Haveli ka rahsy [part 20 ]

अभी तक आपने पढ़ा ,कामिनी गुरूजी से ''सूरजभान ''की मुक्ति के लिए पूजा करवाती है। सूरजभान और कोई नहीं' निहाल 'और' सुजान 'का पिता ही है। जब गुरुजी पूजा में पता लगा रहे थे -कि' सूरजभान ' को किसने मारा ?तब अंगूरी देवी के पति ''तपन सिंह ''भी वो सब सुन लेते हैं। जब उन्हें सच्चाई का पता चलता है- ,तब वो बर्दाश्त नहीं कर पाते और उनकी 'दिल के दौरे ''से मृत्यु हो जाती है। इधर जब उनका'' क्रियाकर्म  विधि'' होती है ,उधर गुरूजी भी 'सूरजभान 'की आत्मा को भी मुक्ति दिलाते हैं।  पंडितजी  कामिनी को बताते हैं- कि आज वो व्यक्ति भी उनके सामने आ जायेगा जो उसकी सहायता कर रहा था। तब कामिनी पूछती है -गुरूजी ने ''सूरजभान '' की आत्मा को कैसे मुक्ति दिलाई ?तब उसे ये सब पंडितजी विस्तार से बताते हैं ,अब आगे -

कामिनी पूछती है ,-आपने ''सूरजभान ''को कैसे मुक्ति दिलाई ?हम सभी तो ''तपन सिंह जी ''के कार्यों में लगे हुए थे। तब पंडितजी बताते हैं -गुरूजी को ''तपन सिंह ''जी के आने का पहले ही आभास हो गया था और उन्हें ये भी पता था ,कि यदि वो इन सभी बातों से अनभिज्ञ हैं ,तो अवश्य ही कुछ न कुछ घटेगा और हुआ भी वही ,उस सच्चाई को वो सहन नहीं कर पाए और उन्हें ''दिल का दौरा ''पड़ गया, इस बात से कामिनी तनिक रुष्ट होती है ,और गुरूजी से शिकायत भी करती है -'कि इस होनी को किसी भी तरह टाला जा सकता था।' गुरूजी समझाते हैं -'वो अधिक समय इस सच्चाई का बोझ सहन नहीं कर पाते।' '''सूरजभान ''की मुक्ति का एक कारण ये भी है। फिर गुरूजी तो हवेली आये ही नहीं ,फिर उन्होंने ''सूरजभान'' को मुक्ति कैसे दिला दी ?पंडित जी ने बताया -जब तुम्हारे घर में ,लोगों का आना -जाना लगा था ,तब गुरूजी उस बगीचे की कोठरी में गए ,और उन कीलों का तोड़ ढूंढा। कैद से छूटकर वो आत्मा किसी के लिए भी ,खतरा न बन जाये उसके लिए हवन कर ,कुछ सामग्री वहाँ भिजवाई, और जब ''तपन सिंह ''का दाह संस्कार हो रहा था। तब यहाँ भी '' सूरजभान ''के भी , सही तरह सभी संस्कार किये ताकि उसकी आत्मा को शान्ति मिले। सांसारिक नियमों के आधार पर, जब बड़ा बेटा गंगा में अस्थियां लेकर गया था तब हमने निहाल से उसके पिता की सारी  विधियां करवाईं। उसके पूछने पर हमने कहा -ये भी पूजा का ही एक अंग है। इस तरह दोनों पिताओं के विधिवत संस्कार करा दिए। 
कामिनी आश्चर्य से सब सुनती रही ,- एकाएक उसके नेत्रों में जल भर आया ,गुरूजी आप मेरे परिवार के लिए इतना सब कर रहे थे और मैं आपसे रुष्ट हो बैठी। अब बस उस व्यक्ति का भी पता चल जाये जो हमारे वंश को मिटाना चाहता है। मैं भी तो उससे पूछूँगी -कि हमने उसका क्या बिगाड़ा है ?क्यों हमारे परिवार के पीछे पड़ा है ?पंडितजी बोले -उस तांत्रिक का पता ,तो हमने लगाया है जिससे वो ये सब विधियां कराता है। कौन है वो ?यहां से कुछ दूर एक जंगल है ,वो उसी जंगल में ,अपनी सम्पूर्ण तांत्रिक क्रियाएँ करता है। उस जंगल के अंदर कोई भी जाता है तो उसे पता चल जाता है क्योंकि उसकी सभी तांत्रिक क्रियाएं बहुत ही शक्तिशाली हैं। उस जंगल में हमारी शक्ति भी कमज़ोर पड़ सकती है , किन्तु उस जंगल के बाहर उनका असर तो होता है किन्तु इतना अधिक नहीं होता। 
कुछ स्मरण करते हुए ,कामिनी बोली -बाबा यहां से ,आधा -पौने घंटे का रास्ता होगा। उस जंगल में तो मैं भी गयी थी ,मेरी पड़ोसन ले गयी थी। हां ,उसकी शक्तियाँ अद्भुत हैं ,किन्तु तामसिक ,हम छुपे हुए थे  फिर न जाने ,कैसे उसे हमारे होने का एहसास हो गया था ?अब  कैसे पता चलेगा ?निराश होकर कामिनी ने पूछा। गुरूजी बोले -उसकी आधी शक्ति तो हमने कमज़ोर कर ही दी हैं क्योंकि जिसके लिए, अपनी उस शक्ति का उपयोग कर रहा था ,उसे तो हमने मुक्ति दे ही दी। अब यदि उसने उस व्यक्ति को ऐसे ही बहलाने के लिए भी किसी शक्ति का उपयोग किया ,तो वो उस पर ही हावी होगी। 
बस अब ,उसका संकल्प और टूट जाये ,जिसने भी संकल्प लिया है , पंडितजी शांति से बोले। 
कामिनी परेशान होते हुए बोली -तब कैसे पता चलेगा , कि वो व्यक्ति कौन है ?
आप चिंता न करें ,हमने  उस तांत्रिक के तंत्र को तोड़ दिया है ,उस तंत्र के टूटते ही उस व्यक्ति को कुछ न कुछ आभास होगा और वो तांत्रिक के पास आयेगा। जंगल में प्रवेश करने से पहले ही ,गुरूजी की शक्ति उसे यहां खींच लाएगी। 

रात के बाह बज गए थे ,हवन कुंड की अग्नि प्रज्वलित थी ,सभी बैठे थे और गुरुजी ,आज विशेष पूजा कर रहे थे। बाहर  कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवा ,और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। तभी धीरे -धीरे एक साया  मंदिर की ओर बढ़ता नज़र आया। कुत्तों की भोकने की ध्वनि और तीव्र हो गयी। वो साया बढ़ता हुआ मंदिर के प्रांगण में आ गया। अंधरे में सभी आँखें फाड़कर देखने का प्रयत्न कर रहे थे किन्तु वो परछाई बस हिलती सी नजर आ रही थी और इसी तरह उस हवनकुंड के नजदीक भी आ गयी। उस अग्नि के प्रकाश में कामिनी उसे देखते ही पहचान गयी। और वो गुरूजी के इशारे पर उन्हीं के सामने पड़े आसन पर विराजमान हो गयी। गुरूजी ने उससे भी वही प्रश्न किया -तुम्हर क्या नाम है  ? 'रामदास' उसका जबाब था।
कामिनी की मम्मी के मन में प्रश्न था - कि अब ये कौन सी नई मुसीबत आ गयी ? उन्होंने कामिनी की तरफ देखा। कामिनी ने इशारे  से मम्मी को शांत  किया। 
तू इन लोगों को क्यों तंग कर रहा है ?गुरूजी का दूसरा प्रश्न था। 
ये लोग ,इतने सज्जन भी नहीं ,इनसे तो ज्यादा कुछ नहीं किया ,जो इन लोगों ने मेरे साथ किया ,वो रुआंसा होकर बोला।
 इन लोगों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?गुरूजी तेज स्वर में बोले। 
इन्होंने मेरे बुढ़ापे का सहारा मुझसे छीन लिया ,मेरे घर का इकलौता चिराग़ ,क्या बिगाड़ा था, उसने ?उस व्यक्ति रामदास 'ने  क्रोधित होते हुए  कहा। सम्मोहन में भी उसके चेहरे पर क्रोध था। 
तुम्हारे घर का चिराग कौन था ?गुरूजी समझ तो रहे थे, किन्तु उसके मुख से प्रत्यक्ष सुनना  चाहते थे। कामिनी तो पहले ही समझ चुकी थी। 
वो बोला - 'सूरजभान ' पहलवान मेरा बेटा था ,मेरे बुढ़ापे का सहारा और उस अंगूरी ने मुझसे झूठ बोला -वो बाहर कमाने गया है ,पता नहीं, कैसे मेरा बेटा मार दिया ?और वो समझती है कि मैं मूर्ख हूँ ,मैं उसे नहीं छोडूंगा ,मैं भी उसके वंश का नाश कर दूंगा। मुझे भिखारियों की तरह पैसे पकड़ाती है ,कि मेरे बेटे ने भेजे हैं। मैं भी उन पैसों से ही, उसका सर्वनाश कर दूंगा। 
अब कामिनी और उसकी मम्मी को सभी सवालों के ठीक से जबाब मिल गए , किन्तु उन्हें उस 'रामदास 'के लिए दुःख था। 
तभी गुरूजी ने मंत्र पढ़कर, हवन में कुछ सामग्री डाली और अग्नि तेज हो गयी। अग्नि  तीव्र होते ही , रामदास का सम्मोहन टूट गया और वो चारों तरफ इस तरह देखने लगा ,जैसे नींद से जागा हो। अब वो शांत था और बोला -मैं यहां कैसे आया ?और आप लोग कौन हैं ?
तब पंडितजी ने रामदास से बताया -ये वो लोग हैं ,जिनके वंश का तू सर्वनाश करना चाहता है। वो कुछ समझा नहीं ,तब पंडितजी बोले -ये अंगूरी की छोटी बहु ,जिसकी कोख़ को तूने काले जादू से बंधवाया है । 
तब कामिनी नम्रता से बोली -बाबा ,मैंने आपका क्या बिगाड़ा  है ?जो आप हमारे साथ ऐसा कर रहे हैं। रामदास को लगा ,अब तो इन लोगों को ,शायद पता चल गया और बोला -मैंने या मेरे बेटे ने ही उस अंगूरी का क्या बिगाड़ा था ?जो उसने मेरे साथ ऐसा किया। 
कामिनी बोली -बाबा ,हम भी आपकी ही औलाद हैं ,हमसे क्या दुश्मनी ?मम्मी जी ने यदि आपके साथ कुछ बुरा किया तो उसकी सज़ा भी उन्हें मिली ,कामिनी की मम्मी उसका चेहरा देख रही थीं कि ये क्या कहना चाहती है ? गुरूजी भी आँखें बंद किये थे।
रामदास बोला -कैसी सज़ा ? कामिनी बोली -उनके तो बच्चे ही नहीं हुए। 
रामदास आश्चर्य से बोला -तुम झूठ बोलती हो ,फिर ये किसके बच्चे हैं ?
''सूरजभान ''के ,कामिनी बोली। रामदास एकदम भावुक हो उठा ,बोला -ये कैसे हो सकता है ?
हाँ ,यही हुआ है ,जब वो तुमसे कहकर गया था-' कि मैं ज़िंदगी बनाने जा रहा हूँ। बाहर जाकर उसने विवाह किया और उनके दो बच्चे भी हुए ,निहाल ,सुजान।'' इससे पहले कि ,तुम्हें कुछ पता चलता ,उन दोनों पति -पत्नी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। अंगूरी देवी को पता चला ,तो उन दोनों छोटे बच्चों को अपना मान अपने साथ ले आई। तुम्हें भी ''सूरजभान ''की मौत का दुःख न हो ,इसीलिए बताया- कि वो बाहर गया है। तुम्हें तो एहसान मंद होना चाहिए कि वो तुम्हारे बच्चों को अपना समझ पाल रही हैं। उनके विवाह करवाये ,जिनमें छोटे' निहाल' की पत्नी ' कामिनी 'मैं हूँ ,और तुम अपने ही बच्चों का वंश बर्बाद करने जा रहे थे।रामदास की आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। बोले -मुझे उस तांत्रिक ने बताया ,कि मेरे बेटे की मृत्यु का कारण कोई स्त्री है। मेरा सारा संदेह उस ''अंगूरी ''पर गया ,क्योंकि वो उस पर पहले से ही मरता था। अब  कामिनी की बातें सुनकर ,रामदास हतप्रभ रह गया और उसकी मम्मी उसका चेहरा देख रही थीं कि इसने तो सारी कहानी ही बदल दी। गुरूजी बोले -'नारी तुम धन्य हो ,कहकर अंतर्ध्यान हो गए। 
कामिनी की मम्मी उसे अकेले में लेजाकर बोलीं -तुम ये क्या कह रही हो ?कायदे में तो तुम्हारी सास को जेल में होना चाहिए  और तुमने उसे महान औरत बना दिया। 

कामिनी बोली -मम्मी इनकी और अंगूरी देवी की उम्र तो देखो ,ये कब तक प्रतिशोध की आग में जलते रहेंगे ?कुछ दिन इन्हें शान्ति से रहने दो ,इनसे मैंने इनके बच्चों की सच्चाई तो नहीं छिपाई। ये इसी सुख में जी लेंगे कि मेरे अपने बच्चे हैं। रही बात, अंगूरी देवी की ,ये तो ''हवेली का रहस्य ''है जो अब हमारे दिलों में दबा रहेगा। यदि ये बात इन दोनों भाइयों को पता चली, -तो पता नहीं क्या कर बैठें ?इनके अस्तित्व पर ही सवाल उठ खड़े होंगे और जिस माँ का इतना सम्मान करते हैं ,उससे घृणा भी नहीं कर पाएंगे। अपनी मम्मी को समझाकर ,वो सब हवेली आ जाते हैं। रामदास को वहीं रहने के लिए ,कामिनी मना लेती है। निहाल को बताती है- कि मम्मी के गांव के हैं ,इनका अपना कोई नहीं ,यहां रह लेंगे। अंगूरी उन्हें जानती थी ,किन्तु कुछ नहीं बोली। कामिनी अपनी सास को भी अपने संग ले आयी और जो 'हवेली का रहस्य 'था ,सबकी स्मृतियों में रह गया।
 एक बरस पश्चात कामिनी ने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया ,जो सबकी आँखों का तारा था। 
              अपना भरपूर प्यार दीजिये ताकि कुछ दिनों पश्चात इसके और अंश ला सकूँ ,पांच तारे [स्टार ] और ढेर सारा प्यार की उम्मीद में। 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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