अर्द्ध रात्रि में ,आर्या काव्या की क़ब्र में उतरती है ,और वहां उसे एक लिफ़ाफा मिलता है किन्तु उसे वह पढ़ना नहीं चाहिए था ,उस पत्र को पढ़ते ही वहां की मिटटी दरकने लगी और आर्या को दीनदयाल ने चेताया भी था -भागो, आर्या !किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी ,उस मिटटी में से किसी ने आर्या को खींच लिया। उसी समय चर्च की घड़ी भी रुक गयी। अचानक ही बहुत तेज बारिश होने लगी,ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे यह बरसात कब्रिस्तान में ही हो रही है —हर बूँद ज़मीन को ही नहीं, किसी हर अधूरी आत्मा को भिगो रही थी,चर्च की घंटियाँ बंद थीं, मगर हवा में अजीब सी गूँज थी —जैसे कोई धीमे स्वर में वही पंक्ति दोहरा रहा हो —
“हर कहानी तब तक अधूरी रहती है, जब तक उसका लेखक मर न जाए…”
आर्या ने अपने हाथ को देखा —वो वही हाथ था जिसे अभी कुछ मिनट पहले “उसने” नीचे से पकड़ा था,पर अब वो ठंडा नहीं था, बस धड़क रहा था — अनियमित, असामान्य, डरावना।आर्या वहां से बाहर आई और आकर दीनदयाल के सामने खड़ी हो गयी।
दीनदयाल कुछ दूरी पर खड़ा था, पूरी तरह भीगा हुआ था ।उसकी आँखों में वो डर था जो किसी वैज्ञानिक की नाकामी नहीं, बल्कि जैसे किसी भूल गए श्राप की याद होती है।
“आर्या…”उसने धीरे से कहा,- “तुम्हें अब सच जानना होगा।”
आर्या ने काँपती आवाज़ में पूछा —“कौन सा सच, डॉक्टर? वो जो आप छिपाते रहे, या फिर वो सच जिन्हें मेरी यादें भी याद रखना नहीं चाहतीं ?”
दीनदयाल ने रजिस्टर को देखा ,बरसात से उसके पन्ने हो चुके थे,उसने उन गीले पन्नों को पलटा ,तभी एक पन्ना रजिस्टर बीच से गिरा — और मिट्टी में जा धँसा, उसके किनारों पर खून के धब्बे थे
उस पर एक पुरानी तारीख़ लिखी थी — 17 जून, 2008।
“यह वही दिन था,” दीनदयाल बोला, “जब काव्या की मौत हुई थी।”
आर्या ने एक झटके में सिर उठाया — “काव्या मर गई थी? या… मैंने उसे मारा था?”
दीनदयाल की आँखें गहरी हो गईं,“तुम दोनों ही एक थीं।काव्या ने उस रात आत्महत्या की थी, लेकिन उसके मरने के पश्चात उसकी आत्मा का एक हिस्सा‘कहानी’ में जा फँसा — और वही हिस्सा अब , समय के साथ ‘आर्या’ बन गया।”
आर्या का गला सूख गया,“मतलब मैं… कोई इंसान नहीं हूँ ?”
दीनदयाल ने कहा, “तुम एक लेखक की अधूरी कल्पना हो।काव्या ने अपने मरने से ठीक पहले जो कहानी लिखी थी,वो ‘कब्र की चिट्ठियाँ’ थी —और तुम उसी कहानी की नायिका थी,पर काव्या मरने से पहले आख़िरी पन्ना नहीं लिख पाई —इसलिए तुम्हारा अस्तित्व भी अधूरा ही रह गया।”
आर्या पीछे हट गई ,बारिश अब आँधी में बदल चुकी थी,उसके कानों में एक ही वाक्य गूँजता रहा —
“तुम कहानी हो, ज़िंदा नहीं।”अब तक उसने जो देखा महसूस किया वो सब क्या मात्र एक भृम था। मैं काव्या की अधूरी कहानी हूँ। पर उसके दिल की धड़कन तो अब भी थी ,उसने खुद को चाँटे मारे, दीवार पर हाथ मारा,और ज़मीन पर गिर पड़ी —“अगर मैं कहानी हूँ, तो ये दर्द मुझे असली क्यों लगता है?”
दीनदयाल चुप था,उसने धीरे से कहा -“क्योंकि काव्या का अधूरा हिस्सा तुममें साँस ले रहा है।वो चाहती थी कि कहानी पूरी हो — लेकिन उसके अपने दिल की प्यास ने उसे भटका दिया।”
आर्या ने धीरे से रजिस्टर उठाया —अब उसमें काव्या की लिखावट नहीं थी बल्कि, हर पन्ने पर अब उसके अपने विचार थे —जिन्हें उसने कभी लिखा ही नहीं था।
वो फुसफुसाई,“यह कैसे…हो सकता है ?”
दीनदयाल बोला -“काव्या की आत्मा ने तुम्हें माध्यम बनाया।वो चाहती थी, कि तुम उसके लिए वो कहानी पूरी करो —जिससे उसकी आत्मा को मुक्ति मिल सके।”
अचानक, एक हवा का झोंका आया —रजिस्टर आर्या के हाथ से छूट गया और हवा में खुल गया।
उसके पन्ने अपने आप पलटने लगे —हर पन्ना किसी दूसरी भाषा में बदलता जा रहा था।कहीं संस्कृत, कहीं लैटिन, कहीं अधूरी कविताएँ।
आख़िरी पन्ना आने पर वह वहीं रुक गया,उस पर लिखा था —“आर्या, तुम मेरी आवाज़ हो ,पर अगर तुम मुझे पहचान लोगी,तो मैं हमेशा के लिए खो जाऊँगी।”
आर्या की आँखों से आँसू बहने लगे।“तो अब मुझे क्या करना होगा?”
दीनदयाल ने कहा,“तुम्हें उस जगह जाना होगा जहाँ काव्या ने आख़िरी बार अपनी वो कहानी लिखी थी ।जहाँ उसकी कहानी अधूरी छूटी थी —‘ब्लैक हिल मैनर’।वहीं वो आख़िरी चिट्ठी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।”
'ब्लैक हिल मैनर '—शहर से दूर एक पहाड़ी पर पुराना, सुनसान बंगला था।लोग कहते हैं ,वहाँ कभी “काव्या” रहती थी —और उस बंगले की खिड़कियों से रात को किसी के लिखने की आवाज़ आती थी ,दीनदयाल ने आर्या को 'ब्लैक हिल मैनर ''के विषय में बतलाया।
तब आर्या ने उस जगह जाने का निर्णय लिया।
दीनदयाल ने उसे रोका —“वहाँ जाना, मौत को निमंत्रण देना है।”तुम वहां नहीं जा सकतीं।
आर्या ने ठंडे स्वर में कहा,-“मौत? या सच?”
लगभग तीन घंटे की यात्रा के पश्चात —'ब्लैक हिल मैनर 'पर पहुंच गयी। उस महल की टूटी खिड़कियों में हवा बज रही थी,दीवारों पर फफूंदी, और चारों ओर स्याही की महक।कमरे के बीचोबीच एक पुरानी मेज़ थी —और उस पर वही 'कब्र की चिट्ठियाँ'' की पहली कॉपी रखी हुई थी।
आर्या ने अपने कदम आगे बढ़ाए,जैसे ही उसने किताब छुई, कमरा थरथराने लगा।दीवारों से स्याही की धाराएँ उतरने लगीं —मानो शब्दों ने आकार ले लिया हो।
एक आवाज़ गूँजी —“तुम वापस क्यों आई, आर्या?”
वो पलटी —उसके सामने काव्या खड़ी थी।वही चेहरा, वही आँखें, वही कंपकंपी — बस थोड़ा धुंधला, जैसे धुएँ से बनी हो।
“तुम,' मैं' हो,” काव्या ने कहा,“और' मैं 'तुम। तुम मेरे डर की कहानी थी,जिसे मैंने अधूरा छोड़ दिया था — ताकि मैं बच सकूँ।”क्योकि कहानी तब तक अधूरी रहती है ,जब तक उसका लेखक न मर जाये।''
आर्या ने धीरे से कहा,“और अब… मैं बचना नहीं चाहती, मैं पूरी होना चाहती हूँ।”
काव्या मुस्कुराई —“तो फिर… एक को मरना होगा।”
कमरा पूरी तरह अंधेरे में डूब गया।दीवारों पर स्याही की लकीरें एक-दूसरे में घुलने लगीं।दोनों औरतें — एक असली, एक परछाई —एक-दूसरे के चारों ओर घूमने लगीं, जैसे हवा में लिपटी हुई कहानियाँ हों।
काव्या ने अपना हाथ आगे बढ़ाया —“अगर तुम मुझे स्वीकार कर लोगी,तो कहानी पूरी होगी…लेकिन तुम मिट जाओगी।”
आर्या ने काँपते हुए कहा,“अगर मैं ना कहूँ?”
काव्या की आवाज़ बर्फ़ जैसी ठंडी थी —“तो तुम हमेशा के लिए भटकती रहोगी…एक कहानी जो कभी खत्म नहीं होगी।”
आर्या की साँसें तेज़ हो गईं।उसने अपनी उँगलियाँ स्याही की मेज़ पर रखीं —
और धीरे-धीरे लिखा:“मैं अधूरी नहीं रहना चाहती।”तभी स्याही की लहर उसके हाथों में समा गई।काव्या का चेहरा पिघलने लगा,
उसकी आवाज़ एक लोरी में बदल गई —“अब हम एक हैं, आर्या…”और अगले ही पल —कमरे की दीवारों से आग की लपटें उठीं।मेज़ जलने लगी, वहां रखी किताब राख बन गई।
मगर राख में अब भी एक पन्ना चमक रहा था —उस पर लिखा था:“दो आत्माएँ अब एक हैं।
