Haveli ka rahsy [part 10]

कामिनी 'देवता पूजन' के लिए ,परिवार सहित अपनी ससुराल ,गांव में जाती है ,वहां वो सपना देख कर बहुत ड़र जाती है।रास्ते में भी वो सपने वाला व्यक्ति दीखता है ,  देवी माँ के मंदिर में जाकर उसे अच्छा लगता है।उसकी सास उसकी ''पग फेरे ''की रस्म देर से करती है। उसका कारण जानकर कामिनी को बहुत बुरा लगता है।उसे निहाल के व्यवहार में भी बदलाव लगता है।  जब वो अपनी मम्मी से मिलती है तो बहुत रोती है। अब उन्हें लगता है कि हमने अपनी बेटी का वहां विवाह निहाल से  करके कोई गलती तो नहीं कर दी। अब आगे --
कामिनी के माता -पिता दोनों को बाहर घूमने जाने की सलाह देते हैं ताकि वहां किसी भी प्रकार का बंधन न रहे ,दोनों एक -दूसरे को अच्छे से समझ लें। योजना बनती है और इस योजना से कामिनी भी प्रसन्न होती है और वो अपनी इच्छा विदेश जाने के लिए व्यक्त करती है। निहाल से भी पूछना आवश्यक था किन्तु उसने सही से कोई जबाब नहीं दिया। शाम को ''अंगूरी देवी ''का फोन आता है ,

बोलीं  - देखिये ,सदाशिव जी !आप कामिनी के पिता हैं ,आपका उसके लिए चिंतित होना बनता है किन्तु अब वो हमारे घर की बहु है ,अपने बहु बेटे को हमें भेजना है या नहीं ,भेजना है तो कहाँ ?ये निर्णय अब हमारा होगा। कल निहाल आएगा और उसे ले जायेगा ,दोनों मिलकर फैसला कर लेंगे। 
कामिनी निहाल से कहती है ,-हमें बाहर जाना चाहिए , किन्तु फैसला अंगूरी देवी ने किया।अभी तो अपने भारत में ही घूमने की इतनी जगहें हैं , कहीं भी चले जाओ !ये भी अभी तक इतनी दूर नहीं गया। पहली बार जा रहा है यहीं कहीं चले जाओ !
उस दिन उसकी जेठानी भी आयी हुयी थी। कामिनी ने शिकायत भरे लहज़े में कहा -देखिये न दीदी ,मेरी सभी सहेलियाँ  विदेश गयीं हैं  और मैं यहीं........ कहकर वो चुप हो गयी। वृंदा बोली -  तुम जा तो रही हो ,मैं तो गयी ही नहीं ,जबकि मेरे घर में ,मेरी भाभी और भइया ''काठमांडू ''घूमकर आये। कामिनी उससे और भी बातें करना चाहती थी किन्तु वृंदा ने उससे बात करने में कोई रूचि नहीं दिखाई। 
           निहाल मिला तो कामिनी बोली -ये आपकी भाभी ,मुझसे इतनी कटी -कटी सी क्यों रहती है ?
निहाल मुस्कुरा दिया किन्तु बोला कुछ नहीं ,तब कामिनी ने उससे दुबारा पूछा -यदि आपको मालूम है तो बताते क्यों नहीं ?निहाल बोला -भाभी मेरा विवाह अपनी मौसेरी बहन से करना चाहती थी और मेरी तरफ से' हाँ' भी कर आई ,किन्तु मैंने तुम्हें चुना, [कामिनी के गले में बांहें डालते हुए बोला - इसीलिए थोड़ी नाराज़ हैं। समय के साथ ,सब ठीक हो जायेगा। जैसे हमारी ज़िंदगी में हो रहा है ,कामिनी ने पूछा। निहाल के पास उसके प्रश्न का कोई जबाब नहीं था। कुछ देर शांत रहकर बोला -कुछ चीजें समय पर छोड़ दो। 
           कामिनी के विवाह को दो बरस बीत गए किन्तु अब तक उसकी गोद नहीं भरी।अब ' अंगूरी देवी 'चिंतित नजर आने लगीं। एक दिन बोलीं -क्या तुम दोनों कोई परहेज़ कर रहे हो ?कामिनी नजरें नीची करके बोली -नहीं तो। 
दो बरस हो गए ,फिर अभी तक कोई वारिस क्यों नहीं आया ?बड़े के तो एक बेटा है ,उसके भी पता नहीं क्या हुआ ?आगे बच्चे ठहरे ही नहीं और तुम्हें दो बरस हो गए और अभी तक न ही पोता ,न ही पोती का मुँह दिखाया। कोई परेशानी हो तो ,डॉक्टर से मिल लो , अंगूरी देवी बोलीं।
जब अंगूरी देवी गांव चली जाती तो कामिनी के दिन आराम से व्यतीत होते किन्तु जब वो आ जातीं तो कुछ न कुछ परेशानी सिर पर आ पड़ती। अबकि बार दीपावली पर यहीं रहेंगी ,उनके डर से तो कामवाली भी भाग जाती। किसी तरह मिन्नतें करके उसे रोका।सबका  प्रयत्न यही रहा -उनके किसी काम में कोई कमी न आने पाए। दीपावली पर भी , एक व्यक्ति आता  है किन्तु ''अंगूरी देवी ''ने घर में किसी से भी उसका ज़िक्र नहीं किया और जब सभी लोग अपने कार्यों में व्यस्त थे। तब ''अंगूरी देवी 'ने नोटों की मोटी  सी गड्डी ,उसे देकर चलता कर दिया।  
               कामिनी आज भी छत पर बल्बों की  लड़ियाँ लगवा रही थी ,तभी उसने ये सब देखा। वो बहुत देर तक सोचती रही कि ये व्यक्ति तो देखा सा लग रहा है ,कौन हो सकता है ?तभी उसे गांव का वो दृश्य स्मरण हो आया ,-ये तो वहाँ भी आया था ,तब भी इन्होने उसे कुछ पैसे दिए थे। तब तो मैं समझी थी ,-शायद कोई विवाह की बधाई लेने आया हो।किन्तु ये अब यहाँ कैसे ?गांव से तो कोई इतनी दूर दीपावली की बधाई देने तो नहीं आएगा फिर ये इतना बुजुर्ग़। बधाई में इतने नोटों की गड्डी तो नहीं दी जाती। 
कामिनी से सोचा -मम्मी जी से पूछती हूँ ,फिर सोचा -शायद वे इसका कोई अलग ही अर्थ निकाल लें।सोचें ,मुझ पर नज़र रखती है या मेरा पीछा करती है।  वे तो मेरे से  ,बच्चे न होने के कारण वैसे ही ,नाराज़ सी रहती हैं। उसने निहाल से पूछना ही बेहतर समझा। निहाल -क्या किसी ऐसे गांववाले को जानते हो जो आपकी मम्मी के  पास आता है  और वे उसे कुछ रूपये देकर भेज देती हैं। निहाल बोला -मैं किसी को नहीं जानता ,होगा कोई ग़रीब ,जिसे मदद की जरूरत होगी। कामिनी ने सोचा -जहाँ तक मैं अपनी सास को जानती हूँ ,वो ऐसे ही किसी की मदद करने वाली नहीं। पुनः निहाल से पूछा -भला , मदद में इतने रूपये कौन देता है ?

तो कोई ब्याज़ पर पैसे लेने  आया होगा ,तुम इसमें अपना ज्यादा दिमाग मत दौड़ाओ। वो जैसा कर रहीं हैं ,उन्हें करने दो ,निहाल थोड़ा झुंझलाकर बोला। 
ब्याज पर पैसे देने की बात से थोड़ा कामिनी चुप हो गयी ,उसके मन ने कहा -ये हो सकता है। 
अब तो तीन बरस पूरे होने को आये , किन्तु बच्चे का नामों- निशान नहीं। अब तक वे इसी इंतजार  में  यहीं रह रहीं थीं कि कुछ खुशखबरी मिले ,तभी गाँव जाऊँगी, किन्तु ऐसा कुछ नहीं  हुआ। एक दिन आकर बोलीं -यदि बच्चा नहीं होता है, तो मैं निहाल का दूसरा विवाह करवाऊँगी। उनकी बात सुनकर वो थोड़ी बेचैन हो गयी। बोली -इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?सभी जाँच करा लीं ,उनकी और मेरी दोनों की 'रिपोर्ट 'ठीक हैं , फिर भी कुछ नहीं हो रहा ,तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?
कामिनी  अपनी सास के पास से उठकर चली आई और रोने लगी। उसे पता था , कि यदि सास के मन में ये बात आ गयी तो ,वो कुछ सोच ही रही होंगी। सोच रहीं हैं, तो उन्हें करने में भी समय नही  लगेगा और निहाल !उसकी तो इनके सामने ज़बान ही नहीं खुलती। अपने आगे का भविष्य सोचकर उसका दिल हिल गया। शाम को जब निहाल आया ,तब कामिनीं ने  सारी बातें उसे बताईं। उसका दिल रखने को उसने कह तो दिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा किन्तु वो स्वयं भी सोच में पड़ गया। यदि मम्मी ने कह दिया ,तो करके ही मानेंगी। पता नहीं ,क्या परेशानी है ?डॉक्टर ने भी सब सही बताया।
        एक दिन ''अंगूरी देवी छत पर  बैठी ,धूप सेक रहीं  थीं ,नज़दीक ही बैठी हुई कामिनी मटर  छील रही थी। तभी' अंगूरी देवी ' बोलीं -मेरे भी आठ साल तक बच्चे नहीं हुए ,ये बड़ा वाला मेरे विवाह के आठ बरस बाद हुआ। मेरी सास ने तो सभी विवाह की तैयारी कर ली थीं और तभी मैं गर्भवती हो गयी। 
उनकी बातें सुनकर कामिनी को उम्मीद जगी -बोली -आपके साथ ये सब हो चुका ,फिर भी आप औरत का दर्द नहीं समझ सकीं। कौन ऐसी औरत होगी ? जो माँ बनना नहीं चाहेगी किन्तु भगवान को पता नहीं क्या मंजूर है ?

उसकी बात सुनकर  वे बोलीं -तभी तो कह रही हूँ कि देर होती जा रही है। कुछ करो। 
उनकी तरफ देखकर कामिनी बोली -मैं क्या करूं ?मैंने तो सभी इलाज़ करा लिए ,तभी बोली -आपने क्या किया था ?अंगूरी देवी तो जैसे उसके इसी प्रश्न के इंतजार में थीं -बोलीं -मैंने तो किसी साधू को अपनी परेशानी बताई थी। कामिनी भी उनकी बातों में दिलचस्पी लेने लगी ,बोली -तब उन्होंने क्या बताया ?बस उन्होंने मंत्र फूँक कर ,मुझे प्रसाद दिया और तब ये बड़ा वाला मेरी कोख में आ गया।
कामिनी को एक उम्मीद जगी ,बोली -यदि ऐसा  हो सकता है ,तो आप मुझे भी उन महात्मा के पास  ले चलिए। ''अंगूरी देवी ''जैसे अपनी स्मृतियों  में चली गयी ,कुछ देर सोचती रहीं ,बोली -अब वो जिन्दा नहीं हैं। ये दोनों उन्हीं  का प्रसाद हैं। कामिनी बोली -मम्मी जी, एक बात जो मेरे मन में कई बार उठी ,आज मैं पूछना चाहती हूँ। ये दोनों भइया न ही आप पर गए हैं ,न ही पापा पर। पहले तो वो चिढ़ गयीं ,बोलीं -तू क्या अपने को बहुत खूबसूरत समझती है ,ये तो बस उनके प्रसाद का फ़ल है।  















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post