दिव्या को ''ज्ञानयोगी ''अपनी गिरफ़्त में ले लेता है ,उसे छुड़ाने के लिए ऋतू जाती है, किन्तु वो कहीं नहीं मिलती ,किन्तु दिव्या को ढूंढते हुए ,उसे कुछ परियां अवश्य मिल जाती हैं। ऋतू को पता चलता है -कि उस 'ज्ञानयोगी' ने तो परियों की रानी को भी अपनी कैद में रखा हुआ है। तब ऋतू उनकी परियों की रानी को ढ़ुँढ़वाती है ,और उसे स्वतंत्र करने में भी उनकी सहायता करती है। जब वो लोग चले जाते हैं ,तब ऋतू भी वहां से प्रस्थान कर ,आगे बढ़ती है, ताकि जब उस तांत्रिक को परी रानी के स्वतंत्र होने का पता चले तो वह स्वयं उसके कोप का भाजन न बने ,अब आगे -
ऋतू ने पुनः अपना वो अदृश्य होने वाला वस्त्र ओढ़ लिया ,और अपनी दोस्त दिव्या को ढूंढने लगी। उसे पता नहीं चल पा रहा था, कि दिव्या को उस शैतान ने कहाँ छुपा दिया ?जब भी वो आईना देखती ,बस उसे एक झरना दिखता ,वो सोचती यदि उसने ,उसे झरने के आस -पास भी छुपाया है तो कहाँ ?वहां उसे कोई झरना भी तो दिखाई नहीं दे रहा। थककर वो कार्तिक के पास चल दी ,किन्तु उसे कार्तिक नहीं मिला। उसने अपना माथा पीट लिया और बुदबुदाने लगी -इससे कहा था -'अपना ध्यान रखना, किसी की नजर में मत आना ,अब मैं इसे कहाँ ढूंढूं ?
उधर जब ऋतू चली गयी ,तब कार्तिक वहीं छुपा था ,अपनी जान, किसे प्यारी नहीं होती ?वो भी छुपा हुआ था। तभी ज्ञानयोगी के राक्षसों में से घूमते हुए ,उधर की तरफ भी घूमे, कार्तिक बचता रहा। शायद वो उस व्यक्ति को खोज रहे हों, जिसने परी को उसकी कैद से छुड़ाया। वैसे तो राक्षसों को ''मानस गंध ''आ ही जाती है किन्तु उन्हें नहीं आ पा रही थी क्योंकि ये ''प्रज्ञासेन जी ''के पवित्र जल का प्रभाव था। कार्तिक उन राक्षसों से तो बच गया किन्तु ''अश्व मानवों ''से नहीं बच सका और वे उसे वहां से उठाकर ले गए क्योंकि 'अश्व मानव 'अभी पूरी तरह राक्षस नहीं बन सके थे। उधर ऋतू थक चुकी थी ,उसे कार्तिक भी नहीं मिला न ही कोई उपाय सूझ रहा था -'इन चट्टानों में कहाँ और कैसे जाये ?वो वहां बड़ी देर तक बैठी रही और पता नहीं कब, वो नींद की आगोश में चली गयी ?
ऋतू ने देखा- वो तो ,पुनः उसी नगर ''कुलधरा ''में पहुंच गयी है ,अब वो उन्हीं बाबा के सामने थी और परेशान भी थी। बाबा से पूछ रही थी -बाबा मैं क्या करूँ ?राहुल और मेहुल तो पहले से ही गायब थे और अब दिव्या और कार्तिक भी पता नहीं, कहाँ चले गए ?मैं अकेली इस पाताल नगरी में ,कहाँ जाऊँ और कैसे उन्हें ढूंढूं ?मुझे तो ये चिंता भी खाये जा रही है ,मेरे ढूंढने से पहले ही ,यदि उन्हें कुछ हो गया ,तो मेरा यहाँ आना व्यर्थ हो जायेगा। हम कैसे वापस अपने घर जायेंगे ?बाबा बोले -परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,जहां समस्या है ,वहां उसका हल भी वहीं है ,तुम अपने ही स्थान से ,उन्हें ढूँढ सकती हो ,थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है ,तुम्हें पवित्र जल के साथ ,वो दिव्य शर्बत भी तो दिया था। उससे तुम्हारी सम्पूर्ण थकावट दूर हो जाएगी। बेटा ,मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ,कहकर उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा और ऋतू की एक ही झटके में आँखें खुल गयीं। उसे लग रहा था -जैसे बाबा उसे समझाने और अपना आशीर्वाद देने आये थे। तभी उसने अपना सामान टटोला तो उसमें उसे वही ''दिव्य शर्बत ''मिला ,उसने उसके कुछ ही घूंट भरे उससे उसमें एक ऊर्जा का अनुभव हुआ। मन ही मन सोच रही थी ,क्या मैं ''कुलधरा ''गयी थी? या फिर ये मेरा स्वप्न था।
''पाताल नगरी ''में न ही दिन का पता चल पाता ,न ही रात का ,उसने उस आईने में पुनः देखा। अबकि बार उसे एक चट्टान दिखी और उसके अंदर दिव्या भी दिखी। जो उस गुफा के एक कोने में बैठी थी ,उसके हाथों में कोई रस्सी नहीं दिख रही थी फिर भी वो इस तरह बैठी थी ,जैसे किसी ने उसे बांध रखा हो। उसी गुफा के दूसरे कोने में ,काली की मूर्ति थी और वहां बहुत ही सारा पूजा का सामान था। जैसे किसी बड़ी पूजा की तैयारी चल रही हो। ऋतू सोचने लगी -अब ये क्या करने वाला है ?किन्तु वहां के वातावरण को देखते हुए लग रहा है ,इस तांत्रिक के इरादे कुछ सही नहीं हैं ,पहले तो वो उस चट्टान की तरफ जाने के लिए मुड़ी किन्तु तभी उसे कार्तिक का विचार आया तब उसने देखा -कार्तिक तो किसी बड़े से दरवाजे के अंदर बंद है और उसके इर्द -गिर्द दो ''अश्वमानव ''घूम रहे हैं और कार्तिक डरा -सहमा सा बैठा है।
ऋतू तेज गति से ,अपने आईने को लेकर उस ओर चल दी ,जो दिशा वो दिखा रहा था। उधर ''ज्ञानयोगी ''के इरादे कुछ सही नहीं थे। वो परी रानी के स्वतंत्र होने के कारण , पहले से ही क्षुब्ध था। वो देवी माँ की पूजा करके , दिव्या की के कौमार्य को भंग करके ,उसके रक्त को ,उस हवन कुंड में समर्पित करके तब दिव्या की देवी के चरणों में बलि देता। दिव्या के जब तक हाथ बंधे थे ,वो कुछ नहीं कर सकती थी। फिर भी वो खिसकती -खिसकती चट्टान के बाहरी द्वार की तरफ बढ़ रही थी किन्तु उस दुष्ट की नजरें एक पल के लिए भी उससे दूर नहीं जा रही थीं और वो ,पुनः दिव्या को उसी स्थान पर ले आया। अब तो वो और भी ज्यादा सतर्क हो गया और उसने द्वार पर अपने कुछ ,पिशाच वहां तैनात कर दिए। आज अमावस्या की रात्रि थी और वो सही समय की प्रतीक्षा कर रहा था। ऋतू ने कार्तिक के विषय में न सोचकर ,सबसे पहले दिव्या का साथ देने का सोचा और उधर ही चल दी उसे नहीं पता था -उसे वहां क्या करना पड़ेगा और किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है ?