Chocolate

चॉकलेट का नाम सुनते ही मुँह में पानी आ  जाता है ,बचपन में इतनी रंग -बिरंगी टॉफ़ी ,गोली , न जाने ,कितनी तरह की  मिठास ,मुँह में घुली ,किन्तु इस विदेशी चॉकलेट ने सबको पीछे छोड़ दिया। कभी हमने संतरे की गोलियाँ भी खाई थीं किन्तु इसने उन्हें भी भूलवा  दिया। 
कभी आपने सोचा है !यदि इसमें मिठास न घोली जाये तो ये कड़वी है ,इसके कड़वेपन के भी  लाभ हैं। लोगों के जीवन में इतनी कड़वाहट भर गयी है कि इसकी कड़वाहट  महसूस ही नहीं होती। इसका एक टुकड़ा मुँह में रखते ही  है और मन प्रसन्नता से भर उठता है। अब तो रिश्तों में भी ,मिठास भरने के लिए इसका एक ही डिब्बा काफी है। 
हम अपने यहां की ''रसमलाई ,जलेबी ,लड्डू ,रसगुल्ला ,सोहन पापड़ी इत्यादि मीठी मिठाइयाँ भूलाते जा रहे हैं।वैसे ये मिठाइयाँ भी किसी भी तरह से कम नहीं। चॉकलेट तो  सस्ती- महंगी केेसी भी लो ,मुँह में घुल जाती है ,इसके सामने आते ही ,बच्चों से लेकर बड़ों तक के मुँह में पानी आ जाता है। 
अब तो इसका इतना बोलबाला हो गया है ,इसके मुँह पर लगाने के ''पैक ''भी आने लगे ,इसको लगाकर लड़कियाँ अपनी सुंदरता पर  चार -चाँद लगाती हैं। अपने दोस्त को दोस्ती का प्रमाण देने के लिए एक चॉकलेट ही काफी है। इसी कारण इसका विशेष दिन बना ''चॉकलेट डे ''
अब तो बच्चे भी ,चॉकलेट के स्वाद वाला ही दूध पीते  हैं ,चॉकलेट की ही ''आइसक्रीम ''भी खाते हैं।इसके बने ''केक ''भी खाते हैं  
और तो और चिकने से दिखने वाले लड़कों को भी ''चॉकलेटी बॉय ''कहने का चलन बन गया। 
बहन -भाई का  रिश्ता हो या कोई लड़की दोस्त हो या फिर किसी रूठे को मनाना हो , बस एक चॉकलेट ही काफी है। 

ये'' कोको''के पेड़ की फ़लियों से बनती है ,इसका अविष्कार या इसको बनाने वाले  ''मैक्सिको और मध्य अमेरिका ''के थे।  इससे ये भी पता चलता है ,-कि इस विदेशी ने हमारे दिलों -दिमाग़ पर कैसे कब्ज़ा कर लिया ?अब तो ये सबकी चहेती बन गयी ,चाहे कितनी ही कड़वी क्यों न हो ? 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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