अभी तक आपने पढ़ा ,कार्तिक को ''अश्वमानव ''ले जाते हैं ,दिव्या को ''ज्ञानयोगी ''कैद कर लेता है। अब ऋतू परेशान होती है वो क्या करे ?उसके सपने में ''प्रज्ञासेन ''जी आकर उसे सांत्वना देते हैं और उसकी हिम्मत बढ़ाते हैं। नींद से उठने के पश्चात ,वो पुनः अपने कार्य को आरम्भ कर देती है ,इस बार उसे ,अपने जादुई आईने में दिव्या और ज्ञानयोगी दोनों ही दिखते हैं किन्तु ऋतू को उसके इरादे नेक नहीं लगते, उधर उसे कार्तिक की भी चिंता है, किन्तु उससे पहले वो दिव्या को बचाने जाती है। उधर ''ज्ञानयोगी ''ने अपनी पूजा में किसी भी तरह का विघ्न न पड़े ,इसके लिए अपने पिशाचों को उस गुफा के द्वार की सुरक्षा के लिए लगा दिया। अब आगे -
''ज्ञानयोगी ने अपनी पूजा प्रारम्भ कर दी ,और दिव्या को भी उस आसन पर बिठा दिया। कुछ समय तक तो वो इसी तरह बैठी रही ,कुछ समय पश्चात उसने उसके बंधन भी खोल दिए किन्तु अब दिव्या भागी या उठी नहीं,वरन पहले की तरह बैठी रही। ऋतू उस चट्टान के नज़दीक पहुंच चुकी थी ,ये चट्टान तो जैसे ,पाताल नगरी के दूसरे छोर पर थी ,जिसे ढूँढने में ऋतू को समय लग गया। उसकी गुफ़ा के मुहाने पर पहुंचकर ,उसने देखा ,वहां पहले से ही पिशाच घूम रहे हैं ,उनकी नजरों से बचकर ,उसे उस गुफा में जाना था। वैसे तो उसके पास ,वो वस्त्र भी था जिससे वो अदृश्य हो सकती थी, किन्तु फिर भी वो किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करना चाहती थी। ये पिशाच तो ऐसे लग रहे थे, जैसे किसी भी नर की महक आते ही उसे कच्चा खा जाएँ। वो गुफा के आस -पास भी गयी ,ताकि कोई दूसरा रास्ता उसे नज़र आये किन्तु सफलता हाथ नहीं लगी। कुछ भी हो सकता है, वो उनके विषय में कुछ भी नहीं जानती। तब वो अपना पंख निकालती है, ताकि वो ऊपर उड़कर जा सके, किन्तु वो पंख तो कुछ कर ही नहीं रहा था, शायद ये ऊपर से नीचे उड़ने में ही सहायता करता हो।
इस तरह उसके देर करने पर कुछ भी हो सकता है ,तभी उसे उस ''पवित्र जल ''का स्मरण होता है और वो उसे निकालती है, अबकि बार उसने अपने ऊपर नहीं वरन कुछ बूंदें हवा में उछाल दीं जो उन पिशाचों के ऊपर जाकर लगीं और वे धीरे -धीरे धुँआ होने लगे।
ऋतू ने बिना देर किये ,उस गुफा के अंदर प्रवेश किया। वो पूरी तरह सतर्क थी, उसने अपना अदृश्य होने वाला वस्त्र भी ओढ़ रखा था। अब उसका सामना ''ज्ञानयोगी ''से था ,किसी भी तरह की लापरवाही ,उसकी और उसकी दोस्त की जान ले सकती थी। उसने पहले, दिल से ,उन बाबा का स्मरण किया ,तभी उसे आवाज़ आई या यूँ कहें -उसे महसूस हुआ या फिर उन बाबा ने अपना संदेश भेजा -उस योगी की पूजा के पश्चात, उसी अग्नि से ,उसका सर्वनाश हो सकता है। ऋतू ने मन ही मन ये बात गाँठ बांध ली ,और वो अंदर चली गयी। किन्तु एक निश्चित दूरी पर जाते ही, उसे तेज झटका लगा। जिसके कारण ''ज्ञानयोगी '' को उसके विषय में पता भी चल गया। वो अभी चुपचाप खड़ी रही ,तभी ''ज्ञानयोगी ''की तेज़ वाणी गूंजी- आ गयीं तुम !ऋतू ने अपने आपको देखा ,फिर वो वस्त्र टटोला ,कहीं वो उतर तो नहीं गया। सब ठीक है तब मैं इसे कैसे दिख गयी ?उसने अपने आप से ही प्रश्न किया। वही आवाज़ पुनः हवा में गूँजी -तुमने क्या मुझे मूर्ख समझा है ?कि तुम आओगी और मुझे पता ही नहीं चलेगा।
ऋतू अपने स्थान पर स्थिर खड़ी रही ,वो बोला -न जाने कौन सी शक्ति तुम्हारी सहायता कर रही है ? जो तुम मेरी तंत्र विद्या से भी नहीं दिख रहीं किन्तु मुझे तुम्हारे यहां होने का आभास अवश्य है। इतना सुनने के साथ ऋतू आश्वस्त हो गयी, कि चलो, मैं अपने इस वस्त्र के कारण उसे दिख नहीं रही हूँ ,मेरे लिए तो यही बहुत है। किन्तु वो एक तय सीमा से अंदर भी नहीं जा पा रही थी। उसने देखा ,''ज्ञानयोगी ''अपनी सिद्धियां कर रहा है और मंत्र जाप भी ,दिव्या उसके सामने बैठी थी और धीरे -धीरे वो हिलने लगी ,जैसे कोई देवी उसके सिर आ गयी हो, ऋतू उसे आवाज भी नहीं लगा सकती। पता नहीं ,इस तांत्रिक ने उस पर न जाने क्या क्रिया की हो ?तभी वो उठी, और उसके कहे अनुसार ,अपने वस्त्र उतारने लगी। ऋतू कुछ समझ नहीं पा रही थी और वो तांत्रिक हवन कुंड में मंत्र पढ़ -पढ़कर, सामग्री डाले जा रहा था, जिस कारण अग्नि अपने प्रचंड रूप में थी। और वो बार -बार जय माँ काली ,जय माँ काली बोल रहा था। अब वो क्या करे ,कुछ समझ नहीं आ रहा था दिव्या को अपने वस्त्र उतारने से कैसे रोके ?इतनी दूर से कैसे उसकी ,पूजा में विघ्न उतपन्न करे।
उसे कुछ नहीं सूझा और वो ,तेज स्वर में बोली -दिव्या !ये तुम क्या कर रही हो ?दिव्या ऐसे ही अपने वस्त्र उतारने में व्यस्त रही। उस तक तो जैसे, ऋतू की आवाज पहुंच ही नहीं रही थी। ऋतू फिर से चीख़ी -होश में आओ दिव्या !तांत्रिक बड़े जोर -जोर से हँसा और बोला -मैं सही था ,तुम यहीं हो ,अब तुम अपनी सखी का हमारे ''कालदेवता '' के साथ विवाह देखो और फिर अपनी सखी की बलि देखो ,कहकर उसने हँसते हुए हवन सामग्री फिर से अग्नि में डाली। अग्नि अपने प्रचंड रूप में आ गयी। तब ऋतू ने देखा -दिव्या वहीं आसन पर लेट गयी। ऋतू को कुछ अच्छा नहीं लगा और चीख़ी -दिव्या उठो ! ''ज्ञानयोगी ''हँसा और अपने स्थान से उठने का उपक्रम करने लगा। तभी बिजली की तेजी से ,उसका हवन कुंड उडा और उसकी अग्नि सहित सम्पूर्ण सामग्री उसके ऊपर थी ,इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता , उसकी तेजी से चीख निकली और उसके सम्पूर्ण शरीर से अग्नि के शोले निकलने लगे। ''उस '' ज्ञानयोगी ''के जलते ही उसका तंत्र टूट गया और उसने जो ऋतू को रोकने के लिए बाधा डाली थी अब समाप्त हो गयी।
वो तेजी से दौड़ती हुई ,दिव्या के करीब गयी ,दिव्या अभी भी बेसुध सी थी ,तब ऋतू ने वो पवित्र जल ''उसके ऊपर छिड़का, जिसके पड़ते ही, वो जैसे होश में आ गयी और अपनी स्थिति को देखकर अचम्भित रह गयी और तुरंत ही अपने वस्त्र पहनने लगी। ''ज्ञानयोगी के शरीर से शोले निकल रहे थे तब भी वो दिव्या की तरफ झपटा। उसे ऋतू अब भी नहीं दिख रही थी। जैसे -जैसे वो शक्ति हीन होता जा रहा था वो तेज स्वर में चीख रहा था और पहले से अधिक वीभत्स दिख रहा था। दोनों उस गुफा से बाहर की तरफ दौड़ी। तभी ऋतू को जैसे कुछ स्मरण हुआ और पुनः वापस गयी और अपने 'पवित्र जल' से थोड़ा जल उसके ऊपर छिड़क दिया जिस कारण ''ज्ञानयोगी '' की चीखें बढ़ गयीं। दोनों तेजी से दौड़ रही थीं किन्तु उन्हें पता नहीं चल पा रहा था कि किधर जाना है। तभी उन्हें ''अश्वमानव ''दिखे ,जो उनकी और बढ़े आ रहे थे। ऋतू ने महसूस किया , अब तो कोई भी राक्षस उन्हें रोक नहीं रहा था ,उन्हें देखकर लग रहा था जैसे वो शक्तिहीन होते जा रहे हैं ,फिर ये दोनों हमारी तरफ क्यों बढ़ रहे हैं ?
ऋतू और दिव्या दोनों अब उनसे लड़ने के लिए तेेयार थीं ,किन्तु ''अश्वमानव ''नजदीक आते ही ,बोले -इधर चलो !दोनों को उनकी आवाज पहचानी सी लगी किन्तु किसी भी तरह की लापरवाही हानि कर सकती थी। दोनों एक ही स्थान पर स्थिर हो गयीं और बोलीं -तुम कौन हो और ये मानवों वाली बोली ,कैसे बोल रहे हो ?दोनों को मज़ाक सूझा बोले -हम उस ,तांत्रिक के सताये हैं ,हम भी मुक्त होना चाहते हैं किन्तु उससे पहले ,हम तुम दोनों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दें। ऋतू ने तो आईने में ,उन दोनों को कार्तिक के साथ देखा था। उसने सोचा शायद ये हमें , बड़े दरवाजे के अंदर बंद न कर दें किन्तु कार्तिक को भी तो बचाना था। उसे अपने आप पर और अपने पास सामान पर भी विश्वास था ,यही सोचकर उनके साथ चल दी। जब वो उस दरवाजे के नजदीक पहुंचे और दरवाजा खोला ,तभी ऋतू ने अपने पास जो जल था ,उस ' पवित्र जल' को उनके ऊपर फ़ेंक दिया।