Bholi

 बेटी के विदाई के समय ,माँ आँखों में आँसूं लिए , दामाद जी से बोली -मेरी बेटी बहुत भोली [सीधी ]है ,आप जैसा कहेंगे , वैसा ही वो करेगी। उसे घर के सभी कार्य सिखाये हैं ,आपके घर को अच्छे से संभाल लेगी। संस्कारी है ,रिश्ते निभाना जानती है। यदि उससे कोई गलती हो जाये तो उसे क्षमा कर देना। दामाद जी भी सीधे और सज्जन मिले। उन्होंने भी अपनी सासु माँ को सांत्वना दिया, बोले -आप बेफ़िक्र रहिये ,उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। हमारे घर में अपने घर की तरह ही रहेगी ,उसकी तो पांच ननदें हैं ,उनकी अकेली भाभी सबकी लाड़ली होगी।

            रघुनंदन जी का इकलौता लड़का है ,सुकुमार। उनकी पांच बेटियां हैं एक का विवाह हो चुका है ,चार अभी बाक़ी हैं ,सोचा -जब बहु घर में आ जाएगी तो एक के विवाह का इंतजाम हो जायेगा ,उसका दहेज़ दूसरी बेटी को देकर ,अपनी ज़िम्मेदारी पूर्ण कर लेंगे। आज घर में बहु ने प्रवेश किया ,बहु क्या आई खुशियों की चाबी आ गयी। अम्बा ,वास्तव में ही सीधी और सच्ची है। रघुनंदन जी ने ,बहु के आने के  एक बरस बाद ही ,,बेटी का विवाह तय कर दिया। ननद के विवाह में अम्बा ने बढ़-चढ़कर कार्य किया और अपना लाया सामान भी सहेज कर ,ननद के लिए रख दिया। ऐसी बहु पाकर रघुनंदन जी और उनकी पत्नी तो जैसे अपने को धन्य समझने लगे। ननदें भी ऐसी, कि अपनी सारी परेशानी माँ को न बताकर ,अपनी भाभी से कहतीं। भाभी का भी सारा दिन उन्हीं के कार्य करते निकल जाता। अब तो सारी बहनें,  अपने सूट -सलवार या फिर ब्लाउज इत्यादि कपडे ,भाभी से ही सिलवातीं। ब्याह की बाद भी कपड़े लेकर भाभी के पास ही आ जातीं । 
                  दोनों  पति -पत्नी ने निर्णय लिया कि जब तक सभी बहनों का विवाह नहीं हो जाता ,तब तक कोई बच्चा हमारी ज़िंदगी में नहीं आएगा। घर की  आमदनी बढ़ाने के लिए ,अम्बा ने बाहर के कपड़े भी सिलने आरम्भ कर दिए। तीसरी ननद के विवाह के पश्चात ,अचानक सास भी  किसी बिमारी के चलते नहीं रहीं। अब तो अम्बा पर काम का जोर पूरा था, घर का काम भी और सिलाई भी। पड़ोसन ने इस तरह उसे सारा दिन कार्य करते देखा तो बोली -तेरी ननदें भी कार्य करने लायक हैं ,कोई बच्ची नहीं ,उन्हें नहीं दिखता, तो तू ही उन्हें कार्य करने के लिए या अपनी भाभी का हाथ बटाने के लिए कह सकती है। ये बात सुकुमार ने सुन ली ,बोले -बेटियाँ तो जीवन भर काम ही करती हैं ,अपने ही घर में थोड़ा आराम और चैन से रह पाती  हैं। फिर जीवन भर कार्य ही करना है। अम्बा को भी बात सही लगी ,उसने कभी अपनी ननदों से किसी भी कार्य के लिए नहीं कहा बल्कि उन्हें सभी कार्य सीखा दिए ताकि उनकी गृहस्थी में किसी भी प्रकार  अड़चन न आये। भगवान की दया से बस ,अब एक ही बहन रह गयी है। उसका भी रिश्ता तय हो चुका है। 
             अम्बा उसी के विवाह की तैयारी में लगी है ,अब तो उनके जीवन में एक बेटी भी आ गयी है ,वो छोटी बच्ची इधर -उधर घूमती रहती है। एक दिन फिसलकर गिर गयी ,तब अम्बा उसके पैर में लम्बी रस्सी बांधकर ,अपना कार्य निपटाती। उसकी पांचवी ननद ,बैठी हुई अपनी सहेली और उसकी मम्मी से बातें कर रही थी। तभी उसकी मम्मी बोली -बेटे तुम्हें भी तो अपनी भाभी की तरह सभी काम आते हैं ,तुम्हारी ससुराल में भी सभी खुश होंगे। तब वो बोली -भाभी तो कुछ ज्यादा ही  भोली [मूर्ख ]है ,मैं तो अपनी ससुराल वालों से बताऊँगी ही नहीं, कि मुझे सिलाई ,बुनाई या कढ़ाई कुछ आता है। एक बार ससुराल वालों को पता चल जाये तो अपना सारा ,काम छोड़ देते हैं और फिर  भाभी की तरह सारा दिन उनके काम निपटाते रहो। ये बातें चाय लेकर आती हुई अम्बा ने सुन ली और वो आँखों में नमी लिए चाय रखकर चली गयी। आज उसे भोली शब्द का सही अर्थ मालूम हुआ। 








 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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