दिव्यांशा अपने जीवन के स्वर्णिम दिनों में ,नई उड़ान भर रही थी उसके पापा कहते -''यही तो समय है , जीवन में कुछ करने का ,अपने सपनों की नई उड़ान भरने का ,अपने सपनों को साकार करने का। ''अपने पिता की बात सुनकर वो और उत्साहित हो जाती और मन लगाकर मेहनत से पढ़ती। इस वर्ष उसने दसवीं कक्षा में प्रवेश लिया है। माता -पिता अपने बच्चे को आगे बढ़ते देख, उसका हौसला बढ़ाते और प्रसन्न होते। बिटिया सुंदर होने के साथ -साथ ,पढ़ने में होशियार और खेल -कूद में भी सबसे आगे थी। उसका सपना पढ़ -लिखकर डॉक्टर बनने का था। मम्मी -पापा भी ,बिटिया की शिक्षा में किसी भी तरह का व्यवधान न पड़े इसीलिए उसकी हर सुख -सुविधा का ध्यान रखते। एक दिन पापा से बोली -मुझे एक'' ट्यूटर ''की आवश्यकता है।और वो गणित ,रसायन विज्ञान ,और भौतिक विज्ञान की विशेष कक्षा में जाने लगी। शिक्षक भी सभी बच्चों को बड़े मन से पढ़ाते। उसकी होशियारी और पढ़ने की लग्न देखकर ,शिक्षक उस पर विशिष्ट ध्यान देते और उसकी गलतियों को सुधारते ,वो भी अपने मद में पढ़ती और अल्हड़पन में ही रहती क्योंकि उसकी उम्र ही ऐसी थी।
शिक्षक के अपने प्रति विशिष्ट ध्यान देने पर ,अपने को सौभाग्यशाली समझती। आज अध्यापकों का विशेष दिन है यानि ''टीचर्स डे ''.आज की सभी बच्चों की छुट्टी है। सभी ने अपने -अपने कार्यक्रम बनाये ,कोई दोस्तों के साथ 'चलचित्र 'देखना चाहता है ,कोई दोस्तों के साथ घूमने जाना चाहता है। दिव्यांशा के पास ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं था। उसने सोचा -हमारे अध्यापक हमारी शिक्षा के लिए, इतनी मेहनत करते हैं ,विशेषकर मुझ पर ,आज उनका दिन भी है तो क्यों न धन्यवाद के रूप में उन्हें कोई उपहार दिया जाये।
मम्मी -पापा से सलाह करके ,वो अपने अध्यापक के लिए ,एक पैन और डायरी उपहार स्वरूप ले गयी। अध्यापक भी अपने घर में अकेले रहते थे ,दिव्यांशा बड़ी देर तक दरवाजा खटखटाती रही ,उस समय उसके अध्यापक नहाकर आये थे। दिव्यांशा को देखकर प्रसन्न हुए और उसके आने का कारण पूछा। कुछ देर तक बातें हुईं ,तभी अध्यापक उसके लिए और अपने लिए चाय बनाकर ले आये। चाय पीते -पीते दिव्यांशा को कुछ अजीब लगा ,अब अध्यापक उसके नज़दीक थे और उन्होंने गुरु -शिक्षक के रिश्ते को ''कलंकित '' कर दिया। जब तक वो कुछ समझ पाती ,उसके'' पर ''जबरदस्ती क़तर डाले गए। उसकी उड़ान में व्यवधान आ गया। वो अपने कटे पंखों से फड़फड़ाकर रह गयी।