Ghatiyon ke beech ek shahr [ part 11]

ऋतू तांत्रिक ''ज्ञानयोगी ''से अपनी सहेली दिव्या को बचाती है , उसकी  और अपनी सुरक्षा करते हुए  ,बाहर की तरफ दौड़ती हैं ,तभी उन्हें ''अश्वमानव ''दिखाई देते हैं ,जो उनकी तरफ ही आ रहे थे। दिव्या और ऋतू उनसे बचने के लिए अपने को तैयार करती हैं किन्तु वे उनकी सहायता करने के लिए आगे आते हैं ,ऋतू भी एक योजना के तहत ,उनसे सहायता लेने के लिए तैयार हो जाती है क्योकि उसे कार्तिक को भी तो ढूँढना है। उसने आईने में एक बड़े दरवाजे के अंदर कार्तिक को बंद देखा था। जब वो लोग उस बंद दरवाजे के पास जाती हैं और जब वो दरवाजा खुलता है तभी ऋतू उन दोनों ''अश्वमानवों ''के ऊपर पवित्र जल छिड़क देती है। अब आगे -
              दोनों ''अश्वमानव ''तेजी से हिनहिनाते हैं और उछलने लगते हैं ,दोनों लड़कियां अंदर की तरफ दौड़ती हैं और कार्तिक के समीप पहुंच जाती हैं ,कार्तिक उन्हें देखकर प्रसन्न होता है और उन्हें बताता है -मुझे अश्वमानव ''पकड़कर ले गए थे। ऋतू बोली -मुझे पता है ,मैंने सब देखा है। मैंने भी उन्हें अच्छा सबक सीखा दिया। अब जल्दी बाहर निकलो क्योंकि'' ज्ञानयोगी ''की तंत्र से बनी ये दुनिया, शीघ्र ही नष्ट होने वाली है। तभी दिव्या बोली -और हां !जैसे उसे कुछ स्मरण हुआ ,राहुल और मेहुल कहाँ हैं ?कार्तिक बोला -मुझे वे नहीं कहीं  भी नहीं दिखे। आओ चलो, शीघ्रता करो !ऋतू बोली। वे लोग जैसे ही उस जगह से बाहर आये ,तभी उन्हें राहुल और मेहुल भी दिख गए ,उन्हें देखकर तीनों बहुत प्रसन्न हुए और बोले -तुम लोग अब तक कहाँ थे ?और अब कहाँ से आ रहे हो ?दोनों एक -दूसरे को देखकर मुस्कुराये मेहुल कार्तिक से बोला -तुम्हें उन राक्षसों से किसने बचाया ?मुझे तो किसी ने नहीं बचाया ,वरन दो ''अश्वमानव ''पकड़कर ले गए। राहुल चिढ गया और बोला -इसकी कितनी भी मदद कर लो किन्तु ये एहसान नहीं मानेगा ,तुझे हम बचाकर न लाते , तो तू अब तक उन्हीं राक्षसों में शामिल हो गया होता। पर तुम लोग कहाँ लाये ?कार्तिक न समझते हुए बोला -वो तो वो....... यानि कुछ समझने का प्रयास करते हुए ,तुम ही वो ''अश्वमानव '',राहुल और मेहुल दोनों खिलखिलाकर हँस दिए। 
उनकी बातें  ऋतू और दिव्या भी सुन रही थीं ,दोनों आश्चर्य से बोलीं -क्या तुम ही ,अश्वमानव ''थे ?यानि उसने तुम्हें उसने 'अश्वमानव' बना दिया था और हम इधर -उधर खोज रहे थे। तब तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया ?
कब बताते ?ये तो अच्छा हुआ कि हम उस रूप में भी, अपने आपको नहीं भूले और बाहर जाने का रास्ता ढूंढते रहे ,ताकि समय आने पर, हम भाग सकें इसीलिए कार्तिक को भी इसी स्थान पर लाकर ,सुरक्षित किया। जब तुम लोगों ने हमें नहीं पहचाना ,तब हमने तुम्हारे साथ ठिठौली करने की सोची, किन्तु ये ऋतू कुछ  ज्यादा ही होशियार निकली और इसने हम पर कुछ फेंका और हम अपने असली रूप में आ गए।कहकर दोनों हंसने लगे। दिव्या बोली -वो तो सब ठीक है ,पहले ये बताओ !अब हम बाहर कैसे निकलेंगे ?मेहुल बोला -ये वो ही रास्ता है ,जिसकी सीढ़ियों से हमें उन्होंने कैद किया था। वो लोग हमें यहां कैद करके इसीलिए रखते थे क्योंकि उस समय हमने वो ''दिव्य शर्बत ''पीया होता  था ,उसकी शक्ति के कारण हमें यहां कैद कर  देते थे ,जब तक कि उस द्रव्य का प्रभाव समाप्त न हो जाये। अब चलो , इस रास्ते से बाहर निकलो। हम सीधे उन सीढ़ियों पर पहुंच जायेंगे। 
दौड़ते हुए ,राहुल बोला -एक बात समझ नहीं आयी ,तुम दोनों लड़कियों ने उस राक्षस को कैसे मारा और यहां कैसे पहुँची ?दिव्या ने ''प्रज्ञासेन ''जी के वही शब्द दोहरा दिये।'' जो कुछ नहीं करते ,कभी -कभी वो बहुत कुछ कर जाते हैं। ''तुमने तो हमें छोड़ दिया था किन्तु बाबा ने हम पर विश्वास जताया और उन्होंने ही हमें यहां अपने मित्रों को बचाने के लिए भेजा।

 ये बाबा कौन हैं ?कार्तिक ने पूछा। उसके इतना कहते ही ,वो किसी गुब्बारे जैसे गोले में फंस गया और ऊपर की तरफ उड़ने लगा। ये अब क्या नई मुसीबत है ? मेहुल चिल्लाया। 
तभी कुछ'' मानव पंछी ''भी उन्हें लेकर उड़ गए ,वो तीनों तो घबरा गए किन्तु दिव्या और ऋतू समझ गयीं कि हम कहाँ जा रहे हैं ?कुछ समय पश्चात ,वे पांचों किसी सुंदर स्थान पर थे। तभी मेहुल चिल्लाया और बोला -अरे !ये  तो वही स्थान है ,वही  रहस्यमयी नगरी है ,जहाँ मैं उस रात आया था। क्या ये सच है ?इसका अर्थ ये है ,वो मेरा स्वप्न नहीं था।
तभी वहां ''प्रज्ञासेन ''जी उपस्थित हुए और बोले -हाँ पुत्र !तुम अवश्य ही ,वायु मार्ग से इस नगरी में आये थे। तुम्हें ही उस कार्य के लिए चुना गया था किन्तु तुम अपने को संभाल नहीं पाए और वही कार्य इन दोनों बेटियों ने कर दिखाया।' ये बहुत ही बहादुर बेटियां हैं ',उन्होंने जैसे उन्हें ये शब्द कहकर सम्मान दिया। फिर ऋतू से बोले -बेटा तुमने उचित समय पर निर्णय लिया व राक्षस को मारने के लिए ,तनिक भी देर हो जाती तब कोई नहीं बचता। तुम अवश्य ही प्रशंसा की पात्र हो ,कहकर वो चले गए। 
कुछ समय पश्चात उनके लिए भोजन की व्यवस्था की गयी। दिव्या आश्चर्यचकित होकर बोली -क्या यहां भोजन भी मिलता है ?अब वो 'दिव्य पदार्थ ''नहीं। तब वो महिला बोली -अब इसकी आवश्यकता नहीं।
 खाना खाते  हुए  ,कार्तिक बोला -अब बताओगी भी ,तुमने उसे कैसे मारा ?
ऋतू बोली -उसने तो बहुत पहरेदार तैनात किये थे किन्तु बाबा के दिए ''पवित्र जल ''द्वारा मैंने उन राक्षसों का सफाया किया। तभी मेहुल बोला -उसी से ही हमारा भी सफाया करने वाली थी। 
नहीं ,वो जल तंत्र क्रिया को तोड़ने वाला था ,उसने ही तुम्हारे घोड़े जैसे मुख को ठीक किया ऋतू बोली। अब आगे कि कहानी चुपचाप सुनो -उस तांत्रिक ने दिव्या पर भी' काला जादू ''किया था ,उसे भी कुछ होश नहीं था। तभी जैसे किसी ने मेरे कानों में कहा -उस'' हवन कुंड ''की अग्नि से ही उसका सर्वनाश होगा। और उसने एक सीमा तक ,अपने तंत्र से उस स्थान को बाँधा हुआ था। अब मैं दूर से किस प्रकार दिव्या की सहायता करती ?उसी क्षण ,मुझे परी की दी छड़ी ,का स्मरण हुआ ,जो दूर से ही मार करने में सक्षम थी। जैसे ही उसकी क्रिया पूर्ण हुई ,तभी मैंने परी  की छड़ी की मदद से ,उसका'' हवन कुंड ''हवा में उड़ाया और उस अग्नि को उसके ऊपर ही उड़ेल दिया। जिस कारण उसकी मृत्यु हुई। ऋतू ने एक विजयी मुस्कान के साथ कहा।

 क्या !तुम परी से भी मिलीं ?चारों समवेत स्वर में बोले। ऋतू ने मुस्कुराकर' हाँ 'में गर्दन हिलाई।अब इसकी कहानी बाद में बताऊँगी। तभी बाबा वहां उपस्थित हुए और बोले -बच्चों ये कार्य तुम्हारे ही कारण पूर्ण हुआ ,अब तुम लोगों  के जाने का समय आ गया। पाँचों प्रतीक्षा करने लगे, कि हमें कैसे जाना है ?या क्या साधन होगा ?तभी बाबा बोले -तुम सभी अपने -अपने नेत्र बंद कर लो ,उन्होंने जैसे ही अपनी आँखें बंद कीं बाबा ने उनके सिर पर हाथ रखा और बोले -तुम्हारा जीवन सफल हो। बच्चों ने जैसे ही अपनी आँखें खोलीं -वो अपने उस होटल के कमरे में  थे जहाँ कुछ दिनों पहले अपना सामान रख कर गए  थे।आश्चर्य चकित होकर एक -दूसरे को देखने लगे। उन्हें ऐसे लग रहा था ,जैसे किसी स्वर्ग से आये हों। वो बाहर आये और होटल का किराया देने लगे ,तब उन्हें पता चला ,अभी तीन दिन ही हुए हैं ,यानि उस जगह और यहां के समय में भी अंतर् है। वे लोग वापस तो जा रहे थे ,किन्तु इतनी रोमांचक यात्रा ,उन्हें भुलाये नहीं भूल रही थी।   
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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