राहुल ,ऋतू ,मेहुल ,दिव्या और कार्तिक पांचों घूमने के लिए बाहर गए थे ,अब बड़े जो हो गए हैं। मम्मी -पापा ने समझाया भी, कि अभी इस तरह अकेले घूमना ठीक नहीं। किन्तु वे बोले -अब हम बड़े हो गए हैं ,कब तक , आप लोगों की अंगुली थामकर चलते रहेंगे ?फिर हम अकेले कहाँ हुए ?हम पांच लोग हैं। ऋतू की मम्मी बोली -तुम समझती क्यों नहीं ?तुम लड़की हो और इस तरह अनजान जगह जाना ठीक नहीं। ओफ्फो !मम्मी!मैं लड़की हूँ , तो क्या मैं घूमूँ -फिरूं नहीं ?वैसे तो कहती हो ,लड़के -लड़कियों में कोई भेद नहीं ,सब बराबर हैं ,जब घूमने की बारी आई ,तो मैं लड़की हूँ, दिव्या भी तो जा रही है ,उसके मम्मी -पापा ने तो कुछ नहीं कहा ,बस आपको मेरे जाने से ही परेशानी है। उधर दिव्या ने भी लगभग यही बातें अपनी मम्मी से कहीं। कार्तिक ने उन लोगो को बताया था -कि मैं पहले भी इस रास्ते से गया हूँ ,इसीलिए मुझे आज भी वो रास्ता याद है। कार्तिक बहुत समय पहले अपने मम्मी -पापा के संग घूमने गया था इसीलिए उसे लगता था कि उसे आज भी वो रास्ता याद है। इसी कारण उसने अपने दोस्तों पर भी रौब मार दिया ,किन्तु समय के साथ कुछ न कुछ बदलाव प्रकृति में भी होते रहते हैं। कार्तिक के सभी दोस्त उसके भरोसे से ही घूमने चल देते हैं।
उनका कार्यक्रम पहाड़ी इलाके में घूमने का था ,पहाड़ों की सेेर करना ,वहां की वादियों में घूमना ,वहाँ के लोगों से मिलना ,उनको समझना ,उनके रहन -सहन का अध्ययन करने में मेहुल की बहुत दिलचस्पी थी ,सभी अपने -अपने कारण से ,घूमने के इच्छुक थे। बड़े उत्साह से उनकी गाड़ी काली नागिन सी सड़क पर दौड़ रही थी। घर में परिवारवालों को चिंतित छोड़कर पाँचों अपनी ज़िंदगी की पहली ,दोस्तों संग यात्रा कर रहे थे। हँसते -गाते चले जा रहे थे। अब पहाड़ी इलाका आरम्भ हो गया था गाड़ी ऊंचाइयों पर चढ़ती कभी उतरती ,कभी गोलाई में घूमती सी ,अपनी मंजिल की ओर चली जा रही थी। पांचों ने पहले एक होटल में खाना खाया ,आराम किया फिर अपना -अपना जरूरत का सामान लेकर ,पैदल ही घूमने चल पड़े ,उनके हाथ में कैमरे थे ,बीच -बीच में प्राकृतिक दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेते थे। वो चलते हुए ,एक जंगल के पास किसी गांव में पहुंच गए। वे उस ओर बढ़ते चले गए ,वहां के मकान अज़ीब तरह से बने हुए थे ,लकड़ी और फूस के थे छत गोलाई लिए हुए थी। वहां के स्त्री -पुरुष अपने -अपने कार्यों में व्यस्त थे। ये लोग उस गांव में घुसे और वहां के लोगों की तस्वीरें लेने लगे। वो लोग ,उन्हें देखकर भी अनजान बने रहे ,जैसे उन बच्चों का होना न होना ,उनके लिए एक बराबर था।
उसी गांव के बराबर में ,एक घना जंगल था ,उसे देखकर तो लग रहा था कि उसमें तो दिन में भी अँधेरा रहता होगा। मेहुल ने उनमें से किसी से पूछा -ये कौन सा गाँव है ? उस व्यक्ति ने कोई जबाब नहीं दिया ,पता नहीं, कहाँ से आवाज आई -''अजूबा ''.उसने चारों तरफ घूमकर देखा -कि आवाज किधर से आ रही है ? फिर अपने दोस्तों से बोला -ये तो वास्तव में ही ''अजूबा ''है ,पूछो किसी से और जबाब कहीं ओर से आता है। उसके दोस्त बोले -हमने तो कोई आवाज नहीं सुनी। मेहुल बोला -क्या मज़ाक कर रहे हो ?वो आवाज़ तो बहुत तेज थी ,उसे कोई भी सुन सकता है। उसके चारों दोस्त बोले -नहीं, हम मज़ाक नहीं कर रहे ,वास्तव हमने कोई आवाज नहीं सुनी। मेहुल ने अपने आपको और अपने दोस्तों को विश्वास दिलाने के लिए ,फिर से किसी अन्य व्यक्ति से प्रश्न किया -तुम्हारा क्या नाम है ?तभी आवाज गुंजी -विदेह !
देखा -देखा अभी वो आवाज आई फिर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला -''आई मीन ,सुना। उसके सभी दोस्त, अभी भी ऐसे ही खड़े थे ,उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। ऐसा कैसे हो सकता है ?क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ?उन्हें विश्वास दिलाने के लिए ,मेहुल कार्तिक से बोला -अब तुम किसी से भी कोई प्रश्न करो ,देखो क्या होता है ?कार्तिक ने मेहुल के कहने पर ,एक व्यक्ति से पूछा -भाई इस गांव का क्या नाम है ?तभी आवाज़ गुंजी -''अजूबा ''क्या तुम्हारे दोस्त ने नहीं बताया ?दोस्त होकर भी अपने दोस्त पर विश्वास नहीं। अब तो कार्तिक भी बुरी तरह चौंक गया ,बोला -मेहुल सही कह रहा है , किन्तु इस बार भी अन्य दोस्तों में से किसी ने भी वो आवाज नहीं सुनी। इस बार मेहुल ने भी कोई आवाज नहीं सुनी कि कार्तिक ने क्या सुना ?किन्तु समझ अवश्य गया कि इस'' अजूबे ''गांव में बहुत कुछ अजूबा है ,उसकी उस गांव को जानने की इच्छा और तीव्र हो उठी ,वो बोला -आज हम लोग यहीं रहेंगे और सोयेंगे भी। मुझे इस लोगो के विषय में जानना है ,ये पूरा दिन ,कैसे अपना जीवन व्यतीत करते हैं ?और रात में भी बोलते हैं या वो अदृश्य आवाज ही इनकी सहायता करती है।
यहां तो कोई दुकान या बाहर का व्यक्ति भी नहीं आ पाता होगा।ऋतू बोली -क्यों नहीं आता होगा ?हम भी तो आये हैं ,जब उसे कुछ देखने को नहीं मिलता होगा ,चला भी जाता होगा और अब हम लोग भी चल रहे हैं। मुझे नहीं जानना कुछ भी ,यार ..... हम लोग यहाँ घूमने और मज़े करने आये हैं ,ऐसी किसी भी पुरानी जगह पर अपना समय बर्बाद करने नहीं आये ,कहकर वो अपना थैला उठाकर चलने लगती है। उसका समर्थन करने के लिए ,राहुल भी कहता है -हाँ यार !और भी बहुत सी जगह देखने को मिलेंगी ,दो -तीन दिन के लिए ही तो आये हैं ,इसी जगह अपना समय बर्बाद नहीं करना है और वो भी ऋतू के पीछे चल देता है
,अभी मेहुल ,दिव्या और कार्तिक सोच ही रहे थे- कि क्या किया जाए ,तभी वो दोनों भी वापस आ गए वे कुछ डरे से लग रहे थे किन्तु प्रत्यक्ष बोले -हमने सोचा ,हमारे बिना ,तुम लोगों का क्या होगा ?वे तीनों सोच रहे थे कि ये झूठ क्यों बोल रहे हैं ?इनके चेहरों से साफ पता चल रहा था कि इन्होने ऐसा कुछ अवश्य देखा है जिस कारण ये ड़र गए हैं ,वो क्या चीज है ?सबके चेहरों पर एक ही प्रश्न नजर आ रहा था।
,अभी मेहुल ,दिव्या और कार्तिक सोच ही रहे थे- कि क्या किया जाए ,तभी वो दोनों भी वापस आ गए वे कुछ डरे से लग रहे थे किन्तु प्रत्यक्ष बोले -हमने सोचा ,हमारे बिना ,तुम लोगों का क्या होगा ?वे तीनों सोच रहे थे कि ये झूठ क्यों बोल रहे हैं ?इनके चेहरों से साफ पता चल रहा था कि इन्होने ऐसा कुछ अवश्य देखा है जिस कारण ये ड़र गए हैं ,वो क्या चीज है ?सबके चेहरों पर एक ही प्रश्न नजर आ रहा था।