Who rajni thi ![part 2]

कीर्ति  अपनी  मकान -मालकिन से बात करके अगले  दिन ,रजनी के गाँव के लिए निकल जाती है। बरसों पहले आई थी ,इस गांव में ,अब तो काफी बदलाव लग रहा था। उसके पिता का नाम भी याद नहीं आ रहा था। बस इतना याद है - कि वो किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य रह चुके हैं। गांव के कुछ लोग उसे देख रहे थे ,उनके देखने से उसे बड़ा अज़ीब लग रहा था। वो उन गली  सड़कों को याद करते हुए ,चले जा रही थी। दो गली एक जैसी ही लग रही थीं ,वो खड़ी होकर सोचने लगी, कि कौन सी गली है ? उसने एक बच्चे को वहां खेलते देखा और बोली -क्या तुम ,प्रधानाचार्यजी का घर जानते हो ?उसने पूछा -कौन से ?जिनकी चार बेटियाँ थीं ,उसने बिना देर किये बताया। वो हँसा और बोला -पता नहीं ,कहकर भाग गया।उसने मन ही मन सोचा ''मैं भी न किससे  पूछने लगी ?ये तो  शायद  तब पैदा भी नहीं हुआ होगा। किसी बड़े व्यक्ति से पूछने पर ,पता नहीं वो क्या सोचे ?यही सोचकर वो स्वयं ही अंदाजे से एक गली में घुस गयी। वो बड़ी देर तक चलती रही ,जब गली के आखिर में पहुँची तो गली बंद थी। वो वापस आ गयी ,एक व्यक्ति ने उसे उस गली में घुसते देखा था ,जब वो वापस आ रही थी ,तब वो बोला -मैडम ,आप किसी को ढूँढ रही हैं या कहीं जाना है

?वो बोली -मैं भूतपूर्व प्रधानाचार्य जी का घर ढूँढ रही हूँ  ,उसने कीर्ति को ऊपर से नीचे तक देखा ,बोला -उनसे क्या काम है ? कीर्ति थोड़ा सम्भलते हुए बोली -विद्यालय का ही कोई काम है। वो बोला -मास्साहब , तो अब नहीं रहे। कीर्ति बोली -उनके घर में कोई और तो होगा। वो बोला -अब कोई नहीं है। कीर्ति ने साहस नहीं छोड़ा ,बोली -उनके बच्चे वगैरह कोई  नहीं है। वो बोला -बच्चे ,उनके फूटे करम ,बेटियां थीं  ,बेटा कोई नहीं था। कीर्ति बोली -अब उनकी बेटी ही कहाँ हैं ?वो ही बता दीजिये ,कोई सरकारी कागज़ पर हस्ताक्षर करवाने हैं। उनको बातें करते देखकर एक अन्य व्यक्ति भी आकर खड़ा हो गया। बोला -के हुआ ?वो बोला -मास्साहब ! का घर पूछ रही हैं। दूसरा व्यक्ति बोला -के करोगी ,वहां तो सब बर्बाद हो लिया। पहला व्यक्ति बोला -इन्हें क्या मतलब सरकारी आदमी हैं ?मैडमजी !वो जो दूसरी गली है ,उसमें ही उनका घर है। दूसरा व्यक्ति -ये के कर दिया ,तेणे के आफ़त थी। उन  लोगों  को  आपस में बात करते हुए  छोड़कर, कीर्ति उस गली में चली गयी। 
                  कीर्ति अंदाजे से एक घर के  सामने रुकी ,उसने इधर -उधर देखा। अब वो घर पहले की तरह बड़ा और खंडहर नहीं था ,वहां तो एक बड़ा मकान था या यूँ कहें, कि शानदार कोठी थी। उसने वो बड़ा सा दरवाज़ा खटखटाया ,बहुत देर तक कोई नहीं आया।वह बहुत देर तक इंतजार करती रही ,अभी वो सोच ही रही थी कि स्वयं ही अंदर चली जाये किन्तु उसका दिल उसके साहस का साथ नहीं दे रहा था। वो बड़ी जोरों से धड़कने लगा।  तब एक व्यक्ति उसे  अपनी ओर आता दिखा। कीर्ति ने उससे पूछा -इस घर के मालिक से मिलना है। चंदन साहब ,तो बाहर गए हैं दरबान ने बताया। ' चंदन 'नाम सुनकर कीर्ति चौंकी- ये नाम कहीं सुना लग रहा है। फिर भी उसने पूछा -यहां जो प्रधानाचार्यजी रहते थे ,वे कहाँ गए ?वो बोला -वो तो कबके स्वर्ग सिधार  गए। कीर्ति को ये बात तो गली के बाहर ही पता चल चुकी थी किन्तु उसने उस व्यक्ति के सामने अफ़सोस व्यक्त किया और पूछा  -उनकी बेटियां कहाँ हैं ?उन सबका तो विवाह हो गया,  बताकर जैसे वो अपने कर्त्तव्य से मुक्त हुआ। कीर्ति बोली -उनकी सबसे छोटी बेटी अब कहाँ है ?उस व्यक्ति ने कीर्ति को ध्यान से देखा और बोला -आप कौन हैं  ?कीर्ति ने उसे अपनी सच्चाई बताना आवश्यक समझा और बोली -मैं उसकी सहेली कीर्ति हूँ। वो बोला -क्या आपको कुछ भी नहीं पता ?कीर्ति बोली -मुझे कैसे पता होगा ?मैं तो बरसों बाद उससे मिलने आई हूँ। क्यों क्या हुआ ?कीर्ति ने अनजान बनते हुए पूछा। वो बोला -उन मैडम का तो विवाह हो गया ,पता नहीं उनकी ससुराल में क्या हुआ ?उन्होंने आत्महत्या कर ली। 
                  मकान के अंदर से कुछ आवाजें आ रहीं थीं ,कीर्ति बोली -शायद अंदर कोई है ?वो बोला -कोई नहीं बिल्ली होगी। ये तुम्हारे जो साहब हैं ,क्या उनका विवाह नहीं हुआ ?उनकी पत्नी  तो होगी। वो हड़बड़ाकर बोला -कोई नहीं है ?अब आप जाइये। कीर्ति ने धैर्य से काम लेते हुए कहा -क्या तुम ये बता सकते हो ,उनकी और बेटियां कहाँ है ?और उनकी छोटी बेटी के साथ ऐसा क्या हुआ ?जो उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा। अब मैडम बड़े लोगों की बातें हैं ,मैं क्या बता सकता हूँ ?कहकर वो अपने कान  में तिनका डालकर खुजलाने लगा। कीर्ति को उसने इस तरह नजरअंदाज किया जैसे वो वहां हो ही नहीं।उस कोठी की दीवारें इतनी ऊँची नहीं थीं ,इसीलिए कीर्ति ने  उचककर घर के अंदर झाँका। उसे लग रहा था कि कोई तो है ,जिसका भी वो पता लगाने आई है ,उसका पता उसे इसी घर से ही पता चलेगा। कहाँ से शुरुआत करे,

किस तरह अंदर जाये ? उस घर का दरबान तो एक कुर्सी पर बैठ गया। कीर्ति उस घर के पीछे की तरफ गयी ,वहाँ जंगल  था। कीर्ति ने जो सोचा और जो वो करने जा रही थी ,उसे सोचकर ही उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगीं और वो सबसे नजरें बचाकर, दीवार से कोठी के अंदर कूद गयी। एकाएक उसे ध्यान आया ,यदि यहॉँ कुत्ता हुआ तो उसकी ख़ैर नहीं। अपने शहर ,अपने घर बच्चों से दूर वो पता नहीं क्या सोचकर यहां आ गयी ?उसने घर के पीछे से धीरे -धीरे आगे बढ़ना आरम्भ किया। उसने खिड़कियों के शीशों में से झांककर देखा ,पू रे घर में डरा देने वाली शांति थी। तभी उसे घूमती हुई अपनी सहेली दिखी ,वो आगे बढ़ी ही थी तभी वो दरवाज़े वाला आदमी वहाँ पहुंच गया। बोला -अरे मैडम !आप यहां कैसे आ  गयीं ?मैंने आपको बताया न, कि यहां कोई नहीं  है। कीर्ति बोली -मेरी सहेली रजनी !अभी मैंने उसे देखा। वो बोला -यहाँ कहाँ से देख लिया ?वो तो इस  दुनिया में ही नहीं है। कीर्ति बोली -वो तो मुझे दिख रही है ,तुम्हारे पीछे। वो घबराया सा बोला -चलिए ,मैडम निकलिए !मैंने आपसे पहले ही कहा था ,यहां कोई नहीं रहता ,न ही आता है। उनका साया है ,जो नाराज होकर किसी -किसी को दिख जाता है। उसकी हड़बड़ाहट से कीर्ति को भी कुछ नहीं सूझा और वो भी बिना देर किये उसके पीछे हो ली। 
                  कीर्ति उसकी बातों से बस इतना ही समझ पाई कि उनका साया है जो क्रोध में किसी को दिख जाता है। कीर्ति सोच रही थी, क्या सच में, रजनी ने आत्महत्या कर ली ?और वो मुझसे क्रोधित है ,जिस कारण मुझे ही बार -बार दिख रही है। उसे घर से आये ,दो दिन हो चुके थे और वो रूककर करेगी भी तो क्या ?उसे तो भ्र्म था कि रजनी जिन्दा है, किन्तु यहाँ आकर पता चला कि वो तो सचमुच ही जा चुकी है। ये बात अगर निखिल को पता चली कि मैं छुट्टी लेकर और बच्चों को छोड़कर, किसी अनजान जगह पर ,अनजान लोगों के बीच घूम रही हूँ ,तो वो बहुत नाराज़ होगा। वो अपने उस किराये के मकान में आती है। अपनी मकान -मालकिन से पूछती है -क्या आप भूत -प्रेतों पर विश्वास करती हैं? वो बोली -अब तो ये चीजें नहीं रहीं ,न ही कोई अब इन चीजों पर विश्वास करता है किन्तु आज भी कोई -कोई किस्सा सुनने को मिल जाता है ,ये भी होता है कि किसी से किसी को कुछ कहना या अपनी अधूरी इच्छा पूरी करवानी हो तो वो उससे मिलने का प्रयत्न करता है लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रही हो ?कीर्ति  बोली कुछ नहीं ,बस ऐसे ही जानने की इच्छा हुई। अगले दिन कीर्ति ने अपने घर जाने की तैयारी कर ली थी। वो रात में बैठी सोच रही थी यदि रजनी सचमुच जा चुकी है ,तो वो मुझे ही क्यों दिखती है ?या फिर उसकी कोई अधूरी इच्छा है जो मुझसे पूरी  कर वाना चाहती हो। यदि दिखती भी है तो फिर मुझसे कुछ कहती क्यों नहीं ?मुझे दिखती ही है और ग़ायब हो जाती है। ये भी तो नहीं पता चला कि उसने आत्महत्या क्यों की ?कोई जानता ही नहीं। क्या पता वो कोई उसकी हमशक़्ल ही हो और मैं उसे रजनी ही समझे बैठी हूँ। किन्तु उसके ज़ेहन में अनेक प्रश्न अभी बाकि थे। उसके सर में हल्का दर्द महसूस होने लगा ,उसने अपने लिए चाय बनाई और सभी प्रश्नों को नजरअंदाज करके सोने का प्रयत्न किया।  

                 सुबह एकाएक उसके मन में प्रश्न आया ,ये चंदन कौन है ?उसने रजनी का मकान कैसे खरीदा ?नाम सुना सा लग रहा है किन्तु याद नहीं आ रहा। वो तैयार होकर ,अपने घर के लिए रवाना हो जाती है ,उसे लग रहा था ,यहां आने का उसका फैसला गलत रहा। यहां आकर उसे कुछ पता नहीं चला। तीन दिनों बाद बच्चों से मिली थी ,आते ही बच्चे उससे लिपट  गए। निखिल ने पूछा -अब तुम केेसा महसूस कर रही हो ?जहां तुम गयीं थीं ,कुछ काम बना। कीर्ति बोली -मैं तो थोड़ा रिलैक्स होने के लिए गयी थी। निखिल बोला -मैंने कब कहा ,कि तुम अपनी सहेली के लिए गयी थीं। कीर्ति ने चौंककर निखिल को देखा और बोली -तुम्हें कैसे पता चला ?कि मैं अपनी सहेली के गाँव गयी थी। निखिल हंसकर बोला -अभी तुमने ही तो बताया ,मैंने तो अंदाजे में ही तीर चलाया था। उसकी बात सुनकर कीर्ति शांत हो गयी। किन्तु  निखिल ने उसे नहीं बताया कि वो भी उसके पीछे ही था ,इससे कीर्ति को ठेस लगेगी कि मैं उस पर विश्वास नहीं करता या मैंने उसका पीछा किया। ऐसी हालत में ,मैं उसे अकेला भी तो नहीं छोड़ सकता था ,उसने अपने -आप से कहा। मेरी कीर्ति इतनी हिम्मत का कार्य भी कर सकती है ,सोचकर वो मन ही मन मुस्कुराया ,अभी अपने -आप से जूझ रही है। प्रतिदिन की तरह सभी अपने -अपने कार्य में व्यस्त रहे। तीन सप्ताह आराम से बीत गए ,एकाएक उसे फिर से रजनी दिखी। तभी उसे मकान -मालिक की बात याद आ गयी ,जब कोई आत्मा का कोई अधूरा कार्य रह जाता है तब वो भटकती है ,आज कीर्ति ने फिर से उसका पीछा किया क्योंकि वो जानती है ,उससे मिलकर ही उसके सभी प्रश्नों के जबाब मिल सकते हैं। पता नहीं, किन गलियों में वो उसका पीछा करती रही ,तभी एकाएक एक गाड़ी में बैठकर वो चली गयी। तभी उसके मन में प्रश्न कौंधा -क्या भूत या आत्मायें भी गाड़ी में सफ़र करती हैं ?हो न हो ,ये कोई स्त्री ही है कोई भूत या आत्मा नहीं। 
















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post