इतनी धीर ,गंभीर ,
न जाने ,क्या सोचती ?
क्या करती ?
न जाने ,ज़िंदगी के ,
कितने ताने -बाने बुनती ?
उन तानों -बानों में ,
हम भी साथ निभाते।
गंभीरता से ले लिया ,
उन्हें कभी खिलखिलाते ,
मुस्कुराते नहीं देखा।
उनकी मुस्कान ,हमारे
लिए रहस्य बन गयी।
उनकी एक खिलखिलाती ,
मुस्कान के लिए ,
जैसे ज़िंदगी तरस गयी।
जब 'मैं ' कॉलिज में अव्वल आई ,
माँ मुस्कुराई थी।
भाई के लग जाने पर ,
खिलखिलाई थी।
जब लगा ,जीवन सफल हुआ।
तब माँ ,खिलखिलाकर
हंसती नजर आई थी।
वो मुस्कान आज भी है।
आज भी माँ खिलखिलाती है।
जब अपने सभी ग़म भूल जाती है।