Abhar [part 5]

रत्ना और चिराग़ घर से भाग तो आते हैं किन्तु अपने परिवार का स्मरण करते ही रत्ना को दुःख भी होता है ,तब उसे चिराग़ समझाता है -कि कुछ समय पश्चात सब ठीक हो जायेगा ,अचानक ऐसे हादसों को,घरवालों को  स्वीकार करने में थोड़ा  समय अवश्य लगता है। अब उनके सामने प्रश्न खड़ा होता है कि अब कहाँ जाएँ ?वो इस स्थिति में अपने घर भी नहीं जाना चाहता ,पता नहीं ,मम्मी -पापा क्या कहेंगे ?वो रत्ना को लिए यूँ ही सड़कों पर घूम रहा था ,तभी अचानक उसे कुछ स्मरण होता है ,अब आगे - 
             चिराग़ रत्ना को लिए, किसी नई दिशा में जा रहा था जो रत्ना के लिए तो अनजान ही थी। लगभग एक घंटे चलने के पश्चात, वे दोनों एक स्थान पर रुके। चिराग़ रत्ना से बोला -चलो , हमारी मंजिल आ गयी। 
रत्ना ने उतरकर देखा, तो किसी का घर था। इस समय दोपहर के दो बजे थे रत्ना ने पूछा -ये किसका घर है ?

चिराग़ -आओ चलो ,मिलवाता हूँ उसने घर की घंटी बजाई और प्रतीक्षा करने लगा। रत्ना इधर -उधर देख रही थी। ये तो बड़ी शानदार कोठी है ,तभी उसने  दरवाज़े पर लगी तख्ती पर नजर दौड़ाई ,-उस पर लिखा था -डॉक्टर मोहित अग्रवाल। इतना तो रत्ना ने अनुमान लगा ही लिया-' कि ये घर भी किसी मोहित अग्रवाल का ही है ,जो  एक डॉक्टर है। बोली -ये भी तुम्हारी तरह ही डॉक्टर है। चिराग़ अनजान बनते हुए बोला -कौन ?
रत्ना -अब इतने भी मत बनो ,मैं पढ़ी -लिखी हूँ ,मैं इस घर के मालिक' मोहित अग्रवाल 'की बात कर रही हूँ ,उसने उस तख्ती की तरफ इशारा करते हुए पूछा। ओह !उसकी इस हरकत से स्वयं तो अचम्भित हुआ किन्तु मन ही मन खुश भी ,फिर बोला -ये मेरा दोस्त ही है ,अब इसके पास जा रहे हैं ,तब उसके पश्चात सोचेंगे -क्या करना है ?
तभी किसी ने दरवाजा खोला -जी कहिये ! चिराग़ ने पूछा  -क्या मोहित नहीं है ?जी वो खाना खा रहे हैं ,वो शाम को चार बजे मिलेंगे ,अब उनके आराम का समय है। तभी पीछे से आवाज आई -बंसी !कौन है ?
जी ,शायद कोई मरीज़ है ,आपसे मिलने आये हैं ,उसके इतना कहने से पहले ही, चिराग़ अंदर आ गया और बोला -डॉक्टर साहब !क्या आपने मुझे नहीं पहचाना ?चिराग़ के इतना कहते ही बंसी तो अंदर चला गया। मोहित बोला -अरे तुझे नहीं पहचानूँगा तो किसे पहचानूँगा ?आ अंदर आजा .... बंसी.... पानी तो ले आ। वो तो पहले ही पानी लेकर आ गया। मोहित उसके इस कार्य से प्रभावित हुआ ,बोला -क्या बात है ?जी ,मैं इनके आने पर ही  समझ गया था -आपके ही कोई दोस्त होंगे।
            रत्ना उसके संग ही थी ,वो भी पीछे चल दी ,मोहित ने इशारे से पूछा -ये कौन है ?चिराग़ बोला -ये रत्ना है ,चल जरा ,मुझे तुझसे अकेले में कुछ बातें करनी हैं। रत्ना को वहीं  छोड़कर ,वे दोनों  अलग कमरे में चले गए। रत्ना तो उस घर की भव्यता में ही खो गई। तभी वहां मोहित की पत्नी आई ,रत्ना को देखकर बोली -तुम कौन हो ,और यहां क्या कर रही हो ?उसके अंदाज को देखकर ,रत्ना सकपका गयी और बोली -मैं रत्ना..... तो ,वो कुछ कहने ही वाली थी तभी बंसी आ गया और बोला -मैडम ये ,साहब के दोस्त के संग हैं। कौन दोस्त कहते हुए उठी ,और उस तरफ चल दी जिधर से आवाजें आ रही थीं। रत्ना को बड़ा अज़ीब लग रहा था, कोई बैठकर ठीक से बातें ही नहीं करता। 

             उधर कमरे में न जाने क्या बातें हो रही थीं ?मोहित -चिराग़ ये लड़की कौन है और तेरे साथ क्यों है ?चिराग़ -ये रत्ना है। हाँ, ये तो तूने मुझे बाहर ही बताया था किन्तु तेरे साथ क्यों है ?मोहित ने उतावलेपन से पूछा। चिराग़ बोला -बता तो रहा हूँ। तभी मोहित की पत्नी अंदर आती है और कहती है -मोहित तुम्हारा कौन सा दोस्त आया है और ये लड़की कौन है ?चिराग ने पलटकर देखा, तो वो उसे पहचान गयी क्योंकि ये तो उनके विवाह में भी आया था। इसकी तो कई सहेलियाँ ,चिराग पर मर मिटी थीं। किन्तु इसने उन्हें पलटकर भी नहीं देखा। सभी कहती रह गयीं -दूल्हे के दोस्त से हमारी भी दोस्ती करा दे  किन्तु इसने तो उन्हें नजर भरकर भी नहीं देखा। आज जो स्थिति उसे लग रही है ,उसे देखकर तो लगता है जैसे -दिल का मामला है।
मोहित अपनी पत्नी को देखकर बोला -मैं भी तो इससे वही पूछ रहा हूँ। कोकिला बोली -मैं समझ  रही हूँ  ,शायद तुम्हारे दोस्त को ''प्रेम रोग ''हो गया है। क्या..... मोहित आश्चर्य से बोला ,और चिराग की तरफ देखा ,चिराग ने मुस्कुराकर हाँ में गर्दन हिला दी और बोला -तू दोस्त होकर भी नहीं समझ सका ,भाभी ने देखते ही समझ लिया। 
कोकिला बोली -तुम तो हीरा चुनकर लाये हो, क्या किसी खान में चले गए थे ?ऐसा क्या देखा इस लड़की में जो लट्टू हो गए ,मेरी सहेली प्रीति तो तुम्हारे लिए पागल थी। कुछ देर चिराग़ चुपचाप सुनता रहा ,फिर बोला -वो पागल थी न इसीलिए कहकर हँसने लगा। कोकिला को अपनी सहेली के लिए चिराग़ का इस तरह कहना ,अच्छा नहीं लगा ,फिर भी वो शांत रही। 
मोहित बोला -तू अब इस लड़की को यहाँ क्यों लाया है और मुझसे क्या चाहता है ?
चिराग ने बताया -हम दोनों भागकर आये हैं ,जहाँ मैं काम करता था ,ये वहीं रहती थी। 
मोहित -क्या तुम दोनों भागकर आये हो ?तू डॉक्टर होकर ऐसा काम करेगा ,मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी और तेरा काम। 
चिराग़ -मुझे ही कहाँ पता था ?ये सब हो जायेगा ,पता नहीं, मेरे जीवन में इस समय क्या -क्या घट रहा है ?मैं क्या करूं ?कुछ समझ नहीं आ रहा इसीलिए तो तेरे पास आया हूँ। तू मेरी सहायता करेगा।
 मोहित -तूने इस लड़की के कारण अपना जमा जमाया काम छोड़ दिया और इसे भगा लाया ,इसमें अब मैं तेरी क्या सहायता कर सकता हूँ ?जो कुछ भी तुझे करना था वो तू कर चुका। अब इस लड़की को कहाँ रखेगा ,क्या खिलायेगा ?क्या अंकल -आंटी को पता है ?
चिराग़ -नहीं ,हम आज ही तो आये हैं ,मम्मी -पापा को कुछ नहीं मालूम ,पता नहीं ,वो क्या कहेंगे ,क्या करेंगे ?कोकिला जो इतनी देर से उनकी बातें सुन रही थी ,बोली -यदि इस लड़की के माता -पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज़ करा दी- तो और ''लेने के देने '' पड़ जायेंगे।  
चिराग़ बोला -इसकी तो मुझे उम्मीद नहीं लगती क्योंकि इसके पिता नहीं हैं और मम्मी ग़रीब है।
 ग़रीब है तो क्या हुआ ?क्या उन लोगो का कोई मान -सम्मान नहीं ,गरीब घर की बेटी है तो क्या यूँ ही उठा लाओगे ?कोकिला ने उसका उत्तर दिया। कोकिला के तेवर देखकर चिराग़ थोड़ा हिल सा गया ,बोला -आप ये क्या कह रही हैं ? मैं उससे प्यार करता हूँ। 

कोकिला हंसकर बोली -निकल गयी हेकड़ी , गरीबों की सब सुनते हैं ,ऊपर से एक दुखियारी माँ की सब सुनेगें, जिसकी कुँवारी कली को तुम भगा लाये। सच्चाई सुनकर, चिराग मोहित के पास से उठकर कोकिला के समीप आ गया और बोला -भाभी अब आप ही मेरी नैय्या पार करवा सकती हैं। चिराग़ की इस तरह की हरक़त देखकर मोहित बोला -तूने तो ,थोड़ी भी देर नहीं लगाई और पाला बदल दिया। 
कोकिला -मुस्कुराकर चिराग़ की तरफ देखती है ,और पूछती है -तुम दोनों ने खाना खाया ,चेहरे से तो लग रहा है ,सुबह के भूखे हो,पहले कुछ खा -पी लो ,तब तक देखती हूँ ,क्या करना है ?
 चिराग़ ने नहीं में गर्दन हिलाई और मोहित से  बोला -अब मैं सही' पार्टी' में हूँ ,तब से सवाल किये जा रहा है ,एक बार भी खाने के लिए  नहीं पूछा।  
















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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