कामिनी का विवाह ,निहाल सिंह के साथ हो जाता है। कामिनी ,चौधरियों के ख़ानदान की ''छोटी बहु'' बनकर जाती है। विवाह की एक रस्म' देवता पूजन 'के लिए ,वे लोग अपने गाँव में जाते हैं। गाँव में इतनी बड़ी हवेली में उसके साथ, एक छोटी लड़की दीपा को उसके पास भेज देते हैं ,उस छोटी लड़की की प्यारी -प्यारी बातें कामिनी को अच्छी लगती हैं ,उसके साथ उसका समय आसानी से कटता है। निहाल अभी तक उसके पास नहीं आया ,कामिनी चाहती है कि निहाल आ जाये ,तो मैं उसके साथ हवेली घूम लूँ। तभी चाय लेकर दीपा की माँ आती है और बातों ही बातों में अपनी बहन की बेटी का क़िस्सा सुनाती है ,कारण उसने अपनी बेटी दीपा को बता रखा है कि शहरों में 'शैतान 'बसते हैं। कामिनी उसकी इस सोच के पीछे का सच जानना चाहती है ,वो बताती भी है ,इससे पहले कि बात पूरी हो ,कोई उसे आवाज़ लगा लेता है और दीपा की माँ,' चम्पा 'अभी आती हूँ, कहकर चली जाती है किन्तु दीपा कामिनी के साथ ही रह जाती है। अब आगे -
कामिनी ने दीपा से पूछा -क्या तुमने ये सारी हवेली देखी है ?दीपा बोली -नहीं भाभी , मैं तो पहली बार ही यहाँ आई हूँ ,ये तो बंद रहती है ,हम कभी इधर आते भी हैं तो वो जो काका हैं , [दीपा अंगुली के इशारे से बताती है ]जो यहाँ की देखभाल करते हैं ,वो हमें भगा देते हैं। उसकी बात सुनकर कामिनी बोली -ये हवेली तो न ही तुमने देखी है ,न ही मैंने ,चलो !हम दोनों इसे साथ में मिलकर देखते हैं। आओ !चलो घूमने चलते हैं ,कहकर वो दीपा का हाथ पकड़कर ,कमरे से बाहर निकलती है। बाहर निकलकर ,पहले तो वो ये देखती है- कि कहीं निहाल दिख जाये ,तो वो ही हमें इस हवेली को दिखाए। वो कहीं भी नहीं दीखता फिर जाने के लिए रास्ता स्वयं ही खोजती है कि किधर जाना चाहिए ?वो ऊपर से नीचे देखती है ,तो उसे कुछ लोग कार्य करते हुए दिख जाते हैं।
पहले तो वो ऐसे ही चल देती है ,तभी उसे ध्यान आता है ,वो तो उस घर की बहु है ,उसे तो पर्दा करना है। वैसे तो उस घर की बहु के रूप में ,और पर्दे से उसे कोई आपत्ति नहीं थी किन्तु अब घूमने के लिए ,उसे पर्दा करना अच्छा नहीं लग रहा था। हल्का पर्दा करके वो पीछे की सीढ़ियों से उतरती है। वो पीछे के बगीचे में पहुंच जाती है। वहाँ कोई नहीं था ,उसने अपना घूँघट ऊपर कर लिया। चारों तरफ देखा ,आम ,अमरुद ,केला इत्यादि फलों के पेड़ थे। बगीचे के कोने में एक कोठरी सी बनी थी ,उसमें ताला लगा था। कामिनी ने अनुमान लगाया ,शायद ये माली का कमरा होगा। दोनों पेड़ों से फ़ल तोड़कर खाती हैं ,बड़ी देर तक खेलती हैं। तब वो उस कोठरी के नज़दीक जाती हैं ,वहां उसे कुछ अज़ीब लगता है ,उस बच्ची के साथ कामिनी भी बच्ची हो गयी थी और वो उस दरवाजे की झिरकियों में झाँकने लगी। तभी किसी ने आवाज़ लगाई -छोटी बहु !आप इधर ,मालकिन आपसे कुछ बात करने के लिए ,आपके कमरे में गयीं थीं तो देखा ,आप वहां नहीं थीं ,सभी को आपको ढूंढने में लगा दिया। जल्दी चलिए ,वो आपके कमरे में ही आपका इंतजार कर रहीं हैं। कामिनी को इस तरह , बिन बताये बगीचे में आने पर ,अपनी गलती का एहसास होता है और वो सिर पर पल्ला कर ऊपर अपने कमरे की तरफ जाती है।
कमरे में ,अंगूरी देवी 'खिड़की की तरफ मुँह करके खड़ी थीं किन्तु कामिनी के अंदर आते ही ,उसकी तरफ मुँह करके बोलीं -ये क्या तरीका है ?तुम इस घर की नई ब्याहता बहु हो।अब उछलने -कूदने के दिन गए। दीपा की तरफ देखकर बोलीं -तुम्हें इसके साथ रहने के लिए और जिस किसी सामान की आवश्यकता हो ,उसे उपलब्ध कराने के लिए भेजा था ,या खेलने के लिए ?दीपा बोली -अम्माजी !भाभी ही ये हवेली देखना चाहती थी ,मैंने भी नहीं देखी। अंगूरी देवी ,क्रोधित होकर बोलीं -चुप रहो ! तुम यहाँ हवेली देखने आई हो। उनकी डांट से दीपा सहम गयी। कामिनी से बोलीं -हवेली भागी थोड़े ही जा रही है ,कि फिर देखने को नहीं मिलेगी। क्या तुम, इस बच्ची को खिलाने के लिए आयी हो ? तुम पढ़ी -लिखी होकर ये क्यों भूल गयीं ?हमारा भी कोई स्तर है। कल सुबह आठ बजे तक तैयार हो जाना ,सामान तुम्हारी जेठानी तैयार कर लेगी ,कहकर वो तेजी से बाहर निकल गयीं।
शाम हो गयी, किन्तु निहाल कहीं नहीं दिखा। उसने सोचा- जाकर जेठानी जी से ही पूछ लेती हूँ किन्तु पता नहीं ,जेठानी भी उससे सीधे मुँह बात नहीं कर रही ,न ही उसके समीप आती है। कामिनी मन ही मन सोच रही थी ,मैंने इनका क्या बिगाड़ा है ?जो इस तरह मुझसे व्यवहार कर रही हैं। रात में दीपा ही उसके पास थी किन्तु अब तो वो भी अपनी माँ के पास जाना चाहती थी। चम्पा रात का खाना लेकर उसके कमरे में आती है। तब कामिनी पूछती है -तुमने निहाल को कहीं देखा ?चम्पा ''कामिनी'' को इस तरह निहाल के विषय में पूछने पर ,मुँह पर पल्लू रखकर हंसती है। कामिनी बोली -मैंने ऐसा क्या कह दिया ?चम्पा बोली -अपने पति का भी कोई नाम लेता है। कामिनी ने पूछा -क्यों पति का नाम लेने में क्या बुराई है ?चम्पा बोली -कहते हैं ,पति का नाम लेने से, उसकी उम्र घटती है। कामिनी बोली -ये सब बेफिज़ूल की बातें हैं ,पति की जितनी उम्र उपरवाले ने दी है ,उतनी ही रहेगी। मेरे नाम लेने से कम नहीं होगी। उसकी बात सुनकर चम्पा बोली -आपकी जैसी इच्छा ,आप पढ़ी -लिखी हैं ,मुझसे ज्यादा समझती होंगी परन्तु हमारे बड़ों ने तो ये ही सिखाया कि अपने स्वामी यानि पति का नाम नहीं लेते। ये सब बेकार की बातें हैं ,मैं इन सबको नहीं मानती कामिनी लापरवाही से बोली।
चम्पा ने अपनी सोच रखी -दीदी आप मुझसे समझदार हैं किन्तु पति का नाम न लेना ,एक तरह से उसके सम्मान के लिए है। कहने को तो पत्नी ,पति की अर्धांगनी होती है। दोनों का बराबरी का दर्जा होता है। फिर भी जैसे सम्मान में हम अपने बड़ों के सामने ,भगवान के सामने सिर पर पल्लू लेते हैं ,उसी तरह हम पत्नियां भी अपने पति का नाम नहीं लेतीं ,उस सम्मान का ये लाभ होता था कि पत्नी ,पति से कोई उल्टी -सीधी बात नहीं करती थी क्योंकि उसके सम्मान में, एक दायरा स्वयं ही तैयार करती थी और जब पति की इज्ज़त घर में ही नहीं होगी ,तो बाहर भी कौन सम्मान करेगा ?तभी तो कहते थे ,-कि घर बनाना -बिगाड़ना ,औरत के हाथ में ही होता है ,यदि वो चाहे तो नरक को भी स्वर्ग बना सकती है। उसकी बातें सुनकर कामिनी बोली -ओहो !तुम तो बड़ी -बड़ी बातें करती हो। दीदी जी ,मैं कहाँ बड़ी बातें कर सकती हूँ ?मैंने आप लोगों की तरह मोटी -मोटी पुस्तकें तो नहीं पढ़ी किन्तु जीवन भी बहुत कुछ सीखा देता है।अब तो ये रिवाज़ हो गया ,एक -दूसरे की देखा -देखी सभी अपने पतियों का नाम लेती हैं। अब आप ही देख लो ,जो महिलायें अपने पति का नाम लेती हैं ,उनमें सम्मान कम दोस्ती ज्यादा दिखती है और दोस्ती में ,झड़प भी होती है ,बराबरी के लिए झगड़े भी और बात हाथापाई पर आ जाती है। कभी -कभी अलग भी हो जाते हैं। ज्यादातर रिश्ते अब इतने लम्बे कहाँ चलते है ?और जहाँ सम्मान होगा ,वहाँ एक -दो बार कही -सुनी भी गयी तो एक -दूसरे के विचारों पर सोचते भी हैं और निभाने का प्रयत्न भी करते हैं।
कामिनी उसकी बातों को सुनकर ,आश्चर्य में रह गयी कि ये घरेलू कार्य करने वाली महिला ,इतनी सोच और समझ रखती है। कामिनी के मन में उसके विचारों ने अपनी एक जगह तो बनाई किन्तु उसने दर्शाया नहीं। बोली -तुम जो अपनी बहन की बेटी की कहानी बता रही थी ,वो बताओ। कामिनी चाहती थी कि इतने निहाल नहीं आता तो उसका समय भी कट जायेगा और उसकी कहानी भी सुन लूँगी।
चम्पा बोली -दीदीजी ,आपको कल ''देवता पूजने ''के लिए जाना है और रात भी बहुत हो चुकी है ,आप भी यात्रा करके आयीं हैं ,थकी होंगी। आप अपने कपड़े बदल लीजिये और आराम से सो जाइये। नींद तो कामिनी को आ रही थी किन्तु उसे निहाल का इंतजार था ,बोली -थोड़ी देर और रुक जाओ ,तब चली जाना। चम्पा भी समझ रही थी कि अपने पति के कारण ये मुझे रोक रही हैं ,नई जगह है ,अकेली रात को घबरा भी सकती है और वो वहीं बैठ जाती है। कामिनी अपनी भारी साड़ी बदलकर आती है और फिर चम्पा से अपनी बात पूरी करने के लिए कहती है। दीपा को भी नींद आ रही थी ,चम्पा ने उसके सिर पर ,उसके बालों में थोड़ी देर हाथ फिराया और वो उसकी गोद में ही सो गयी। तब कामिनी ने उससे ,पहले तो अपने पलंग पर उसे लिटाने के लिए कहा किन्तु चम्पा ने इंकार कर दिया और उसे समझाया -आप तो इस घर में नई हैं ,आपकी सोच भी अलग है किन्तु आपके पति आ गए तो कहाँ लेटेंगे ?और मालकिन को पता चला तो क्रोधित होंगी। तब उसने अपनी बेटी को पास पड़े सोफ़े पर लिटा दिया। अब वो अपनी बहन की बेटी की कहानी उसे सुनाती है। अब आगे क्या होगा ?[[भाग ७ ]