Who rajni thi ! [ part 5]

 कीर्ति परेशान थी, कि मेरे साथ ये सब क्या हुआ ?इसमें कितनी सच्चाई है ,और कितना सपना ?उसने उस सच्चाई को परखने के लिए ,पुनः अपना पर्स खोलकर देखा और उसमें से वो कागज़ निकाला जिसमें रजनी का फ़ोन नंबर था। कुछ समझ नहीं आ रहा था ,वो अपने दफ्तर गयी किन्तु उसने रत्ना को भी कुछ नहीं बताया। अगले दिन उसने उसी नंबर पर फोन किया किन्तु उधर से कोई जबाब नहीं आया। आज तो उसे उस बाबा से भी मिलना था। मैं उसे बता देना चाहती थी कि रजनी कोई आत्मा नहीं बल्कि जो मुझे दिख रही थी,'' वो रजनी ही थी।  '' उस बाबा का पर्दाफाश करना था और जो उसने उस दिन देखा वो सबकी आँखों को खोलने के लिए काफ़ी था। उसे लगने लगा ,कहीं रजनी के चक्कर में वो अपना मानसिक संतुलन तो नहीं खोती  जा रही है। तभी रत्ना  का फ़ोन उसे आया -
      हैलो कीर्ति !तू ठीक आठ बजे आ जाना। कीर्ति परेशान हो उठी ,उस बाबा ने तो पचास हज़ार रूपये माँगे हैं। और वो तो रजनी के भरोसे बैठी थी कि उस बाबा की असलियत भी दिख जाएगी और उसे  पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे। निखिल उसे तैयार देखकर बोला -क्या तुम्हें ,कहीं  जाना है ? कीर्ति पहले से ही उलझन में थी ,कुछ समझ नहीं आ रहा था ,वहां जाकर भी क्या हो जायेगा ?वो तो रजनी के भरोसे बैठी थी ,अब वो फोन ही नहीं उठा रही। उसने मन में सोचा -और एक बार पुनः फोन लगाने का प्रयत्न किया ,इस बार फोन उठा और उधर से आवाज़ आयी ,अभी समय नहीं आया ,तुम पहुँचों ,मैं वहीं आ जाऊँगी। कीर्ति को आश्चर्य हुआ कि इसे कैसे पता, मैं इसे कहाँ ले जाने वाली हूँ ?कीर्ति बोली -तुम रजनी ही हो न ,उधर से हंसी की आवाज आई और बोली -तुम्हे कोई शक़ है। कीर्ति एक बात और पूछना चाह रही थी ,वो बोली -तुमने इससे पहले फोन क्यों नहीं उठाया था ?वो बोली -समय नहीं आया था। कीर्ति कुछ समझी नहीं ,सोचा -जब मिलेगी तभी पूछ लूँगी। 

                 तांत्रिक बाबा ,अपने सभी तामझाम लिए बैठे थे ,कीर्ति को देखते ही उनकी ''बाँछें खिल गयीं ''और  अपने शब्दों में मिश्री घोलते हुए बोले -आ गयी बिटिया !आओ बैठो और पैसे चेले को दे दो। कीर्ति बोली -बाबा ,मैं इंतज़ाम नहीं कर पाई ,तो फिर अब तू रजनी की आत्मा का खेल देखना ,मैंने उसे शांत करा रखा था और तभी वो आंटी हिलने लगीं। वो  इस तरह करने लगीं ,जैसे धीरे -धीरे उसके अंदर रजनी आ रही हो। तभी रजनी ने वहां प्रवेश किया ,उसे देखकर तांत्रिक हड़बड़ा गया और उस महिला का हिलना भी बंद हो गया। कीर्ति उसे देखते ही मैं  प्रसन्न हो गयी किन्तु रत्ना कुछ भी नहीं समझ पाई  और बोली -ये सब क्या हो रहा है ?रजनी को  देखते ही ,कीर्ति का साहस बढ़ गया और बोली -ये है ,रजनी ,मेरे बचपन की सखी ,ये जिन्दा है। जब ये जिन्दा है तो उसकी आत्मा इस आंटी के अंदर कैसे आ  गयी ?
               कीर्ति रत्ना से बोली -तू जानती  है ,ये जो आंटी हैं ,ये इस बाबा से  मिली हुई हैं ,इन दोनों का काम ही ये है ,बहला -फुसलाकर ये लोगों को लाती है और बाबा से मिलवाती है ,ये जो इसके ऊपर रजनी आई थी तब उस दिन, मैं भी घबरा गयी थी और इन लोगों पर विश्वास कर बैठी थी। किन्तु एक सप्ताह पहले मैंने आंटी  को छुपकर कहीं जाते देखा ,पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया फिर मैंने इनका पीछा किया कि ये कि ससे छिप रहीं हैं और इन्हें छिपने की ,आवश्यकता भी क्या है ?तब मुझे पता चला कि दोनों पति -पत्नी लोगों को ऐसे ही ठगते हैं। क्या ??? रत्ना आश्चर्य से बोली ,पर मैंने तो कभी इन्हें इनके साथ नहीं देखा। दुनिया के सामने अनजान ही बने रहते हैं ताकि कोई मुर्ग़ा फ़ंसे और ये दोनों मियां -बीबी उसे हलाल करें। 
            रत्ना को अब भी जैसे विश्वास नहीं हो रहा था। वो तो भला हो रजनी का, एक दिन मुझे मिल ही गयी और मुझे इनकी पोल खोलने का मौका मिला। रजनी जो अब तक चुपचाप खड़ी थी ,वो बोली - मैंने पुलिस को भी फ़ोन कर दिया है ,तुम लोग जरा जाकर गाड़ी में बैठो ,मैं इन्हें बताती हूँ कि भूत कैसे होते हैं ?वो दोनों चली गयीं।  बस उस कमरे से चीखने -चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। कीर्ति रत्ना से बोली --मेरी दोस्त इन्हें ऐसा सीधा कर देगी , आगे किसी को मूर्ख बनाने का नाम नहीं लेंगे। तुमसे ,पहले तो इसने मेरे विषय में सारी जानकारी ले ली और उसका लाभ उठाया। दोनों भागते -दौड़ते से बाहर आये और चिल्लाने लगे ,ये भूत है  ...... ये भूत है. .......  
            कीर्ति रजनी से  बोली - आ जाओ !मेरी गाड़ी में ,रजनी बोली -नहीं मुझे इसकी आवश्यकता नहीं ,क्यों तुम्हें  घर नहीं जाना ? कीर्ति ने पूछा। जाना है ,और आज चंदन भी आनेवाला है ,अब मैं जाऊँगी कहकर वो उनकी आँखों से ओझल हो गयी। कीर्ति ने सोचा -चंदन से इसका क्या रिश्ता है ?मैंने पूछा भी नहीं। घर आकर उसने निखिल से क्षमा मांगते हुए ,उसे सारी बातें बता दीं। पहले तो निखिल हैरान -परेशान होने के साथ नाराज़ भी हुआ ,बोला --यदि तुम्हें रजनी नहीं मिलती ,तो तुम तो फ़ँस ही गयी थीं उस तांत्रिक के चक्कर में। उसने निखिल को मनाया और आगे से ऐसी गलती न करने का वायदा किया। 

             आज रविवार है ,कीर्ति ने अपने घर के सभी कार्य निपटाये और शाम को घर का सामान लेने के लिए निखिल के साथ बाजार गयी। आज भी वो उसी जगह है जहां पहली बार उसे रजनी मिली थी। वो बोली --निखिल चलो ! आज तुम्हें ,चंदन और रजनी दोनों से मिलवाती हूँ। वे दोनों  उसके घर के सामने पहुंच गए। दरवाजा एक जाने -पहचाने व्यक्ति ने खोला ,उसे देखते ही कीर्ति बोली -चंदन ! वो व्यक्ति उसे ध्यान से देखने लगा। क्या , मैं  आपको पहचानता हूँ ?कीर्ति उत्साह से बोली - अरे !तुमने मुझे नहीं पहचाना ,मैं कीर्ति ''एम्. एस. सी. ''कॉलिज..... । कुछ याद करते हुए ,ओह तुम ! आओ अंदर आओ !कीर्ति ने निखिल का परिचय कराया। उसने सपना को पानी लाने  के लिए कहा। इससे कीर्ति चौंकी नहीं ,क्योंकि रजनी ने तो उसे पहले ही बता दिया था कि सपना के नाम से उसे जानते हैं। चंदन बोला -बहुत दिनों पश्चात मिले हैं ,तो पहचान नहीं पाया और अब तो तुम पहले से और अधिक सुंदर हो गयी हो। अपनी प्रशंसा सुनकर कीर्ति ने मुस्कुराकर  निखिल की तरफ देखकर अपनी भवें मटकाई। इन्हें तो बस हम ही झेलते हैं ,वो बुदबुदाया था किन्तु कीर्ति ने सुन लिया था और बोली -क्या तुम मुझे झेलते हो ?
तभी रजनी रूपी सपना ने पानी के ग़िलास के साथ कमरे में प्रवेश किया ,तब कीर्ति बोली -आ बैठ जा ,कीर्ति का इस तरह व्यवहार देखकर ,चंदन बोला -क्या तुम दोनों पहले मिल चुकी हो ,एक -दूसरे को जानती हो ? हाँ ,ये रजनी ही तो है कीर्ति बोली। नहीं ,ये सपना है -चंदन बोला। हाँ ,इसने मुझे बताया था कि यहाँ इसे सपना के नाम से जानते हैं, कीर्ति उसकी बात का समर्थन करते हुए बोली। चंदन बोला -तुम इससे पहले कब मिली ?तब कीर्ति ने सारी बातें चंदन को बताईं। उसकी बातें सुनकर चंदन ने एक ठंडी साँस ली। कीर्ति बोली -तुमने तो मुझे बताया था कि रजनी अब नहीं रही ,तुमने ही उसके विवाह की सूचना भी मुझे दी थी ,फिर तुम्हारा विवाह इसके साथ कैसे हो गया ?
            चंदन उसकी बातों को आँखें मीचे सुनता रहा, वो कुछ कहना चाहता था किन्तु तभी रजनी बनी सपना बोली -अब मैं बताती हूँ ,तभी चंदन ने ऊपर घड़ी देखी। घड़ी आठ बजा रही थी ,सपना ,अब तक जो शांत खड़ी थी ,एकदम से कीर्ति से गले मिली। कीर्ति बोली -अब तक तो अजनबियों जैसा व्यवहार कर रही थी और अब एकदम से कैसे प्यार उमड़ आया ?रजनी बोली -तू तो मुझे छोड़ आई ,तू आगे पढ़ने बाहर चली गयी ,मैं भी ज़िंदगी से जूझ रही थी। तभी वो 'मतीन सर' ने मेरे सिर पर हाथ रखा और मैं भी एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ने लगी। मैं भी ज़िंदगी में कुछ करके अपने माता -पिता का सहारा बनना चाहती थी ,उनका बेटा बनना चाहती थी। मैं भी आगे बढ़ रही थी और अपनी उम्र के पड़ाव को भी महसूस कर रही थी। एक दिन मेरी बहन का  देवर आया और उसने मुझे मेरे सर के खिलाफ़ भड़काया कि ये आदमी सही नहीं है। ''सर'' जब भी मुझे पढ़ाते थे तो उनका हाथ इधर -उधर लग जाता था किन्तु तब तक ,मैं वो चीजें समझ नहीं पाई। सोचा अनजाने ही लग जाता होगा किन्तु जब उसने समझाया तो मैं महसूस करने लगी और मैं अपनी बहन के देवर की ओर खिचने लगी। अब सर को बुरा लगा -बोले ,मैं तुम्हारी शिक्षा के लिए रात -दिन एक कर रहा हूँ और तुम ये फालतू के कामों में लगी रहती हो। क्योंकि मैं दोनों की नियत ही नहीं समझ पाई थी कि कौन मेरा अपना है या मेरा भला चाहने वाला है। सर का क्रोध मेरे प्रति बढ़ने लगा ,उसने सोचा होगा -तू जो इतने दिनों से ' मछली को  दाना डाल रहा है। 'वो व्यर्थ चला जायेगा , एकाएक उसकी बातों का तरीका बदलने लगा ,जैसे वो उन बातों को स्मरण करते  ही उसका क्रोध बढ़ गया।

              उधर मैं अपनी बहन के देवर के आकर्षण में पड़ने लगी। मैं कह नहीं सकती - कि वो प्रेम था या आकर्षण ,किन्तु मैंने दोनों के बीच अपने को महत्वपूर्ण पाया। दोनों का ध्यान मेरी ओर था ,मैं अपने को विशेष समझ रही थी। वो  मेरे माता -पिता की सेवा करता , घर के और बाहर के अन्य कार्यों में मेरी सहायता करता। उधर वो गुरु घंटाल मेरे घर आता ,मेरा व्यवहार बदलते देख भी ,उसने आना नहीं  छोड़ा। 
ख़ैर !उसने ठंडी साँस ली और थोड़ा चुप रही। हम तीनों उसका मुँह देख रहे थे। हमें बहुत देर हो चुकी थी किन्तु उसकी कहानी सुनने में हम इतने खो गए कि याद ही नहीं रहा कि हमें घर भी जाना है।उसके शांत   होने  पर मैंने  घडी की ओर देखा ,घड़ी में  आठ बजकर तीस मिनट हो गए थे ,उसने निखिल की तरफ देखा। उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया। उसकी ओर देखकर लग रहा  था कि उसकी  रजनी की कहानी में दिलचस्पी बढ़ गयी थी। वो जानना चाहता था ,- कि रजनी के साथ आगे क्या हुआ ?मैंने  एक तरफ जाकर घर पर  फोन   लगाया, कि हम दोनों  ठीक हैं ,हमें आने में थोड़ा समय  जायेगा। 
                  फोन करके मैं वापस अपने स्थान पर आ गयी ,तब रजनी फिर से अपनी बातें बताने लगी ,बोली -एक बार मुझसे मिलने कीर्ति भी आयी किन्तु मुझसे मिलकर चली गयी। उस समय मैं उसे अपनी मनःस्थिति नहीं बता पाई क्योंकि मुझे स्वयं ही नहीं समझ आ रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है ?या क्या होने वाला है। एक दिन मैं पढ़ रही थी ,अपने उसी गुरु घंटाल से ,अब यदि वो इधर -उधर हाथ लगाता तो मैं प्रयत्न करती कि दुबारा वो ऐसा न कर सके। मेरे पिता को लेकर माँ डॉक्टर के गयी थी ,साथ में बहन का देवर भी। मैं और मास्टरजी घर  में अकेले थे। मेरे पिता का उन पर विश्वास था क्योंकि वे स्वयं भी एक अध्यापक रह चुके थे। वो उनका सम्मान करते थे उन्होंने मुझे उनके हवाले छोड़ा और चले गए ,इतने बड़े घर में हम अकेले थे। उस गुरु घंटाल ने मुझसे पूछा -तुम मुझसे कुछ कटी -कटी सी क्यों रहती हो ?मैं तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ और तुम मुझसे बचती रहती हो ,तुम्हें तो मुझे प्रसन्न रखना चाहिए ,कहकर वो मेरे नजदीक खिसक आये। मैंने उनसे कहा --सर ,आप थोड़ा दूर बैठिये किन्तु उन्होंने मेरी किसी भी बात पर घ्यान न देकर ,मुझे अपनी और खींच लिया और बोला -मैं तो समझता था कि तू तो अपने -आप ही मेरे पास आ जाएगी किन्तु तू तो बहुत नखरे दिखाने लगी। तुझे अपने रूप पर गुमान होने लगा आज मैं तेरे उस रूप पर चार -चाँद लगा दूंगा। आज तुझे मैं ऐसी दुनिया दिखलाऊँगा जिसे देखकर तू अपने जीवन का अर्थ समझ जायेगी। और उसने मेरे साथ ज़बरदस्ती की ,मैं चीख़ती रही किन्तु किसी को भी मेरी आवाज सुनने को नहीं मिली ,तभी मुझे किसी की आहट महसूस हुई और मैं पूरी ताकत के साथ चीख़ी। तभी मैंने अपनी बहन के देवर को देखा ,मैंने सोचा ,शायद मेरे माता -पिता आ गए किन्तु वो अकेला था। जब मैंने उसे मदद के लिए पुकारा। तो वो आया किन्तु मेरी स्थिति का लाभ उठाने के लिए ,और वो भी मुझ पर टूट पड़ा। बोला -मैंने समझाया था न ,मास्साहब से बच के रहियो। अब तो मिलबांटकर ही खाना पड़ेगा। मेरे पिता का उस मास्टर ने विश्वास तोड़ दिया और उस देवर ने रिश्ते का भी लिहाज़ नहीं किया। मैं तो स्वयं ही उसकी ओर आकर्षित हो रही थी ,शायद विवाह भी कर लेती किन्तु दोनों के मन में तो कीचड़ भरा था जो उन्होंने मेरे ऊपर उड़ेल दिया। मैं अश्रुपूरित नजरों से उनकी हैवानियत देख रही थी। उन्होंने मेरी ज़िंदगी को गहन अँधेरे कुँए में धकेल दिया था। मैं अभी ठीक से ,अपने जीवन को ही नहीं समझ पाई थी ,उन दोनों ने मेरे जीवन पर कालिख़ पोत दी थी। 
                 









laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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