कामिनी अपनी सास के मायके जाती है और वहां किसी पहुंचे हुए ,साधु या पंडितजी का पता पूछती है किन्तु किसी को भी उनके विषय में नहीं मालूम। वो उस गांव में घूमती है ,जहां उसे अपनी सास की बहादुरी ,ज़िद्दीपन और क्रोधी स्वभाव के चर्चे सुनने को मिलते हैं। तभी उसे वही बाबा दिखते हैं ,जिन्हें वो कई बार अपने घर के बाहर देखती है और उसकी सास भी उनकी मदद करती है। कारण उनका बेटा ,बहुत दिनों से गायब है और उसका किसी को भी नहीं मालूम। अब आगे -
कामिनी अपने मन में ,अपने सास के प्रति विचारों पर सोचने पर मजबूर हो जाती है कि जितनी बुरी वो दिखती हैं, उतनी हैं नहीं। अगले दिन ,अपने घर आ जाती है।घर आकर निहाल से कहती है- चलो ,हम कहीं बाहर घूम आते हैं। निहाल बोला -कहाँ जाना चाहती हो ?कामिनी ने पहले ही सोच रखा था ,बोली -जब अपनी पुरानी यादें ताज़ा करनी हैं तो क्यों न उसी स्थान पर चले ,जहाँ अपने विवाह के पश्चात गए थे। वो उन्हीं स्थानों पर पुनः जाना चाहती थी ,ताकि उसे पता चल सके कि उस पर जो ये कुदृष्टि का असर हुआ है ,वो कहाँ से हुआ ?निहाल बोला -तुम थोड़े दिन रुको !मैं मम्मी से बात करके बताता हूँ।
एक दिन , अंगूरी देवी उससे बताती हैं -बहु परसों हमें गांव जाना है ,तैयारी कर लेना। जी मम्मी , उसने सोचा -जब मम्मी जी गाँव चली जायेंगी ,तब हम भी बाहर घूमने चले जायेंगे ,फिर पूछा -कितने दिनों के लिए जा रही हैं ?अंगूरी देवी उसे देखते हुए बोली -शायद तुमने ध्यान से नहीं सुना ,मैंने कहा था -कि मैं ही नहीं ,तुम लोग भी साथ चल रहे हो। एकाएक अपनी उम्मीदों पर पानी फिरते देखकर, कामिनी बोली -हम क्यों ?
अंगूरी देवी बोलीं - जब से तुम आई हो ,तुम्हारे विवाह को चार बरस होने को आये, तब से एक बार भी हवेली नहीं गयीं। मैं सोच रही थी -परसों अमावस्या है ,हवेली भी देख लेना और देवता पर प्रसाद भी चढ़ा देना।
पहले तो कामिनी का मन नहीं किया कि इससे पहले कभी नहीं कहा और अब मैं घूमने जाना चाहती हूँ तो अब गांव बुला रही हैं। तभी मन में विचार आया ,-एक बार गांव जाकर भी देख लेते हैं ,शायद वहीं कुछ काम की चीज़ मिल जाये और वो ख़ुशी -ख़ुशी तैयार हो गयी।
तीसरे दिन वो लोग हवेली के लिए रवाना हो गए ,गाड़ी बड़ी तेजी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी। गाड़ी से उतरने पर ,कामिनी को अपने विवाह का वो दिन स्मरण हो आया ,जब वो पहली बार यहां उतरी थी। इतना स्मरण होते ही ,वो छोटी बच्ची भी याद आ गयी। आज उसे कहीं भी जाने से रोका नहीं गया ,वो उसमें कहीं भी उठ -बैठ सकती थी और पूरी हवेली घूम सकती थी। उसे अफ़सोस होता है, कि इन तीन -चार बरसों में ,एक बार भी उसने आने का सोचा ही नहीं। न ही ,इन लोगों ने कहा। आज आई है ,तो पूरी हवेली घूमेगी। शुरुआत कहाँ से की जाए ?तभी उसे उस बच्ची दीपा की याद आती है ,वो ही तो मेरी इस हवेली में पहली सखी थी ,और अपनी सास से कहती है -,क्या अब वो बच्ची नहीं आएगी ?
अंगूरी देवी हंसती हैं ,बोलीं -थोड़ा आगे बढ़ो ,वो अब बच्ची नहीं रही इतने दिनों में ,अब वो सयानी हो गयी है ,वैसे मैंने उसे बुलाने के लिए भेजा है। कामिनी ने पहले तो सोचा ,'हवेली देख लेती हूँ ,तभी दीपा का ख़्याल आते ही रुक गयी। उस बेचारी बच्ची ने भी तो हवेली नहीं देखी थी ,दोनों साथ ही घूम लेंगे। अकेले तो मैं भी बोर हो जाऊंगी। कामिनी कपड़े बदल कर ,जैसे ही बाहर आई ,एक लड़की उसके सामने खड़ी थी। उसने साधारण सा सलवार -सूट पहना था ,बाल अच्छे से बनाये हुए थे। इस साधारण वेशभूषा में भी उसका सौंदर्य दमक रहा था। कामिनी उसे देखकर बोली -जी कहिए , वो लड़की मुस्कुराई और बोली - भाभी !मैं दीपा।
ओह !उसे देखकर वो बुरी तरह चौंकी ,बोली -तुम इतनी जल्दी बड़ी हो गयीं। तो क्या आपने समझा था ?मैं अब भी वो ही बच्ची रहूंगी , कहकर हँस दी। वो तो अब कामिनी के बराबर आ रही थी। कामिनी अपनी ही सोच पर झेंप गयी।
कामिनी ने अपनी सास से पूछा -इस हवेली में ,तक़रीबन कितने कमरे होंगे ?
करीब तीस -पैंतीस होंगे ,वैसे मैंने कभी गिने नहीं ,न ही सभी कमरों में गयी हूँ ,जिसमें काम पड़ता है उसी में जाती हूँ। कामिनी को पहले की तरह हवेली देखने का उत्साह बढ़ गया और वो दीपा का हाथ थामकर ,आगे बढ़ चली। कुछ कमरे साफ -सुथरे ,तो कुछ कमरों में ताले लगे थे। कुछ की हालत जर्जर हो रही थी। हो भी क्यों न ?अब यहां कोई रहता नहीं और बच्चे बाहर रहते हैं। देखभाल करे भी ,तो कौन ?बहुत खर्चा आएगा। ये ही हवेली शहर के आस -पास होती तो इसमें होटल बन जाता और इसका किराया भी बहुत आता। उसने सोचा -जब तक सास हैं ,आ रही हैं, फिर कौन इसकी देखभाल करेगा ?कई दरवाजे बंद भी थे ,शायद एक दरवाजा ,तहखाने का था ,उस पर भी ताला लगा था। उसकी उत्सुकता बढ़ी ,यहाँ क्या हो सकता है ?उसने सोचा -एक बार चाबी मांगकर देख लेती हूँ, फिर सोचा ,पुरानी वस्तुएं होंगी उसे वहां घूमते- घूमते लगभग दो घंटे हो गए होंगे। तभी दीपा बोली -चलो भाभी ,पीछे के बगीचे में भी चलते हैं। हालाँकि अब वो थकावट महसूस कर रही थी। बोली -चलो !पहले तो वो थोड़ी देर वहां जाकर बैठ गयी फिर टहलने लगी। जैसे ही वो उस कोने वाली कोठरी की तरफ गयी। उसके हाथ में बंधा ,ताबीज़ खुलकर गया। पहले तो उसका ध्यान ही नहीं गया और जब नीचे पड़ा देखा तो वो आश्चर्यचकित रह गयी। पहले भी जब वो इधर आई थी तो उसे कुछ अच्छा नहीं लगा था और उस रात का स्वप्न भी उसे स्मरण हो आया ,अब तो उसके दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे ,हो न हो ,इस कोठरी में ही कुछ है।
वो दीपा का हाथ पकड़कर तेजी से दौड़ी ,इससे पहले कि दीपा कुछ समझ पाती कामिनी उससे बोली -अब तुम अपने घर जाओ !कहकर उसने जल्दी से मम्मी को फोन किया -हैलो !उधर से आवाज़ आई। मम्मी ,मैं कामिनी। उसकी आवाज़ सुनकर वो बोलीं -हाँ कहो ,कैसी हो ? मम्मी ,मैंने हालचाल बताने के लिए फोन नहीं किया ,कामिनी की आवाज में तेजी थी।
वे शायद सोकर उठी थीं , वे अलसाई आवाज़ में बोलीं -तो फिर किसलिए किया ?वहां सब ठीक तो है। कामिनी बोली -मम्मी ,मैं अपने गांव की हवेली से ,आपको फोन कर रही हूँ। वे बोलीं -तुम वहां कब गयीं ?
आज सुबह ही आई हूँ किन्तु इन बातों का समय नहीं है। मैं आपको ये बताना चाहती हूँ कि पंडितजी ने जो ताबीज़ मुझे दिया था। उसकी बात बीच में ही काटकर बोलीं -हां ,उसका क्या हुआ ?वो ही तो बता रही हूँ ,ध्यान से सुनो !मैं जब अपनी हवेली के पीछे वाले बग़ीचे में गयी तो वहां एक कोठरी है ,उसके नज़दीक जाते ही वो ताबीज़ ,खुलकर गिर गया। कामिनी की बात सुनकर ,उसकी मम्मी का आलस्य भाग गया और बोलीं -क्या तुम इससे पहले भी उधर गयी हो ?हाँ ,मैं जब ब्याहकर आई थी ,अकेली थी ,तब मैं उस बच्ची के साथ यहाँ खेली थी कामिनी ने बताया।
सत्यनाश !कहकर उन्होंने माथा पीट लिया और बोलीं -अवश्य ही वहां कुछ है ,तुमने अपनी सास से बात की। कामिनी बोली -उनसे पहले बात की थी, तब वो कहने लगीं -''कि मैं इन सब बातों को नहीं मानती।''अब मैंने आपको इसीलिए फ़ोन किया है ,ताकि आप पंडितजी से मिलकर ,उन्हें इस बात की जानकारी दे दो। और अब वो बतायेंगे,- कि आगे क्या करना है ? कहकर कामिनी ने फोन रख दिया। तभी उसे कुछ याद आया, और फिर से फोन लगाने लगी -हैलो !दीदी ,कैसी हो ?मैं ठीक हूँ ,उधर से उसकी जेठानी वृंदा ने जबाब दिया। दीदी ,मैं आपसे पूछना चाह रही थी- आपने अपनी हवेली के पीछे का बगीचा देखा है। हाँ ,क्या हुआ ?उसने पूछा। कुछ नहीं ,आप मुझे ये बताइये ,आप उसमें पहली बार कब गयीं ?
वृंदा सोचते हुए बोली -एक बार जब ,''आदि'' एक या डेढ़ बरस का रहा होगा ,तब वो खेलते हुए ,उधर चला गया था ,तब उसे ढूंढते हुए ,मैं उधर गयी थी। अब तो कामिनी को पूर्णतः विश्वास हो गया कि इसी कोठरी के आस -पास या उसके अंदर कुछ तो है।