Who rajni thi ! [ part 7]

कीर्ति आज सुबह उठी तो उसके सिर में थोड़ा भारीपन था ,वो अपने को विश्वास नहीं दिला पा रही थी  कि ''वो रजनी ही है '' किन्तु उसका साया। रात वो अपने पति के साथ,उससे बातें कर रही थी। चंदन  ,पता नहीं  , कितने बरसों से ऐसी ही जिंदगी जी रहा है ?सुबह निखिल भी देर से ही उठा , शरीर में बहुत अधिक थकावट महसूस हो रही थी किन्तु फिर भी उन्हें  अपने काम पर जाना है ,निखिल कीर्ति से बोला  -तुम आज की छुट्टी ले लो ,कीर्ति बोली -ये थकावट तो धीरे -धीरे उतर  जाएगी  किन्तु  हम समय से तैयार नहीं हुए तो हम दोनों को देरी हो जाएगी ,जल्दी तैयार होकर चलो ! बच्चे तैयार होकर जा चुके थे। रास्ते में ही दोनों ने तय किया था कि कहीं इधर -उधर नहीं जाना है ?और घर आते ही आराम करना है। जब वो दोनों वापस घर लौट रहे थे ,तब चंदन का फोन आया और बोला,-मैंने जब आपको इस तरह के प्रश्न रजनी से पूछते देखा तो मुझे लगा -  मेरी समस्याओं का ही समाधान कर रहीं हैं। मुझे लगता है ,शायद आप समझ गयीं थीं कि मुझे रजनी से प्रेम नहीं ,हमदर्दी थी। अब मुझे रजनी से हमदर्दी भी नहीं वरन मैं उससे परेशान हूँ। आप मेरी बड़ी बहन की तरह हैं ,क्या आपने कुछ सोचा है ?मुझे किसी ने बताया था कि यहां कोई तांत्रिक है जो ये सब करता है किन्तु महीनों से चक्कर लगवा रहा है अभी तक कुछ नहीं हुआ।कीर्ति ने समय देखा और बोली -किसी पंडितजी से बात करनी होगी किन्तु इस समय मिलेंगे नहीं।  तब कीर्ति ने सोचा - इसीलिए ये रजनी कभी दिखती ,कभी नही। बोली -मुझे इस विषय में कोई जानकारी  तो नहीं किन्तु मैं देखती हूँ ,तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूँ ?

                  कीर्ति ने अपनी सासू माँ से बात की और अपने बच्चों के लिए और घर के सदस्यों के लिए ,पंडितजी से मिलकर ,मंदिर से ताबीज़ और कुछ पूजा का सामान ले आयी , पहले अपने घर की सुरक्षा की। ये सभी कार्य  हो जाने के पश्चात , चंदन को फोन किया कि आठ बजे से पहले ,सपना को लेकर ,हनुमान जी के मंदिर आ जाना। जैसे कीर्ति को पंडित जी ने बताया था ,वैसा ही वो कर रही थी। उसे इस बात का भी दुःख था, जिस दोस्त को याद कर वो  अब तक रोती  रही है ,उससे बचने के प्रयास भी वही  कर रही है। चंदन ! शाम को ही ,अपनी पत्नी को लेकर हनुमानजी के मंदिर आ गया। रजनी आई ,वहां कोई नहीं था वो उन्हें ढूंढ  रही थी। किन्तु इन सब प्रक्रियाओं में कीर्ति ने अपना कोई सहयोग नहीं दर्शाया। उधर उसके घर पर जो पेड़ था ,उसे पंडितजी ने अपने मंत्रों द्वारा बाँध दिया था। रजनी , चंदन को पागलों की तरह ढूंढ़ रही थी  किन्तु मंदिर में होने के कारण वे उसकी दृष्टि में नहीं आ पा  रहे थे। पूरी रात्रि वो चंदन को खोजती रही ,दिन भी निकलने वाला था ,वो जैसे ही अपने पेड़ पर गयी ,तब वहीं ,जड़ हो गयी। शाम को उसने उस पेड़ से निकलने का प्रयत्न भी किया किन्तु मंत्रों के कारण वहां से आ नहीं पा रही  थी ,उसने अपनी सखी को स्मरण किया, वो होती तो उसे ऐसी परेशानी में रहने नहीं देती किन्तु वो नहीं जानती थी कि ये सब उसकी प्रिय सखी ने ही किया है। 
              कीर्ति अपने परिवार की सुरक्षा पहले देख रही थी ,अब उसे याद आ रहा है ,उस समय  वो तांत्रिक और उसकी पत्नी क्यों भूत , भूत......... कहकर भाग रहे थे। रजनी ने अपना असली रूप उन्हें दिखाया होगा। रजनी को पेड़ पर बैठे -बैठे ही चंदन दिखा किन्तु वो उससे किसी भी तरह सम्पर्क नहीं कर पा  रही थी क्योंकि पेड़ के दायरे से भी बाहर नहीं आ पा रही थी। तभी चंदन कुछ सामान लेकर बाहर आया ,वो सब रजनी का ही सामान था। पंडितजी ने उन्हें भी अभिमंत्रित किया ताकि अब वो पुनः उनका उपयोग न कर सके और उन वस्त्रों को उस  अभिमंत्रित के  कलावे के अंदर फेंक दिया। अब उस पेड़ और सामान दोनों पर  गंगाजल छिड़का। मौहल्ले के लोग आते -जाते देख रहे थे कि ये क्या हो रहा है ?कोई बोला -यहाँ रजनी का भूत है ,दूसरा बोला -उसने तो कभी किसी को कष्ट नहीं दिया ,बेचारी के साथ, ये क्या हो रहा है ?अपनी प्रशंसा सुनकर उसकी आत्मा कष्ट में भी प्रसन्न हुई। अब पंडितजी बोले -रजनी तुम जो चाहती थीं कि चंदन की कोठी बने ,वो तुम्हारी इच्छा पूर्ण हुई। तुम एक पवित्र आत्मा हो मरने से पहले भी , किसी का भला ही करके गयीं। लोगों ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया। तभी उस घर के दरवाजे पर कीर्ति की गाड़ी आकर रुकी। रजनी सोच रही थी ,कि मेरी दोस्त आ गयी मुझे बचाने। कीर्ति पंडितजी के पास आकर खड़ी हो गयी। तब रजनी को लगा ,इसका मतलब कीर्ति को भी मालूम है कि पंडितजी मेरे साथ क्या अन्याय कर रहे हैं ?सब मिले हुए हैं ,उसको कुछ कहने के लिए या करने के लिए शरीर की आवश्यकता थी। वो कुछ नहीं कर  पा  रही थी। तभी कीर्ति पंडितजी से बोली -क्या रजनी हमें सुन सकती है ?उन्होंने हाँ में गर्दन हिलाई। कीर्ति बोली -रजनी !देखो, हम सब तुम्हें प्रेम करते हैं किन्तु हर किसी की एक सीमा होती है ,तुम भी एक सीमा में बंधी हो ,अब तुम हमारे जैसी नहीं। अब तुम्हें  मुक्त हो जाना चाहिए ,अब रजनी को क्रोध आने लगा कि मैंने इन लोगों का क्या बिगाड़ा है ?मैं तो अपने चंदन के साथ सुखी जीवन जी रही हूँ ,इन्हें मुझसे क्या परेशानी है ?कीर्ति बोलती रही -मैंने तुम्हारे सामने ही चंदन से पूछा था ,क्या वो भी तुमसे प्रेम करता है ?और उसने तुम्हारे सामने ही इस बात से इंकार किया। उसे तुमसे सिर्फ हमदर्दी थी ,प्यार नहीं। 
             जिन्होंने तुम्हारा बुरा किया ,उनके किये की सजा उन्हें मिल गयी। अब तुम चंदन का साथ भी छोड़ दो। कीर्ति पंडितजी से बोली -अब क्या करना है ?पंडितजी बोले- शाम को जब मंदिरों में शंख और आरती होगी ,तब ये सारा सामान जला दिया जायेगा और ये पेड़ भी। कीर्ति बोली -ये पेड़ तो हरा --भरा है ,वे बोले -ये और इसकी जड़ें अंदर से सूख चुकी हैं। जब ये जल जायेगा और  रजनी से जुडी सभी वस्तुएँ भी राख़ बन जाएँगी। तो राख को ले जाकर गंगाजी में प्रवाहित करने से तुम्हारी दोस्त को भी शांति मिलेगी। उनकी बातें सुनकर रजनी क्रोधित हो गयी ,जिन्हें मैं अपना समझती थी, वो ही मुझे  मेरे प्यार से दूर होने का कारण बन रहे हैं। अभी पूरा दिन था ,बाहर गली में  बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे ,एकाएक वो फुटबॉल आकर अंदर गिरी और पेड़ से टकराती हुई ,उस अभिमंत्रित  कलावे को तोड़ती हुई ,निकल गयी। कलावे के टूटते ही रजनी भी मुक्त हो गयी। तभी चटाक !की आवाज से पेड़ की एक टहनी टूट गयी। जो लोग घर में अंदर थे बाहर आ गए और पेड़ के इर्द -गिर्द जो कलावा बंधा था उसे टूटा देखकर घबरा गए। तुरंत ही पंडितजी को फोन किया। जब पंडित जी जिस रास्ते से आ रहे थे ,उसी रास्ते के जंगल में रजनी उनका इंतजार कर रही थी

और पंडितजी को अपनी शक्तियों से खेेंचती हुई ,उस जंगल में ले आई और उन्हें एक पेड़ पर उल्टा लटका दिया। उधर कीर्ति उन्हें  फोन कर रही थी किन्तु जब न ही फोन उठा और न ही पंडितजी आये तब वो समझ गयी ,कुछ न कुछ अनिष्ट अवश्य हुआ है। वो चंदन को लेकर पंडितजी को ढूंढने चल दी। उन्होंने सपना को हनुमान जी के मंदिर में ही छुपाए रखा ताकि रजनी को उसका शरीर न मिल सके यदि वो मिल जाता तो वो सपना को भी कष्ट दे सकती थी या उसके शरीर का उपयोग करके कुछ भी गलत कर सकती थी।  उसकी शक्तियाँ बढ़ जातीं, रास्ते में  कीर्ति ने पंडितजी को एक पेड़ से लटके देखा ,तो वो समझ गयी कि रजनी यहीं है। कीर्ति बोली -रजनी !तुम ऐसा क्यों कर रही हो ?जीते जी  ,तुमने इतने कष्ट सहे ,अब क्यों अपने मन को कष्ट दे रही हो। ये तो गलत है न ,जिसने तुम्हारा  साथ दिया ,जिसने तुम्हारे दुःख -दर्द को समझा ,अब तुम उसी को कष्ट दे रही हो। मैं तुम्हारी सहेली तुम्हारी दुश्मन नहीं , किसी पर जबरदस्ती अधिकार जताना भी  ठीक नहीं। वो सपना का पति है। क्या दूसरे की चीज पर अधिकार जताकर, तुम अन्याय नहीं कर  रही हो ?तुम मेरी सबसे प्यारी सखी रही हो ,हमारी कुछ प्यारी यादें हैं ,उन्हें न बदलो। 
             कीर्ति की बातों का ,शायद रजनी पर असर हुआ और पंडितजी उस पेड़ से छूट गए। अब तो शाम  भी हो चुकी थी ,रजनी चंदन से मिलने के लिए तड़प उठी ,उसने कीर्ति को अपना मोहरा बनाना चाहा किन्तु कीर्ति पहले से ही  ''हनुमान कवच '' से सुरक्षित थी। कीर्ति के समझाने पर रजनी मान तो गयी थी किन्तु चंदन से बिछुड़ने का मोह नहीं त्याग पा रही थी। उसने चंदन का स्पर्श किया ,तभी उसे बड़ी तेज झटका लगा और पंडितजी ने मंत्र पढ़कर उसे वहीं रोक दिया। पंडितजी के हाथ में एक रस्सी सभी को नज़र आ रही थी जैसे उसमें कुछ बंधा है। वो दूब घास की रस्सी थी। वो सभी गाड़ी में बैठे और उसी पेड़ के पास आ गए। पंडितजी ने उस रस्सी को उस पेड़ से बाँधा और अपने कुछ मंत्रों का जाप करने लगे। पंडितजी बोले -अब ये विवश है। चंदन आगे आया और बोला -रजनी तुम अच्छी हो ,मैं तुमसे प्रेम नहीं सम्मान करता था।तुम्हारे जैसे चेहरे वाली  पत्नी पाकर मैं खुश था ,वो चेहरा हर पल तुम्हारी याद दिलाता था किन्तु तुमने उस शरीर का दुरूपयोग किया। मैं दोहरे व्यक्तित्व के साथ नहीं जी सकता ,मुझे क्षमा कर देना और तुम भी अपने को शांत कर मुक्त हो जाओ !पंडितजी ने फिर से गंगाजल छिड़का और उस जगह आग लगा दी। वो सामान और पेड़ धूं -धूं करके जलने लगा। वो सारी  राख़ गंगाजी में विसर्जित कर दी और उसी स्थान पर एक बेलपत्रों का पेड़ लगा दिया। एक बरस पश्चात उनके एक नन्हीं प्यारी सी परी  ने जन्म लिया। आज सभी को बुलाया गया ,कीर्ति भी आयी और उस बच्ची को गोद में लेकर बोली - ''नवजीवन ''आरम्भ हुआ। चंदन सुनकर सोचने लगा -शायद उसे लगता है ,रजनी ने ही पुनः जन्म लिया है। चंदन ने भी उसका नाम' रजनी 'रक्खा। 





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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