Gupt [maa ka darr ]

आज ''बालिका दिवस ''है ,बालिका यानि हमारे घर की, हमारे जीवन में आने वाली ''नन्हीं परी ''माता -पिता के प्रेम की पहचान ''नन्हीं कली ''जो हमारे जीवन में एक मुस्कान बनकर आती है ,और हम उसे बड़े जतन से, प्रेम से पालते -पोसते हैं ,उसे पढ़ाते  हैं ,जीवन की ऊंच -नीच समझाते ,उसे एक नए जीवन में प्रवेश करवाते हैं ,जो अंत में जाकर उसका ससुराल बन जाता है किन्तु उससे पहले की जो ,माता -पिता की जिम्मेदारियाँ होती हैं , अपने साथ -साथ उसे भी समझाना होता है --


मेरी प्यारी सी'' नन्ही परी '' नई खुशबू लिए मेरे जीवन में आती है ,मैंने उसे बहुत लाड़ -दुलार किया और वो भी मेरे आस -पास घूमती रहती ,अभी उम्र ही कितनी है ?फिर भी मुझे उसकी चिंता सताने लगी। उसे उसके विद्यालय लेकर जाती और वापस लेने भी जाती। उसकी शिक्षा उसके खाने -पीने का ,हर इच्छा का ध्यान रखती। वो है ही इतनी प्यारी ,वैसे  हर माता -पिता के लिए ,अपना बच्चा प्यारा ही होता है। सभी अपने बच्चों से प्रेम करते हैं। किन्तु हमारे घरों में जो ''नन्ही कलियाँ ''पलती  हैं ,उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उन्हें उड़ने की इजाज़त तो दी जाती है किन्तु एक सीमित दायरे  में ,हमारा उनके प्रति चिंतन ही ,उनके उस दायरे को निश्चित कर देता है और फिर आजकल का वातावरण.....  आजकल का क्या ?बेटियों के लिए तो, पहले से ही निश्चित दायरे तय हो जाते हैं क्योंकि जैसे -जैसे वो बड़ी होने लगती हैं उनकी खुशबू भी फैलने लगती है और उस खुशबू को एक निश्चित सीमा में ही बांध दिया जाता है ,ताकि किसी की कुदृष्टि न लगे। 

मेरी खुशबु भी ऐसी ही प्यारी सी है उसके पापा का तो उसे देखे बिना, दिन ही नहीं निकलता। एक दिन मैंने समाचार पत्र में पढ़ा -''छः बरस की बच्ची के साथ ,उसी  मोेहल्ले में रहने वाले, किसी लड़के ने उसका  ''बलात्कार'' किया ,पढ़ते ही रूह काँप गयी ,मैंने अपनी बच्ची को सीने से लगा लिया और मन ही मन निश्चय किया कि अब उसे मौहल्ले में या किसी पास पड़ोस में खेलने नहीं जाने दूँगी। बेचारी बच्ची को क्या मालूम ?उसकी माँ ने ,क्यों उसकी सीमाएँ तय कर दीं। अब मैं अपनी उस नाजुक कली की स्वयं ही दुश्मन बन गयी।जिसे इतने जतन से पाला ,प्यार किया ,बाहरी वातावरण ही क्या कहें ?कभी -कभी अपने घर के आस -पास और कभी तो घर में भी ऐसे व्यक्ति मिल ही जाते हैं जिनका काला साया जीवन को बर्बाद कर सकता है। अब बच्चियों की बात ही नहीं ,महिलायें भी इससे बची नहीं हैं। 


इतने जतन के पश्चात ,अब तो फोन भी आ गए ,फोन पर ही शिक्षा मिलने लगी। सारा दिन बच्चा पढ़ेगा ,तो नहीं। चलचित्र हैं ,विज्ञापन हैं। कहाँ तक उस पर भरोसा कर ,अपनी जिंदगी के साथ उसकी ज़िंदगी को भी नासूर बनते देखती?

' कब तक , ये पहरेदारी निभेगी ,फिर उम्र भी तो हो चली है ,चौदह -पंद्रह में ये ही उम्र तो है ,आगे बढ़ने की ,उन्नति करने की ,अपने अरमानों को नई उड़ान देने की किन्तु इसी उम्र में ही सही राह न मिले तो भटकना तो सम्भव है। एक दिन तो उसके साथ ,उसकी कक्षा का एक मित्र भी उसके साथ घर आया। मेरा शक्क़ी मन सचेत हो गया  उसके इर्द -गिर्द चक्कर लगाने लगा।'' अपनी बिटिया ,पर विश्वास करना सीखो ''अंदर से दिल की पुकार थी या मेरी ममता मुझे कोस रही थी। फिर दिल को समझाया यदि ऐसा कुछ गलत होता तो वो छुपाती ,फिर यहां लेकर नहीं आती। 

कुछ वर्षों पश्चात तो उसे कॉलिज भी जाना होगा ,आजकल तो बेटियां नौकरी कर रही हैं। कब तक उसके पीछे रहूंगी ?एक न एक दिन तो उसको समझना और समझाना होगा ही ,अब बड़ी हो रही है ,उसको अपनी पहचान करानी होगी।एक दिन मैंने भी अपना मन पक्का कर लिया और उससे कहा - खुशबू बेटा !कुछ दिनों पश्चात तुम कॉलिज जाओगी ,उसके पश्चात तुम नौकरी भी करोगी ,तुम्हें ऊँची उड़ान भरनी है। किन्तु कई बार हमारी इस ऊँची उड़ान में ,बाधाएँ भी आ सकती हैं ,कुछ दुर्घटना भी हो सकती है किन्तु उन बाधाओं और दुर्घटनाओं से हमें स्वयं ही निकलना होता है। वहां मम्मी या पापा नहीं होते ,उसके लिए अपना मनोबल सुदृढ़ होना चाहिए ,अपनी इच्छाशक्ति मजबूत।कुछ  न समझते हुए ,वो बोली -मम्मी मैं कुछ समझी नहीं। बेटा !कुछ चीजें इंसान के लिए गुप्त होती हैं ,स्वयं इंसान भी अपने आप में एक रहस्य है ,और तुम्हारी उम्र में ,पहले तो वो अपने आप को ही समझने का प्रयास करता है ,विशेषरूप से ,अपनी शारीरिक संरचना।तुम्हारी उम्र में तो अपने से ज्यादा वो अपने विपरीत लिंग को समझने का प्रयास करता है। 

बेटा !ये महिला का शरीर एक ख़जाने की तरह है ,जिसे बड़ी एहतियात से संभालकर रखा जाता है क्योंकि कुदृष्टि पड़ते ही, ये मैला हो सकता है। ऐसी कुदृष्टि से बचने के लिए ,तुम्हें अपने को जागरूक करना होगा।तुम्हें समझना होगा- क्या सही और क्या गलत है ?यदि भूले से भी व्यक्ति भटक जाये तो इस खजाने को लु टने में देर नहीं लगती और फिर रह जाता है ,जीवनभर का पछतावा। भटकाव से  बचने के लिए ,अपने संस्कार , अपनी शिक्षा और अपने माता -पिता के प्यार को समझना होता है। यदि फिर भी मन भटकता है तो उसकी एक सीमा तय करनी होगी। क्या मम्मी ?हर चीज के लिए ,आप ये ही कहती हो ,एक सीमा ,कब तक इन सीमाओं में बंधे रहेंगे ?बेटा !नदी की भी एक सीमा होती है ,सड़क भी एक सीमा के तहत निश्चित होती है ,उड़ान भी एक सीमा तक ही सम्भव होती है। बिना सीमा अथवा दायरे के घास या खरपतवार ही उगती है जिसको की उखाड़कर फेंका जाता है ,वो किसी काम की नहीं रहती। 

प्यार एक सुंदर मधुर एहसास है ,वो किसी को भी, किसी से हो सकता है किन्तु यदि वो प्यार सीमा में रहेगा तो उसका निखार दिन ब दिन होगा। और यदि सीमा तोड़ दी जाये तो कुछ दिनों के पश्चात ,वो छलावा लगने लगता है क्योंकि इस उम्र में ,पहले प्यार मात्र एक आकर्षण ही हो सकता है और जब वो आकर्षण का कारण  ही समाप्त हो गया तो प्यार भी समाप्त हो जाता है। यदि सच में प्रेम है ,तो उस पर विश्वास होना चाहिए ,उसकी कोई शर्त नहीं होती। भावनात्मक रूप से कोई उलझाता नहीं ,वो उसे जीवनभर के लिए अपने साथ रखना चाहता  है ,ऐसा प्रेम दिन ब दिन बढ़ता है। शारीरिक आकर्षण प्रेम नहीं हो सकता जिससे तुम्हें बचकर रहना है। ये सौंदर्य और प्रेम सिर्फ उसके लिए जो इसका सम्मान करे और प्यार दे। 


एक ही व्यक्ति का, कैसे किसी की जिंदगी पर अधिकार हो सकता है ?खुशबू बोली। वो एक ही व्यक्ति तो होता है जो जीवनभर साथ निभाता है। उसके साथ रहकर अपने को सम्पूर्ण महसूस करते हैं ,उसी के लिए भावनायें उमड़ती हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है ,आजकल तो कई -कई दोस्त होते हैं ,मेरी एक सहेली के दो दोस्त हैं खुशबू बोली।सूरज एक होता है ,चाँद भी एक ही होता  है किन्तु तारे अनंत हैं।  जो भावनायें हमारी उस एक दोस्त या जीवन साथी के लिए होंगी वो अन्य के लिए नहीं हो सकती। मान लीजिये -उस साथी ने ही धोखा दे दिया जिस पर तुम्हें इतना विश्वास था।[ ये जीवन है ,हो सकता है ] यदि उसके पश्चात तुम्हारे जीवन में अन्य कोई आ भी  जाता है तो वो भावनायें नहीं आ पायेंगी ,''कुछ जज़्बात होंगे ,डरे -डरे से ,सहमे -सहमे से।'' 

तुम्हें अपना वो गुप्त खजाना लुटाना ही है ,तो उसका  न ही तुम्हारी नजरों में कोई मूल्य है, न ही दूसरे की नज़र में ,एक के बाद दूसरा फिर तीसरा। वहां भावनायें तो रही ही नहीं, सिर्फ स्वार्थ पूर्ति के लिए कुछ क्षणों का साथ। ये वस्तु अनमोल है ,इसीलिए इसको ''गुप्त'' रखा गया है ,'प्रेम प्रदर्शन' मन से और भावनाओं से जुड़ा होता है। पुरुष के लिए भोग की वस्तु हो सकती है क्योंकि हर किसी की सोच एक जैसी नहीं हो सकती। किन्तु यदि तुम स्वयं का सम्मान करोगी तो वो भी सम्मान करेगा।

ये जीवन तुम्हारा है ,यदि सही राह ,पर चलते हुए मंजिल पर पहुंचोगे तो उज्ज्वल भविष्य तुम्हारा होगा। हम तो सिर्फ दर्शक होंगे ,-तुम्हारी सफलताओं के।  

 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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