Haveli ka rahsy [part 5 ]

 कामिनी के पापा , 'अंगूरी देवी ' की कोठी पर ,अपनी बेटी के लिए ,उनके बेटे 'निहाल सिंह ' के रिश्ते की बात करने जाते हैं। वे उनका रहन -सहन देखकर ,अपनी बेटी के भाग्य पर मन ही मन प्रसन्न  हैं, किन्तु उनकी भव्यता  देखकर थोड़ा घबरा भी जाते हैं। तभी  'अतिथि के कमरे ' में अंगूरी देवी प्रवेश करती हैं ,जिन्हे देखकर वो चौंक जाते हैं। इस उम्र में भी उनकी सुंदरता और रहन -सहन गज़ब ढा  रहा था। उनका गौर वर्ण , थोड़ी  लालिमा लिए था ,आकर्षक चेहरा ,उस पर सोने के फ्रेम  वाला चश्मा ,प्याज़ी रंग की जरी की साड़ी और कुछ  आभूषण ,हाथ में सोने के मोटे  -मोटे  कड़े ,कुछ देर वो उन्हें यूँ ही खड़े  उन्हें देखते रहे। वे बोलीं - बैठिये , क्या यूँ हीं खड़े रहेंगे ?उनकी आवाज सुनकर उनका ध्यान टूटा। अब वो परेशान भी हो गए  कि ये मेरी बेटी का रिश्ता नहीं  लेंगी। किन्तु साथ ही सोच रहे थे कि- क्या निहाल इनका लड़का है ?इनसे तो बिल्कुल विपरीत है। उसका गेहुआँ रंग ,नैन -नक्श भी नहीं मिलते ,फिर सोचा -शायद ,अपने पिता पर गया होगा।

                                                             


           जी कहिये , जी मैं ' सदाशिव ' ,एक अभियंता हूँ ,मेरी बेटी कामिनी अभी परा स्नातक कर रही है ,मैं निहाल से रिश्ते के लिए आया हूँ। उन्होंने ये नहीं बताया, कि वो निहाल से मिल चुके हैं या वो मेरी बेटी के साथ पढ़ता था। उन्हें लगा, इस तरह बताने से शायद वे प्रसन्न न हों और कुछ ग़लत ही अर्थ निकाल लें। उनकी बात सुनकर अंगूरी देवी बोली -जब से ये '' प्रशासनिक अधिकारी ''बना है ,तब से जैसे रिश्तों की बाढ़ आ गयी है। बोलीं -आप अपनी बेटी की तस्वीर और उसकी जन्मपत्री दे दीजिये। कुछ बात बनती है तो हम आपको सूचना दे देंगे । सदाशिव जी ने उन्हें अपनी बेटी की फोटो दिखाई , तस्वीर देखकर बोलीं -आपकी बिटिया सुंदर तो है। ख़ैर हम घर में बात करके ,आपको सूचित कर देंगे। 
            सदाशिव जी  उन्हें औपचारिक तौर पर ,अपनी बेटी की तस्वीर और जन्मपत्री दे आते हैं किन्तु निश्चिन्त हो जाते हैं ,क्योंकि वो जानते हैं ,''निहाल तो उनकी बेटी से ही प्रेम करता है। ''उनका सोचना सही था और कुछ दिनों  बाद ,उनकी बेटी को देखने आते हैं। अपनी तरफ से सदाशिव जी ने उनकी ख़ातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ी ,किन्तु अंगूरी देवी को , वो सब अपने स्तर से कम लगा। किन्तु बेटे को तो उनकी बेटी ही पसंद आई। न चाहते हुए भी ,कामिनी से निहाल का रिश्ता हो जाता है। अंगूरी देवी का अहंकारी स्वभाव और बेबाक़ अपनी बात कह देना ,ये बातें , कामिनी के परिवार से छिपी नहीं, किन्तु  निहाल का स्वभाव और अपनी बेटी का सुखी भविष्य देखकर, उन्होंने ये सब बातें नजरअंदाज कर दीं। 
                विवाह तय हो जाने के पश्चात निहाल ने चुपके से कामिनी को एक फोन भी दिलवा दिया ताकि दोनों अपने दिल की बात कह सकें। दोनों ही अक़्सर बातें करते रहते किन्तु कभी उसकी मम्मी की आवाज़ आती तो तुरंत  फ़ोन काट देता। कभी -कभी कामिनी को लगता-'' कि अपनी मम्मी से इतना डरता है तो पता नहीं आगे क्या होगा ?कभी उसकी बुद्धिमानी पर  गर्व होता कि ऐसी कड़क माँ के साथ रहकर  भी, उससे प्रेम विवाह कर रहा है। कभी सोचती ,मैं उनके साथ कैसे निबाहूँगी ?फिर सोचती ,जो होगा देखा जायेगा। अभी तो मुझे खुश रहना है। 

                एक माह के पश्चात कामिनी का विवाह निहाल सिंह से हो जाता है और कामिनी उस बड़ी सी कोठी में घर की ' छोटी बहु 'के रूप में प्रवेश करती है। छोटी बहु अनेक रस्में  निभाती है  ,उनमें से एक रस्म है ''कुल देवता ''की पूजा है ,उसके लिए वो लोग अपने गाँव जाते हैं। कामिनी जब घूंघट में ,उस हवेली में उतरती है तो उसकी आँखें फटी की फटी रह जाती हैं ,इतनी बड़ी हवेली तो उसने पुस्तकों में या चलचित्रों में ही देखी। आसपास नौकर -चाकर अब तो उसे  महसूस हुआ कि'' वो एक रानी है ''वाली अनुभूति होने लगी।' देवता पूजने 'की रस्म के लिए एक रात उन्हें रुकना था। कामिनी ने महसूस किया जब उसकी सास उसके नज़दीक होती तब निहाल उसके पास नहीं फटकता ,जब तक माँ ही न बुलवा ले।
     उसकी जेठानी भी उन लोगों  के साथ  थी ,और वो पहले भी इधर आ चुकी होंगी ,वो इस हवेली से परिचित थी। कामिनी को एक कमरा दिया  जाता है किन्तु उस कमरे में निहाल नहीं आता। वो अकेली  उस कमरे का  निरीक्षण  कर रही थी ,उसने अपने कमरे की खिड़की से देखा -उसकी सास ''अंगूरी देवी '' किसी व्यक्ति को  छुपकर कुछ  दे  रही थी। कामिनी ने देखा , सोचा- कोई कामवाला या फिर विवाह की बधाई लेने आया होगा। हवेली बहुत पुरानी हो चुकी थी ,उसकी देखरेख भी शायद बहुत दिनों से नहीं हुई। ये लोग शायद कभी -कभी ऐसे मौकों पर ही आते होंगे। वो तो पहली बार यहाँ आई है ,थोड़ा घूम लेती किन्तु करे भी क्या ?निहाल तो पता नहीं ,कहाँ रह गया ?एक लड़की को उसकी सेवा के लिए ,भेज दिया गया। 
            दीपा बोली -क्या आप बहुत पढ़ी हो ? 'हाँ 'मुस्कुराते हुए कामिनी बोली। दीपा कभी उसके कपड़े ,कभी उसका लाया सामान बड़ी उत्सुकता से देख रही थी।दीपा बोली -भाभी ,ये सब सामान आपका है। हूँ दीपा ने उसकी तरफ देखा और बोली - क्या तुम नहीं पढ़तीं ?पढ़ती हूँ ,गांव के सरकारी विद्यालय में दीपा ने जबाब दिया। 
तब तुम यहां  क्यों आई हो ? क्या करती हो ?कामिनी ने पूछा।  बस आपकी देखभाल और आपके साथ रहने ,दीपा ने इस  मासूमियत से जबाब दिया। कामिनी की हंसी छूट गयी और बोली -तुम मेरी देखभाल करोगी ,बताओ , क्या देखभाल कर सकती हो तुम ?
मैं आपके खाने -पीने से लेकर ,आपको जो भी आवश्यकता होगी ,वही  आपके सामने ले आऊँगी ,मेरी माँ कहती है कि मैं बहुत होशियार हूँ। 
कामिनी बोली -तुम तो बड़ी प्यारी हो ,प्यारी बातें करती हो ,मेरे साथ शहर चलोगी। दीपा का चेहरा उतर गया  और उदास होकर बोली -नहीं भाभी ,माँ कहती है -शहर में तो  शैतान रहते हैं। क्यों ,ऐसा क्यों कहती है ?तुम्हारी माँ ! कामिनी ने पूछा -क्या हम लोग शहर से नहीं आये ,हम भी तो शहर में रहते हैं। 
आप तो बड़े लोग हैं ,गरीबों का कहाँ ठिकाना ?और कोई हिम्मत भी करें तो शैतान नहीं छोड़ता। उसकी बातों का आशय कामिनी  समझ नहीं पाई और उसका चेहरा गंभीर हो गया। बोली -बेटा तुम यहां बैठो ,अब बताओ,- माँ ऐसा क्यों कहती है ?तभी एक महिला ने उस कमरे के अंदर प्रवेश किया और उसके हाथों में चाय और नाश्ते की ट्रे थी। वो बोली -ये क्या ऊटपटाँग बातें कर रही है ? कामिनी की तरफ देखते हुए बोली -दीदी ये बहुत बोलती है। कामिनी बोली -आप तो मुझसे बडीं हैं ,आप मुझे दीदी क्यों कह रही हैं ? ये सब तो हमें मालकिन ने बताया -कि बहुओं को मैडम ,या दीदी बोलना है और दीपा की तरफ देखते हुए बोली -तुम्हें इनकी देखभाल के लिए भेजा था या बातें बनाने।   
अच्छा ,क्या ये तुम्हारी बेटी है ,इतनी छोटी बच्ची क्या काम करेगी ?और मैं कोई बीमार नहीं कि देखभाल करेगी ,इसीलिए हम बातें करके समय बिता रहे थे।चाय पीते हुए ,कामिनि बोली - तुम इसे क्या ,बताती रहती हो ?कि शहरों में शैतान रहते हैं। दीदी जी !इसे पढ़ने का और सजने -संवरने का बड़ा ही शौक है। अब आपको देख लिया न ,अब ऐसे ही आपकी नकल करेगी। ये पढ़कर शहर  जाकर नौकरी करने की सोचती है।
 तो ,इसमें बुराई क्या है ? आगे पढ़ना और आगे बढ़ने के लिए हर कोई सोचता है ,कामिनी ने दीपा की सोच का समर्थन किया। 
       आप नहीं जानती दीदी , ''हम ग़रीबों की न ही कोई सोच होती है ,न ही ज़िंदगी  ''हम तो हवा के झोंकों के साथ चलते रहते हैं , जिधर हवा का रुख हो ,उधर ही चल देते हैं , जिधर हमें हमारी जरूरत ले जाये।'' मेरी बहन की एक बेटी थी ,वो भी ऐसा ही सोचती थी ,मेरी बहन ने उसे पढ़ाया ,अपनी कमी करके, बेटी को आगे बढ़ाया। वो थोड़ी देर चुप रही ,कामिनी ने पूछा -फिर क्या हुआ ? एक समाज -सेविका ,उसे पढ़ाने के लिए अपने साथ ले गयी। उसने खर्चे के पैसे भी नही माँगे ,कहती जब तुम्हारी बेटी पढ़ -लिखकर ,बड़ी अफसर बन जाएगी। तब हमारा सारा ऋण चुक जायेगा। हमारा तो यही काम है ,भटके को राह दिखाना ,होनहार को आगे बढ़ाना ,तुम लोगों की सेवा के लिए ही तो, ये जीवन समर्पित किया है। उसकी इतनी बड़ी -बड़ी बातों के कारण मेरी बहन भी सपने सजाने लगी और अपनी बेटी को उस दुष्टा के साथ भेज दिया।अपने साथ लाकर , वहां उससे सारा दिन घर का काम कराती ,कहती -तू काम करके अपना खर्चा तो निकाल ही सकती है ,जो हमारी 'मेड़ 'का खर्चा बचेगा वो हम तेरी पढ़ाई में लगा देंगे। इससे तेरे माँ -बापू पर भी एहसान नहीं होगा। साथ के साथ तेरा खर्चा भी होता रहेगा। उसे भी ये बात सही लगी और वो पहले घर का सारा काम निपटाती तब पढ़ने जाती।
                                                      

             उसकी उम्र भी कम थी ,तब उस औरत ने उसे ,पढ़ाई की जगह,उसमें कमाने की ललक जगाई और उसके लिए ऐसे वस्त्र लाई ,जो पहनना तो दूर ,हम सोच  भी नहीं सकते। उस लड़की ने विरोध किया तो उसे घर भेजने और पढ़ाई बंद करने की धमकी दी। बेचारी बच्ची न जाने क्या -क्या झेलती रही ?उसे अपने सपनों की क़ीमत बहुत महंगी पड़ रही थी। 
          तभी बाहर से आवाज़ आई -चम्पा , ओ  चम्पा....... 
वो बोली -आती हूँ ,कहकर वो चली गयी। कामिनी उसके आगे की कहानी जानने की इच्छुक थी।  
                  कामिनी के  चाय पीने के पश्चात , दीपा की  माँ चलते समय  बोली -तू चलेगी मेरे साथ ,वो बोली -नहीं में अभी 'नई भाभी 'के पास रहूँगी। कामिनी को दीपा का  भाभी कहना अच्छा लग रहा था। दीपा की माँ  चली गयी। 

 
 





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post