Makar snkranti

 कैसे निकलें ?रजाई से ,होने वाली है भोर। 
इस' मकर संक्रांति 'में ,
 ,ठंड का बहुत है जोर। 
तिल ,गुड़ ,रेवड़ी ,गज्जक से ,
होती ठंड की शुरुआत। 
आओ !मिलकर साथ बैठ ले ,
मिलकर तापे हाथ। 
मूंगफली तो हर किसी  का मेवा ,
कुछ नहीं भाता, इस ठंड में ,
कितना ही अच्छा हो ?बिस्तर में,
 बैठे -बैठे हो जाये ,अपनी भी सेवा। 
बाजरा ,दाल की खिचड़ी ,हर किसी को भाय। 
ले उमंगें दिल में ,हर कोई पतंग उड़ाये। 
गुड़  के लड्डू खाए के ,गज्जक ली तोड़।
अब तो उठ जा प्यारे ,अब हो गयी है भोर।

अब हो गयी है ,भोर ,
इस ठंड में भी ,बच्चे करते हैं ,बहुत शोर। 
घर में बैठे ,बहुत दिनन से हो रहे थे बोर।
अपनी उमंग में ,करो न अधिक शोर। 
'जीव 'कोई कटे नहीं, बचा लीजिये जान। 
गरमा -गरम चाय मिले तो ,
इस ठण्ड में ,बच जाये हमरे भी प्राण।   


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post