Sachchi mafi

 देवयानी ,जो  हमेशा सच्चाई के लिए खड़ी रही है, कॉलेज में भी उसने, कभी झूठ का साथ नहीं दिया, ना ही झूठ बोलती थी , उसका तो एक ही उद्देश्य था, ना ही झूठ बोलना है, ना ही कुछ गलत करना है और ना ही गलत का साथ देना है।  यदि कोई लड़की भी ,उसे कॉलेज में, गलत दिखाई देती थी, तो वह उसके सामने अटल विश्वास के साथ खड़ी हो जाती थी इसीलिए उसकी स्पष्टवादिता और ईमानदार व्यवहार के लिए ,उसको सभी ने मिलकर यूनियन लीडर बना दिया था। 

 शायद यही उसकी शक्ति थी, इसीलिए वह अपने आप से भी प्यार करती थी। उसे लगता था , वह कभी गलत नहीं करेंगी , और गलत के विरुद्ध हमेशा खड़ी रहेगी लेकिन कभी-कभी परिस्थितियों ऐसी आ जाती हैं , आदमी अच्छाई और बुराई के भंवर में फंसता चला जाता है, सही और गलत पहचानते हुए भी , वह विवश हो जाता है। 


 स्नातक के पश्चात, उसका विवाह तय हो गया, और वह खुशी-खुशी अपनी ससुराल चली आई , अपनी ससुराल में भी खुश थी। सभी कार्य उसने सहजता से संभाल लिए थे किंतु न जाने क्यों ?उसकी सास उसके कार्य में कुछ न कुछ कमी निकालती रहती। देवयानी को अपने कॉलेज के दिन याद आते, किस तरह वह सच्चाई के लिए लडती थी ? सही के लिए खड़ी रहती थी किंतु यहां पर, वह अपने लिए भी ,अपने को विवश पाती है, क्योंकि उसका और उसकी सास का रिश्ता ही कुछ ऐसा है। ऐसे समय में उसके पति भी उसका साथ नहीं देते थे।

 उसकी सास भी न जाने कहां से, उसको चार बातें सुनाने के बहाने ढूंढती रहती थी कि किस तरह इसको नीचा दिखाया जाए। इसके किसी न किसी काम में कोई ना कोई कमी निकाली जाए। 

देवयानी के ससुर बाहर रहते थे, उन दिनों वह घर पर आए हुए थे, देवयानी खुश थी , और उसने अपने ससुर के लिए, विभिन्न प्रकार की व्यंजन बनाएं , यह बात उसकी सास को अच्छी नहीं लगी। उसे लग रहा था , यह तो जैसे उन्हें खुश करके न जाने, उनसे क्या ले लेगी ? उसकी सास अपने पति को भड़काने लगी। न जाने, देवयानी के विरुद्ध क्या-क्या कहती रहती ?

देवयानी सोचती -मैं यहां आकर क्या से क्या हो गई ? कहां मैं कुछ भी गलत होता था उसके विरुद्ध खड़ी हो जाती थी और यहां चुपचाप उनकी बातें सहन करती रहती हूं ,कब तक मुझे ये सब सहन करते रहना होगा ?कहने को तो कहते हैं -अत्याचार करने वाले से अधिक दोषी सहन करने वाला भी होता है।  तब उसने सोचा,अब मुझे अपनी सास से स्पष्ट बात करनी ही होगी।

 एक दिन देवयानी ने उनसे पूछा -आपका मुझसे  किस बात का झगड़ा है ? मुझे आज तक यह समझ नहीं आया, क्या मैं काम नहीं करती हूं , क्या मैं आपका कहना नहीं मानती हूं ? क्या आपके मान- सम्मान में कोई कमी छोड़ी है या मैं मोहल्ले में बाहर खड़ी होकर बातें बना रही हूं , या मैं घर का काम छोड़कर,अपने पति के साथ घूमने चली जाती हूं, तब मुझे यह बताइए आखिर आप चाहती क्या है ?

उसके इस तरह स्पष्ट प्रश्न पूछने पर, उसकी सास गुस्से से 'आग बबूला हो गयी। '' और बोली -हरामजादी !मेरी आंखों के सामने से चली जा ! तू मेरा क्या मान -सम्मान करेगी ?मुझसे जुबान लड़ा रही है। उन्होंने उस दिन भोजन नहीं किया, जब देवयानी उनके लिए भोजन लेकर गई तो उसे, गाली देकर भगा दिया। वह मेरे  ससुर को दिखा देना चाहती थी, कि ये कितनी बुरी है ? कहीं उनका मूल्य ससुर की नजरों में कम ना हो जाए, इसलिए उन्होंने इतना सारा ड्रामा कर दिया। न ही खाया ,न ही खाने दिया। 

जब दो समय तक उन्होंने खाना नहीं खाया तो ससुर को लगा- अवश्य ही बहू में कोई कमी है और वह बोले -तुम्हारी पढ़ाई- लिखाई का क्या लाभ ? अपने बड़े -बूढ़ों का सम्मान भी, नहीं रख सकते , हम मानते हैं यह जिद्दी है, किंतु अगर यह जिद कर रही है तो तुम्हारा इसकी बात मानने में क्या चल जाएगा ?

पापा जी ! मैं इनकी क्या बात नहीं मानती हूं , जरा इसे पूछिए ! देवयानी ने घूंघट की आड़ में ही कहा। 

देखा ! वो  चिल्लाते हुए से बोलीं -इसे तो बड़ों का तनिक भी लिहाज - शर्म नहीं है, कितनी बोल रही है।

 उन्होंने बात को ज्यादा न बढ़ाते हुए, देवयानी से कहा -तुम इससे छोटी हो, तुम्हें इनसे माफी मांग लेनी चाहिए ,यदि इसने एक -दो बात कह भी दी, तो क्या हो गया ? देवयानी अपने ससुर की तरफ देख रही थी,उसे लगा -ये भी उसकी बात नहीं सुनेंगे। उसको समझ नहीं आया, कि मेरी गलती क्या है और मैं अपनी किस गलती की माफी मांगू ? वह यह बात अपने ससुर से पूछना चाहती थी,' कि मुझसे क्या गलती हुई है और मुझे माफी क्यों मंगानी है ?

 किंतु उससे पहले ही वे बोले - तुम्हारी सास ने, 2 दिन से भोजन नहीं किया है, यदि इसे कुछ हो गया तो क्या होगा ? यह 'आत्मसम्मान' नहीं 'अहंकार' है।हम समझते हैं ,तुम्हें लगता है -'तुम गलत नहीं हो किन्तु यदि तुम माफी मांग लोगी तो तुम्हारा क्या जायेगा ? 

देवयानी मन ही मन घुट रही थी, उसे लग रहा था यदि मैंने कोई गलती की है तो मुझे उसकी माफी मांगनी चाहिए लेकिन मुझे तो यही मालूम नहीं है कि मेरी गलती क्या है ?मैं माफी क्यों मांगू, मैंने क्या गलती की है  ? मुझे माफी क्यों मंगानी है ? यही बात उसने अपनी मां से फोन पर भी पूछी। 

तब उन्होंने जवाब दिया - कई बार बड़ों का मन रखने के लिए, घर की एकता को बनाए रखने के लिए , थोड़ा झुकने में कोई बुराई नहीं है, झुकता भी वही है, जो ज्ञान और फलों से लगा रहता है। बड़ों के सामने झुकने से, उनसे माफी मांगने से तुम्हारी इज्जत नहीं घट जाएगी। कभी -कभी  परिवार को बनाए रखने के लिए हम गलत न होते हुए भी हमें झुक जाना पड़ता है।

 ससुर के बार-बार आग्रह करने पर, उसने परिवार की खुशी के लिए, अपने ससुर के मान के लिए , आगे बढ़कर अपनी सास से माफी मांगी -मम्मी जी ! मुझे माफ कर दीजिए ! जो भी मुझसे गलती हुई है उसके लिए मैं क्षमा चाहती हूं। 

यह कहकर वहां से तुरंत चली गई, अपने कमरे में आकर रो रही थी, आज उसके 'आत्मसम्मान' को गहरी ठेस लगी थी। यह उसका 'अहंकार' नहीं था, 'आत्मसम्मान' था जो आज परिवार के लिए, सास की झूठी ज़िद के लिए , उसे टूटना पड़ा वह रोने लगी। उसे माफी मांगने में कोई गलती नजर नहीं आती थी लेकिन माफी किस बात की मांगी है, यह उसे समझ नहीं आया ,जब उसने कोई गलती ही नहीं की है। तब उसने जिंदगी में यह पहला सबक सीखा था , कभी-कभी रिश्ते इतना मजबूर कर देते हैं, तोड़ देते हैं आदमी अपनी उस ईमानदारी, अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना चाह कर भी, नहीं बनाए रख सकता। वह भी तो ज़िद कर सकती थी -मैं माफ़ी नहीं मांगूंगी। ''किन्तु  रिश्तों में ज़्यादा दरार न आये इसीलिए उसने अपनी सास से माफी तो मांग ली थी किंतु अब वे उसकी नजरों से जीवन भर के लिए उतर गई थीं। उसके मन में जो उनका जो सम्मान था, वह समाप्त हो चुका था। 

किसी को ज़बरन, विवश कर उससे आप अपनी ज़िद तो मनवा सकते हैं किन्तु उसकी नजरों में खोया सम्मान नहीं पा सकते। माफी भी वही ''सच्ची माफी'' है ,जो दिल से मांगी जाये वरना तो' सॉरी' शब्द खांसते -छींकते ,किसी से स्पर्श होने पर भी बोलते देखा गया है ,जो एक 'आदत' या 'मात्र 'शब्द बनकर रह गया है।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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