अब तो ठंड बढ़ी है।
गर्माहट की ,जरूरत पड़ी है।
मैं भी अपनी दादी से बोली -
दादी !बुन दो मेरा,एक स्वेटर।
अब नहीं रहा ,मेरा ये काम ,
इतने दिनों काम किया ,
करने दो,मुझको अब आराम।
अब नहीं ,मुझे इन धागों की ,
उलझन में फंसना। जीवनभर
कभी उलटे ,कभी सीधे ,
जीवन के फंदों को ,
अब और नहीं बुनना।
कभी उल्टा ,कभी सीधा ,
पलटती -उलटती रही।
जीवन अब तुमको जीना है।
ममता की गरमाई लेकर ,
जीवन के फन्दों को ,बुनना है।
जीवन सुंदर जीना है तो ,
बुनाई से , तुम्हें ही सजना है।
अब बताओ ,तु म ही ,
कैसे बन दूँ ,ये स्वेटर ,
अब तुम ही सीखो ,
बुनना स्वेटर !
अब तुम ही बुनो ,
अपना स्वेटर !