Haveli ka rahsy [part 9]

कामिनी को चम्पा अपनी भांजी का किस्सा सुनाती है ,जिसको सुनते -सुनते उसे नींद आ जाती है और वो एक भयानक सपना देखती है -जिसमें वो उसी बगीचे में टहल  रही है ,और अचानक वो किसी अख़ाडे में पहुंच जाती है ,वहां एक बहुत ही तगड़ा और काला सा  पहलवान  जैसा दिखने वाला व्यक्ति ,उसकी तरफ बढ़ता है और उसका चेहरा भयानक हो जाता है ,तभी वो' ॐ 'का जाप करती है और  वो उड़ने लगती है और फिर बड़े ही जोर से नीचे गिर जाती है ,तब उसे पता चलता है कि वो एक सपना देख रही थी किन्तु उसका प्रभाव काफी था। वो नींद से उठने के बाद भी देर तक डरी  रही ,इसी कारण उसकी आँखें सुबह  देर से खुलीं । जब चम्पा ने बताया, कि बहुरिया रात में डर गयी तो ''अंगूरी देवी ''ने उसे घूरा और  बोलीं  -इसे बगीचे में टहलने की , क्या आवश्यकता थी ?तभी वो निहाल को बुलाती है और निहाल आ जाता है। कामिनी यह देखकर कि निहाल यहीं था और मेरे पास नहीं आया। इसी बात  को लेकर कामिनी निहाल से नाराज़ हो जाती है।अब आगे -


'अंगूरी देवी ' के बुलाते ही निहाल मुस्कुराता हुआ आया ,उसको देखकर कामिनी को बहुत क्रोध आया और उसने उसकी तरफ से निगाहें फेर लीं। ''अंगूरी देवी ''ने देखा और नजरअंदाज करके बोली -चलो !चलो देर हो रही है। दोनों गाड़ी में बैठे और ''अंगूरी देवी ''आगे एक तरफ उसकी जेठानी भी अपने बेटे के साथ बैठ गयी। कामिनी  अपना मुँह खिड़की की तरफ करके बाहर की तरफ देखने लगी। गाड़ी अपनी रफ़्तार से चल पड़ी। कामिनी ने घूंघट किया हुआ था किन्तु उस साड़ी के ऊपर की चुनरी इतनी बारीक़ थी कि उसे बाहर के सभी दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। उसकी आँखों में ऑंसू आ गए थे ,उसके मन में बार -बार यही प्रश्न उठ रहा था -कि निहाल यहीं था, तब मेरे पास क्यों नहीं आया ?मैं कितना डर गयी थी ? जब तक विवाह नहीं हुआ था, तो कितना प्रेम दर्शा रहा था ?और अब विवाह हो गया तो अपनी माँ के कहने पर ही चल रहा है। मेरी परेशानी तो पूछने आ ही सकता था। तभी उसकी निगाह , बाहर खड़े व्यक्ति पर गयी। ये तो वो ही पहलवान जैसा व्यक्ति है ,जो रात मेरे सपने में था। उसने अपना चेहरा अंदर किया और सोचा- कि निहाल को दिखा दूँ। 
          तभी उसे स्मरण हो आया , वो तो उससे नाराज़ है। फिर उसने बाहर की तरफ देखा तो वहां कोई नहीं था। वो  खिड़की से बाहर सिर निकालकर देखने का प्रयत्न करने लगी ,तभी उसकी जेठानी बोली -ये क्या बच्चों वाली हरकत है ? निहाल से बोली -इसका विवाह हो गया किन्तु बच्चों वाली हरकतें नहीं गयीं। निहाल ने कामिनी से पूछा -क्या कोई परेशानी या बात है ?कामिनी ने घूंघट में से ही गर्दन हिला दी। वो फिर से बाहर की तरफ देखने लगी। अब तक वो लोग गांव से बाहर आ चुके थे ,कामिनी को फिर से वही व्यक्ति दिखा। गाड़ी आगे निकल गयी ,जब वो व्यक्ति उसे फिर से दिखा ,तो उससे रुका नहीं गया और घूंघट में से ही बोलने लगी ,ये वो ही है ,ये वो ही है !निहाल ने उसकी अँगुली के इशारे का पीछा किया और बाहर की तरफ देखा। उसे कुछ दिखाई नहीं दिया और बोला -कौन है ?कामिनी ने भी बाहर की तरफ देखा -वहां कोई नहीं था। वो हैरान थी,- कि इतनी शीघ्रता से कोई व्यक्ति ,उनकी गाड़ी से पहले ,कैसे आगे आ जाता है ?  वो सभी गाड़ी से उतरे और जैसे -जैसे ''अंगूरी देवी ''बताती रही ,वो दोनों पति -पत्नी सभी विधियां करते रहे। 
           कामिनी को दूर खड़ा ,वो व्यक्ति दीखता रहा। तभी उसकी सास बोली -यहाँ पास में ही देवी माँ का मंदिर भी है उनसे आशीर्वाद भी ले लो। वे दोनों मंदिर में अंदर चले गए ,वहां जाकर कामिनी को कुछ शांति सी मिली और उसने मंदिर की परिक्रमा की तो अच्छा लगा। पंडित जी ने उसके माथे पर सिंदूर लगाया और उसकी झोली [पल्लू ]में प्रसाद डाला। दोनों बाहर  आ गए ,अब कामिनी को कुछ अच्छा लग रहा था और वो शांत थी। उसका मन स्वतः ही प्रसन्न हो गया।' देवता पूजन' तक तो वो व्यक्ति उसे दिखा ,मंदिर से बाहर आते ही ,पता नहीं कहाँ चला गया ?

दोपहर का खाना खाकर ,वो लोग  शहर के लिए निकले। लौटते समय दो अलग -अलग गाड़ियाँ थीं। एक में ,कामिनी और निहाल दूसरी में बाक़ी सब। अब मुस्कुराता हुआ निहाल बोला -और भई ,सुनाओ हालचाल। कामिनी मुँह बनाते हुए बोली -अब मिल गयी फुरसत ,कल से दिखाई ही नहीं दिए। निहाल उसे मनाते हुए बोला -कैसे दिखाई देता या आता ,जब मम्मी ने कहा था कि ''देवता पूजने ''से पहले मिलना नहीं है। उनका कहना मानना , भी तो जरूरी था ,आख़िर ये जो रीति -रिवाज़ हैं ,इनमें कहीं न कहीं हमारी ही भलाई छुपी होती है। वे भी तो हमारी भलाई के लिए ,ये सब कर रहीं हैं। 
अच्छा ये बताओ !तुम सुबह इतनी परेशान क्यों लग रहीं थीं ? निहाल ने पूछा। वो बात छेड़ते ही ,कामिनी को फिर से निहाल पर क्रोध आया और बोली -तुम्हें क्या ?मैं जियूं  या मरूं।
 ओह !फिर से गुस्सा ,अभी तो इतनी देर तक मनाया और फिर से........ उसकी बात बीच में ही काटते हुए कामिनी बोली -तुमने कब मनाया ? अभी ,मना ही तो रहा था। इसे मनाना कहते हैं। तो फिर तुम्हीं  बता दो कैसे मनाते हैं ?कामिनी चुप हो गयी ,तब निहाल बोला -अब बता भी दो ,क्या हुआ था ?तब कामिनी ने उसे रात से लेकर ,सारी बात बता दी। पहले तो निहाल चुपचाप सुनता रहा, फिर बोला -तुम पढ़ी -लिखी होकर ,ये बेफ़िज़ूल की बातों में विश्वास करती हो। कामिनी बोली -ये मुझसे किसी ने कहा नहीं है ,न ही बताया है। मैंने इसे महसूस किया है ,ये मेरा अपना अनुभव है। 
शहर आकर ,उसकी जेठानी तो अपने दूसरे मकान में चली गयी।'' अंगूरी देवी ''उनके साथ रह गयीं ,बोलीं -अभी' पग फेरे 'की रस्म बाक़ी है। कामिनी के पिता का फोन आया ,तब उन्होंने अभी के लिए मना कर दिया। अब क्या परेशानी है ?कामिनी ने निहाल से पूछा।'' अंगूरी देवी ''आकर बोलीं -मैं बताती हूँ ,उनके आते ही निहाल वहां से निकल गया। कामिनी ने महसूस किया- कि जब उसकी मम्मी होतीं तो वो उसके नज़दीक खड़ा भी नहीं होता। उसके इस व्यवहार पर कामिनी को आश्चर्य होता कि आज के समय में भी ,पढ़ा -लिखा होकर भी, ऐसा व्यवहार करता है।
अंगूरी देवी ''बोलीं -तुम यहां से नहाकर -सिर धोकर ही जाओगी। कामिनी बोली -मैं तो प्रतिदिन नहाती हूँ ,सिर कल धो लूँगी। वे बोलीं -तुम मेरा मतलब नहीं समझीं ,'मासिक धर्म 'के पश्चात। अब ये क्या नई मुसीबत है ?कामिनी मन ही मन झुँझला उठी। अगले दिन जब उसकी मम्मी का फोन आया तब उसने कारण बताया ,तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ ,फिर बोलीं - ये लोग कितने दक़ियानूसी हैं ?आज भी ऐसी सोच रखते हैं। कामिनी तब भी नहीं समझ पाई। तब माँ ने समझाया -कि कहीं ये पहले से ही तो ,किसी और से गर्भवती तो नहीं परखने के लिए ,तब तक रखेंगे। सुनकर कामिनी को क्रोध आया और उसने निहाल से कहा -क्या तुम भी मेरे लिए ऐसा ही सोचते हो ?कितनी घटिया सोच है ?निहाल बोला -कुछ दिनों की ही तो बात है फिर अपने घर चली जाना। जैसा वो कहतीं हैं ,करने में क्या जाता है ?कामिनी का मन किया कि सब कुछ छोड़ - छोड़कर ,यहां से चली जाये। तोड़ दे ,ये सभी रिश्ते !कर भी क्या सकती थी ?खून के से घूंट भरकर रह गयी। तब तक निहाल भी अलग कमरे में सोता रहा। वो सोचती ,क्या ये वही निहाल है ?जो एक सरकारी अधिकारी है। अपनी माताजी के सामने तो इसकी अपनी कोई सोच ही नहीं। 

पंद्रह दिनों बाद ,कामिनी , आज अपने परिवार से मिली और माँ से गले लगकर बहुत रोई। बोली -सब मेरी किस्मत को सराह रहे थे ,किन्तु पैसा होना ही सब कुछ नहीं होता ,व्यवहार भी तो होना चाहिए। उन्हें लगा - जैसे मेरी बिटिया'' सोने के पिंजरे ''में कैद कर दी गयी हो। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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