उसके प्रेम में तनिक भी सच्चाई होती तो तुम्हें यूँ भगाकर नहीं लाता ,तुमसे विवाह नहीं कर लेता।
रत्ना जैसे जीवन में सब कुछ हार चुकी थी ,उसे कुछ नहीं सूझ रहा था ,वो सोच रही थी -अब तक तो घर में क्या? मेरे शहर में भी सबको पता चल गया होगा। वो स्थान इतना बड़ा भी नहीं ,कि किसी की बेटी भाग जाये और किसी को पता भी न चले। जब कालूराम जी की बेटी किसी के साथ भागी थी, तभी पूरे शहर में उनकी कितनी थू.... थू.... हुई थी ?बेचारे किसी को भी मुँह दिखाने लायक नहीं रहे थे। कई दिनों तक तो घर से ही नहीं निकले थे। उधर बेटी को भी ,उसके प्रेमी ने धोखा दे दिया था ,जब वो वापस आई थी, तो लोगों ने पीट -पीटकर अधमरा कर दिया था। उसके प्रेमी ने तो उसके जेवर और पैसे भी छीन लिए थे। रत्ना को जैसे कुछ स्मरण हुआ ,उसने अपना थैला टटोला और फिर आश्वस्त होकर ,पुनः उसी स्थान पर बैठ गयी। आज वो उसी दौराहे पर आकर खड़ी हो गयी ,उसकी आँखों से लगातार अश्रु बहे जा रहे थे। उसके तो जैसे तन में जैसे प्राण ही नहीं बचे।
एकाएक उसे जैसे होश आया ,मन ही मन बुदबुदाई -यदि चिराग़ ने मुझे धोखा दिया, तो मैं उसे नहीं छोडूंगी। उसे इस लायक बना दूंगी ,आगे किसी को भी धोखा देने लायक नहीं रहेगा। किन्तु मैं उसे कहाँ ढूँढूगी ?कहाँ गया होगा ?किन्तु ये लोग उसकी इस तरह सहायता क्यों करते हैं ?उसके गलत काम में उसे सहयोग क्यों देते हैं ?इनका भी कुछ न कुछ स्वार्थ होगा। फिर सोचा -यदि ये लोग भी गलत होते तो, मुझसे सच्चाई छिपा जाते। तभी उसकी नजरों के सामने चिराग़ का चेहरा घूम गया ,उसे सोचकर तो नहीं लग रहा- कि वो मुझे धोखा देगा। तभी बंसी की आवाज़ ने उसके ध्यान को भंग किया ,वो कह रहा था -आपकी चाय ठंडी हो गयी ,क्या दुबारा गर्म कर लाऊँ ?उसने जैसे सोते से जागी हो ,इस तरह बंसी को देखा और बोली -क्या चिराग़ आ गया ?नहीं , कहकर बंसी ठंडी चाय लेकर चला गया।
उधर चिराग़ को कुछ पैसे मोहित ने दिए और विवाह के लिए कुछ आवश्यक सामान लाने को कहा और अपने क्लिनिक चला गया। चिराग़ घर के फोन से ,पहले ही कोकिला को बुला चुका था। कोकिला भी उसके बताये स्थान पर, ड्राइवर के साथ वहां पहुंच गयी और सामान खरीदने में चिराग़ की सहायता करने लगी। साड़ी ख़रीदते समय चिराग़ से कह रही थी -देखो ,ये तुम्हारी रत्ना पर खूब फबेगी। उसने उसे शेरवानी और भी सामान दिलवाये।कुछ समय तक इसी तरह खरीददारी करवाने के पश्चात ,कोकिला को एक ''टेलीफोन बूथ ''दिखा ,वो चिराग से बोली -तुम जरा यहीं ठहरो ,मैं जरा एक फ़ोन करके आती हूँ। चिराग़ सभी सामान एक -एक कर गाड़ी में रख रहा था। इधर रत्ना की आँखें तो जैसे सूख ही नहीं रही थीं, वे तो बहती नदी हो चली थीं।वो एकाएक उठी और उसी कमरे की ओर दौड़ गयी और तेज आवाज़ से दरवाज़ा बन्द कर दिया।बंसी को उसका इस तरह भागकर ,जाना और कमरा बंद करना कुछ ठीक नहीं लगा। जो बातें कोकिला ने रत्ना से कहीं ,वे बातें बंसी के कानों में भी पड़ीं थीं। वो सोच रहा था -मैडम ने ,इस लड़की से ये सब क्यों कहा ?क्या वो नहीं चाहतीं ? कि इसका विवाह उन साहब के संग हो। क्या ये ही प्रश्न आपके मन में भी घूम रहे हैं तो पढ़ते रहिये - आभार ,भाग ७