Haveli ka rahsy [part 13 ]

कामिनी के विवाह को तीन बरस हो जाते हैं ,किन्तु उसे औलाद का सुख नहीं मिलता। संतान प्राप्ति के लिए ,वो किसी पंडित जी को हाथ दिखाती है ,जिससे उसे पता चलता है, कि किसी की कुदृष्टि उसकी  कोख़ पर पड़ी है। अब वो उसके हल के लिए किसी पहुंचे हुए , साधू  से मिलना चाहती है ,तभी उसके मन में आता है कि क्यों न अपनी सासूमाँ यानि अंगूरी देवी के पंडित जी[जो अब नहीं रहे ] के वंशज में से ही किसी से बात की जाये। इसके लिए वो उनके गांव जाती है। रास्ते में उसे अपनी सास के चचेरे भाई मिल जाते हैं किन्तु उसके विषय में किसी को भी नहीं पता। वो उसे अपने घर ले जाकर छोड़ देते हैं।अब आगे -


घर की सभी महिलायें ,उसे देखती हैं,और हंसकर कहती हैं , कि उसने क्या पहना है ?और उसे गांव के हिसाब से ही अपने कपड़े देती हैं ,और कहती हैं -माना  कि तुम पढ़ी -लिखी हो ,शहर में  रहती हो किन्तु ये पहनावा शहर में ही चलेगा यहां गांव में नहीं। जैसा ''देश वैसा भेष ''कहकर उसे अपने कपड़े देती हैं।  वे  उसका परिचय जानना चाहती हैं ,वो अपना सही परिचय मायके का तो देती है किन्तु ये नहीं बताती- कि मेरी ससुराल कहाँ है ,या किसके साथ  उसका विवाह हुआ ?खाना खाते -खाते ही पूछती है -यहां कोई ऐसे पंडित जी थे जो बहुत ही अन्तर्यामी थे। उनमें से किसी को भी इसकी जानकारी नहीं थी। शाम के समय ,उनके घर की एक लड़की गांव दिखाने के उद्देश्य से उसके साथ जाती है। 
वो उसे अखाड़ा भी दिखाती है ,और  उसकी सास [अंगूरी देवी ]के घर भी ले जाती है।वहां उनके भाई -भाभी ,भतीजे सभी थे। बातों ही बातों में जब 'अंगूरी देवी ' का ज़िक्र आता है तो सब शांत हो जाते हैं। बात को संभालने के लिए ,उनकी भाभी कहती है -बहन जी, की  अखाड़े में बहुत दिलचस्पी थी। वो तो कुश्ती के दांव -पेच भी जानती थीं किन्तु हमारे यहां ,मर्दों को ही अखाड़े में जाने की इजाज़त थी। वे स्वभाव से थोड़ी गुस्सैल थीं और ज़िद्दी भी ,उनके स्वभाव के कारण ,हर कोई उन्हें  नहीं चाहता था। कामिनी मन ही मन सोच रही थी ,उन्हें मैं नहीं जानूँगी तो ,और कौन जानेगा ?उनकी भाभी बोली -  बचपन में पिता की लाड़ली थी किन्तु उम्र के साथ यही लाड़ -प्यार ,जब उनकी इच्छा  पूर्ण न होती तो ज़िद में बदल गया। 
            आप तो जानती ही हैं ,हमारे यहाँ लड़के  और लड़कियों के  काम के दायरे निश्चित कर दिए  जाते हैं। वो भी कुछ करना चाहती थीं, किन्तु जब उनकी इच्छाओं पर बंदिशें लगीं तब उनका जिद्दीपन क्रोध में बदल गया।जो ठान लेती थीं ,करके मानती थीं ,तब उन्हें नहीं लगता था कि वो एक लड़की हैं। कामिनी बोली -उनके विषय में कुछ और बताओ -तब वो एक किस्सा बताने लगीं -एक बार कुछ लड़कों को पता चला कि गांव से बाहर एक गुफा है और उसमें कुछ प्रेत -आत्माएं रहती हैं और शर्त लग गयी कि जो भी गुफा के इस रास्ते से होकर ,दूसरी तरफ से बाहर आ जायेगा ,उसे ही अपने गांव का सबसे '' बहादुर व्यक्ति '' माना  जायेगा। 
इस तरह गांव के आठ लड़के थे ,जो उस गुफा की तरफ बढ़े। गांव में किसी को भी इस विषय में मालूम नहीं था। पहले तो योजना बनी, कि एक -एककर अंदर जायेंगे और उन्होंने प्रयत्न भी किये। किन्तु थोड़ा आगे जाकर सबकी हिम्मत जबाब दे गयी। तब सबने फैसला किया कि एक साथ ,इकट्ठे होकर जायेंगे। गुफ़ा में एकदम घुप्प अँधेरा था। दो  ने हाथ में मशाल ली ,एक आगे और एक पीछे। किसी को भी नहीं पता था कि उस गुफा में कोई जानवर है या फिर भूत -प्रेत। उनके हाथ में हथियार भी थे। वो लोग धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगे। गुफा में एक तरफ से पानी की आवाज आ रही थी ,शायद कहीं  से पानी उसके अंदर आ रहा था ,वो लोग आगे बढ़ते गए। उनके मन में तो भूत बैठा था ,अँधेरे में अपनी ही परछाई को भूत समझ बैठते। गुफ़ा के  अंदर जाकर देखा तो , गुफा  और  गहरी हो गयी और  वे सब  धीरे -धीरे नीचे उतरने लगे। एक ने कहा भी, कि इस गुफा का कोई और छोर पता नहीं चल पा  रहा है ,नीचे उतरकर वहीं फँस गए तो क्या होगा ?और ऊपर कैसे आयेंगे ?अब उन्हें भूत का भी कोई  ड़र नहीं था किन्तु अपने खो जाने का भय अवश्य था। वहाँ फ़िसलन भी ज़्यादा थी ,आगे भी पता नहीं कोई जानवर या भूत उनका इंतजार कर रहा हो सोचकर उनकी हिम्मत ज़बाब देने लगी, और उनमें से एक बोला -भई ,मैं तो वापस जा रहा हूँ। अंगूरी के  भाई भी वापस हो लिए ,तभी पीछे से किसी ने उनका हाथ खींचा और वो फ़िसलकर उस गहराई में रपटते चले गए। उनकी ये हालत देखकर सभी घबरा गए और बाहर की ओर भागे। 

                     सबको ये डर था, कि शायद किसी भूत या प्रेत ने उसे अपनी ओर खींच लिया। सब भागते हुए ,अपने गांव पहुंचे और सभी बड़ों को सारी  बात बताई। गांववालों में कानाफूसी होने लगी -उसे किसी भूत ने ही अपनी चपेट में ले लिया होगा। अब तो शायद ही छोड़ेगा और भी कई तरह की बातें होने लगीं। उनकी माँ तो रोने लगीं -अरे !उसे तो गुफा का भूत निग़ल गया। उन सबकी  बातें सुनकर और अपने भाई को न पाकर ,अंगूरी बोली -मैं अपने भाई को लेने जा रही हूँ। वो बड़ी सी रस्सी लेकर और कुछ जरूरत का सामान लेकर चल पड़ी।अंगूरी का  इतना साहस देखकर , गांव की एक अम्मा बोली -''डूब मरो ,चुल्लू भर पानी में '',एक लड़की इतनी हिम्मत कर रही है और तुम लोग खड़े अभी बातें ही बना रहे हो। ''उन लड़कों में से भी कुछ लड़के अंगूरी के साथ हो लिए और गांव के कुछ बड़े भी उनके साथ चल दिए। अंगूरी से बोले -तुम यहीं रहो ,हम जाते हैं ,किन्तु वो मानी नहीं , साथ में गईं। 
             वहाँ घुप्प अँधेरा था ,मशालें जलाई गयीं। उन लड़कों ने मार्गदर्शन किया। अब तो इतने लोग साथ में थे ,हाथ में लाठी और भी हथियार थे। अंगूरी सबसे आगे थी ,गुफ़ा में जहां से उनका भाई गिरा था ,उसे आवाज़ लगाई , उधर से कोई आवाज़ नहीं आई  ,सबको लगा -''शायद कोई जानवर या कोई भूत उसे ले गया।'' जैसे ही सब वापिस चलने के लिए तैयार हुए ,तभी वो बोली-मैं नीचे जाती हूँ ,सब बोले इस लड़की का दिमाग़ खराब हो गया है। लड़के की जान तो गयी ,इसकी भी जाएगी।तब उसने तरक़ीब बताई ,मेरी कमर में रस्सी बांध दो और नीचे लटका दो। किसी ने भी ऐसा करना नहीं चाहा तब उसने स्वयं ही अपनी कमर में रस्सी बाँधी और नीचे  उतरने लगी। लोगों ने उस रस्सी का दूसरा छोर पकड़ लिया। एक -दो जगह वो फ़िसली भी किन्तु रस्सी के सहारे ,सम्भल भी  गयी। 
             उसने नीचे उतरकर चारों ओर देखा ,उसे एक तरफ ,अपना भाई बेहोश पड़ा मिला। उसने अपने भाई को भी रस्सी से बाँधा और खींचने को कहा। बाद में पता चला, कि ये चोट लगने से  और ड़र कर बेहोश हो गए थे। इनके पिता ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी, किन्तु वे अपने भाई को सही -सलामत लेकर आईं। तब उनके साहस का सबने'' लौहा माना।''
उनकी बातें सुनकर ,कामिनी आगे भी गांव में घूमने चल दी। कुछ दूर जाने पर ,उसे वही व्यक्ति दिखाई दिया जो उसके विवाह पर उनकी हवेली आया था ,और पिछली दीपावली पर भी आया था और उसकी सास ने उसे कुछ पैसे दिए थे। कामिनी बोली -ये व्यक्ति कौन है ,वो बोली -ये तो रामदास काका हैं  ,इनका बेटा यहीं अखाड़े में पहलवानी करता था। हमारी बुआ पर भी मरता था किन्तु कई बरस हो गए ,एक बार गया ,तो वापिस नहीं आया। 
इनका बेटा कहाँ गया ?वो ही तो पता नहीं चला। कामिनी को दुःख हुआ ,फिर सोचा -इनसे ही कुछ बातें कर लेते हैं। उसने उस लड़की को एक जगह बैठने को कहा और स्वयं उनसे मिलने चल दी। राम -राम काका ,उसने अपनी बूढ़ी आँखों से ,ऐनक के गोल शीशों में से झाँककर देखा ,बोले -तुम कौन हो ?कामिनी बोली -मैं लिखती हूँ ,मैं आपके विषय में जानना चाहती हूँ। वो मुस्कुराकर बोले -हमारी ज़िंदगी में ,जानने को ऐसा क्या है ?कामिनी बोली -मैंने सुना है ,आपका एक बेटा भी है ,जो पहलवानी करता था। बूढ़े की आँखें चमकने लगीं -बोला -वो इस अख़ाडे का सबसे अच्छा पहलवान था। 
अब कहाँ है वो ?कामिनी ने फिर से पूछा। पता नहीं ,कहाँ चला गया कहकर उसकी आँखें नम हो गयीं। 
क्या कभी भी उसने मिलने की कोशिश भी नहीं की ,किसी को भी नहीं बताया कि वो कहाँ जा रहा है ?इस उम्र में अकेले छोड़ गया। 
कह रहा था -ज़िंदगी बनाने जा रहा हूँ। आशीर्वाद दीजिये कि सफल होऊं। उसके बाद न ही कोई चिट्ठी -पत्री ,न ही उसका पता। 

तब कामिनी ने सोचा -इनकी मदद के लिए ही ,मेरी सास उन्हें थोड़े पैसे दे देती होंगी। आपके कमाने वाला तो कोई नहीं तब घर का खर्चा कैसे चलता होगा ? 
बोला -मेरा खर्चा ही क्या है ?पत्नी रही नहीं ,एक बेटा था ,वो भी न जाने कहाँ जाकर बस गया ?
क्या मतलब ?ये बात अंगूरी ने,गांव में , किसी को भी बताने के लिए मना की है ,उससे कुछ गलती हो गयी और वो छिपा हुआ है ,वहीं से अंगूरी के हाथ थोड़े पैसे भिजवा देता है ,उनसे ही मेरा ख़र्चा चल जाता है। अब तो पता नहीं, कितने दिनों का हूँ  ?एक बार उसे देख लेता ,तो मन को सुकून मिल जाता कि मेरा बेटा ठीक है। पता नहीं ,उससे क्या गलती हो गयी ?जो आकर अपने बाप से भी नहीं मिल सकता।
मन ही मन कामिनी को अपनी सास पर गर्व हुआ कि वो बहादुर होने के साथ ,दयालु भी हैं। झूठ बोलकर ही सही ,इनकी सहायता तो कर रही हैं। उसकी अपनी सास के प्रति सोच बदल रही थी किन्तु ये बात सोचने की है कि इनका बेटा कहाँ गया ?
यहां आकर उसे कोई साधू बाबा तो उसे नहीं मिले किन्तु उस व्यक्ति का भेद वह अवश्य जान गयी कि वो उन्हें पैसे उनकी मदद के लिए देती थीं। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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