Haveli ka rahsy [ part 7 ]

 कामिनी समय व्यतीत करने के उद्देश्य से , और हवेली देखने के लिए दीपा को अपने साथ लेकर हवेली के पीछे बगीचे में चली जाती है किन्तु अंगूरी देवी उसके इस व्यवहार के लिए क्रोधित होती है। कामिनी करे भी तो क्या ?किससे  पूछे, किससे  बात करे ?जेठानी भी बात नहीं कर रही ,पता नहीं , मुझसे उनकी  क्या दुश्मनी है  ? जो स्वयं कामिनी को भी पता नहीं ,वो उससे बात करना चाहती है किन्तु वो बात नहीं करती।न ही निहाल उसके पास आता है ,पता नहीं ,वो कहाँ चला गया ? वो चम्पा से बात करती है। रात में समय व्यतीत करने के लिए ,वो चम्पा को रोक लेती है और चम्पा से ,उसकी बहन की बेटी [सोनी ] के साथ क्या हुआ ?जानने के लिए उत्सुक है। चम्पा अपनी बेटी को वहीं सोफे पर सुलाकर ,अपनी बात पूर्ण करने का यत्न करती है। अब आगे -
          चम्पा कहती है -दीदी जी ,जब वो ''समाज सेविका '' मेरी बहन की बेटी को पढ़ाने के बहाने ,अपने साथ शहर ले जाती है। वहां उससे घर के सभी कार्य करवाती है और उसकी कम उम्र का लाभ उठाकर ,उसे पैसे कमाने के लिए प्रेरित करती है ,उसे समझाती है- कि हम पढ़ते क्यों हैं ?हमें  पढ़ -लिखकर भी तो पैसा ही कमाना है।  जब हम , पैसा बिना पढ़े ही कमा सकते हैं , तब पढ़ने की आवश्यकता भी क्या है ?और उसका रहन -सहन बदलने का प्रयत्न  करती है। एक दिन उसके लिए ऐसे कपडे लाती है जो हम पहनना तो दूर ,उनके विषय में सोच भी नहीं सकते। वो बेचारी बच्ची ,प्रतिदिन अपने ही कपडे पहन लेती। तब एक दिन, उसने उस बच्ची के सारे कपड़े छुपा दिए या जला दिए ,पता नहीं क्या किया ?बेबसी में उसने फिर उस दुष्टा  के लाये कपड़े पहने ,जो बहुत छोटे थे। धीरे -धीरे उसे भी आदत पड़ने लगी।अब वो अपने घर में आये,उन  लोगों  के सामने कभी पानी लेकर ,कभी चाय के बहाने बुलवा लेती। वे लोग उसे वह्शी नज़रों से देखते ,पानी का गिलास लेने के बहाने उसे छूने का प्रयत्न  करते ,वो अंदर भाग जाती। एक -दो बार उसने कहा भी -मैडम। वो हाथ लगा रहा था। 

तब अनजान बनकर कहती -कब, मैंने तो देखा ही नहीं ?ऐसे ही लग गया होगा। उसकी ज़बान में तो शहद घुला था किन्तु मन में ज़हर भरा था। उसका पति तो उससे भी अधिक काइंया , घर में उसकी भी जवान बेटी, किन्तु हमारी बेटी पर अपनी बुरी नज़र रखता। 
 एक दिन घर ख़ाली था ,उसकी पत्नी और बेटी बाहर गयीं थी और वो उस पर टूट पड़ा। वो चीख़ती -चिल्लाती रही ,जब वो दोनों घर आयीं -तो वो बैठी सुबक रही थी ,उसकी हालत देखकर ,वो समाज की सेवा का ठेका लेने वाली, अपने पति को एक कमरे में ले गयी और बोली -तुमने ये क्या किया ?मैं इसे इतने प्यार से लाइन पर ला रही थी। इसके सत्तर हज़ार लग चुके थे ,एक लाख लगते ही मैं इसे बेच देती। 
तुम्हारी इन हरकतों के कारण ,यदि यह भाग गयी या किसी से इसने कुछ कह दिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे। 
उसने ,उस बच्ची के लिए हल्दी वाला दूध मंगवाया और उसे समझाया कि औरत  का तो जन्म ही इसीलिए होता है ,यदि उसे पुरुष ही  न पूछे तो उसका जन्म व्यर्थ ,ग़लती तो तुम्हारी भी है ,जो तुम बार -बार अपने साहब के सामने जाती हो। अब तुम इतनी कम उम्र में ऐसे कपड़े पहनकर उनके आगे -पीछे घूमोगी तो किसी का भी मन फ़िसल सकता है। जब उस बच्ची ने कहा -कि ये सब तो आपने ही लाकर दिए ,
तो बोली -लो इसमें भी मेरी ही गलती है ,किसी का भला करने चलो, तो बुराई ही मिलती है। एक तो मैंने तुम्हें ,यहां के वातावरण के अनुकूल कपडे दिए ताकि कोई तुम्हें उन देहाती कपड़ों में गंवार या नौकरानी न समझे ,हमने तो अपनी बेटी तरह तुम्हें प्यार दिया। तुम्हीं ने उस प्यार का ग़लत लाभ उठाया। तुम्हें शहर की हवा लग गयी। अब हमें दोष देती हो। वो बेचारी क्या  करती ?खून के घूँट पीकर रह गयी। 
कामिनी ने पूछा -क्या उसके माता -पिता उससे मिलने नहीं जाते थे ,ऐसे ही अपनी बच्ची को दूसरों के हवाले छोड़ दिया ,उन्हें भी तो बता सकती थी कि उसके साथ क्या हुआ ?या हो रहा है। 
कैसे बताती ?पहले तो मीठी -मीठी बातों में फंसा कर रखा और जब ये हादसा हो गया ,उसके बाद जब मिलने गए तो उन्हें यह कहकर भेज दिया कि वो तो पढ़ने के लिए बाहर गयी है और मेरी बहन -जीजा उसे दुआएं देते हुए ,वापस आ गए। 
तब कैसे पता चला ,कि उसके साथ क्या हुआ है ?कामिनी ने उत्सुकता वश पूछा। 
सोनी ने  उन दोनों पति -पत्नी की बातें तो सुन ही ली थीं और वो समझ चुकी थी कि मुझे बेचने की तैयारी है। उसने भी यही दिखाया कि उसे कुछ नहीं पता। उसने उनकी बेटी को अपनी बहन -दोस्त ,कुछ भी कहकर उससे नज़दीकी बढ़ाई और जो अपने माता -पिता को बहुत अच्छा समझती थी और  लोगों की नज़र में भी वो महान थे। सोनी ने सोचा -मेरी ज़िंदगी तो बर्बाद हो ही चुकी है किन्तु इनकी भी पोल खोलकर जाउंगी। अब वो उन पर नज़र रखती। 
 उस महिला ने एक चाल चली ,यदि इसे यहाँ से   किसी के हवाले किया तो पकड़े जाने का डर था। तब उसने उन लोगों से उठवाने की योजना बनाई जिससे लगे कि उसका अपहरण हुआ है और उसके घरवालों से कह देंगे कि वो तो किसी लड़के के साथ भाग गयी। उस दिन उसे कुछ विशेष कपडे पहनाये गए। और योजनानुसार उसे कुछ लोग उठाकर ले गए। 

फिर क्या हुआ ?कामिनी उत्सुकता से बोली। 
दो  दिन  बाद , वो अपने बाक़ी के पैसे लेने ,उन लोगों से मिलने गयी। उनमें से एक बोला -माल तो मस्त है ,उसी रात उसकी अच्छी क़ीमत लगी। अच्छा !उसने खुश होते हुए कहा।लाओ !मेरे हिस्से के पैसे मुझे दे दो ,मैं चलती हूँ। उस व्यक्ति ने उसे गिनकर पैसे दिए ,जब वो वापस आ  रही थी ,तभी किसी ने ज़ोर से उसे पुकारा -मम्मी......... उस आवाज़ को सुनकर वो वहीं रुक गयी। उसने सोचा -शायद उसे वहम हुआ है और आगे बढ़ चली। तभी एक बार उसे वही आवाज़ फिर से सुनाई दी , मम्मी....... उसने आवाज की दिशा में देखा तो उसकी अपनी बेटी दूसरी मंजिल की खिड़की से उसे पुकार रही थी। उसके तो जैसे ''पांव तले से ज़मीन ही ख़िसक गयी। '' वो ऊपर की तरफ भागी तो वही व्यक्ति मिला। बोला -अब क्या बात  है ?वो बोली -तेरे आदमी जिस भी लड़की को उठाकर लाये हैं ,मुझे उसे देखना है। 
वो लड़की लाई गयी, तो उसकी आँखों के आगे अँधेरा छ गया। वो उसकी अपनी बेटी ''दीपशिखा ''थी। वो जोर -जोर से चीखने लगी और रोने लगी -तुम मेरी बेटी को उठा लाये ,ये वो लड़की नहीं है।
जो लोग उसे उठाकर लाये थे ,उन्हें बुलाया गया। उन्होंने बताया कि आपने ही तो बताया था ''ग़ुलाबी गाउन ''वाली लड़की को उठाना है। इसी ने'' ग़ुलाबी गाउन'' पहना था। उसे आश्चर्य हुआ कि ये सब कैसे हुआ ?उसने अपनी बेटी से पूछा -तब उसने बताया कि मुझसे तो सोनी ने ही कहा था कि मम्मी तुम्हारे लिए ,ये गाउन लाई हैं ,इसे पहनकर बगीचे में जाना ,और उन्हें चौंका देना। ''दीपशिखा ''सिर्फ चौदह  बरस की थी और उसकी ऐसी हालत देखकर ,वो ''आग -बबूला ''हो उठी। 
 उसने उसे हस्पताल में भर्ती करवाया और फिर सोचा -यदि ''दीपशिखा'' यहाँ  है तो ''सोनी ''कहाँ है ?वो घर की ओर दौड़ी और उसने सारी बातें अपने पति को बताईं। वो दुःख और अपमान से पागल हुई जा रही थी। उसे समझ नही  आ रहा था कि ''सोनी 'कहाँ है ?उसने वो बदमाश और पुलिस दोनों ही ''सोनी ''को ढूँढ़ने में लगा दिए। 
  घर में उसे कुछ दिखा और वो उस तरफ दौड़ी ,देखा तो ''सोनी ''रसोईघर में से पानी ले रही थी। वो गुस्से से बोली -तुम यहां ?सोनी बोली -हाँ ,मैं यहाँ। क्यों आश्चर्य हुआ ?मैं ,उसकी जगह क्यों नहीं मिली ?
वो गुस्से में बोली -तुमने मेरी बच्ची के साथ ,ऐसा क्यों किया ?
कामिनीं बोली -ये तो बात ग़लत हुई ,यदि तुम्हारे साथ कुछ ग़लत हुआ था तो उसका विरोध करती ,उनके विरुद्ध पुलिस में जाती। इसमें उस छोटी बच्ची की क्या ग़लती थी ?
चम्पा बोली -क्या दीदी ?उसकी कौन सुनता ?एक तो ग़रीब की बच्ची ,ऊपर से ''समाज -सेविका ''का लेबल उस पर लगा था। पुलिस उनकी सुनती या उस बच्ची की। उसने तो सोच लिया था कि बदला लूँगी। ''जब तक अपने पर नहीं पड़ती ,तब तक दूसरे का दर्द भी महसूस नहीं होता।'' मुझे पता होता तो शायद मैं भी यही कहती- कि माँ की ग़लती की सजा बेटी को क्यों मिले ?परन्तु दीदी हम कह और समझ सकते हैं किन्तु'' जिसने झेला हो ,उसका दर्द तो उसे ही पता होगा।'' 

अब आगे बताओ ,क्या हुआ ?कामिनी शीघ्र अति शीघ्र जानना चाहती थी कि आगे क्या हुआ ?
ग़लती एक बार होती है और जानबूझकर बार -बार उसी बात को दोहराने से ,जख्म भरते नहीं और ताज़े हो जाते हैं। उसका बाप भी यही कर रहा था ,वो रोज़ रात को आकर उससे लिपट जाता और उसे नोंचता -खसोटता ,जब सोनी मना करती तो पीटता। तब बताओ दीदी ,वो बच्ची क्या करती ?उसके मन में ज़हर पूरी तरह फैल चुका था और उसकी पत्नी देखकर भी अनदेखा कर रही थी। 
उसकी बात सुनकर कामिनी ने गहरी साँस ली और बोली -हे भगवान ! कैसे झेला होगा ?उसने इतना सब। अब आगे क्या हुआ ?

         
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post