कीर्ति के पापा !मकान बहुत पुराना हो गया है ,देखा नहीं ,आस -पास के लोगों ने अपने सभी मकान पक्के और दोमंजिले बना लिए हैं ,और हम इसी पुराने मकान में सड़ रहे हैं , शालिनी अपने पति से शिकायत करते हुए बोली।
महेश बोला - हमारा मकान पुराना है तो क्या हुआ ? ये हमारे पूर्वजों की धरोहर है। इस घर में हमारा बचपन बीता है ,हमारे अपनों की यादें हैं। उसे भी लगा- कि शालिनी ठीक कह रही है , बोला -यदि तुम्हारी इतनी ही इच्छा है तो अबकि फ़सल आने पर ,इसे पक्का बनवा देंगे किन्तु नींव तो वही रहेगी। महेश की बातों से प्रसन्न होते हुए शालिनी बोली -इस मकान का स्वरूप ही बदलेगा किन्तु आपके पूर्वजों की स्मृतियाँ तो वही रहेंगी। इंसान बच्चे के रूप में जन्म लेता है फिर जवान होता है और जवान से बूढ़ा। अब ये भी बूढ़ा हो चला है ,अब इसे' नवजीवन 'की आवश्यकता है।
महेश -अब मैंने कह तो दिया कि अबकि फ़सल में इसकी मरम्मत करवा देंगे ,अभी तो काम भी मंदा है ,इससे पहले कोई अपेक्षा मत रखना। उसके जबाब से निराश होकर शालिनी बोली -मरम्मत नहीं ,नवनिर्माण कराना है। बात को अधिक न बढ़ाते हुए ,महेश बोला -जबकि जब देखी जाएगी ,जैसा समय बताएगा।
उनके इस वार्तालाप को एक सप्ताह ही हुआ था ,रात को बहुत तेज़ हुई ,जिस कारण पीछे के कोठे की दीवार ढह गयी। सुबह उठकर महेश सोच रहा था -मकान तो वास्तव में ही बहुत पुराना हो गया है , शालिनी की भी कोई गलती नहीं ,पर क्या करें ?पैसा भी तो होना चाहिए।इंद्रदेव कुछ दिन और रुक जाते तो फसल आने पर कुछ न कुछ इंतज़ाम तो हो ही जाता। टहलता हुआ ,जैसे ही मकान के पीछे पहुंचा ,देखा -दीवार ढह गयी है ,वो तेज कदमों से ये देखने के लिए आगे बढ़ा- कि क्या बचा और क्या बह गया ?अभी वो सामान को देख ही रहा था तभी उसके पैर में कुछ वस्तु के चुभने का एहसास हुआ ,उसने झुककर देखा ,तो कुछ नुकीली सी वस्तु थी। शायद किसी चीज का कोना था उसने वो स्थान खोदना आरंभ किया और खोदता रहा। उस स्थान से एक पुराना संदूक निकला ,उसने उसका ताला तोडा और जब संदूक को खोला ,उसमें सोने के सिक्के थे ,वो तो जैसे ख़ुशी से पागल हो गया। महेश उस संदूक को लेकर ,घर के अंदर गया और शालिनी को भी वो धन दिखाया। शालिनी बोली -अब तो भगवान भी चाहते हैं कि मकान का नवनिर्माण हो ,महेश बोला -ये मेरे पूर्वजों का ही आशीर्वाद है। आज वो' पुराना मकान '' नया बन इठला रहा था।