Ghatiyon ke beech ek shahr [ part 2 ]

राहुल ,ऋतू ,मेहुल ,दिव्या और कार्तिक ये पांचों दोस्त अपने -अपने घरवालों से इजाज़त लेकर कहीं  बाहर घूमने का कार्यक्रम ,बनाते हैं। माता -पिता के इंकार करने पर भी ,उन्हें किसी तरह समझा -बुझाकर ,वो लोग अपनी मंजिल पर निकलते हैं ,उनकी मंज़िल है ,अपनी यात्रा को अधिक से अधिक रोमांचक बनाना ,इसके लिए वो कोई पहाड़ी स्थल ढूंढते हैं। होटल में खाना खाकर ,वे पैदल ही घूमने निकलते हैं और अचानक ही किसी ऐसे गांव में पहुंच जाते हैं ,जिसमें  ,वहां रहने वाले लोग ,अपने -अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं और यदि  कोई प्रश्न  पूछे भी तो ,उसका जबाब कोई अदृश्य आवाज देती है। जब उन लोगों  ने पूछा- कि इस गांव का नाम क्या है? तब वो रहस्यमयी आवाज उत्तर  देती है -''अजूबा। ''मेहुल को लगता है -अवश्य ही यहां कुछ तो विचित्र है और वो अपने दोस्तों से वहां रुकने के लिए कहता है। किन्तु ऋतू और राहुल उसकी बात का समर्थन नहीं करते हैं और वो वापस होटल जाना चाहते हैं किन्तु कुछ समय पश्चात ही वापस आ जाते हैं। उनके दोस्त ,उनके इस तरह वापस आने पर ,चौंक जाते हैं क्योंकि वो कह कुछ रहे हैं और उनके चेहरे बता कुछ और रहे हैं। अब आगे -
उस तीनों  ने जानना चाहा कि -क्या हुआ ,क्यों वापस आ गए ?किन्तु वो बोले -जब साथ आये हैं, तो साथ ही चलेंगे। अब तो दिन भी छिपने वाला था ,होटल भी वापस नहीं जा सकते थे ,उसके लिए  काफी ऊँचाई पर चढ़ना पड़ता ,सोचा -इन लोगों से पूछकर यहीं विश्राम कर लेते हैं ,वैसे उत्तर  तो वही आवाज देगी किन्तु इनमें से किसी से तो पूछना ही होगा। मेहुल बोला -विदेह !इधर आओ !उसके इतना कहते ही कई लोग उसकी तरफ देखने लगे। उसने सोचा -भई ! ये क्या खेल है ?मैंने तो विदेह को बुलाया था, फिर सोचा -इसमें भी कुछ रहस्य ही है क्या ?किन्तु उसने इस बात पर ज्यादा ध्यान न देते हुए कहा -क्या आज की रात हम यहां सो सकते हैं और खाने का भी प्रबंध हो सकता है ?तभी वो आवाज आई -तुम लोग वो जो सामने मंदिर जैसा खंडहर है ,उसमें आराम कर सकते हो और हमारे यहाँ का विशेष शरबत आप लोगों के लिए आ जायेगा।मेहुल ने जब अपने दोस्तों को बताया कि रात के खाने में तो यहां सिर्फ शर्बत ही मिलेगा।  तभी दिव्या बोली -शर्बत में क्या पेट भरेगा ?हमें तो खाना चाहिए। उन्हें बार -बार लगता जैसे कोई उन्हें लगातार  देख रहा हो। वे इधर -उधर देखते रहते किन्तु कोई नजर नहीं आता। इन लोगों से इनके विषय में क्या बातें करें ?ये तो बोलते ही नहीं। 

              वे लोग उस मंदिर के अंदर गए ,वो देखने में मंदिर तो लग रहा था किन्तु वो मंदिर नहीं था बाहर से दिखने भर के लिए था। उन्होंने देखा, उनके लिए ऊँचे -ऊँचे बिस्तर लगे थे उन्हें लगा -जैसे इन लोगों को पहले से ही मालूम था और तेेयारी  करके रखी थी। अभी वो अपना सामान रखकर बिस्तर पर लेटे ,बिस्तर एकदम मुलायम और आरामदायक थे। तभी एक व्यक्ति शर्बत लेकर आया ,उन्होंने अपने -अपने कटोरे उठा लिए और उस कटोरे को देखकर बोले -ये तो'' दिव्य पदार्थ ''लग रहा है। और वे चारों उसे  पी  गए।  ,मेहुल को तो बिस्तर पर लेटते ही  इतना आराम मिला, कि वो बिस्तर पर लेटते ही शांतिपूर्वक सो गया। उसे सोता देख, कार्तिक बोला -इसका कटोरा इसके बिस्तर के नजदीक रख दो ,ताकि जब भी इसकी आँखें खुलें, तभी पी लेगा। उन चारों ने भी महसूस किया ,शर्बत पीते ही उनका पेट भर गया , अब उन्हें कोई भूख नहीं लग रही थी। कार्तिक बोला -ये तो अवश्य ही कोई 'दिव्य पदार्थ 'है। उसके इतना कहते ही तीनों की आँखे और उनकी पलकें भी नींद के कारण बोझिल होने लगीं। शीघ्र ही वो नींद की आगोश में चले गए।
           मेहुल को सोते हुए अभी ,तीन या चार घंटे ही बीते होंगे ,तभी एकाएक उसकी आँखें खुली और उसने देखा उनके चारों ओर अज़ीब तरह की धुंध छाई है , उसे लगा, जैसे वो किसी महल के कमरे में हैं वो उठा और बाहर निकला ,तो  देखता है ,जो स्थान  दिन में एक बहुत पुराना गाँव था ,वो तो बहुत ही आलीशान शहर है। मेहुल बाहर निकलता है ,वहां पर तो बड़े -बड़े महल हैं। दिखने में  तो वो स्थान ,अत्यंत दिव्य लग रहा था। एकदम शांत नगरी थी ,कुछ लोग इधर -उधर घूम रहे थे। वो ' स्वर्ण  नगरी ' जैसी लग रही थी। वहां के लोग सामान्य से ऊँचे कद के थे ,कम से कम सात या आठ फीट। इतना सुंदर दिव्य नगर आज तक उसने नहीं देखा।उसे एकाएक अपने दोस्तों का स्मरण हो आया ,काश !वे भी यहां आकर इस शहर की भव्यता देख लेते ,वैसे बताऊंगा ,तो कोई मुझ पर विश्वास  नहीं करेगा। उसके ऐसा सोचते ही उसके दोस्तों के  सोते हुए दृश्य उसके सामने आ गया। उसने देखा वो लोग तो आराम से सोये हैं और वो निश्चिंत होकर फिर से टहलने लगा। तभी  उसे  टहलते हुए ,स्मरण हुआ -कि मैंने तो सोचा था ,और तभी वो दृश्य मेरे सामने कैसे आ गया ?क्या इस शहर में ,मन की बात भी समझ लेते हैं ?

          तभी उसने कुछ आगे जाकर ,एक ऐसा स्थान देखा जो उस स्थान से नीचे था। नीचे जाने के लिए सीढियाँ थीं ,उसे लगा- जैसे कोई अलग ही ऊर्जा उसे उस स्थान पर जाने के खींच रही है किन्तु उसने वहां जाना उचित नहीं समझा। जैसे उसके मन में प्रेम उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा का एहसास यहां हो रहा है ठीक इसके विपरीत नकारात्मक ऊर्जा का एहसास उसे उस स्थान को देखने मात्र से हो रहा था। तभी उसने देखा ,वो जो गांव के लोग थे, उनमें से दो लोग लाये गए और उन्हें एक बड़े सिंहासन के सामने खड़ा कर दिया गया और वो दोनों किसी अपराधी की तरह सिर झुकाये खड़े थे।मेहुल एक स्थान पर छुपकर खड़ा हो गया और ये देखने का प्रयत्न करने लगा- कि इन लोगों को यहां क्यों लाया गया है ? तभी एकाएक उस सिंहासन पर एक दिव्य  व्यक्ति प्रकट हुआ ,उसके कान थोड़े लम्बे थे। नीचे खड़े लोगों में से सभी ने उसका झुककर अभिवादन और  स्वागत किया।
सभी अपने स्थान पर खड़े थे ,तभी वे दोनों व्यक्ति अपने आप ही लगभग उड़ते हुए से एक विशिष्ट स्थान पर आ गए। शायद वो एक कैदियों के लिए एक कटघरा था ,मेहुल ने अंदाजा लगाया। तभी ऊपर से उड़ते हुए दो व्यक्ति वहां आये और उस व्यक्ति ,जो शायद वहां का राजा था या फिर न्यायाधीश उसे अभिवादन किया ,अभी तक कोई भी एक शब्द भी नहीं बोला था ,शायद ये लोग गूंगे हों। मेहुल ने फिर से अंदाजा लगाया। तभी एक रौबीली आवाज़ गुंजी -क्या इनका दोष समाप्त हो गया  ?आकाश से उड़ते हुए जो व्यक्ति आये थे -उनमें से एक ने अपने हाथ को उठाया और उसमें से एक प्रकाश निकला -उस प्रकाश में से उन लोगों के कार्य नजर आ रहे थे। तब उस व्यक्ति की पुनः आवाज आई -इनके दंड का समय समाप्त हो गया है। उसके इतना कहते ही ,वो लोग भी उन लोगों की तरह  लम्बे और स्वस्थ हो गए। तब मेहुल ने सोचा -ओह !तो उस गांव के व्यक्ति सजा भुगत रहे हैं। अभी वो खड़ा ये ही सोच रहा था ,कि तभी उसे एक दुर्गंध का झोंका महसूस हुआ।

 उसने अपने पीछे देखा ,एक डरावना सा व्यक्ति उसके पीछे खड़ा था। उसकी लाल आँखें थीं ,रंग काला ,उसके गले में हड्डियों की माला थी। उसे देखकर मेहुल डरा ,इतने सुंदर दृश्य देखने के पश्चात तो उसका डरना स्वाभाविक था। वो बिना देर किये पीछे हटा और जिधर से आया था उधर की तरफ ही दौड़ने लगा। उसे रास्ते नज़र नहीं आ रहे थे, बस वो दौड़े जा रहा था  उसने पीछे मुड़कर देखा वो व्यक्ति अब भी उसके पीछे था। तभी उसे वो ही धुंध दिखाई दी ,वो उस ओर ही भागा और उस धुंध को पार करते ही वो अपने उसी स्थान पर था जहाँ उसके दोस्त भी सो रहे थे।तेज दौड़ने  उसकी साँसे तेज़ चल रही थीं। तभी उसकी आँखें खुली। उसने देखा, उसके सभी दोस्त आराम से सो रहे हैं और उसके बराबर में ही वो शर्बत का कटोरा रखा था। मेहुल ने उसे पीया ,उसकी तेज़ चलती सांसों को आराम मिला और उसकी थकावट भी  दूर हो गयी। वह  सोचने लगा - क्या ये सपना था ?नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,यदि ये सपना होता तो मेरी सांसें इस तरह न फूलतीं। वो सपना नहीं था, अभी वो इसी दुविधा में था कि उसे नींद ने घेर लिया। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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