मेहुल , राहुल दोनों ''रक्ताक्षी'' के चँगुल में फँस जाते हैं ,ये नाम उस दोनों ने ही उसकी लाल आँखें देखकर रखा है। वो उन पर अपनी कोई तांत्रिक क्रिया करता है और दोनों मूर्छित हो जाते हैं ,उधर ऋतू और दिव्या के पास एक' दिव्य व्यक्ति 'आते हैं और उन दोनों से पूछते हैं -क्या तुम्हें अपने दोस्तों को नहीं छुड़ाना ?
उनको देखकर दोनों ही लड़कियों के हाथ स्वतः ही जुड़ गए। उन्होंने आशीर्वाद दिया और बोले -तुम्हें अब अपने दोस्तों को स्वयं ही छुड़ाना होगा। उनकी समय से सहायता नहीं की गयी ,तो उनकी जान भी जा सकती है। दोनों उनकी बातें सुनकर कहती हैं -श्रीमान ,आप कौन है ?और आप लोग हमारी सुरक्षा क्यों कर रहे हैं ? हम तो किसी को जानते भी नहीं ,और हम किस स्थान पर हैं , इसका क्या नाम है ?वे तनिक मुस्कुराये और बोले -हर व्यक्ति के जीवन का कुछ न कुछ उद्देश्य अवश्य होता है। इसी तरह तुम लोगों के जीवन का भी उद्देश्य है। यह नगरी हर किसी को नहीं दिखाई देती ,अकारण ही कोई यहां आ नहीं सकता। ये नगर मेरा है ,हम बरसों से यहां रह रहे हैं किन्तु पृथ्वीवासी ,सामान्य वर्ग यहां नहीं आ सकते ,न ही इसे देख सकते हैं। हम देखने में तुम जैसे ही हैं किन्तु तुम लोगों से भिन्न हैं। हमारी संस्कृति और विज्ञानं तुम लोगों से कहीं आगे है। हम सत्य के मार्ग पर चलते हैं। हम'' योग साधना ''द्वारा अपनी ऊर्जा का निर्माण करते हैं ,जो तुम लोगों से कहीं अधिक आगे है और दिव्य जड़ी-बूटियों का ही हम सेवन करते हैं ,जिसके कारण हम सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहते हैं। हमारे तन पर सर्दी ,गर्मी किसी भी ऋतू का कोई भी असर नहीं होता। इन चीजों का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं। ये हमारे कुल की अमानत है ,इसीलिए इस धरा का नाम ''कुलधरा'' है। मैं ''प्रज्ञासेन ''इस धरा का रक्षक भी हूँ। कहते हैं ,न -जहां सकारात्मक ऊर्जा होती है ,वहां नकारात्मक ऊर्जा आने का प्रयास करती है। हम लोगों के साथ भी यही हुआ ,यहाँ हमारी आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
एक बार'' ज्ञानयोगी'' नाम के व्यक्ति ने यहाँ प्रवेश करना चाहा ,पता नहीं ,कैसे उसे इस स्थान के विषय में पता चल गया ?किन्तु वो नाम का ही ''ज्ञानयोगी'' था। उसे अपनी तांत्रिक शक्तियों पर अधिक विश्वास था और उन शक्तियों के बल पर ,उसने हमारे स्थान को ढूँढ तो लिया किन्तु उसमें प्रवेश नहीं पा सका। तब उसने अपनी तांत्रिक शक्तियों को सुरक्षित कर ,योगशक्तियाँ प्राप्त कीं ,जिनके बल पर वो इस स्थान में प्रवेश पाने योग्य हो गया।उसने अपनी तांत्रिक शक्तियों को सुरक्षित रखा था और उसने अपनी भावनाओं और विचारों पर भी नियंत्रण करना सीख लिया था।इस कारण हम उसके मानस पटल को समझ नहीं पाए और उसे प्रवेश दे दिया। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, किन्तु धीरे -धीरे उसने अपने उद्देश्य पर कार्य प्रारंभ किया। जब हमें उसके विषय में ज्ञात हुआ तो उसकी शक्तियों और तंत्र के कारण हम शिथिल पड़ने लगे ,तब हमने अपने इस राज्य के चहुँ ओर सुरक्षा चक्र बनाया जिसका भान उसे नहीं था ,ऐसी ही परिस्थितियों के लिए उसे बनाया गया था। हमने उसे अपने राज्य से नीचे धकेल दिया ,अब वो हमारे सुरक्षा चक्र को तोड़ नहीं सकता था क्योंकि उसके अब ,उसके पास उसकी तांत्रिक शक्तियां भी थीं। वो पाताल नगरी चला गया ,वहां की अग्नि को वो सहन करने की क्षमता रखता था।
हमसे बदला लेने के लिए वो बाहर से ,तुम जैसे लोगों को लाता है और अपनी ''तांत्रिक क्रियाओं'' द्वारा उन्हें अपने लोगों में शामिल कर लेता है। ऋतू उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी ,बोली -क्या बाहर के लोग उस'' पाताल नगरी'' की गर्मी को सहन कर पाते हैं। नहीं ,सभी नहीं , कुछ मृत्यु के पश्चात उसके काम आते हैं ,कुछ के शरीरों को वो अपनी'' तांत्रिक क्रियाओं ''द्वारा वहां की अग्नि सहन करने योग्य बना देता है किन्तु उन लोगों की सोचने -समझने की शक्ति ही छीन लेता है। उनका शरीर वज्र की तरह कठोर तो हो ही जाता है ,वो मात्र उसके पुतले बनकर रह जाते हैं। इस तरह वो हमसे जीतने के लिए ,बाहर के लोगों का उपयोग करता है। हमारे सिपाही ऐसे ही लोगों को आकाश मार्ग से बचाने का प्रयास करते हैं ,जैसे तुम दोनों को बचाया।
दिव्या बोली -एक प्रश्न मेरे भी मन में है ,वो ''अजूबा गांव ''उसकी क्या पहेली है ?वो हमारे राज्य की कैद है।उन्होंने उत्तर दिया। क्या मतलब ?दोनों एक साथ बोलीं। हाँ ,हम लोगों में से ही कुछ लोगों के मन को उसने अपने वश में कर लिया था। जबकि ऐसा होना सम्भव नहीं था क्योंकि हमारा जो 'पेय द्रव्य ''है ,उसको पीने के पश्चात किसी भी नकारात्मक शक्ति का असर नहीं होगा। किन्तु जैसे ही उस पेय पदार्थ का असर कम हुआ वैसे ही ''ज्ञानयोगी ''ने उन्हें अपने वश में करके ,उनसे अपने घ्रणित कार्य करवाये। अनजाने ही सही ,किन्तु उनसे कुछ गलत कर्म तो हो ही गए ,जिसके परिणामस्वरूप उनको दंड का भागीदार पाया गया। जबकि वो इसी नगरी के सदस्य हैं इसीलिए उन्हें वहां भेजा गया। उस स्थान की सर्दी -गर्मी का एहसास ही उनके लिए दण्ड है।वैसे ये स्थान हर किसी को नहीं दीखता। उस वातावरण में बिना किसी दैविक शक्ति के वो अपने कार्य स्वयं करते हैं। मौन भी उसी दंड का ही एक नियम है। हमारे व्यक्ति ही उस गांव पर नजर रखते हैं ताकि पुनः वो दुष्ट'' ज्ञानयोगी ''इन पर अपनी कुदृष्टि न डाले। उनकी बातें सुनकर ऋतू और दिव्या को लगता है -मेहुल सच में ही इस महल में वायु मार्ग से आया था और वो कोई धुंध नहीं थी। तभी वे बोले -तुमने सही सोचा ,हमने ही उसे वो मार्ग सुझाया था ,वो एक बहादुर लड़का है। दोनों ही उन महात्मा का चेहरा देखने लगीं और बोलीं -क्या आप मन के विचार भी पढ़ सकते हैं।
तब वो बोले -हाँ ,अवश्य और उन्होंने बताया -ज्ञानयोगी ने यहां भी अपना कुचक्र रचा और इसी गांव के नजदीक ही अपना भी मायावी जंगल बना दिया।'' पाताल लोक '' उसके अधिकार में है तो जो भी जंगल में जायेगा वो सीधा पाताल की कैद में होगा। इसका मतलब ,कार्तिक भी ,उसी राक्षस की कैद में है , दिव्या ने पूछा । हाँ ,वो बोले -वायु मार्ग ,जल और ये स्थान हमारे अधिकार में है। पाताल नगरी ,और थल का वो हिस्सा जो उसने अपनी मायावी शक्तियों से बनाया है और अग्नि पर उसका आधिपत्य है। अब वो सोच रहीं थीं -अच्छा हुआ, जो हम जल मार्ग से यहां आये वरना आज हम उसकी कैद में होते। किन्तु बाबा !मेहुल भी तो हमारे साथ ही जल मार्ग से आया था फिर वो कैसे फँस गया ?वो उत्साह में ''प्रज्ञासेन ''को बाबा कह गयी फिर अपनी बात पर लज्जित होते हुए बोली -क्षमा कीजिये। वो मुस्कुराये और बोले -कोई बात नहीं ,तुम मेरी बेटी ही हो ,मुझे तुम्हारा बाबा कहना अच्छा लगा। जल मार्ग से जो सीढियाँ ,नीचे की तरफ जाती हैं ,वे पाताल लोक तक जाती हैं उससे पहले ही हमारे सिपाही वायु मार्ग से ही उन्हें बचा लेते हैं ,जिन्हें ''ज्ञानयोगी ''के सिपाही भी हमसे छीनने का प्रयास करते हैं ,इसीलिए तुम लोगों को वो '' दिव्य द्रव्य ''पिलाया गया ताकि तुम्हें छूते ही उनके हाथ जलने लगें। उस द्रव्य में इतनी ऊर्जा है ,ऋतू ने पूछा। वे हँसे बोले -उस द्रव्य का तुम्हें कुछ अंश ही पिलाया जाता है ताकि तुम लोग सुरक्षित रहो,उसकी सम्पूर्ण ताकत तो तुम्हारा ये कमज़ोर शरीर सहन भी नहीं कर पायेगा।