कामिनी अपने दोस्तों के साथ घूमने का कार्यक्रम बनाती है ,वहां पर कुछ बदमाश उन्हें परेशान करते हैं। कुछ कहने पर या विरोध करने पर चाकू निकाल लेते हैं। उसी समय निहाल भी अपनी मोटरसाइकिल पर आता है और अपनी चतुराई से उन्हें बचाता है। सभी उसकी प्रशंसा करते हैं ,ये बात पूरे कॉलिज में फैल जाती है , किन्तु कामिनी को लगता है कि निहाल उसके लिए ही आया था और ये बात वो उससे पूछना चाहती है किन्तु उसे डर भी है कि कहीं निहाल ने इस बात से इंकार किया तो उसका ये भ्र्म समाप्त हो जायेगा।कामिनी ने घर पर भी इस घटना का वर्णन नहीं किया क्योंकि उसे ड़र था - कि घरवाले डरकर उसे कॉलिज नहीं आने देते। जहाँ सभी निहाल की प्रशंसा कर रहे थे वहीं कामिनी उससे नजरें चुरा रही थी। अब आगे -
दोपहर के खाने पर ,कामिनी अपनी सहेलियों संग बैठी थी ,और निहाल हर बार की तरह उसी बेंच पर अकेला था। कामिनी चाहती थी ,कि उससे खाने के लिए पूछे और अपने मन में घुमड़ रहे अनेक प्रश्नों का जबाब चाहती थी। पता नहीं ,अब उसकी ज़बान कैसे नहीं खुल रही ?वो तो जैसे मौन हो गयी।कुछ देर के लिए निहाल को प्रिंसिपल ने बुलवा भेजा ,अब तो सभी यह बात जानने के इच्छुक थे कि उन्होंने क्या कहा ?उसने आकर बताया - कि कल जो हादसा होते -होते रह गया ,उसी के विषय में जानना चाहते थे। अगले दिन एक बड़े से पेपर पर ,उस हादसे का कार्टून बनाकर, उस पोस्टर को दिवार पर चिपकाया गया उसमें उसे ''आज का हीरो'' दिखाया गया और उसकी प्रशंसा हुई।
ज़ेबा जो कामिनी के साथ पढ़ती थी। वो कई दिनों से नहीं आई थी ,उसने कामिनी से 'अर्थशास्त्र ''के नोट्स मांगे - कामिनी - यहां तो मेरे पास नहीं हैं ,तुझे तो मेरा घर मालूम ही है ,शाम को आकर ले जाना। जब ज़ेबा उसके घर गयी -तो कामिनी की मम्मी उसे बाहर ही मिल गयीं ,वो भी उसे जानती थीं ,उसे देखकर बोलीं -बेटा बहुत दिनों बाद आयी हो।
जेबा -हाँ आंटीजी ,मेरी अम्मी की हालत थोड़ी नासाज़ थी ,इसी कारण कॉलिज भी आना नहीं हुआ। आंटीजी !कामिनी कहाँ है ?मुझे उससे कुछ नोट्स लेने हैं ,ज़ेबा ने पूछा।
वो बोलीं -वो अभी ऊपर किसी काम से गयी है ,आती ही होगी कहकर वो अपने काम में लग गयीं ,फिर बोलीं - ज़ेबा ,अब तुम्हारी अम्मी की तबियत कैसी है ?ज़ेबा -अम्मी अब तो ठीक हैं किन्तु जब मुझे उस हादसे का पता चला ,तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
कौन सा हादसा ! तुम किस हादसे की बातें कर रही हो ?उन्होंने अनभिग्यता ज़ाहिर की।
ज़ेबा -आपको कामिनी ने कुछ नहीं बताया ,मुझे भी कॉलिज जाकर पता चला। कामिनी की मम्मी अपना काम छोड़कर ज़ेबा के नज़दीक आ गयीं। और बोलीं -क्या हुआ था ?तब बातों ही बातों में उसने कामिनी के घरवालों के सामने उस हादसे की सारी कहानी सुना डाली ,जो भी उसे पता था। तब तक कामिनी भी आ चुकी थी ,उसे देखकर ज़ेबा बोली -क्या तूने इन्हें कुछ भी नहीं बताया ?कामिनी ने अपने मम्मी -पापा की तरफ देखा और बोली -चलो ,तुम्हें नोट्स देती हूँ और उसे अपने संग अपने कमरे में ले गयी।
तुझे क्या आवश्यकता थी ?ये सब बताने की ,व्यर्थ ही परेशान होंगे ,अब उनके सवालों के जबाब देते रहो।कामिनी उससे बोली।
ज़ेबा -यार ,ये क्या बात हुई ?वो तेरे अम्मी -अब्बू हैं ,उन्हें पता होना चाहिए था। कामिनी उसे नोट्स देकर चलता करती है।
ज़ेबा की बातें सुनकर ,कामिनी को उसके मम्मी -पापा ने देखा और पूछा -इतनी बड़ी बात हो गयी और तुमने हमसे क्यों छिपाई ?
कामिनी लापरवाही से बोली -अब तो सब ठीक है ,कुछ हुआ तो नहीं। कामिनी की बातें सुनकर उसकी मम्मी को क्रोध आया और बोलीं -क्या कुछ होने का इंतजार करना था ? कौन है वो लड़का ,जिसने इतनी समझदारी का परिचय दिया।
अरे मम्मी !वो ही झेंपू ,पता नहीं ,उस समय कहाँ से पहुंच गया ?और उसने ऐसे दर्शाया जैसे ,हमें जानता ही न हो। हम लोग परेशान थे ,कि ये क्या कर रहा है ?किन्तु उसकी योजना का हमें बाद में पता चला तो सब खुश हुए।
कामिनी की मम्मी का उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं था ,उन्हें तो अलग ही चिंता सता रही थी। बोलीं - कल को तुम्हें कुछ हो जाता तो हम कहीं के नहीं रह जाते ,बदनामी होती सो अलग। बदमाश पकड़े जाते ,तब देखा जाता किन्तु तुम्हें कुछ हो जाता तो ,उन्हें कोई नहीं कहता ,न ही उनका कुछ बिगड़ता।जेल जाते कुछ दिनों बाद छूट जाते ,उनका तो काम ही यही है। हाँ ,ये बात अवश्य है ,तुम्हें ''चार बात कहने वाले ''अवश्य खड़े हो जाते। लड़की को कुछ अधिक ही छूट दे रखी है। माता -पिता लापरवाह हैं ,उन्हें पता ही नहीं, कि उनकी लड़की कहाँ घूम रही है ?
उनकी बातें सुनकर ,उसके पापा बोले -अब तो सब सही है ,क्यों व्यर्थ में चिंता कर रही हो ?
तुम तो बस मुझे ही कहोगे ,अपनी इस लाड़ली को कुछ मत कहना ,क्या जरूरत थी ,इसे घूमने जाने की ?वे झल्लाकर बोलीं।
हाँ ,ये बात तो तुम्हारी मम्मी ठीक कह रहीं हैं ,तुमने हमें भी नहीं बताया। हम सोच रहे हैं, कि तुम कॉलिज में हो और तुम दोस्तों के साथ घूम रही थीं ,ये बात तो ग़लत है। हमने आज तक किसी भी बात के लिए मना नहीं किया फिर इस तरह बिना बताये जाने की क्या आवश्यकता थी ?उसके पापा ने प्रश्न किया।
उनकी बातें सुनकर कामिनी को अपनी गलती का एहसास तो हुआ ,फिर भी अपने बचाव के लिए बोली -पापा हम तो तीन -चार घंटे बाद आ ही जाते इसीलिए बताने की जरूरत महसूस नहीं हुई।
उसके पापा ने बात को बदलने का प्रयास करते हुए कहा -ये तुम्हारी क्लास का झेंपू तो 'हीरो 'निकला ,कभी हमसे भी उसे मिलवाओ और उसका धन्यवाद भी कर देंगे।
'' हीरो ''वाला काम तो किया है किन्तु ''हीरो ''जैसा दीखता नहीं है ,कामिनी ने जैसे उन्हें पहले ही समझा दिया ताकि उससे मिलकर उन्हें निराशा न हो।
वे बोले -हुलिए से'' हीरो ''जैसा दिखने वाला व्यक्ति जब कठिन समय में ,अपनी समझदारी का परिचय न दे तो ऐसे व्यक्तित्व का क्या लाभ ?
उनकी बात कामिनी के' दिल में जगह कर गयी ,सोचने लगी -कार्तिक कितना जंचता है ?उस समय तो वो भी ''भीगी बिल्ली ''बना हुआ था।
लगभग एक सप्ताह पश्चात ,कामिनी अकेली कॉलिज के बगीचे में बैठी थी ,तभी पीछे से आवाज़ आई ,-आज अकेली कैसे ?उसने आवाज़ की तरफ मुड़कर देखा तो निहाल खड़ा था जो अपनी आदत के मुताबिक़ नीचे देखकर मुस्कुरा रहा था।
कामिनी ने उसे देखकर सोचा -चलो ,इसे इतना तो बोलना आ गया कि किसी का हाल -चाल पूछ ले। कामिनी बोली -आज कृति और दीप्ती तो आई नहीं ,मैं भी जाने का ही सोच रही थी फिर सोचा -थोड़ी देर शांति से बैठ लूँ।
क्यों ,क्या कोई परेशानी है ?निहाल ने पूछा। नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं, कामिनी कुछ सोचते हुए बोली।
कुछ तो है ,कहते हुए वो उसके नज़दीक बैठ गया। कामिनी को कुछ अटपटा सा लगा।
निहाल बोला -क्या ,अब खाना नहीं लातीं ?
लाती तो हूँ ,फिर सोचा -तुम सोचोगे, कि ज़बरदस्ती पीछे पड़ी रहती है।
वो मुस्कुराकर बोला - अब तो मुझे भी भूख लगने लगी ,पहले आदत नहीं थी ,कुछ दिन खाया तो इच्छा होने लगी।
कामिनी ने सोचा -भूख लगती है ,तो अपने घर से क्यों नहीं लाता ?प्रत्यक्ष बोली -खाओगे !अभी एक परांठा रखा है और खाने का डिब्बा उसके आगे रख दिया। खाना खाते हुए बोला -आंटी ,खाना अच्छा बनाती हैं।
नहीं जी ,ये तो मैंने बनाया है ,खाना खाते वो रुक गया और आश्चर्य जताते हुए बोला -क्या तुम्हें भी खाना बनाना आता है ?मैंने तो सोचा था...... उसकी बात बीच में ही काटते हुए ,बोली -क्या सोचा था ?
वो बोला -कुछ नहीं। कामिनी को उसकी बात पर गुस्सा आया ,बोली -पता तो चले, कि तुम मेरे विषय में क्या सोचते हो ?
खाकर डिब्बे को बंद करते हुए , मुस्कुराकर बोला -यही कि तुम भी खाना अच्छा बना लेती हो।
उसकी बात से थोड़ी आश्वस्त होकर बोली -एक बात पूछूं ?निहाल उसकी तरफ भेदभरी नज़रों से देखते हुए ,बोला -पूछो !
कामिनी की नजरें ,स्वतः नीचे झुक गयीं ,बोली -क्या उस दिन तुम अचानक ही वहां पहुंचे थे या पहले सोचकर आये थे।
निहाल मुस्कुराकर बोला - क्या तुम ये कहना चाहती हो ?कि मैं तुम्हारे पीछे आया था ,तुम्हारे साथ कुछ दिन खाना क्या खाया ?मैं तुमसे प्रभावित होकर ,तुम्हारे पीछे चला आया। उसकी बातें सुनकर कामिनी को अपनी सोच पर, लज्ज़ा का अनुभव हुआ और बोली -नहीं ,नहीं मैं ये नहीं कहना चाहती थी।
तो तुम क्या कहना चाहती थीं, कि कहीं मैं तुम्हारे प्रेम में तो नहीं पड़ गया ,उसकी बात सुन कामिनी उठ खड़ी हुई और बोली -आप ग़लत समझ रहे हैं।
ओह !तो अब मैं 'तुम 'से 'आप' पर आ गया। वैसे एक बात बताऊँ ,उसने इस तरीक़े से कहा कि कामिनी के क़दम वहीं ठहर गए और कान उसी की आवाज़ सुनने को आतुर थे। वो बोला -ये सब जो तुमने सोचा और मैंने कहा ,वो सब सही है।
कामिनी असमंजस में पड़ गयी- कि क्या सही है ,क्या मैंने सोचा ?उसने निहाल की तरफ देखा। वो मुस्कुरा कर उसे देख रहा था और बोला -ये जो बात तुम्हारे मन में आई ,वो सही थी।
मैंने जब तुम लोगों को कार्यक्रम बनाते देखा ,तभी मैंने भी जाने का निश्चय कर लिया था। वहां जाकर देखा तो लगा ,अब तक जो नमक खाया है ,उसकी क़ीमत चुकाने का समय आ गया।
न समझते हुए कामिनी बोली -क्या तुम किसी भी बात को सीधे -सीधे नहीं कह सकते ?घुमा -फिराकर कहना आवश्यक है। कौन -सा नमक खाया ?वो हँस पड़ा ,उसको हँसते हुए ,आज कामिनी ने पहली बार देखा है ,अन्यथा तो वो शांत ही रहता है। तुम्हारे साथ खाना नहीं खाया ,उस'' नमक का कर्ज़ ''उसकी बातें कुछ समझी कुछ नहीं। पता नहीं ,वो क्या कहना चाहता है ?किन्तु उससे बातें करके अच्छा लग रहा था। बोली -पापा कह रहे थे ,कि जिसने इतनी बहादुरी से ये काम किया ,उनकी बेटी को बचाया ,उसका धन्यवाद तो बनता है ,कभी उसको हमसे मिलवाना।
मन ही मन निहाल हँसा और गुनगुनाने लगा -शायद मेरी शादी का ख़्याल दिल में आया है इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है।
निहाल गुनगुनाता हुआ चला गया और कामिनी उसे जाते देखती रही और सोच रही थी कि इसने कोई जबाब नहीं दिया। क्या वो मेरे घर आयेगा ?