कामिनी को पंडितजी बताते हैं कि जो भी आत्मा उस कोठरी में कैद है ,उसे मेरे गुरूजी ही संभाल सकते हैं। और वो अपने गुरूजी से सम्पर्क करते हैं ,उनके गुरूजी ,कामिनी की सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं और गांव के मंदिर में ही पूजा रखवाते हैं। शाम तक सम्पूर्ण व्यवस्था हो जाती है और अचानक ही गुरूजी प्रकट हो जाते हैं , वे अपने आसन पर विराजमान हो जाते हैं ,अपने मंत्रों के प्रभाव से वो उस व्यक्ति की छाया भी दिखाते हैं जिसे देखकर कामिनी रात को, सपने में देखकर डर गयी थी। वो बताते हैं -ये आत्मा तुम्हें परेशान करने के उद्देश्य से नहीं आई वरन ये उस कैद से मुक्ति चाहती है। तभी गुरूजी कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हैं। तभी मंदिर के बाहर वाले दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आती है। सबका ध्यान बाहर की ओर केंद्रित हो जाता है, और सभी के मन में प्रश्न उमड़ते हैं- कि इस समय मंदिर के अंदर किसने प्रवेश किया ?अब आगे -
तभी एक परछाई दिखी ,सबने उधर देखा और अचम्भित हो गए ,-इस परछाई में कौन है ? किन्तु गुरूजी उसी तरह मंत्रों का उच्चारण करते रहे। उन्होंने अपने सामने वाले आसन को रिक्त करने का इशारा किया। जब वो परछाई ,हवन कुंड के नज़दीक आई और उसकी अग्नि में जिसने भी उसका चेहरा देखा ,उसी का मुँह 'खुला का खुला 'रह गया।वो गुरूजी के सामने आसन पर विराजमान हो गयी। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ,गुरूजी के स्वर उभरे और आवाज आई -कौन है तू ?
उस परछाई ने अपना परिचय दिया -अंगूरी देवी !सब बैठे हुए गुरूजी और अंगूरी देवी को देख रहे थे और समझने का प्रयत्न कर रहे थे कि इन्हें यहां बुलाकर गुरूजी क्या दर्शाना चाहते हैं ?
गुरूजी ने फिर से प्रश्न किया -तेरे पिता क्या करते थे ?मेरे पिता का जमींदारी के अलावा एक अखाड़ा भी था। अंगूरी देवी बिना किसी हिचक के प्रश्नों के उत्तर दे रही थी ,जैसे उसे आस -पास बैठे व्यक्तियों का संज्ञान ही न हो। वो अपलक गुरूजी को ही देख रही थीं। तब पंडितजी ने हाथों के इशारे से बताया कि इस समय ये संम्मोहित हैं।
गुरूजी का अगला प्रश्न था -तुम्हारे पति का क्या नाम है ?'तपन सिंह '
तुम्हारे कितने बच्चे हैं और उनके नाम क्या हैं ?दो !निहाल और सुजान सिंह।
दोनों की बहुओं के क्या नाम हैं ?गुरूजी ने नम्रता से पूछा -वृंदा और कामिनी।
कामिनी धीरे से पंडित जी से बोली -ये गुरूजी क्या कर रहे हैं ?पंडितजी ने उसे शांत रहने का इशारा किया।
निहाल और सुजान के पिता का क्या नाम है ?सूरजभान !उनके इतना कहते ही ,सब बेहद चकित रह गए और उन्हें लगा ,शायद ये सम्मोहन में कुछ गलत बोल गयीं। कामिनी कुछ कहती ,उससे पहले ही उसकी मम्मी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
' सूरजभान' कौन है ?वो थोड़ा रुकीं गुरूजी ने फिर से पूछा -'सूरजभान' कौन है ?मेरे पिता के अख़ाडे में था। गुरूजी ने अंगूरी देवी के शब्दों को पकड़ा और बोले -क्या वो अब नहीं है ?नहीं ,अंगूरी देवी के जबाब से , सबकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं।
तुम उसे कैसे जानती थीं ? और अब वो कहाँ गया ?गुरूजी ने उसकी आँखों में झाँका।
वो मेरे पिता के अखाड़े में आता था और मुझ पर मरता था। तभी कामिनी को उस लड़की की बात याद आई- जो उसे उसकी सास का गांव दिखा रही थी ,वो भी कुछ इसी तरह बता रही थी -कि कोई पहलवान था जो हमारी बुआ पर मरता था। ''उस समय तो मैंने ध्यान नहीं दिया ,अब उसकी बातों का अर्थ नज़र आ रहा है।
क्या तुम भी उसे पसंद करती थीं ?गुरूजी का अगला प्रश्न था। नहीं !उनका छोटा सा जबाब था।
तब वो निहाल और सुजान का पिता कैसे बना ?वो चुप रहीं ,शायद अपने भूतकाल में झाँकने का प्रयत्न कर रही थीं और वे लोग उनके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे। गुरूजी ने अपना प्रश्न पुनः दोहराया।
अंगूरी देवी बोलीं -सूरजभान ,मुझ पर मरता था ,ये बात मैं जानती थी। उसके व्यवहार से मेरे पिता को भी पता चल गया। वो किसी न किसी बहाने घर आ जाता ,मुझे भी कुश्ती का शौक था ,मेरी कुश्ती में दिलचस्पी देख कर उसे लगा- कि मैं भी उसे पसंद करती हूँ ,एक दिन मेरे पिता ने मुझसे इस विषय में पूछा -क्या तुम सूरजभान को पसंद करती हो ?तब मैंने इंकार कर दिया।
तुम उसे क्यों पसंद नहीं करती थीं ?गुरूजी ने प्रश्न किया ,वो तो अच्छा पहलवान था।
वो पहलवान अच्छा था ,मुझसे प्रेम भी करता था किन्तु वो ग़रीब होने के साथ ही लालची भी था , उसके व्यवहार को देखकर और अपनी इज्ज़त ,मान -सम्मान के लिए ,पिता ने मेरे लिए लड़का देखना आरम्भ किया ,तब मेरे लिए ,उन्होंने'' किशोरी लाल जी'' के बेटे ''तपन सिंह जी ''को मेरे लिए पसंद किया।'' तपन सिंह '' यानि मेरे पति बहुत ही शांत और सरल स्वभाव के हैं। हम दोनों की ज़िंदगी अच्छे से चल रही थी किन्तु भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था। जैसे -जैसे दिन बीतने लगे ,मेरे ससुर की चिन्ताएँ भी बढ़ने लगीं। वो चाहते थे,- कि उसकी नज़रों के सामने ही इस घर का वारिस आ जाये और इस चिंता में मेरे विवाह के छह बरस बाद वो स्वर्गलोक सिधार गए। मेरी सास जो अब तक शांत थीं ,उन्होंने ही मुझसे प्रश्न किया कि इस धन -सम्पत्ति का क्या लाभ ?जब इसको कोई बरतने वाला ही न होगा। उनकी बात अपनी जगह सही थी ,मैं भी चाहती थी- कि इस घर के वारिस को जन्म दूँ। मैं अनेकों मंदिरों में गयी ,पूजा की ,पंडितों से मिली किन्तु कोई सफलता हाथ नहीं लगी। तब किसी ने एक वैद्य का पता बताया ,मैं उनके पास भी गयी ,तब उन्होंने बताया कि मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँगी ,क्योंकि कमी मुझमें नहीं ,मेरे पति ''तपन सिंह ''में थी। ये बात मैंने किसी को भी नहीं बताई।
मेरी सास की इच्छा इतनी बलवती हो चुकी थी कि वो मेरे पति का दूसरा विवाह करने की तैयारी कर रही थीं। मेरे ही सामने, मेरा घर -संसार मुझसे छीन जाये ,ये मुझे बर्दाश्त नहीं था। जिसमें मेरी तो कोई गलती ही नहीं ,न ही मैं इसकी जिम्मेदार थी। पति में कमी दर्शाना उनके ''आत्मसम्मान ''को ठेस पहुंचाना था। मैंने बड़ी मिन्नतें कीं, किन्तु सास ने एक जगह रिश्ता तय कर ही दिया। अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं था दो माह पश्चात इनका विवाह होना था। मैं निराश ,हताश अपने घर आ गयी। मैं रात -दिन रोती ,मैं अपना स्थान वापिस पाना चाहती थी। माता -पिता भी जब बेटी को विदा कर देते हैं ,और बेटी वापस घर आकर बैठ जाये ,सबको खलने लगती है।
एक दिन मैं उदास अपने घर के झरोख़े में बैठी थी ,तभी उधर से ''सूरजभान ''जा रहा था उसने मुझे देखा और सहानुभूति जताई ,मैं अपने ग़म में इतनी खोई थी- कि उसकी सहानुभूति मेरे लिए मरहम का कार्य कर रही थी। वो अक्सर मुझसे मिलने लगा -और मैं धीरे -धीरे उसके करीब होती गयी। घरवालों ने भी सोचा होगा -''ब्याही भरी लड़की है ,अब इनके मिलने में कोई बुराई नहीं। ''मुझे अपने मायके रहते हुए ,अभी सवा महीना ही हुआ होगा ,मुझे पता चला -मैं माँ बनने वाली हूँ ,मैं बहुत प्रसन्न हुई ,जो मैं चाहती थी, वो हो गया ,मेरी एक समस्या हल हो गयी। तब मुझे एहसास हुआ- कि ये तो सूरजभान का है। गलती तो हो गयी किन्तु मेरे जीवन को सार्थक करने के लिए ,मेरा ये कदम सही था। मैंने अपने पति को पत्र लिखा ,पत्र पढ़ते ही तीन दिन बाद मुझे लेने आ गए ,मैंने घर में भी किसी से कुछ नहीं बताया और अपनी ससुराल आ गयी। उधर सूरजभान को पता चला -कि मैं वापस अपनी ससुराल आ गयी हूँ ,तो उसे बुरा लगा ,उसने मेरे ही कारण अपना विवाह भी नहीं किया था। मेरे पति का विवाह भी टल गया था जिस कारण से विवाह हो रहा था वो समस्या ही दूर हो गयी ,तब विवाह करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
तपन सिंह ''भी प्रसन्न थे ,जब उन्होंने मुझसे इस विषय पर प्रश्न किया ,तब मैंने बताया -मेरे घर पर कोई पहुंचे हुए बाबा आये थे ,उन्होंने आशीर्वाद दिया और उनके प्रसाद से ही ,मेरा बेटा ''सुजान सिंह'' हुआ।
जब सूरजभान को मेरे बेटे के होने का पता चला ,तब वो समझ गया कि ये बेटा उसका ही है ,एक दिन उसने मुझसे अपना बेटा माँगा ,तब मैंने उसे समझाया -ये तुम्हारे प्यार की निशानी है ,तुम इसकी ठीक से देखभाल भी नहीं कर पाओगे और ये यहां अरबों की सम्पत्ति का मालिक बनेगा। उसका मुख बंद करने के लिए मैं थोड़े पैसे भी उसे दे देती। इस बात का पता ,एक दिन मेरे पिता को चल गया था और वो अत्यंत अवसाद में आ गए ,उन्हें अपने मान -सम्मान की चिंता थी और उनकी बेटी ने अपने जीवन में ऐसा कदम उठाया जो उनके लिए असहनीय था ,एक दिन वो इस दर्द को अपने साथ लेकर चल बसे।
मैं अपने में प्रसन्न थी ,मैंने इधर -उधर की बातों पर ध्यान देना बंद कर दिया था। हम दोनों पति -पत्नी अपने बेटे सुजान को देखकर प्रसन्न रहते। अब हमें लग रहा था ,कि सभी बाधाएँ समाप्त हो गयीं। किन्तु मैं गलत थी -सुजान की शक़्ल -सूरत, न ही मुझसे मिलती थी ,न ही तपन सिंह जी से ,उसका रंग भी सांवला था। रिश्ते दारों ने कहना आरम्भ किया -ये किस पर गया है ?न ही शक़्ल -सूरत मिलती है ,न ही रंग। मिलता भी कैसे ?जब इसका पिता ''सूरजभान ''था। मेरी सास को शंका हुई ,उसने एक -दो बार फिर से पूछा ,तब मैंने वैद्य की दवाइयों का असर बताया। जब सुजान तीन बरस का हुआ ,तब सास ने कहा - एक बेटे का किसने देखा ?कम से कम दो भाई तो हों ,जो एक -दूसरे के साथ खड़े रहें। अब ये मेरे जीवन की नई समस्या उत्प्नन हो गयी थी।