निहाल के कारनामे कामिनी के घर तक पहुंच ही जाते हैं ,कामिनी के पिता उसे समझाने के साथ ही ,निहाल से मिलने की इच्छा भी जाहिर करते हैं। एक दिन कामिनी को अकेली देखकर,निहाल स्वयं ही उससे बातें करने लगता है। तब वो बातों ही बातों में ,कामिनी के दिल की बात कह देता है किन्तु उसके इस तरह कहने पर ,वो समझ नहीं पाती कि ये मज़ाक कर रहा है या अपने दिल की बात कर रहा है। वो साहस करके अपने पापा की बात भी कह देती है किन्तु निहाल उसकी बात सुनकर ,गुनगुनाता हुआ चला जाता है।कई दिनों तक निहाल नहीं दिखा। अब तो पेपर भी आनेवाले हैं ,कामिनी प्रतिदिन उसकी प्रतीक्षा करती ,फिर उसके न दिखने पर अफ़सोस करती ,क्यों मैंने व्यर्थ में ही उससे कहा ?तुरंत ही अपना मन समझा लेती -ऐसा कुछ विशेष भी नहीं कहा ,कि उसे बुरा लगे। वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहती है किन्तु रह- रहकर उसका ख़्याल आ ही जाता।
निहाल पेपर देने आता है ,उसे देखकर ,न जाने कितनी शिकायतें कामिनी के मन में आती हैं ? वो उससे पूछना चाहती है कि इतने दिन कहाँ रहे , कॉलिज क्यों नहीं आये ?मैंने ऐसा क्या कह दिया ?कि कॉलिज आना ही छोड़ दिया। पेपर के बाद ,जब वो बाहर मिले तो निहाल उससे पूछने लगा -पेपर कैसा गया ?तो मुँह से कुछ भी नहीं निकला ,बस'' हाँ ''में गर्दन हिला दी। वो कहना तो बहुत कुछ चाहती थी किन्तु शब्द गले में ही अटककर रह गए। कॉलिज के गेट तक चुपचाप साथ चलती रही और दोनों अपने -अपने घर चले गए। वो समझ नहीं पाई- कि कैसे उसके प्रश्नों का उत्तर मिले ?अगली मुलाक़ात में वो बोली -मैंने सुना है ,कि तुम्हारे यहां ,बहुत बड़ी पुरानी हवेली है। निहाल उसकी तरफ देखते हुए ,सोचने लगा कि -
इसे हवेली के विषय में किसने बताया ?फिर सोचा -पेपर चल रहे हैं ,किसी भी विषय से संबंधित कोई प्रश्न नहीं किया। इस समय हवेली के विषय में पूछना, ये कहाँ की तुक है ?
कामिनी ने तो यूँ ही पूछ लिया था ,वो तो निहाल से किसी भी बहाने से , बातों की शुरुआत करना चाहती थी। निहाल बोला -है, तो ,पर ये सब तुम क्यों पूछ रही हो ?कामिनी सकुचाते हुए बोली -एक दिन किसी ने मुझे बताया था तो ऐसे ही पूछ लिया। ऐसे ही मत पूछो और ये बताओ -पेपर की तैयारी केेसी चल रही है ?निहाल बोला। अपनी बेतुकी बातों के कारण ,वो भी झेंप गई और कोई बात नहीं कर पाई और घर आ गयी।
स्नातक के पश्चात निहाल ''भारतीय प्रशासनिक सेवा ''की तैयारी में जुट गया और कामिनी परा स्नातक की पढ़ाई करने लगी। लगभग एक वर्ष पश्चात ,एक दिन अचानक निहाल ,कामिनी के घर आता है उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था। उसने कामिनी के पिता को अपना परिचय दिया ,उसके पापा उससे मिलकर और उसकी बातों को सुनकर अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने उसे'' प्रशासनिक अधिकारी ''बनने की बधाई दी और कामिनी को बचाने के लिए धन्यवाद !
कामिनी अपने कमरे में बैठी थी ,तभी उसके छोटे भाई ने ,उसे आकर बताया कि -दीदी ,आपका कोई कॉलिज का दोस्त आया है। कामिनी ने पूछा -कौन है ,और कहाँ है ?वो बोला - उसे मैं नहीं जानता और वो पापा से बातें कर रहा है।
कामिनी दौड़ती हुयी ,ये देखने के लिए आयी कि पता नहीं ,कौन आया है ?निहाल को देखकर वहीं बैठ गयी ,उसे तो निहाल के आने की उम्मीद ही नहीं थी। कामिनी को देखकर उसके पापा बोले -लो , हमारी कामिनी भी आ गयी। निहाल उसे देखकर मुस्कुराया। तुम ! कामिनी अचकचाकर बोली ,कामिनी को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। क्यों ?क्या मैं आ नहीं सकता, निहाल ने ही उससे पलटकर सवाल पूछा। कामिनी ने मन में सोचा -''जब मैंने कहा था कि पापा मिलना चाहते हैं ,तब तो न ही आया और न ही जबाब दिया , किन्तु अपने पापा के सामने कुछ नहीं बोली।
इतने दिनों बाद उसे देखा -काफी बदल गया। वो देखने में एक समझदार पढ़ा -लिखा व्यक्ति लग रहा था बाल भी कटिंग करके अच्छे से बना रखे थे। वो चाय लेने चली गयी ,मम्मी बोली -ये ही निहाल है ,लड़का तो बड़ा समझदार और गुणी लग रहा है ,हाँ देखने में ,एकदम से इतना प्रभावशाली नहीं है किन्तु सोच -विचार में ,व्यवहार में किसी से कम नहीं।
चाय लेकर अंदर आई तो पापा बोले -तुम जानती हो ,इसने ''प्रशासनिक अधिकारी ''का पेपर पास किया है। उसी की मिठाई लेकर आया है। हम कह रहे थे कि -मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए थी और ये ज़नाब हमारे लिए लाये हैं। चलो , तुम दोनों बैठकर बातें करो ,तब तक मैं बाजार हो आता हूँ।
निहाल ने नजरभर कर कामिनी को देखा -बोला ,तुम यही सोच रही थी न ,कि जब मैंने बुलाया ,तब नहीं आया और'' अब बिन बुलाये ,मेहमान की तरह टपक पड़ा। ''एकाएक कामिनी बोली -तुम्हें मेरे मन की बात कैसे पता चल जाती है ?कहकर हँस पड़ी। उसे हँसते देखकर निहाल बोला -यदि इस हँसी को मैं अपने घर ले जाऊँ ?कामिनी चुप होकर बोली -मैं कुछ समझी नहीं।
यही तो परेशानी है ,तुम समझती नहीं और मैं बिन कहे समझ जाता हूँ। मैंने आज तक किसी भी लड़की से इतनी बातें नहीं की ,जानती हो क्यों ?कामिनी ने' न 'में गर्दन हिलाई। तुमने मुझे अपनेपन का एहसास कराया ,तुमने मेरी फ़िक्र की। तुम तो मेरा स्वभाव जानती ही हो ,मैं 'झेंपू 'जो ठहरा। उसकी बात सुनकर कामिनी चौंक गयी ,इसे कैसे पता चला ?कि मैंने इसका नाम 'झेंपू 'रखा है। तभी उसे ध्यान आया कि मुझसे पहले पापा से मिला था कहीं उन्होंने तो नहीं बता दिया।
क्या सोच रही हो ?निहाल के प्रश्न से उसका ध्यान टूटा। कुछ नहीं ,कामिनी बोली। तो क्या मैं इस हँसी को और हंसनेवाली को अपने घर ले जा सकता हूँ ,यदि तुम्हारी इजाज़त हो तो। निहाल ने बड़े सभ्य तरीक़े से पूछा। कामिनी तब भी नहीं समझी ,बोली -तुम्हारे घर कोई कार्यक्रम है तो मैं जरूर चलूँगी ,जब तुम बुलाओगे तो बंदी हाज़िर हो जाएगी कामिनी भी इठलाकर बोली। वो बोला -तुम समझी नहीं ,मैं सदा के लिए इस हँसी को अपने साथ ले जाना चाहता हूँ ,अपने संग रखना चाहता हूँ। जब तुम इजाज़त दोगी और इसमें तुम्हारी इच्छा होगी ,तभी मैं अपनी माँ और तुम्हारे पापा से बात करूँगा। अब कामिनी उसके शब्दों का अर्थ समझकर झेंप गयी और शर्म से उसका मुख लाल हो गया। और वो अंदर भाग गयी।
निहाल को अकेले बैठे देखकर ,कामिनी की मम्मी उसके पास आकर बोली -कामिनी कहाँ गयी ?निहाल ने उसकी मम्मी से कुछ बातें की और चला गया। कामिनी की मम्मी ,उसके कमरे में आकर ,मुस्कुराकर बोलीं -उसे जबाब क्यों नहीं दिया ?कामिनीं नजरे झुकाकर बोली -मैं क्या कहती ?उसके प्रश्न का जबाब देना था बस ,उन्होंने ये बात इतनी सरलता से कही ,जैसे कोई ज्यादा विशेष बात नहीं थी। वैसे तुम्हारी इच्छा क्या है ?मम्मी ने उसके चेहरे पर नज़रें गड़ाते हुए कहा। मैं क्या बताऊँ ?कामिनी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था। उसकी मम्मी अचानक अपने व्यवहार में परिवर्तन कर बोलीं -ठीक है ,पापा से फोन पर ,मना करवा दूँगी कि तुम हमारी बेटी को पसंद नहीं हो। उनकी बात सुनकर ,वो झट से बोली -नहीं ,मैंने ऐसा कब कहा ?तो क्या वो तुम्हें पसंद है ?तभी घर में उसके पापा ने प्रवेश किया और बोले -अरे ,किसे क्या पसंद है ?
वे बोलीं -निहाल को हमारी कामिनी पसंद है और इससे विवाह के लिए पूछने आया था किन्तु ये अंदर भाग गयी। अब आप उसे मना कर देना कि कामिनी को झेंपू पसंद नहीं कहकर मुस्कुराने लगीं। नहीं ,पापा मैंने ऐसा नहीं कहा -तो क्या कहुँ ?वे बोले। कामिनी बोली -पहले आप भी तो उसका घर -बार देख आइये ,कैसा परिवार है ?उसकी मम्मी भी तो मुझे देखेंगी। ओह !तो बात देखने दिखाने तक पहुंच गयी और हमें पता ही नहीं चला ,उसकी मम्मी हंसकर बोलीं।
कामिनी के पिता अपनी बेटी के रिश्ते के लिए उनके घर जाते हैं ,शहर में भी काफी बड़ा मकान ,नहीं कोठी है। कोठी की सजावट उसकी बनावट पर ही वो मुग्ध हो गए और जब दीनू उन्हें अंदर ले गया तो उसकी भव्यता देखते ही रह गए और मन ही मन अपनी बेटी के भाग्य को सराहने लगे। उनके तो चाय का सेट ही विदेशी और महंगा लग रहा था। ये सब देखकर उन्हें मन ही मन घबराहट होने लगी -पता नहीं ,ये लोग हमसे रिश्ता जोड़ना भी चाहेंगे या नहीं। कुछ समय पश्चात ,जब अंगूरी देवी ने वहाँ क़दम रखा तो वे अपनी जगह से उठ खड़े हुए और उन्हें देखते रह गए।
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