Woh rajni thi [part 1]

कीर्ति और निखिल प्रतिदिन की तरह अपने दफ्तर के लिए काम से निकले ,अब उसका मन शांत था अपने परिवार में  सुखपूर्वक  रहने लगी थी। लौटते समय बच्चों ने अपने सामान की पर्ची उसे थमा दी थी ,थोड़ा घर का सामान भी लाना था। उसने वो पर्ची निखिल को दिखाते हुए पूछा -थोड़ा जल्दी निकलना ,मुझे थोड़ा सामान भी लेना है ,निखिल बोला -आज तो नहीं हो पायेगा ,मेरी तो मीटिंग है ,तुम ऐसा करो ,यदि तुम पहले आकर सामान ले लो ,तो मैं तुम्हें लौटते समय मिल जाऊंगा। ये बात कीर्ति को सही लगी और बोली -ठीक है ,सामान लेकर मैं ,तुम्हें फोन कर दूँगी। अपनी योजनानुसार कीर्ति अपने दफ्तर से निकलकर रिक्शा करके बच्चों का सामान लेने चली गयी। बच्चों का सामान लेने के लिए वो किसी मॉल में जा घुसी ,वहां सेल देखकर वो कपड़े भी देखने लगी ,अभी उसने अपने लिए एक कुर्ती ही उतारी ,तभी उसकी निगाह ऊपर उठी तो वह  हक़्क़ी -बक्की रह गयी। उसके सामने से रजनी निकलकर गयी। वो कुर्ती को उसी स्थान पर रखकर इधर -उधर देखने लगी किन्तु उसे कोई नहीं दिखा। वो थोड़ा आगे बढ़ी किन्तु कुछ हासिल नहीं हुआ,

उसके मानस पटल में उसकी तस्वीर घूमने लगी। हो न हो, वो रजनी ही थी। अब उसका मन कुछ और लेने का नहीं हुआ और उसने आवश्यक सामान लिया और बाहर आ गयी। उसने निखिल को फोन किया और उसका इंतज़ार करने लगी। घर के सामान के साथ ही उसे ध्यान आया कि सब्ज़ी भी ले लेती हूँ जब तक निखिल आएगा। वो वहीं कुछ दूरी पर ठेलेवाले से सब्ज़ियाँ  लेने  लगी। ठेलेवाला बोला -मैडम आपने सब्ज़ी मॉल से नहीं ली। पहले तो कीर्ति बोली -तुम्हें इस बात से क्या मतलब ?मैं कहीं  से भी लूँ ,क्योंकि उसका दिमाग तो रजनी में ही अटका हुआ था। एक मन कह रहा था कि वो रजनी ही है ,दूसरा मन कहता ,वो तो बरसों पहले मर चुकी है। उसके मन में यही उथल -पुथल चल रही थी ,तभी सब्ज़ीवाले से इस तरह बोली। तुरंत ही संभलकर बोली -भइया, मॉल की सब्ज़ी हमारे बजट से बाहर है ,जब हमें वो ही सब्ज़ी यहां सही दामों में मिल रही है तो फिर यहां से लेने में क्या बुराई है ?सब्जीवाला दाँत दिखाते हुए बोला -आप ही ऐसा समझती हैं ,वरना कुछ लोग तो  वहीं से खरीदने में अपनी शान समझते हैं। कीर्ति को वो कुछ बातूनी लग रहा था ,बोली -जल्दी करो ,तभी उसे निखिल की गाड़ी दिखी ,उसने हाथ हिलाकर  इशारे से निखिल को बताया, कि मैं यहां हूँ। 
              निखिल उसके पास ही आ गया और दोनों ने मिलकर सारा सामान गाड़ी में रखा ,जैसे ही वो गाड़ी में बैठी तभी उसे फिर वही  महिला दिखी। वो एकदम से निखिल से बोली -निखिल देखो ,रजनी !वो दरवाज़ा खोलती, उससे पहले ही वो गाड़ी वहां से निकल  गयी। निखिल इससे पहले की कुछ समझ और देख पाता। कीर्ति बोली -वो फिर से निकल गयी। निखिल बोला - ये क्या हरक़त है ?ये कैसा व्यवहार कर रही हो ?कहाँ है रजनी ?मैंने तो किसी को भी नहीं देखा। तुम तो कह रही थीं -कि रजनी मर चुकी थी और उसने आत्महत्या की फिर वो यहां कैसे हो सकती है ?कीर्ति के उदास चेहरे को देखकर ,निखिल विनम्रता से बोला -शायद तुम्हें भ्र्म हुआ होगा ,उसके जैसे मिलते -जुलते चेहरे को देखा होगा। कीर्ति निखिल की बातों पर विश्वास करना चाहती थी किन्तु उसका मन मानने  के लिए तैयार ही नहीं  था कि वो रजनी नहीं कोई और है। घर पहुंचकर उसने ताजे पानी से मुँह धोया ,अपने को  विश्वास दिलाया ,शायद मेरा भ्र्म ही हो सकता है।उसने बच्चों को उनका सामान दिया और स्वयं खाना खाकर आराम करने लगी। उसका मन तो रजनी जैसी  महिला के चेहरे में  खोया   था। उसने अपना ध्यान बटाने का प्रयत्न  किया और मोबाईल लेकर ऐसे ही कुछ भी देखने लगी  किन्तु उसमें मन नहीं लगा तो लेट गयी और आँखें बंद कर लीं उसकी बंद आँखों में ही रजनी की वो बातें ,उसकी नज़रों के सामने घूमने लगीं जब वो उसके घर आती कहती -आंटीजी ,आप कीर्ति को मेरे घर कभी नहीं भेजतीं ,मैं ही आ जाती हूँ। तभी कीर्ति को याद आया  ,उसके घर से पता करना चाहिए  फिर सोचा ,बहुत दिन हुए, गए हुए ,पता नहीं ,उसके माता -पिता भी अब होंगे या नहीं ,वहां जाकर भी किससे मिलूंगी ?वहां किसी को जानती भी नहीं। उसने आप ने विचारों को एक झटका दिया तभी नि खिल भी कमरे में आ गया बोला -क्या तुम अब भी उसी लड़की के विषय में सोच रही हो ?जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। कीर्ति बिना कोई जबाब दिए करवट बदलकर लेट गयी। 

               कीर्ति जब सोकर उठी तो उसने प्रतिदिन की तरह अपने कार्य किये उसके व्यवहार से लगा नहीं कि कल वो परेशान थी। इसी तरह दिन बीतने लगे ,एक माह पश्चात कीर्ति को रजनी की हमशक़्ल फिर से दिखी ,आज रजनी अकेली थी ,उसने उसे देखा और उसके पीछे चल दी ,वो महिला एक गली में चली गयी ,कीर्ति भी उसके पीछे ही थी ,वो जानना चाहती थी आखिर वो महिला कौन है ?उसका एकदम से फोन आया उसकी निग़ाह हटी नहीं कि वो महिला ग़ायब। कीर्ति ने इधर -उधर देखा, फिर एक महिला से पूछा- कि यहां से एक औरत गयी ,क्या तुमने उसे देखा, कि वो किधर गयी ?उसने न में गर्दन हिलाई बोली -मैंने तो किसी को भी यहां से जाते नहीं देखा। कीर्ति परेशान कि इतनी लम्बी -चौड़ी स्वस्थ महिला किसी को नहीं दिखी। तभी एक बच्चा चिल्लाया ,मैडम जी ,आपने कहीं, कोई भूत तो नहीं देख लिया। वो चुपचाप उस गली से बाहर आ गयी। फिर सोचा -कहीं... उसकी बात सही तो नहीं ,वो बार -बार मुझे ही क्यों दिखती है ?क्या वो मुझसे कुछ कहना चाहती है ?कहना चाहती है, तो मुझसे बात क्यों नहीं करती ?तभी उसने अपने विचारों को विराम दिया और सोचा ,भूत क्या दिन में दिखते हैं ?और इतने भीड़ -भाड़ वाले इलाक़े में। उसे अपनी सोच पर हंसी आई -मैं भी न ,उस बच्चे के कहने पर, क्या -क्या सोचने लगी ?शायद मैं ही कुछ ज्यादा सोचने लगी हूँ ,उसने उन सभी बातों को नज़रअंदाज करने का प्रयत्न किया। हो सकता है कोई और ही हो। 
एक दिन अचानक वो निखिल से बोली -मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले लेती हूँ ,कहीं अकेले में जाकर ,सारी बातों से दूर शांत रहना चाहती हूँ, निखिल ने भी महसूस किया कि कीर्ति  अपनी सहेली के कारण काफी दिनों तक अशांत रही। उसने भी उसे इजाज़त दे दी। कीर्ति बस से अपने पुराने स्थान ,पुराने विद्यालय देखने उसी शहर पहुंची। उसने एक कमरा किराये पर ले लिया। वहां आज भी ऐसा ही था ,कुछ ज्यादा उन्नति नहीं हुई। वो अपनी अध्यापिका से मिली जो अब वृद्ध हो चुकी थीं ,उनकी सेवानिवृत्ति के कुछ ही बरस बाकी  थे। वो उनसे मिली पहले तो वे पहचान नहीं पाईं किन्तु जब कीर्ति ने याद दिलाया तो बहुत ही प्रसन्न हुईं। 
                  उसने अपने और भी दोस्तों को याद किया किन्तु जब रजनी की बात आई तब वो चुप हो गयीं। कीर्ति ने अपने उन अध्यापक के विषय में भी पूछा किन्तु पहले तो चुप रहीं फिर बोलीं -उन्हें हमारे विद्यालय से निकाल दिया गया। अब मैं उनके विषय में कुछ नहीं जानती। कीर्ति को आश्चर्य हुआ ,और बोली -क्यों निकाल दिया ?वो तो कितने अच्छे थे ?उनकी अच्छाई के कारण ही निकाला ,वे फ़ीकी सी मुस्कुराहट से बोलीं। उनके अंदाज से लग रहा था कि ये उन पर व्यंग्य था। अच्छाई के कारण कौन निकालता है ?मैंने पूछा। उनके अंदाज से लग रहा था कि वो इस विषय में बातें ही नहीं करना चाहती। मैं थोड़ी देर तक  रही किन्तु उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया। मैं निराश होकर उनसे इजाज़त लेकर बाहर आ गयी। मैं जहां से चली थी ,वहीं आकर खड़ी हो गयी। इस शहर में मेरा बचपन बीता था ,अब कोई न ही मुझे जानता है न ही मैं किसी को ,जिनसे आशा थी ,वो इस विषय में बात ही नहीं करना चाहतीं। मैं यूँ ही उस विद्यालय के प्राँगण में देर तक बैठी रही। तभी उस विद्यालय के माली ने आकर मुझसे पूछा ,बिटिया इतनी देर से कैसे बैठी हो ?अब तो इसके बंद होने का भी समय हो गया। उन्हें देख मुझे एक उम्मीद लगी ,मैंने पूछा -काका ,आप यहाँ कब से हो ?वो बोले -पंद्रह -बीस बरस हो गए। कीर्ति की आँखें चमक उठीं ,बोली -यहां एक अध्यापक थे मतीन सर ,वो अब नहीं हैं ,क्या तुम उनके विषय में कुछ जानते हो ? नाम सुनकर ,वो एकदम चुप हो गया। कीर्तिं जिज्ञासावश बोली -वो तो उस समय यहां थे ,फिर उन्हें इस विद्यालय से क्यों निकाल दिया गया? आप कुछ भी जानते  हैं ,तो मुझे उनके विषय में बताइये ,अब वो इस समय कहाँ हैं ,और उन्हें क्यों निकाला गया? माली बोला -उनके विषय में आज तक तो किसी ने नहीं पूछा ,न ही कोई ु उनकी बातें करता है। मगर क्यों ?कीर्ति उतावली होकर बोली।ऐसा उन्होंने क्या किया ?माली ने कीर्ति की तरफ देखा ,बोला -क्या तुम उनकी कुछ लगती हो ?वो बोली -मैं भी उनसे पढ़ी हूँ ,बस इतना ही रिश्ता है। अब क्यों जानना चाहती हो ?अरे !अपने पुराने अध्यापक से मिलने में क्या बुराई है ? तभी उसे स्मरण हुआ कि वो अपनी नौकरी और अपना परिवार इन छोटी -छोटी बातों के लिए छोड़कर नहीं आई ,उसे वापस भी जाना है। वो बोली -यदि आप कुछ जानते हैं तो बताइये ,उन्हें इस विद्यालय  से क्यों निकाला गया और अब कहाँ हैं ?

                 उसके उतावलेपन को देखकर ,माली बोला -जिस गुरु को तुम इतना मान दे रही हो ,उसने अपने ही विद्यालय की एक लड़की के साथ बलात्कार किया और उसी कारण उसे इस विद्यालय से निकाल दिया गया और इसी शर्म के कारण उसने ये शहर छोड़ दिया क्योंकि लोगों ने उसे बहुत पीटा। अब पता नहीं ,वो कहाँ है ?कीर्ति को जैसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ,उसने सोचा -इसीलिए अध्यापिका ने उनके विषय में कोई बात नहीं की। वो मेरी नज़रों में उनकी छवि धूमिल नहीं करना चाहती होंगी। कुछ देर शांत रहकर वो बोली -वो लड़की कौन थी ?वो किसी पास के ही क़स्बे की लड़की थी। पास के क़स्बे की बात सुनकर उसका ध्यान सीधा रजनी की ओर  ही गया। उसने माली को इशारे से जाने के लिए कह दिया। कुछ देर वहीं बैठी रही फिर थके कदमों से अपने कमरे में आ गयी। वो सोच रही थी ,कहीं इसी कारण तो उसने आत्महत्या नहीं कर ली ,इतनी बदनामी के बाद ,उसे कौन जीने देता ?तभी उसे याद आया ,उसके कॉलिज में जो उसके गांव का लड़का मिला था वो तो कह रहा था कि उसका विवाह हो गया। क्या उसने मुझसे झूठ बोला था ?वो ही कहीं दिख जाये ,तो सारे सवालों के जबाब मिल जाएँ।उसने अपने ही मकान -मालिक से पूछा -यहां क्या कोई ऐसा किस्सा हुआ था ?कि किसी अध्यापक ने अपने ही विद्यालय की लड़की का बलात्कार किया हो और उसे उस विद्यालय से निकाल दिया गया हो। वो महिला बोली -तुम्हें ये सब किसने बताया ?और तुम ये सब जानने में क्यों इतनी दिलचस्पी ले रही हो ? कीर्ति बोली -जब मैं छोटी थी तब मेरे पापा का दफ़्तर यहीं था ,इसी विद्यालय में पढ़ी हूँ किन्तु आगे पढ़ाई के लिए ,मैं बाहर चली गयी और कुछ साल बाद पापा की भी बदली हो गयी। तबसे इधर आना ही नहीं हुआ ,अब यहॉँ आई तो उन लोगों से मिलने की इच्छा हुई। तब विद्यालय के माली ने बताया ,ये सब हुआ। मालकिन बोली -हाँ ,बहुत बड़ा हादसा हुआ था ,गली -गली में ये बात फैल गयी थी। कीर्ति अपनी जिज्ञासा नहीं रोक पाई बोली -वो लड़की कौन थी ?पास ही के किसी क़स्बे की ,बहुत बड़ा तमाशा हुआ था। कीर्ति का मन ये मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि ये हादसा रजनी के साथ हुआ होगा। वो बोली -कौन थी वो लड़की ?उसका क्या नाम था ?उसका क्या हुआ ?मालकिन बोली -वो तो मुझे नहीं मालूम ,न ही मुझे कोई दिलचस्पी थी। वो तो उसके गांव जाकर ही पता चलेगा। 

यदि आपको ये कहानी समझ नहीं आ रही कि रजनी कौन थी ?तो इससे पहले की कहानी ''कंगलों की दिवाली ''पढ़ेंगे तो समझ जायेंगे। 
















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post