कीर्ति अपनी सहेली रत्ना और उसके जानने वाली आंटीजी के साथ किसी ''तांत्रिक बाबा ''के पास जाती है और वे उसकी सहेली के भूत को भगाने के लिए ,पूजा का खर्चा पचास हज़ार बताता है। तब कीर्ति सोचने लगी -बोली ,-बाबा मेरे पास ,इतने सारे पैसे कहाँ से आये ?बाबा लापरवाही से बोला -ये सब तुम्हें पता होगा ,पूजा में इतना पैसा तो लग ही जायेगा। अपनी उस सहेली के भूत से पीछा छुड़ाने के लिए तो ये कुछ भी नहीं हैं ,वो तुम्हें ही नहीं ,आगे -आगे तुम्हारे बच्चों और तुम्हारे पति को भी हानि पहुंचा सकती है ,उसने परिवार के नाम पर कीर्ति को डराना चाहा। कीर्ति परेशान हो उठी ,वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाये ?कीर्ति ने बाबा से कहा -मेरे पास अभी इतना पैसा नहीं ,मुझे कुछ दिनों की मोहलत चाहिए।वो बोला -अब तो अगली पूर्णिमा में ये पूजा हो पायेगी ,तुम्हारे पास पंद्रह दिन हैं। बाबा बोला -अभी ,ये ताबीज़ ले जाओ ,ये तुम्हारी सुरक्षा करेगा। ठीक है , कहकर कीर्ति बाहर आ गयी उसके पीछे वे दोनों भी। गाड़ी में बैठीं , कीर्ति सोच रही थी, कि कैसे उसे पैसों का इंतजाम करना है ? रत्ना बोली -तू तो बहुत ही सोच रही है। कमाल है यार !जीजू भी कमाते हैं ,क्या तुम दोनों के पास पचास हजार भी नहीं ?कीर्ति बोली -जब तेरी गृहस्थी होगी ,तब तुझे पता चलेगा -कि कितना जोड़ पाती है ?पचास हजार तो ऐसे कह रही है ,जैसे पेड़ पर उगते हों। बच्चों की फीस ,घर का खर्चा ,दवाईयाँ ,क़िश्तें उन खर्चों को सोच -सोचकर उसका दिमाग घूमने लगा। वो आंटी बोली -किन्तु तेरा परिवार तो मुसीबतों से बच जायेगा। वही तो सोच रही हूँ ,मैं। मैं निखिल से भी नहीं माँग सकती ,वो पूछेगा -क्यों और किसलिए चाहिए ?तब मैं क्या जबाब दूंगी ?
उसने घर जाते ही घड़ी देखी ,बारह बज रहे थे। उसने धीरे से दरवाजा खोला और चुपचाप आकर लेट गयी। उसने सोचा, निखिल सो चुका है। उसके लेटते ही निखिल बोला -आ गयीं ,क्या बात थी ?कीर्ति बोली -हाँ ,और करवट बदलकर सो गयी। वो निखिल के प्रश्नों से बचना चाहती थी। सुबह उठकर निखिल ने पूछा -तुम्हारी सहेली को क्या हो गया था ?जो इतनी रात गए ,तुम्हें बुलाया। कीर्ति बोली -उसको अचानक पेट में दर्द हो गया था ,घर में अकेली ही तो रहती है। पास -पड़ोस में इतनी जान -पहचान भी नहीं ,मुझे ही जानती थी इसीलिए मुझे ही फोन कर दिया। बेचारी बड़ी घबरा गई थी ,डॉक्टर के ले जाना पड़ा। जब थोड़ा आराम मिला ,तब आई। कीर्ति निखिल से झूठ बोल रही थी किन्तु सच बोलकर भी तो उसे परेशान ही करती। निखिल उसकी तरफ देखते हुए बोला -अब तो ठीक है। कीर्ति ने 'हाँ' में गर्दन हिलाई। वो मन ही मन सोच रही थी -यदि वो अज़नबी रजनी ही मिल जाये तो सारी परेशानियाँ ही सुलझ जायें। उसे रात की वो बात स्मरण हो आई जब वो आंटी जी के ऊपर रजनी की आत्मा आई थी , कितना ड़र गयी थी वो ?इससे पहले उसने ये दृश्य नहीं देखा था।वो रजनी की आत्मा ही होगी ,तभी तो उनके सिर पर आ गयी और जाते ही ,कैसे वो शांत हो गयीं ? कुछ लोग तो इन चीजों पर विश्वास ही नहीं करते, इससे पहले तो मैं भी नहीं करती थी किन्तु जो भी आँखों से देखा ,उसे मैं कैसे झुठला सकती हूँ ?तभी निखिल से बोली -निखिल क्या तुम भूत -प्रेतों में विश्वास रखते हो। निखिल गाड़ी चलाते हुए बोला -तुम इतनी पढ़ी -लिखी होकर ,ये कैसे प्रश्न कर रही हो ? अब इस ज़माने में ऐसी चीज़ों को कौन मानता है ?फिर कुछ स्मरण करके बोला -बचपन में इस तरह के क़िस्से सुने तो बहुत हैं ,कि हमारे गांव में एक महिला काला जादू करती है ,बच्चों की बलि दे देती थी। आत्माओं को वश में करके उनसे अपने काम निकलवाती थी। बाद में ,लोगों ने उसे पकड़कर बहुत मारा और पुलिस के हवाले कर दिया। ये सब सुना है ,देखा कभी नहीं ,हमारे लिए तो ये एक रोचक कहानी बनकर ही रह गयी। कीर्ति बोली -विश्वास तो मैं भी नहीं करती थी। निखिल ने उसके शब्दों को पकड़ा और बोला -नहीं करती थीं ,से क्या मतलब ?क्या अब विश्वास करती हो ? क्या कुछ हुआ है ,क्या ?कीर्ति बोली -नहीं ,वो जो रजनी मुझे दिखी थी न ,अब मुझे लगता है ,वो उसकी आत्मा ही है ,जो मुझे दिख रही है और मैं उसे अपना दोस्त समझे बैठी थी। क्या बात करती हो ?उस दिन तो तुम्हीं कह रहीं थीं कि कोई उसकी हमशक़्ल होगी। आज कह रही हो ,वो कोई आत्मा है ,तुम ये सब फ़ालतू की बातें सोच भी कैसे सकती हो? निखिल झुंझलाकर बोला। कीर्ति का मन किया ,कि निखिल को सब बता दे किन्तु फिर सोचा - ज्यादा नाराज़ होगा। तभी उसके दफ्तर के सामने गाड़ी रुकी और वो चली गयी ,निखिल को लग रहा था ,अवश्य ही कोई बात है और ये मुझसे छिपा रही है।
अभी तक तक कीर्ति कोई भी निर्णय नहीं ले पाई थी ,न ही रुपयों का ही इंतजाम कर पाई। इसी उधेड़-बुन में थी। सोचा -एक सप्ताह हो गया ,अभी तक तो वो आत्मा मुझे दिखी भी नहीं ,शायद ये तांत्रिक बाबा के ताबीज़ का ही असर हो सकता है। उसका मन खुश हुआ वो रत्ना के घर की तरफ चल दी ताकि उससे ये बात बता सके और मिल भी लेगी। अभी वो उस सड़क तक ही पहुँची ही थी कि तभी वो आंटीजी दिख गयीं। कीर्ति ने सोचा -क्यों न इनसे भी बात कर ली जाये ?किन्तु उन्होंने तो मुँह का आधा ढ़का था ,जैसे किसी से छुप रही हों ,उसने आवाज़ लगानी चाही किन्तु वो किसी रिक्शे में बैठकर चली गयीं। कीर्ति ने पहले तो अपनी गाड़ी रत्ना के घर की ओर मोड़ दी। तभी पता नहीं उसके मन में क्या आया और वो उस रिक्शे का पीछा करने लगी। वो रिक्शा एक जगह जाकर रुक गया वो भी पीछा करती रही ,वहां का जो नजारा उसने देखा वो चौंक गयी। चुपचाप वापस आ गयी। जब इन बातों को आठ -दस दिन हो गए तब एक दिन रत्ना बोली -हुआ कुछ इंतजाम ?कीर्ति बोली -अभी तो नहीं। रत्ना बोली -अब दिन ही कितने बाक़ी बचे हैं ?अब क्या करोगी ?कीर्ति चुप रही। आज वो फिर से उसी बाज़ार से सब्ज़ी ख़रीद रही थी ,तभी उसे रजनी दिखी ,उसने ठान लिया आज तो मैं इसे जाने नहीं दूंगी।इसने मेरा जीना दूभर कर दिया है। कीर्ति सब्ज़ीवाले से बोली -वो जो मैडम खड़ी हैं ,क्या तुम्हें भी दिख रही हैं ?सब्ज़ीवाला बोला -हाँ ,ये तो अक्सर इधर आती रहती हैं। कीर्ति ने आव देखा न ताव और तेजी से उस ओर दौड़ चली। वो महिला भी किसी गली में घुसने ही वाली थी कि कीर्ति ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा और बोली -रजनी !उस महिला ने पलटकर पीछे देखा तो चौंक गयी और जैसे किसी चोर को पकड़ने के बाद उसकी स्थिति होती है ,उसी तरह उस महिला की हालत थी।
कीर्ति बोली -तूने मुझे बहुत परेशान किया है ,अब तू मुझे बताएगी , ये सब क्या नाटक है ?वो महिला बोली -कौन रजनी ?मैं किसी रजनी को नहीं जानती ,कीर्ति बोली -तू है रजनी और तू मुझे नहीं पहचानती ,मैं तेरी बचपन की दोस्त कीर्ति। वो महिला हाथ छुड़ाकर बोली -मेरी कोई दोस्त नहीं है ,न ही मैं तुम्हें जानती हूँ। कीर्ति ने फिर उसका पीछा किया ,उसे अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया। कीर्ति बोली -मैं तुझे अच्छे से पहचानती हूँ ,तू न ही कोई कॉपी है ,न ही कोई और। तू ये सब क्यों कर रही है ?गली के लोग अपने घरों से बाहर निकलकर देखने लगे। उसे बड़ा अज़ीब लग रहा था ,उसने कीर्ति का हाथ पकड़ा और खींचकर एक मकान में ले गयी। कीर्ति उस मकान को देख रही थी वो शायद इस गली और मोे हल्ले का सबसे बड़ा मकान है। कीर्ति बोली -तू इतने बड़े मकान में रहती है और मुझसे आज तक भी मिलने का प्रयत्न नहीं किया। तेरे कारण मैं अपने मन में अपने ससुरालवालों के लिए मन में कड़वाहट लिए घूमती रही। और अब मिलकर भी ग़ायब हो जाती है। उसने कीर्ति के मुँह पर हाथ रखा और बोली -बहुत बोल लिया ,अब मेरी बारी। उसने पहले अपने नौकर को पानी लाने के बाद ,बाहर कुछ सामान के बहाने से बाहर भेज दिया। उसके जाने के बाद ,रजनी ने उसे गले लगा लिया। वो बोली -तू ही है ,जो मुझे पहचान पाई वरना यहां मुझे कोई नहीं जानता और वहां मेरे अपने भी नहीं जानते। मैं यहाँ सबके लिए सपना हूँ। कीर्ति ने थोड़ी राहत की साँस ली कि ये मान तो गयी कि वो ही रजनी है। तभी उसका नौकर आ गया बोला -दीदी सामान आ गया ,रजनी ने उसे चाय बनाने के लिए कहा ,तभी कीर्ति का फोन बजा उसने समय देखा ओह !आठ बज रहे हैं। फोन निखिल का था ,उधर से आवाज आई -कीर्ति तुम कहाँ हो भई ?आठ बज गए और अभी तक नहीं आयीं। क्या कोई दुर्घटना तो नहीं हो गयी या कोई और बात है ?कीर्ति मुस्कुराई और बोली -मैं आज अपनी पुरानी सहेली के साथ हूँ ,वो खो गयी थी ,आज मिली है। कौन ?कहीं वो तुम्हारी हमशक़्ल रजनी तो नहीं ,निखिल अंदर ही अंदर भुनभुना रहा था कि पता नहीं फिर से इस पर कोई भूत सवार हो गया है। इस रजनी ने भी न हमारी ज़िंदगी नरक बना दी है। बोला -अब क्या इरादा है ?घर नहीं आना है क्या ?कीर्ति बोली -अभी आती हूँ। आज वो प्रसन्न थी। उधर निखिल परेशान ,पता नहीं ,इसे क्या उसका भूत दिख गया ?
कीर्ति प्रसन्नता से बोली -अब तू ये बता ,तू कैसे रजनी से सपना बनी और वहाँ तेरे गांव में सब तुझे कहते हैं कि मर गयी ,उसने आत्महत्या कर ली और जो तुम्हारा अपना घर था ,उसका मालिक चंदन कौन है ?रजनी बोली -तो तूने मेरी काफ़ी ख़ोजबीन की है। किन्तु हाथ कुछ नहीं लगा ,कीर्ति बोली। रजनी बोली -क्या तू चंदन को भूल गयी ?तू तो उससे पहले भी मिल चुकी है ,जरा दिमाग़ पर ज़ोर डाल। कीर्ति ने बहुत सोचा ,बोली -नहीं याद आ रहा। रजनी बोली -मेरी मौत की सूचना तुझे किसने दी थी ?तभी उसे अपनी कक्षा का वो लड़का याद आया और बोली -मैंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया ,वो कब से इतना अमीर हो गया कि उसने तेरा घर ही ख़रीद लिया। चाय पीने के बाद ,कीर्ति बोली -वहां घर में सब लोग परेशान हो रहे हैं ,अब तो तू मिल ही गयी ,तूने मेरी एक बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। कौन सी समस्या ?और मैंने कैसे हल कर दी ?वो तो मैं तुझे परसों ही बताऊंगी ,ला पहले अपना फ़ोन नंबर दे। मैं तुझसे बाद में बात करूंगी और अब कहीं ग़ायब मत हो जाना। ये भी तो तेरा ही घर है न। हाँ ,उसने ज़बाब दिया। तभी कीर्ति को लगा जैसे किसी ने उसे धक्का दिया हो और उसकी आँखें खुल गयीं उसने अपने को किसी बेंच पर बैठे पाया। उसके दिल को धक्का लगा कि क्या ये सब एक सपना था ?हाँ यही नाम तो उसने मुझे भी बताया था ,उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये एक सपना था। वो तो उससे मिली भी बातें भी कीं ,चाय भी पी ,ये सब तो सपना नहीं हो सकता।वो उसी असमंजस की स्थिति में घर की और दौड़ी। घर में सब उसका इंतजार करके खाना खा चुके थे। उससे भी खाने के लिए पूछा गया तो उसने इंकार कर दिया। वो अभी जिस घटनाक्रम से गुजरी है ,उसे मन ही मन पुनः दोहरा रही थी। उसने हाथ भी पकड़ा ,चंदन की भी याद दिलाई। ये सब सपना तो नहीं हो सकता ,तभी उसे उसका फ़ोन नंबर याद आया ,उसने पर्स टटोला तब उसमें उस नंबर की पर्ची भी मिली। वो समझ नहीं पायी -क्या सपना है ,क्या हकीक़त ? सोचते -सोचते उसे कब नींद आ गयी, पता ही नहीं चला। निखिल ने उसे परेशान जानकर कुछ नहीं कहा ,फिर सोचा -फ़ोन पर तो बड़ी खुश थी कि कोई पुरानी सहेली मिल गयी ,अब क्या हुआ ?