कामिनी के विवाह को तीन बरस हो जाते हैं , उसकी सास उससे बताती है- कि किसी साधु के आशीर्वाद से उनके बच्चे होते हैं। उनकी बात सुनकर ,कामिनी को भी थोड़ी उम्मीद होती है ,कि मैं भी किसी साधु या महात्मा का आशीर्वाद पाकर ,माँ बन सकती हूँ। इसके लिए ,वो अपनी मम्मी से मदद लेती है। तब उसे पंडितजी बताते हैं- कि तुम्हारी कोख़ को किसी ने बाँधा है ,तब कामिनी की मम्मी को उसकी जेठानी पर शक़ जाता है-' कि कहीं उसी ने तो ये काम नहीं किया ,किन्तु कामिनी को उनसे बात करके ऐसा कुछ भी नहीं लगा ,वरन वो तो और परेशान हो गयी ,ये सोचकर- शायद ये भी कुछ इसी तरह की परेशानी से जूझ रही हैं। वो अपनी मदद के साथ -साथ अपनी जेठानी की मदद भी करना चाहती थी। वो उनसे पूछती है- कि क्या आप कभी ऐसे स्थान पर गयी हैं ,जहाँ जाना ठीक न हो ,उसे ऐसा कोई भी स्थान स्मरण नहीं होता। वो कहती है -हम घरेलू महिलाएं अपनी ससुराल और मायके के सिवा जाते ही कहाँ हैं ? अब आगे -
लौटते समय निहाल ,कामिनी से बोला -आज तो भाभी से बड़ी घुट -घुटकर बातें कर रही थीं।
कामिनी बोली -ये हमारी देवरानी -जेठानी की बातें हैं।
वो बोला -ऐसा क्या हो गया ?मुझे भी कुछ बताओगी -कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है ?
कामिनी बोली -मैं बस उनसे ये पूछना चाहती थी- कि उनके आगे बच्चे क्यों नहीं हुए ? क्या कारण रहा ? निहाल ने उसकी बातों में दिलचस्पी लेते हुए ,कहा -क्या उन्होंने कुछ बताया ?
हाँ !यही कि रात को वो डर जाती थीं ,कोई न कोई भयानक सपना देखतीं और सुबह को उनकी तबियत बिगड़ जाती थी। क्या ये सब बताया ,'भाभी ने ? हाँ , कामिनी ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
कमाल है ,इतने दिनों से वो हमारे साथ रह रही हैं ,आज तक हमें पता नहीं चला ,न ही किसी को बताया निहाल अफ़सोस करते हुए बोला।
कामिनी बोली -तुम तीनों में से किसी ने भी, ये जानने का प्रयत्न किया -कि उन्हें क्या हो रहा है ?क्या महसूस होता है या उन पर क्या बीत रही है ?आदमी बताएगा भी ,तो उसे ही ,जो उसे समझने का प्रयत्न करेगा। बस दूसरे पर ज़बरदस्ती अधिकार जताना आता है किन्तु जो व्यक्ति तुम्हारे सुख -दुःख में तुम्हारे साथ है ,उसके प्रति भी, तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं।
तुम ये सब उनके लिए कह रही हो ,जो तुम्हें ही पसंद नहीं करतीं ,जो तुम्हारी जगह अपनी मौसेरी बहन को लाना चाहती थीं। निहाल ने कामिनी की बातों के बदले ,उससे ही प्रश्न पूछ लिया।
कामिनी बोली -तुम लोगों के साथ रहकर, तुम जैसी ही बन गयीं, किन्तु कहीं कोने में उनका स्वार्थ भी था कि उससे विवाह करा दूंगी तो इनमें कोई मेरा अपना भी होगा, जो मेरे साथ होगा या मेरे साथ खड़ा होगा। किन्तु ये उनकी गलतफ़हमी थी ,कोई भी बहन का रिश्ता हो एक ही घर में आ जाते हैं तो वो बहन नहीं रह जातीं वरन उस रिश्ते में आ जाती हैं जिस रिश्ते को वो जी रही होती हैं।
उसकी बातें सुनकर निहाल बोला -आज तो बड़े दार्शनिकों की तरह बातें कर रही हो ,इससे पहले तो मैंने तुम्हें कभी इस तरह की बातें करते नहीं सुना।
कामिनी थोड़ा ''टशन 'में आकर बोली - 'ये जीवन भी एक पाठशाला है , समय और परिस्थितियां बहुत कुछ सीखा देती हैं। ''और वो हंस देती है।
अगले दिन ,वो अपनी मम्मी को फोन करती है -हैलो मम्मी !कल मैं अपनी जेठानी से मिली और वृंदा ने जो भी बताया ,वो सब अपनी मम्मी को बता दिया और बोली -एक बार ,ये सभी बातें पंडितजी को भी बताना ,तब पूछना ,वो क्या कहते हैं ?मुझे आप फोन करके बता दीजियेगा।
अगले दिन मम्मी का फोन आया -कि अवश्य ही कोई बात है ,इन परिस्थितियों को देखते हुए तो लगता है ,वो उसका बेटा भी न जाने कैसे बच गया ?अब तो कामिनी को पूर्ण विश्वास हो जाता है कि अवश्य ही किसी ने टोना -टोटका या फिर काला जादू किया है। शुरुआत कहाँ से की जाये ?
अगले दिन कामिनी अपनी सास से पूछती है -मम्मीजी ,गांव में कोई ऐसा पेड़ या जगह है ,जहां किसी भूत -प्रेत का साया हो। अंगूरी देवी बोली -ये तुम कैसी बातें कर रही हो ?वहां ऐसा कोई स्थान नहीं है। तुम ये सब , कब से इन चक्करों में पड़ गयीं ? आजकल, कौन इन बातों को मानता है ?तुम्हारी ये सोच कब से हो गयी ?जब से आपने मुझे बताया- कि किसी पंडित के प्रसाद खाने से ,ये दोनों भइया हुए। कामिनी ने बताया।
हाँ ,मैंने कहा था, किन्तु ये भूत -प्रेत को मैं नहीं मानती कहकर वो चुप हो गयीं।
कामिनी बात बनती न देखकर ,पूछती है -मम्मी जी ,आपके जो वो पंडितजी थे ,वो कहाँ के थे ?
अंगूरी देवी उसकी तरफ देखकर बोली -क्या मतलब ? कामिनी - मैं ये पूछना चाह रही थी कि इतने पहुंचे हुए ,पंडित जी आपको कहाँ मिले थे ?अंगूरी देवी लापरवाही से बोलीं -और कहाँ मिलते ?मेरे मायके के ही पंडित जी थे।
तब तो उनका बेटा या कोई और होगा जो उनका कार्यभार संभाल रहा होगा ,कामिनी ने प्रश्न किया।
मुझे क्या पता ?मैं तो अब बहुत दिनों से गयी ही नहीं ,कहकर वो बाहर घूमने के लिए चली गयीं।
कामिनी ने सोचा -हो न हो ,मम्मी जी के गांव में जाकर ही पता करना पड़ेगा ,किन्तु किसी को पता भी न चले। और एक दिन अपने घर जाने का बहाना करके, वो अपनी सास के गांव पहुंच गयी। वहां उसे कोई जा नता नहीं था ,न ही किसी ने देखा था। वो बस से उतरी ,और इधर -उधर देखा।अब उसके सामने प्रश्न था कि कहाँ रुका जाये ?तब किसी राह चलते से पूछा -भइया !क्या यहां कोई ठहरने की जगह है ?
अनजान व्यक्ति -मैडम ये कोई शहर है ,यहां तो सब अपने रिश्तेदारों के घर ही रुकते हैं ,आप यहां किस कार्य से आई हैं ?या कोई रिश्तेदार है ,यहां ?
कामिनी अपनी पहचान छुपाकर रखना चाहती थी ,बोली -कोई रिश्तेदार तो नहीं है ,बस गाँवों के ऊपर लेख लिखना है ,इसीलिए यहां रहकर ,यहां के लोगों पर उनके रहन सहन उनकी सोच ,उनके सुख -दुःख को समझना और महसूस करना चाहती हूँ।
अच्छा आप लेखिका हैं ,अनजान व्यक्ति ने उसके मंतव्य को समझते हुए कहा।
मेरा नाम' शिव' है ,मैं यहाँ के प्रधान जी का बेटा हूँ। उसने अपना परिचय दिया और बोला -आप मेरे साथ चलिए ,हमने बाहर से आने वालों के लिए अलग जगह बना रखी है ,आप उसमें ठहर जाइये ,अभी वहाँ कोई नहीं है।
कामिनी उसका आशय नहीं समझी और बोली -बाहर से आने वालों के लिए ,क्या और लोग भी आते रहते हैं ?
जी !सरकारी अफसर किसी भी काम के लिए आ जाते हैं ,हमारे गांव का अखाडा भी प्रसिद्ध है ,कभी -कभी अख़ाडे के लिए भी आ जाते हैं।
तभी कामिनी को ध्यान आया ,मेरी सास के पिता का भी तो अखाड़ा था और निहाल ने भी उनसे कुछ ग़ुर सीखे थे। वो बोली -ये अखाड़ा किसका है ? ये अखाड़ा हमारा ही समझो ,चौधरी'' तेतराम सिंह ''का है ,जो मेरे ताऊ जी थे।
कामिनी ने ,अंदाजा लगाया -मेरी सास के पिता का भतीजा ,यानि मेरी सास का चचेरा भाई ,इससे तो काफ़ी जानकारी मिल सकती है
कामिनी बीच -बीच में फोटो भी खींच रही थी ,ताकि उसे लगे कि ये अपना कार्य भी करती जा रही हैं। वो बोली -उस जगह तो बाद में ले जाना , पहले अपने घर ही ले चलो ,ताकि तुम्हारे घर की महिलाओं से भी मिल सकूँ। उसे यक़ीन था , कि कुछ न कुछ उसे इस परिवार से जानकारी मिल ही जाएगी।
शिव बोला -ये भी कोई कहने की बात है ,मैं तो आपको वहीं ले जा रहा था।
Tags:
story