Aaina

 बच्चों का वो प्यारा बचपन ,
 उनका प्यार से तुतलाना ,
 जीवन में मेरे ,नई उमंगें भरने लगा। 
 दिल आसमाँ की बुलंदियों में ,उड़ने लगा। 
 हमारे सपनों संग ,बच्चों के सपने भी जुड़े। 
 या यूँ कहें !
 बच्चों संग ,हम भी सपने सजाने लगे। 
 फ़ुरसत कहाँ थी ?
अपने -आप या अपनों से मिलने की। 
 लगता !
 जैसे बच्चों का जीवन ,हम ही संवार रहे थे। 
 हम जैसे !
इस ज़िंदगी की ,भूल -भुलैया में फंसते जा रहे थे। 
अभी फ़ुरसत कहाँ है ?
तनिक, इन्हें बड़ा तो होने दो। 
 इनके सपनों संग ,

 हमारे अरमानों को 'पर 'लगने तो दो। 
बच्चे बड़े हुए ,सपने पूर्ण हुए। 
 अब सब ठीक है। 
 अब हमें भी ''आईना ''अच्छा लगा। 
 'आईने ''ने सच्चाई से रूबरू कराया। 
 बच्चे ही नहीं ,अब हम भी बड़े हो गए। 
  अपने  अरमानों की शिला ,पर खड़े ,
 हम अपना जीवन देख रहे हैं ,
 दूर हुए हमारे अपने हमसे ,
 दूर से ही हाल -चाल पूछ रहे हैं। 
यही ज़िंदगी है ,''आईना बतला गया। 
 हमें हमसे ही ''रूबरू ''करा गया। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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