अभी तक आपने पढ़ा -कामिनी को जब पता चलता है ,कि उन्हीं की हवेली के पीछे के बगीचे में कुछ तो है ,तब वो अपनी मम्मी को फोन करती है ,और उनसे सारी बातें विस्तार से बताती है। उसकी मम्मी पंडितजी को लेकर उनकी हवेली आती हैं । पंडितजी उस हवेली में पूजा करते हैं और पता लगाने का प्रयत्न करते हैं कि वो कितनी शक्तिशाली आत्मा है ?एक है या कई। तब वो बताते हैं -ये सब तो मुझसे नहीं संभलेगा ,ये जो भी आत्मा है ,उसे मेरे गुरु ही वश में कर सकते हैं। अगली पूर्णिमा में मेरे गुरूजी ही इसका हल निकाल सकते हैं। अगली पूर्णिमा से पहले कामिनी एक तांत्रिक से मिलती है किन्तु उनकी' क्रिया विधि' देखकर कामिनी ड़र जाती है और अपना इरादा बदल देती है। अब आगे -
कामिनी जंगल से बाहर निकलकर आती है और अपनी पड़ोसन से कहती है -मुझे, इस बाबा से कुछ नहीं कराना ,पूर्णिमा तक यहां भी प्रतीक्षा करनी होगी और वहां भी। कामिनी अपने घर आ जाती है और अपनी मम्मी से सम्पूर्ण व्याख्यान व्यक्त करती है। मम्मी ने बताया -पंडितजी ,अपने गुरूजी से पूर्णिमा से पहले ही सम्पर्क करने का प्रयत्न कर रहे हैं ताकि वो पूर्णिमा तक आकर हमारी मदद कर सकें। अपना धैर्य नहीं खोना है।
लगभग एक सप्ताह पश्चात उसकी मम्मी का फोन आता है और बताती हैं -पंडितजी ध्यान में बैठे थे , उन्होंने देखा कि पहाड़ों की शृंखलाओं में किन्हीं कंदराओं में ध्यान मग्न हैं ,उनसे सम्पर्क होने पर उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति है जो चाहता है कि 'अंगूरी देवी 'का वंश समूल नष्ट हो जाये ,इसी कारण किसी ने तुम लोगों पर कोई सिद्धि करवाई है और वो किसने करवाई है ?और वो तुम लोगो से बदला क्यों लेना चाहता है ?इसका कारण नहीं पता ,वो सब आकर गुरूजी ही बतायेंगे।
कौन है, वो और ऐसा क्यों कर रहा है ?कामिनी आवेश में आकर बोली।
वो तो ,गुरूजी के आने पर ही पता चलेगा ,उन्होंने हमारी सहायता करना स्वीकार कर लिया है और' पूर्णमासी ''तक पहुंच जायेंगे ,उससे पहले कुछ तैयारियाँ करनी होंगी। वो मुझे उन्होंने बता दिया है।
ठीक है ,अब फोन रखती हूँ ,कुछ विशेष बात होगी तो फोन करूंगी कहकर फोन रखने ही वाली थीं ,तभी कामिनी बोली -रुको ,रुको मम्मी !एक बात और पूछनी थी कि पूजा कहाँ होगी ?
ये तो मैंने पूछा ही नहीं ,जहां तक मेरा अंदाजा है ,ये समस्या गांव की हवेली से ही आरम्भ हुई तो वहीं पर समाप्त होगी। क्यों ,क्या कोई समस्या है ?उन्होंने पूछा।
वो मैं इसीलिए पूछ रही थी कि मेरी सास तो ,ये सब मानती ही नहीं ,देखा नहीं ,उस दिन भी कितनी मुश्किल से अनुमति दी थी ?ये सब कैसे होगा ?गुरूजी को कुछ कह दिया तो सारे ''किये कराये पर पानी फिर जायेगा। ''
तुम परेशान न होना ,सब ठीक ही होगा ,मैं इस विषय में पंडितजी से बात करूंगी ,कहकर उन्होंने कामिनी को सांत्वना दिया।
कल पूर्णिमा है ,कामिनी ने निहाल को बताया -पंडितजी ,के गुरूजी आ रहे हैं ,हमारी सहायता के लिए ही यहाँ आ रहे हैं। कब है ये पूजा ? और कहाँ ?निहाल ने पूछा।
कल ही ,कुछ सकुचाते हुए ,कामिनी बोली -जब मंदिर में कोई न आये ,पूजा में किसी भी तरह का व्यवधान न पड़े। जब मंदिर के कपाट बंद होंगे ,तब गुरूजी मंदिर के प्राँगण में वो पूजा आरम्भ करेंगे।
निहाल को उसकी बातें सुनकर अच्छा नहीं लगा ,बोला -पता नहीं ,तुम किन चक्करों में पड़ी हो ,पढ़ी -लिखी होकर भी इतना नहीं समझतीं कि इस तरह पूजा -पाठ करने से बच्चे नहीं होते।
जानती हूँ ,किन्तु मन में जो भृम है और बच्चा न होने में जो व्यवधान आ रहे हैं ,उनका निवारण तो कर ही सकते हैं ,एक उम्मीद है ,इसे भी करके देख लेते हैं कामिनी ने विश्वास से कहा।
जैसा तुम्हारा जी चाहे ,मैं तो नहीं जा सकता ,तुम सब संभाल लोगी और मम्मी को तो तुम जानती ही हो ,फिर मुझसे कुछ मत कहना ,कहकर वो कंबल ओढ़कर सोने का प्रयत्न करने लगा।
कामिनी के मन में एक शंका उठी और बोली -यदि गुरूजी ने ,कहा -कि पूजा जोड़े से करनी है ,तब तो तुम साथ दोगे किन्तु निहाल की तरफ से कोई जबाब नहीं आया।
कामिनी सोच रही थी -बच्चा होना भी, जैसे मेरी ही जिम्मेदारी है ,अब साथ नहीं देंगे और जब हो जायेगा तब ''निहाल सिंह ''का पुत्र कहलायेगा। एक सुखद ,उम्मीद की अनुभूति के साथ ,वो भी सोने लगती है। उसे विश्वास है कि अभी तो सभी नाराज हैं किन्तु जैसे ही इस समस्या का निदान होगा ,सभी प्रसन्न भी होंगे।रही बात सासू माँ की ,प्रयत्न तो यही रहेगा कि उन्हें पता ही न चले और फिर घर में तो पूजा होगी ही नहीं ,पूर्णतः संतुष्ट होकर ,उसके चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी।
अगले दी निहाल अपने काम पर गया और कामिनी ,अपने गांव आ गयी ,हल्की ठंडी का मौसम था लोग शीघ्र ही अपने घरों में विश्राम करने लगते ,इसी कारण दिन छिपते ही ,गांव में कोई इक्का -दुक्का ही घूमता दिख रहा था। मंदिर में ही व्यवस्था में समय लग गया ,कामिनी हवेली भी नहीं गयी और मंदिर में ही रही। शायद ''अंगूरी देवी ''को उसके आने का पता ही नहीं चल पाया। अब तो बस गुरूजी की प्रतीक्षा थी ,कामिनी अपनी मम्मी से बोली -मम्मी गुरूजी ,आ तो गए।
हां ,हां पंडितजी ने मुझे बताया था।
आपने उन्हें देखा था ,कामिनी शंकित होकर बोली। नहीं ,पंडितजी ने कहा था ,वो निश्चित समय पर पहुंच जायेंगे। पंडितजी भी नहीं दिख रहे ,कामिनी ने पूछा। वो तो अभी यहीं थे ,सम्पूर्ण तैयारी तो उन्होंने ही की है। शायद गुरूजी को लेने गए हों, वे बोलीं।
तभी एक बहुत ही बुजुर्ग़ ,हड्डियों का ढांचा जैसे ,सफेद लम्बी दाढ़ी ,गले में अनेक रुद्राक्षों की माला तन पर एक धोती के सिवा कोई वस्त्र नहीं था। बालों की तो जैसे बत्तियाँ बनी थीं ,और उनको भी इकट्ठा करके सर पर एक बड़ी सी जुड़ी बनाई हुई थी। इस ठंड में भी उनके बदन पर वस्त्र नहीं थे। हाथ में त्रिशूल था ,लग रहा था जैसे साक्षात् शिव ही उसकी सहायता के लिए, कैलाश से उतर आये हों। बस इंसानी चोला धारण किये हों।उनके चेहरे पर एक तेज़ था। कामिनी सोच रही थी ,अचानक कहाँ से प्रकट हो गए ?गुरूजी ने अपना आसन संभाला और ध्यानमग्न हो गए। बाहर से पंडितजी भी आ गए। कुछ देर इसी तरह ध्यान करने के पश्चात बोले -उस कोठरी में किसी की आत्मा कैद है ,वो मुक्ति चाहती है ,उसे मारकर वहीं कैद कर दिया। और उससे जुड़ा जो भी व्यक्ति है ,वो उसे शक्ति प्रदान करता हैं और इस वंश का नाश चाहता है।
गुरूजी !वो कौन है ?जिसकी आत्मा वहां कैद है ,और उसे किसने मारकर कैद किया हुआ है ?और हमारे वंश को कौन नष्ट करना चाहता है ?गुरूजी शांत हो गए और फिर से ध्यान में खो गए ,बोले -जिसने उसे मारा है वो जीवित है ,मैं अपनी शक्ति से उसे बुला लेता हूँ।
क्या गुरूजी ,उस व्यक्ति का भी पता चल सकता है ,जो मारा गया। उसका तो पता चल गया ,अपने पिता का इकलौता पुत्र था। बलशाली था। तभी गुरूजी ने हवन कुंड में थोड़ी सामग्री झोंक दी उससे बहुत सारा धुँआ हो गया। उस धुँए में कामिनी ने एक परछाई देखी ,धुंआ हटते ही कामिनी बोली -इसे तो मैंने ,कहीं देखा है और स्मरण करने का प्रयत्न करने लगी ,तभी उसे ध्यान आया और बोली -ये ही तो उस दिन मेरे स्वपन में आया था और मैं बुरी तरह डर गयी थी।
वो तुम्हें ड़राने नहीं ,अपनी मुक्ति के लिए आया था, गुरूजी ने बताया।
गुरूजी अपनी क्रिया करते रहे ,और कुछ मंत्र पढ़ते रहे ,तभी एकाएक मंदिर का बड़ा दरवाज़ा खुलने की आवाज आती है और सबका ध्यान उधर चला जाता है ,सभी के मन में प्रश्न उठता है -इस समय मंदिर में कौन आया ?