कामिनी अपने गांव के मंदिर में पूजा करवाती है ,उनके पंडितजी के गुरूजी अपनी मंत्र शक्ति से उस व्यक्ति को बुलाते हैं, जिसने उस कोठरी में उस आत्मा को कैद किया । जब वो व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है, तब उन्हें पता चलता है -कि वो व्यक्ति और कोई नहीं ,कामिनी की सास 'अंगूरी देवी ' हैं। उन्हें ये भी पता चलता है -'कि सुजान और निहाल का पिता 'सूरजभान 'था। इन सभी बातों की जानकारी मिलने के पश्चात ,'अंगूरी देवी 'अपने घर के लिए प्रस्थान करती है। तब गुरूजी कामिनी और उसकी मम्मी को समझाते हैं- कि अभी और भी समस्यायें हैं, इसीलिए परसों आना। दोनों चुपचाप हवेली में जाकर सो जाती हैं ,इससे पहले कि नींद गहरी होती ,उन्हें 'अंगूरी देवी ''के चीखने की आवाज़ आती हैं। दोनों उधर ही दौड़ती हैं ,कामिनी लाइट जलाकर देखती है तो हैरान रह जाती है। अब आगे -
कामिनी लाइट जलाती है ,तो देखती है ,अंगूरी देवी 'चिल्ला रही थी ,निहाल के पापा ,उठिये !कुछ समझ नहीं आ रहा था।
इन्हें क्या हुआ ?कामिनी ने पूछा। पता नहीं ,मैं सो रही थी ,इन्होंने मुझे उठाया और बोले -''अंगूरी तुमने मेरे कारण कितने दुःख झेले ?किन्तु मेरे मान -सम्मान पर ,कभी आंच नहीं आने दी। मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूंगा। ''कहकर गिर पड़े। कामिनी बोली -शायद इन्हें'' दिल का दौरा ''पड़ा है और वो फ़ोन करके निहाल को सूचना देती है और नौकर को गांव के ही ,किसी डॉक्टर या वैद्य को बुलाने भेजती है। इस बीच उन दोनों माँ -बेटी को ये भी ध्यान नहीं रहा, कि यदि अंगूरी देवी ने पूछा -कि वो इस समय यहां कैसे आईं ?तो उनके पास कोई जबाब नहीं होगा।
आनन -फानन में नौकर डॉक्टर को बुला लाया ,शायद डॉक्टर गहरी नींद में था ,अभी भी उसकी आँखों में नींद का असर था। उसने आते ही उनकी नब्ज़ टटोली ,कुछ देर सब यूँ ही शांत रहे। तब डॉक्टर बोला -अब ये नहीं रहे। डॉक्टर के इतना कहते ही ,'अंगूरी देवी ' जोर -जोर से रोने लगीं। कामिनी बोली -डॉक्टर साहब ,आप इन्हें ठीक से देखिये !इन्हें हुआ क्या है ?ये अभी तो ठीक -ठाक सो रहे थे। डॉक्टर ने फिर से देखा और बोला -शायद इन्हें ''दिल का दौरा ''पड़ा था। सुबह के पाँच बज रहे थे ,हल्की ठंड थी। किन्तु ये सूचना धीरे -धीरे सम्पूर्ण गांव में फैल गयी। लोग आने लगे। सुजान और निहाल वृंदा के साथ आ चुके थे। परस्पर बातें हो रही थीं। सभी अटकलें लगा रहे थे कि क्या हुआ होगा ?सभी के आ जाने पर गांव वालों ने अर्थी सजा दी।निहाल अपने पिता के लिए ,रो रहा था -और बार -बार कह रहा था ,कि मुझे क्यों अनाथ कर गए ?कामिनी उसे दुखी देख और ये सोच ,और भी दुखी थी -कि जिस पिता के लिए वो रो रहा है ,वो तो उसका पिता है ही नहीं ,और जो पिता था ,वो तो उसके पैदा होने से पहले ही चल बसा ,और उसकी मौत की ज़िम्मेदार और कोई नहीं उसकी अपनी ही माँ है। ये हवेली , इन लोगों के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठे ,ऐसा रहस्य छुपाये बैठी थी। जिसकी ईंटे किसी की मौत की गवाह थीं ,किसी के धोखे ,किसी के छल ,और न जाने कितने अरमानों की लाशों की गवाह है।
कुछ देर तो ''अंगूरी देवी ''रोती रही फिर शांत हो गयीं। जैसे उन्होंने अपने को इस परिस्थिति के लिए तैयार कर लिया ,या फिर जिसके लिए इतनी परेशानियों से जूझी ,अब वो ही नहीं रहा ,अब इन आँखों में भी आँसू जैसे सूख गए। शाम तक क्रियाकर्म के सभी कार्य पूर्ण हो गए। निहाल को ,अब कामिनी पर क्रोध नहीं था ,बल्कि उसकी नजरें अहसानमंद थीं कि ऐसे समय में वो मेरे माता -पिता के साथ थी। पता नहीं ,मम्मी अकेले ये सब कैसे संभालती ?
अचानक कामिनी को ध्यान आया ,कि उन्होंने आधी रात में उठकर ,मेरी सास से ऐसा क्यों कहा ?''तुमने मेरे लिए इतने दुःख झेले किन्तु मेरे मान -सम्मान पर कभी आंच नहीं आने दी।'' क्या उन्हें सब पता था ?यही बात उसने अपनी मम्मी को बताई। उन्हें भी लगा -शायद उन्हें पता था ,किन्तु अब मरते समय'' क्षमा याचना ''करने लगे ,क्या पता उनके दिल पर भी बोझ हो ?इसीलिए माफी मांगी होगी।
अगले दिन ,निहाल और सुजान ने छुट्टी ले ली थी ,वृंदा को भेज दिया गया था। कामिनी तो पहले से ही यहीं थी और आज तो उसे गुरूजी ने भी बुलाया है। ''अंगूरी देवी ''के मन में ये प्रश्न उठा कि छोटी बहु यहां कैसे पहुँची ?साथ में उसकी माँ भी थी। किन्तु वहां का वातावरण कुछ भी कहने सुनने के लिए उपयुक्त नहीं था। वो बस शांत बैठी ,सब देखती रहीं। लोग आते , कुछ देर बैठकर चले जाते , शाम तक यही क्रिया चलती रही। पंडित जी भी आये और बोले -गुरूजी ने कहा है ,ग्यारह बजे तक आ जाना।
उसके आने का कारण निहाल को तो पहले से ही पता था -किन्तु इस समय ,वो कामिनी को भेजना नहीं चाहता था ,बोला -तुम आज भी जाओगी ,कामिनी बोली -गुरूजी ने आज भी बुलाया है ,मैं नहीं जाऊंगी तो वो मेरे कारण , गुरूजी इतनी दूर से आये बैठे हैं ,सारा कार्य अपूर्ण रह जायेगा। उसने बेमन से इजाजत तो दे दी किन्तु साथ ही चेतावनी भी ,कि मम्मी और भाई को कुछ पता न चले।
नियत समय पर वो चली गयी ,गुरूजी पहले से ही विराजमान थे ,उसने गुरूजी से कहा -गुरूजी ,आपको तो पंडितजी ने सब बता दिया होगा ,मेरे ससुर नहीं रहे। गुरूजी बोले -मैं जानता हूँ और ये भी जा नता हूँ ,कि ये सब कैसे और किस कारण से हुआ ?
क्या मतलब ?गुरूजी ,कामिनी अचम्भित होकर बोली। गुरूजी बोले -जब तुम्हारी सास ,मेरे संम्मोहन से इधर आ रही थी ,तभी तुम्हारे ससुर की आँख खुली और उन्होंने पूछा -''अंगूरी ''इस समय किधर जा रही हो ?अंगूरी ने कोई जबाब नहीं दिया क्योंकि वो कुछ जबाब दे ही नहीं सकती थी क्योंकि वो सम्मोहन में जो थी। उसके कुछ भी जबाब न देने के कारण ,वो भी उसके पीछे चल पड़े और यहां तक आ गए और यहां आकर उन्होंने सभी बातें सुनी ,जो उनके भर्मित जीवन की सच्चाई थी और उसे बर्दाश्त करना ,उनके लिए असहनीय था। इसी कारण उन्हें ''दिल का दौरा ''पड़ा। गुरूजी !ये सब आपको पहले से ही पता था ,कामिनी ने पूछा। हाँ ,इसीलिए तो तुम लोगों को आज बुलाया। जब गुरूजी आपको पहले से ही मालूम था ,तब क्या उन्हें बचाया ,नहीं जा सकता था कामिनी गुरूजी से थोड़ी नाउम्मीद हुई।
वे बोले - बेटा ,कब तक वो इस बोझ को लिए फिरते ?और परिस्थितियां इससे भी ज्यादा ख़राब हो सकती थीं। उन्हें तो जाना ही था। जिस मोह के कारण जीवित थे ,वो मोह ही भंग हो गया। अब ''सूरजभान ''की आत्मा भी शांत होगी। वो जब मरा था ,तब उसके मन में ,एक ही बात तो बैठी थी कि'' तपन सिंह ''को सच्चाई का पता चले और जब भी उन्हें पता चलता ,तभी ये हालात होते। कम से कम उन्होंने अपनी ज़िंदगी जी तो ली। गुरूजी के समझाने पर ,कामिनी समझ रही थी- कि जो भी होना है वो सब निश्चित है।
कामिनी ने गुरूजी से पूछा -गुरूजी !क्या उस व्यक्ति का पता चल गया ,जो उस आत्मा यानि सूरजभान की आत्मा को बल दे रहा था। पंडितजी बोले -तो क्या गुरूजी ,कल से ऐसे ही बैठे हैं ?अपने कार्य में लीन थे। जब तुम्हारी सहायता का बीड़ा उठाया है तो तुम्हारा ही कुछ कार्य कर रहे थे।'सूरजभान 'को भी मुक्ति मिल गयी और आज तुम्हारे सामने वो व्यक्ति भी आकर खड़ा हो जायेगा जो इस वंश का सर्वनाश चाहता है। अच्छा !वो किस तरह ? कामिनी ने आश्चर्य से पूछा।