रितिका अपने पति से बोली -सुनो जी ,अब तो सिल्क की साड़ियाँ चल रही हैं और मेरे पास तो अब वो ही पुराने फ़ैशन की साड़ियाँ हैं। मुझे सहेली के लड़के के विवाह में जाना है। रितेश भी चाहता है ,कि रितिका को नई और सुंदर साड़ी दिला दे। वो अपना बज़ट देखता है और खर्चों की बाढ़ में ,रितिका की साड़ी उसे बहती नज़र आई। वहां भी ख़ाली हाथ तो ,जा नहीं सकते ,वहां भी कुछ ले जाना है। वो हिसाब लगाता ,सो गया। रितिका ने उसका वो पर्चा देखा और उसमें उसकी साड़ी पूरे महीने का बज़ट हिला रही थी।
रितिका सुबह उठी और घर के सभी कार्य किये। जब उसके पास समय बचा तो उसने अपना संदूक खोला -एक -एक कर सारी साड़ियां देखने लगी ये नीली जब मैंने पहनी थी ,तब रितेश मुझे देखता ही रह गया था। तभी दूसरी साड़ी पर निगाहें गयीं और ये जरी की साड़ी मेरी सास को कितनी पसंद थी ?हर जगह इसे ही पहनाकर ले जाती थी। और ये ग़ुलाबी इसने तो रितेश को ,बाहर जाने से ही रोक दिया था। मैं भी कितनी गुलाबी हो गयी थी और सोचते -सोचते वो अब भी उसी तरह शर्मा गयी।
तभी उसने एक निर्णय लिया और वो बाज़ार गयी और बाज़ार से नई चूड़ियाँ ,नई चमचमाती बिंदी और भी कुछ सामान ले आई। रितेश परेशान था, कि पता नहीं रितिका क्या कहेगी ?मैं तो कुछ इंतज़ाम कर ही नहीं पाया। घर आया तो चुपचाप भोजन किया और लेटकर शून्य में ताकने लगा। कल शादी में जाना है ,वहाँ दो -चार हमारे रिश्तेदार भी आएंगे। रितिका का उदास चेहरा देखकर ,सब समझ जायेंगे कि दामाद, बेटी को खुश नहीं रख पा रहा है। अभी वो लेटकर उसी का इंतजार कर रहा है ,पता नहीं ,आते ही क्या ताना देगी ?किन्तु वो आई ही नहीं ,रितेश को भी नींद आ गयी। सुबह उठा ,समय पर चुपचाप चाय मिल गयी। वो देख और सोच रहा था कि रितिका कुछ कहे ,जब उधर से बड़ी देर तक कोई जबाब नहीं आया तो बोला -मैं सोच रहा हूँ कि शादी में शाम को ही तो जाना है ,तुम एक साड़ी अपने लिए ले ही आओ ,देख लेंगे बजट को भी।
रितिका बोली -आप परेशान न हों ,मैंने सब इंतज़ाम कर लिया ,कैसे ,कब ,क्या किसी से मांग ली ?रितिका मुँह बनाते हुए बोली -आपको मालूम है कि मेरी ऐसी आदत नहीं। रितेश ख़ुशी मिश्रित ,उत्साहित होकर बोला -हमें भी तो पता चले कि हमारी पत्नी ने क्या तैयारी की है ?ये तो आपको चौंकाने के बाद ही पता चलेगा। नई -नई अटकलें लगाता हुआ, रितेश चला गया। सात बरस हो गए उनकी शादी को , रितिका शुरू में कितना सजती थी ?फिर बच्चों में जैसे सजना -संवरना भूल गई ,अब अपने से ज्यादा बच्चों के कपड़े और मेरा ख्याल रखती है। आज उसने कहा भी तो तब ,जब मैं माँ को पैसे भेज चुका किन्तु उनको भेजना भी जरूरी था ,उनके ख़र्चों में तो कटौती नहीं की जा सकती।
शाम को जब रितेश घर पहुंचा तो बच्चे तैयार बैठे थे और वो तैयार हो रही थी ,वहीं से बोली -आपके कपड़े बाहर रखे हैं ,पहन लीजिये। रितेश तैयार होने लगा ,जब वो तैयार होकर खड़ा हुआ तो रितिका सामने खड़ी थी ,वहीं पांच -छः बरस पहले वाली रितिका ,उसकी नजरों के सामने ,जैसे पुराने दिन लौट आये हों , ज़िंदगी में नई रंगत आ गयी हो ,उसे अपने सभी पुराने पल एक ही क्षण में , उसकी आँखों के सामने ,घूम गए ,खुश होकर बोला -तुम तो इस गुलाबी साड़ी में उस दिन भी परी लग रहीं थी। तुम्हें ध्यान है ,मैं तुम्हारे लिए ये साड़ी कब लाया था ?और तुमने आज भी मेरे वो पल जिन्दा कर दिए और वो उसकी ओर बढ़ा ,तभी रितिका ने उसे रोक दिया ,अभी बच्चे भी हैं और हमें जाना भी है। आज वो सबसे सुंदर लग रही थी ,सबसे अलग उसकी चमकीले पत्थर की बिंदिया झिलमिला रही थी। उसके चेहरे की रौनक देखते ही बन रही थी ,उसकी सहेली बोली -क्या बात है ?दूल्हा -दुल्हन से ज्यादा तो तुम चमक रहे हो। क्या दुबारा विवाह करने का इरादा है ?रितेश ,रितिका की तरफ मुस्कुराकर देख रहा था और रितिका आज भी शर्माकर गुलाबी हो गयी।