कामिनी के विवाह को तीन बरस हो गए अब उसकी सास उससे ,घर के वारिस की मांग करती है। और उसे धमकी भी देती है ,यदि शीघ्र ही उसकी गोद नहीं भरी तो वो निहाल का दूसरा विवाह करने का सोचेंगी। ये बात सुनकर कामिनी परेशान हो जाती है और निहाल से भी बताती है। उसकी बात सुनकर निहाल कामिनी को सांत्वना तो दे देता है किन्तु स्वयं भी परेशान हो जाता है।तब उसकी सास [अंगूरी देवी ]ने ये भी बताया -मेरी सास भी मेरे पति का दूसरा विवाह कर रही थीं।
एक दिन कामिनी की सास यानि अंगूरी देवी उससे बताती है -कि उसने भी विवाह के आठ बरस पश्चात ,अपने बड़े बेटे का मुँह देखा था। और ये भी बताया- किसी साधू बाबा के आशीर्वाद से ही ,ये फ़ल प्राप्त हुआ। अब तो कामिनी भी किसी ऐसे पहुंचे हुए ,पंडितजी से या साधु बाबा से मिलने का सोचती ,जो उसकी समस्या का हल निकाल दे। अब आगे -
कामिनीं अपनी मम्मी को फोन करती है -हैलो ,मम्मी ! उधर से आवाज आती है।
हाँ बेटे कामिनी ,अपनी मम्मी को कैसे याद किया ?सब ठीक तो है।
हाँ मम्मी ,किन्तु मेरी सासूमाँ ने एक बात मुझे बताई है ,अब मुझे उस काम में आपकी सहायता चाहिए ,और उन्हें सारी बातें बताती है। अब आप किसी पहुँचे हुए महात्मा या कोई भी हो तांत्रिक वगैहरा ,जो मेरी समस्या का समाधान कर दे।
मम्मी उसे इन चक्करों में पड़ने को मना करती है ,कहती हैं -तुम पढ़ी -लिखी होकर, ये बेफ़िजूल की बातों में मत पडो। तब वो अपनी सास का उदाहरण उन्हें देती है। बच्चे ऐसे आशीर्वाद से या प्रसाद खाने से नहीं होते। कामिनी को बुरा लगता है।
वो अपनी मम्मी से कहती है -आप मेरी मदद नहीं करना चाहती तो मत कीजिये। मुझे थोड़ी उम्मीद जगी है ,उसे तो मत मिटाइये। कहते हैं -जब मानव से कुछ नहीं हो सकता , तब वो ऊपरवाले का सहारा ही देखता है। जब डॉक्टरों ने बताया, कि कोई परेशानी नहीं है ,तो इसे अब भगवान ही ठीक करेंगे। आप नहीं जानती-'' कि मैं रात -दिन न जाने क्या -क्या सोचती रहती हूँ ?कल को उन्होंने ',निहाल' का विवाह कहीं ओर कर दिया तो न ही आप और न ही 'मैं' कुछ कर सकते हैं। आप मेरी सहायता मत कीजिये ,किन्तु मैं अपना प्रयत्न करना नहीं छोडूंगी ,कहकर उसने फ़ोन रख दिया।
उधर कामिनी की परेशानी सोचकर ,उसकी मम्मी परेशान होती हैं और अपने नज़दीक के मंदिर में से पंडित जी से बात करती हैं ,तब पंडित जी कहते हैं -आप उसे बुलवा लीजिये ,मैं कुछ करता हूँ। अगले दिन ही ,कामिनी आ जाती है। पंडित जी उसका हाथ देखते हैं और बताते हैं -तुम्हारे हाथ में संतान सुख तो है।मुझे लगता है -किसी की कुदृष्टि पड़ी है ,जो नहीं चाहता कि तुम्हें संतान सुख मिले। फिर बोले -तुम कहीं ऐसे स्थान तो नहीं गयीं ,जहाँ जाना वर्जित हो। वो कुछ समझी नहीं ,बोली - कैसे स्थान ?मैं कुछ समझी नहीं।
जैसे कोई श्मशान घाट या फिर कोई ऐसा निर्जन स्थान ,जहाँ से लोग कम ही आते -जाते हों ,या फिर किसी देवी -देवता का प्रसाद बोला हो और पूर्ण न किया हो , पंडित जी ने समझाया।
कामिनी ने बहुत सोचा, किन्तु उसे ऐसा कोई स्थान समझ नहीं आया। तब उसे पंडितजी ने एक ताबीज़ दिया और बोले -इसे अपने हाथ में बांधना और किसी को भी कुछ मत बताना ,जब किसी ऐसे स्थान पर तुम जाओगी जो स्थान किसी बुरी आत्मा का होगा या वो वहां निवास करती होगी तब ये ताबीज़ अपने -आप खुलकर गिर जायेगा।
मम्मी ने भी उसे समझाया ,विवाह के पश्चात जिन -जिन जगहों पर गयी हो ,उन पर एक बार पुनः जाना ,तभी पता चल पायेगा कि क्या हुआ ?किसकी बुरी नजर लगी है ?तभी मम्मी ने सोचा -देखो तुम बुरा मत मानना ,एक बात कहूँ ,तुम्हारी जेठानी ने तो कुछ नहीं करवा दिया। उसके भी एक बेटा है और हुए नहीं और तुम कहती भी हो कि तुमसे ठीक से बात भी नही करती।
क्या मम्मी ?आप भी न जाने क्या -क्या सोचने लगती हो ?वो क्यों ऐसा कुछ करेंगी ,अपनी ही परेशानियों में उलझी कामिनी बोली।
वे उसे समझाते हुए बोलीं -देखो ,हमारे साथ परेशानी है ,पंडितजी को लगता है -कि किसी ने तुम्हारी कोख़ को बाँ धा है या किसी की कुदृष्टि पड़ी है। अब ऐसे में तुम्हारी जेठानी के एक ही बेटा है ,शायद वो चाहती हो कि तुम्हारे एक भी न हो। वो तुम्हें वैसे भी पसंद नहीं करती और अपनी मौसी की बहन से निहाल का विवाह करवाने के लिए उसने ही कुछ कर -करा दिया हो।
अपनी मम्मी की बातें सुनकर अब कामिनी को भी लगा कि उस घर में उसका बुरा चाहने वाला और कौन हो सकता है ?मम्मी की बातों दम तो है ,ये हो सकता है।
अगले दिन कामिनी निहाल से कहती है -आज चलो ,दीदी के यहां घूम आते हैं। निहाल बोला -ऐसे ही कैसे ?उन्होंने बुलाया है या कोई काम है। कामिनीं बोली -अपनों से मिलने के लिए ,क्या किसी के कहने का या किसी त्यौहार का इंतजार करना पड़ेगा। जब भी मन करे ,मिल आओ। वो तो तुम्हें पसंद नहीं करतीं ,निहाल ने पूछा। तो क्या हुआ ?हम मिल आते हैं।
कामिनी ,निहाल के साथ ,अपनी जेठानी के घर जाती है ,वैसे तो वो इतनी प्रसन्न नहीं हुई किन्तु औपचरिक तौर पर ,उसने आवभगत की। वो चाय बनाने के लिए रसोईघर में गयी उसके पीछे ही कामिनी भी चली गयी ,बोली -दीदी ,मैं आपकी मदद करती हूँ। कार्य करते हुए बोली -दीदी ,जब ये कार्तिक हुआ ,तब इसके बाद और बच्चे क्यों नहीं हुए ?क्या कोई परेशानी आ गयी थी।
वृंदा बोली -जब कार्तिक हुआ ,सब ठीक था किन्तु इसके पश्चात जब भी मैं गर्भवती हुई ,उसके तीन माह पश्चात ही ,एक औरत मेरे सपने में आती और मेरे ऊपर कुछ उछालती और तेज -तेज हंसने की आवाजें आती और मैं डर जाती , सुबह तक मेरा गर्भपात हो जाता। वृंदा बोली -तुम ये सब क्यों पूछ रही हो ?क्या तुम्हें भी कुछ इसी तरह की परेशानी है ?कामिनी बोली -नहीं दीदी ,बस ऐसे ही पूछ रही थी।
वृंदा ने उसे घूरते हुए पूछा -ऐसे तो कोई नहीं पूछता ,कोई न कोई बात तो होगी। कामिनी को उनकी बात सही लगी किन्तु वो सोच में पड़ गयी कि बताऊं या नहीं ,फिर बोली -दीदी ,आप मुझे एक बात और बताओ क्या आप किसी भी ऐसे स्थान पर गयी हैं ?जहाँ जाना नहीं चाहिए था। यानि ,वृंदा बोली। उसे समझाते हुए ,कामिनी ने जैसे पंडित जी ने उससे बोला ,ऐसे ही बता दिया। सुनकर वृंदा बोली -मैं तो ऐसे किसी भी स्थान पर नहीं गयी। तब कामिनी बोली -मैंने एक पंडितजी को हाथ दिखाया था तब उन्होंने पूछा था। तब मैंने सोचा- आप भी तो अपनी ही हैं और इसी घर की बहु भी, इसीलिए पूछना चाह रही थी कि कहीं आप भी तो ऐसे ही किसी स्थान पर तो नहीं गयीं ,जिस कारण आपको ये परेशानी हुई हो।
कामिनी के इतने अपनेपन को देखकर वृंदा सोचने लगी फिर बोली -हम जाते ही कहाँ है ?या तो अपने गांव हवेली में या फिर अपने मायके। ये बात तो है ,कामिनीं भी सोचते हुए बोली।